सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटकर ही चुनौतियों
का मुकाबला संभव : हितेश शंकर
वाराणसी,३१ मई। विकास के साथ-साथ आज प्रकृति का पूरी तरह दोहन हो रहा है। पृथ्वी पर प्रदूषण प्रसार के लिए मनुष्य ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। वेदों से लगायत स्मृति साहित्य और संस्कृति साहित्य में पर्यावरण सम्बन्धी चेतना व अनुशासन की चर्चा है। जबतक मन और विचार के स्तर पर हमारे अन्दर शुचिता नहीं आयेगी, पर्यावरण प्रदूषण कायम रहेगा। यह विचार आज लंका स्थित विश्व संवाद केन्द्र में ‘चेतना प्रवाह’ के पर्यावरण विशेषांक के विमोचन के अवसर पर विद्वान् वक्ताओं ने व्यक्त किये।
मुख्य अतिथि ‘पाञ्चजन्य’ साप्ताहिक के सम्पादक हितेश शंकर ने कहा कि आज मानवता विकास के उस मोड़ पर है, जहाँ विकास करते हुए जीवन को भी सफल बनाना है। विकास के साथ ही चुनौतियाँ भी बढ़ती है। हम अपनी सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटकर ही आसन्न चुनौतियों का मुकाबला कर सकते हैं। कहाकि जो पिण्ड में है, वही ब्रह्माण्ड में है। कहाकि जीवनदायी प्रकृति के प्रति हमें कृतज्ञ होना चाहिए और उसके संरक्षण के लिए यथेष्ठ प्रयास जरूरी है। अध्यक्षता करते प्रियरंजन शर्मा ने कहाकि एक वृक्ष़्ा मानव जाति ही नहीं अपितु समस्त चराचर के लिए उपयोगी है। शुद्ध हवा और पानी जीवन की सबसे बड़ी अनिवार्यता है तथा वायु ही प्राण शक्ति है। कहाकि भारतीय समाज के संचालन में सदा से विश्व दृष्टि रही है। प्रकृति केवल मनुष्य के उपयोग के लिए नहीं रची गई है। जबकि मनुष्य स्वयं को प्रकृति विजेता मान बैठा है। हमारे वेद मनुष्य को पर्यावरण के सभी घटकों की शुद्धि के प्रति जागरूक रहने का संदेश देते हैं।
मुख्य वक्ता इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय संगठन मंत्री डॉ. बालमुकुन्द ने कहा कि प्राकृतिक संतुलन और पर्यावरण के महत्व को समझने और समझाने की जरूरत है। पर्यावरण संतुलन बनाये रखने में वनस्पतियों की अहम भूमिका है। पर्यावरण के घटक अपने दिव्य गुणों के दान से पर्यावरण को शुद्ध और स्वस्थ रखते हैं। विषय स्थापना करते महामना मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान काशी विद्यापीठ के निदेशक प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने कहा कि शुद्ध पर्यावरण जीवन का विस्तार है। जिस सृष्टि का निर्माण त्रिदेवों यथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने किया, आज उसी सृष्टि पर मानवीय गलतियों और लोभभाव के चलते खतरा खड़ा हो गया है। स्वागत भाषण विश्व संवाद केन्द्र प्रमुख नागेन्द्र जी ने, संचालन विशेषांक के सम्पादक डॉ. अत्रि भारद्वाज ने और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. हंस नारायण सिंह ‘राही’ ने किया।
डॉ.पतञ्जलि मिश्र के वैदिक मंगलाचरण से कार्यक्रम का शुभारम्भ और मालविका तिवारी द्वारा प्रस्तुत वन्दे मातरम् गान से कार्यक्रम का समापन हुआ। इस मौके पर रामाशीष जी, डॉ. विजयनाथ पाण्डेय, डॉ. अभय पाण्डेय, प्रो. आलोक राय, डॉ. हरेन्द्र राय, डॉ. वाचस्पति त्रिपाठी, डॉ. राजेश सिंह, प्रो. कविन्द्र नारायण तिवारी, डॉ. अर्चना उपाध्याय, डॉ. चन्दनलाल गुप्ता,डॉ. जी.एस. त्रिपाठी, प्रो. देवव्रत चौबे, देवी प्रसाद सिंह प्रो. प्रमथेश पाण्डेय, र्आंकार शर्मा, मुनेन्द्र सिंह तोमर, उदय सरोज अग्रवाल, जगदीश प्रशाद पण्डेय, ओम राहुल सिंह, सुनील किशोर द्विवेदी, मनोज पाण्डेय, प्रदीप राय, चेत नारायण सिंह, डॉ. विवेकानन्द तिवारी, धर्मेन्द्र सिंह, राम गोपाल तिवारी, राम प्रसाद, आदि की गरिमामयी उपस्थिति रही।