- सूर्योदय
होते ही भगवान भास्कर को अर्घ्य प्रदान कर नववर्ष विक्रम संवत 2081 का काशी ने किया स्वागत
वाराणसी| चैत्र शुक्ल 1 नए वर्ष का
प्रथम दिवस है। इसीलिए इसे वर्ष प्रतिपदा कहते हैं। भारतीय प्राचीन वाङ्मय के
अनुसार सृष्टि का प्रारम्भ इसी दिन से हुआ। सृष्टि-निर्माण दिवस की स्मृति के रूप
में यह हमारी संस्कृति का उज्ज्वल और महत्त्वपूर्ण दिन है। उक्त विचार राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के प्रान्त प्रचारक रमेश जी ने संस्कार भारती, काशी महानगर एवं भृगु योग (ब्रह्म चिन्ता प्रणाली) ट्रस्ट की ओर से
प्रतिपदा विक्रम संवत-2081 के अवसर आयोजित कार्यक्रम
‘नव संवत्सर अभिसिंचन समारोह’ में व्यक्त किया|
शिवाला घाट पर आयोजित इस कार्यक्रम को
संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि चैत्र शुक्ल प्रथम नए वर्ष का प्रथम दिवस है।
इसीलिए इसे वर्ष प्रतिपदा कहते हैं। भारतीय प्राचीन वाङ्मय के अनुसार सृष्टि का
प्रारम्भ इसी दिन से हुआ। यही कारण है कि अपने देश में प्रचलित सभी संवत् इसी दिन
से प्रारम्भ होते हैं।
उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति हो या
समाज अथवा राष्ट्र उसके जीवन में नया वर्ष नई-नई भावनाएँ, नई-नई अभिलाषाएँ और नई-नई आकांक्षाएँ
तथा उमंगें लेकर आता है। हर कोई आशा करता है कि आने वाला वर्ष उसके ही नहीं सभी के
जीवन पथ को नव आलोक से प्रकाशित करके उसमें नयापन लाएगा और विगत वर्षों में किसी
भी कारण से यदि कहीं भी और कोई भी कमी रह गई हो तो वह इस वर्ष में अवश्य पूरी हो
जाएगी।
उन्होंने आगे कहा कि भारत के सामाजिक जीवन
में जो कुछ भी मान्यताएँ, विश्वास
और धारणाएँ स्थापित की गई हैं उनके पीछे कोई न कोई महत्त्वपूर्ण आधार अवश्य है।
हमारे नए वर्ष की मान्यता के पीछे भी विशुद्ध सांस्कृतिक, प्राकृतिक
और आर्थिक कारण हैं। सृष्टि-निर्माण दिवस की स्मृति के रूप में यह हमारी संस्कृति
का उज्ज्वल और महत्त्वपूर्ण दिन है। जहाँ तक प्रकृति का प्रश्न है इस अवसर पर वह
स्वयं ही नूतनता के परिवेश में डूबी हुई होती है, जिसका आभास
चारों ओर छाए वातावरण में आए पूर्ण परिवर्तन से मिलता है। वसन्त के बाद का सुहावना
मौसम चारों ओर छाया हुआ होता है। वृक्षों पर नई-नई कोपलें आई हुई होती हैं,
आम के वृक्षों पर पूरी तरह से छाया बौर अपनी मीठी-मीठी सुगन्ध चारों
ओर फैला रहा होता है, जिससे वातावरण में मादकता, मोहकता और मदान्धता भर जाती है। प्रकृति के इस परिवर्तन का कोयल
कुहुक-कुहुक कर स्वागत करती है और जहाँ तक व्यक्ति, समाज या
राष्ट्र की आर्थिक समृद्धि का प्रश्न है वह भी इसी समय से शुरू होती है।
समारोह का आरंभ प्रात: 5 बजे संस्कार भारती के ध्येय गीत की
भरतनाट्यम प्रस्तुति डॉ. प्रियंवदा तिवारी पौड्याल के निर्देशन में अंजलि, शिखा पांडे, सरिता दुबे तथा शिवांगी तिवारी द्वारा
प्रस्तुत किया गया। इसके पश्चात प्रभाती गायन मंच कला संकाय बीएचयू की शोध छात्रा
निबेदिता श्याम द्वारा किया गया साथ में तबला संगत श्री अभिनंदन मिश्रा एवं
हरमोनियम संगत श्री आनंद कुमार ने किया। तत्पश्चात सूर्योदय होते ही मुख्य अतिथि
समेत उपस्थित लोगों ने माँ गंगा के तट पर डमरू एवं शंख वादन के साथ भगवान भास्कर
को अर्घ्य प्रदान कर नववर्ष विक्रम संवत 2081 का स्वागत
किया। इसके पश्चात अन्नपूर्णा मंदिर के महंत शंकर पुरी जी महाराज ने आशीर्वचन व
संदेश दिया। कार्यक्रम की व्यवस्था स्वप्निल एवं नवीन चंद्र ने तथा रंगोली शिवांशी
विश्वकर्मा ने बनाया। इस अवसर पर महापौर अशोक तिवारी, संस्कार
भारती काशी प्रान्त संगठन मंत्री दीपक शर्मा एवं दैनिक जागरण वाराणसी के सम्पादक
भारतीय बसंत कुमार समेत बड़ी संख्या में विद्यार्थियों की टोली उपस्थिती रही। इसमें
विशिष्ट उपस्थिति सुरभि शोध संस्थान द्वारा संचालित वनवासी छात्रावास, डगमगपुर से आए नॉर्थ ईस्ट के लगभग 300 विद्यार्थियों
की संख्या रही| जिनको नव संवत्सर एवं भारतीय संस्कृति के
महत्त्व से परिचित होने का अवसर मिला। इसके अतिरिक्त भदैनी शिशु मंदिर के लगभग 150
विद्यार्थी एवं लगभग 100 की संख्या में बटुकों
की उपस्थिती रही। साथ ही 51 की संख्या में युवा चित्रकारों
द्वारा चित्रांकन किया गया। अतिथियों का स्वागत समारोह के स्वागताध्यक्ष डॉ.
आर.वी. शर्मा जी, धन्यवाद ज्ञापन संस्कार भारती, काशी महानगर के अध्यक्ष डॉ. के.ए. चंचल एवं संचालन कार्यक्रम संयोजक
प्रमोद पाठक ने किया।