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Friday, May 31, 2024

पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर महिलाओं के कर्तृत्व की क्षमता की प्रतीक हैं - पूजनीय सरसंघचालक जी

पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर की त्रिशताब्दी का यह वर्ष है। हमारे लिए आज की स्थिति में भी उनका चरित्र आदर्श के समान है। दुर्भाग्य से उनको वैधव्य प्राप्त हुआ। लेकिन एक अकेली महिला होने के बाद भी अपने बड़े राज्य को केवल सम्भालना नहीं, बड़ा करना और केवल राज्य को बड़ा नहीं करना, तो उसको सुराज्य के नाते उसका कार्यवहन करना। राज्यकर्ता कैसा हो वह इसका आदर्श हैं। उनके नाम के पीछे पुण्यश्लोक यह शब्द है। पुण्यश्लोक उस राज्यकर्ता को कहते हैं जो राज्यकर्ता अपनी प्रजा को सब प्रकार के अभावों से मुक्त करता है, दुःख से मुक्त करता है। एक तरह से प्रजा के प्रति अपने कर्तव्य से उऋण हो जाता है।

वास्तव में उस काल में हमारे यहां पर जो आदर्श राज्यकर्ता हुए उनमें से एक देवी अहिल्याबाई थीं। अपनी प्रजा को रोजगार मिले इसलिए उन्होंने उद्योगों का निर्माण किया और ऐसा पक्का निर्माण किया कि महेश्वर का वस्त्र उद्योग आज भी चलता है और बहुत लोगों को रोजगार देता है।

प्रजा के सभी अंगों की, जो दुर्बल थे, पिछड़े थे उन्होंने उनकी भी चिंता की। अपने राज्य की कर व्यवस्था को उन्होंने सुसंय कर दिया। किसानों की चिंता की। सब प्रकार से उनका राज्य सुराज्य था। प्रजा की माता के जैसे चिंता करने वाली राज्यकर्ता, इस नाते उनको देवी अहिल्याबाई यह विधा उसी समय प्राप्त हुआ होगा क्योंकि अपने बचपन से हम उनका नाम सुनते हैं तो केवल अहिल्याबाई होलकर ऐसा नहीं सुनते, देवी अहिल्याबाई होलकर ऐसा सुनते हैं। तो ऐसी पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर महिलाओं के कर्तृत्व की क्षमता की प्रतीक हैं।

मातृशक्ति के सशक्तिकरण की बात आज हम करते हैं, लेकिन मातृशक्ति कितनी सशक्त है और क्या- क्या कर सकती है, कैसे कर सकती है? इसका अनुकरण करने लायक आदर्श देवी अहिल्याबाई ने अपने जीवन से हम सब लोगों के सामने रखा है।

उन्होंने जो काम किया वो अनेक प्रकार से विशेष है। राज्य को उन्होंने कुशलतापूर्वक चलाया। उस समय सभी राज्यकर्ताओं से उनके संबंध मित्रता के थे, इतना ही नहीं तो आसपास के सभी राज्यकर्ता भी उनको देवी स्वरूपा मानते थे। इतनी श्रद्धा और आदर उनके बारे में समकालीन राज्यकर्ताओं में था। राज्य पर कोई आक्रमण न हो, इसलिए समरनीति की जानकार के रूप में भी उनको जाना जाता है। बड़ी सेना लेकर राघोबा दादा आए थे, लेकिन उन्होंने अपनी नीति से और बिना संघर्ष के उस आपत्ति का निवारण कर दिया। ऐसी कुशल प्रशासक, उत्तम राज्यकर्ता, सामरिक और राजनयिक कर्तव्यों में माहिर राज्यकर्ता थीं, और केवल अपने राज्य की उन्होंने चिंता नहीं की पूरे देश की चिंता की।

अपने देश की संस्कृति का जो आधार है, उसको पुष्ट करने के लिए देश में अनेक स्थानों पर उन्होंने मंदिर बनवाए। स्वयं राज्य करती थीं, तो भी अपने को राजा नहीं मानती थीं। "श्री शंकर कृपे करूण" ऐसा लिखती थीं। श्री शंकर आज्ञेकरूण - शिव भगवान की आज्ञा से राज्य चला रहीं हैं, ऐसा उनका भाव था। उन्होंने कई जगह मंदिर बनवाए, नदियों पर घाट बनवाए, धर्मशालाएं बनवाई। उन्होंने सारे भारत में यह कार्य किया। जो धर्मयात्राओं के मार्ग थे और व्यापारिक आने जाने के मार्ग थे, उन पर यह सारे काम किए ताकि पूर्ववत भारत की सारी जनता का आना जाना अपने सांस्कृतिक स्थलों में और अपनी आजीविका के लिए सर्वत्र चलता रहे। एकात्मता बनती रहे, बढ़ती रहे। इतना दूर का विचार करके उन्होंने यह काम किया और विशेष है कि अपनी धर्म श्रद्धा के कारण किया। इसलिए उन्होंने यह सारा काम अपनी निजी संपत्ति में से किया।

स्वयं रानी होकर बहुत सादगी से रहती थीं। इस प्रकार प्रजा का पालन, राज्य का संचालन, राज्य की सुरक्षा, देश की एकात्मता-अखंडता, सामाजिक समरसता, सुशीलता और सादगी, इनका आदर्श रखने वाली एक महिला राज्यकर्ता, आदर्श महिला इस प्रकार पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई का चित्र हमारे सामने है। आज की हमारी स्थिति में भी हमारे लिए वो एक आदर्श है, उनका अनुकरण करने के लिए वर्ष भर उनका स्मरण करने का प्रयास सर्वत्र चलने वाला है, यह अतिशय आनंद की बात है। उस प्रयास को सब प्रकार की शुभकामना देता हुआ मैं अपना कथन समाप्त करता हूं।

Monday, May 27, 2024

‘‘को नृप होउ हमहि का हानी’’ की मानसिकता देश के लिए हानिकारक - रमेश जी

काशी। ‘‘को नृप होउ हमहि का हानी’’ ये मानसिकता देश के लिए हितकारी नहीं है। इसका दुष्परिणाम 1947 में दिखाई जब कुछ लोगों के द्वारा चुने हुए व्यक्तियों ने भारत की धरती पर लकीर खींचकर भारत का विभाजन कर दिया। उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के काशी प्रान्त प्रचारक श्रीमान रमेश जी ने संस्कार भारती काशी महानगर द्वारा लोकमत परिष्कार के सन्दर्भ में आयोजित काशी कला साधक संगम   कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा।

     दुर्गाकुण्ड स्थित श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय में आयेजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में रमेश जी ने आगे कहा कि भारत सदैव एक राष्ट्र रहा है और आगे भी रहेगा यही इसकी विशेषता है। उन्होंने कहा कि ‘‘कारवां आता गया, हिन्दोस्तां बसता गया’’ ये विचार हमारे मन में डाले गये। जबकि हमारी संस्कृति हमें बताती है कि ‘‘हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्, तं देव निर्मितं देशं हिन्दुस्थानम् प्रचक्षते’’ यह एक राष्ट्र का ही दर्शन है। चुनाव को राजनीति मानकर उसकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। भारत के संविधान ने मतदान के द्वारा अपना प्रतिनिधि चुनने की व्यवस्था बनायी है। यह एक अनुशासन भी है।

वक्ता के रूप में उपस्थित पद्मश्री राजेश्वर आचार्य ने कहा कि नर से नारायण बनने की प्रक्रिया काशी में ही पूर्ण होती है। लोकतंत्र में बौद्धिक संस्कारयुक्त आलोक होना चाहिए। विज्ञान विराट से सूक्ष्म की ओर आया है। जबकि भारतीय दर्शन सूक्ष्म से विराट की ओर पहुंचा है। उन्होंने कहा कि ‘‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत’’ को परिभाषित करते हुए कहा कि उठो, जागो और अपने पड़ोसियों को भी इस भाव से अभिसिंचित कर लोकतंत्र के महापर्व में अपना मतदान कर राष्ट्रनिर्माण के सहभागी बने। उन्होंने काशी के लोगों का आह्वान करते हुए कहा कि हमारा पूर्ण मतदान ही हमारी सजगता का परिचायक होगा।

कार्यक्रम में मंचासीन अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री जितेन्द्रानन्द सरस्वती ने कहा कि जब पूरी दुनिया युद्ध के झंझावात में फंसी हुई है और भारत की ओर एक आस भरी नजरों से  देख रही है। ऐसे समय में हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम शत्-प्रतिशत मतदान कर अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। पद्मश्री प्रो0ऋत्विक सान्याल ने सभी कला साधकों से सोच समझकर सपरिवार मतदान करने का आह्वान किया।

कार्यक्रम का प्रारम्भ मंचासीन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर संस्कार भारती के ध्येय गीत ‘‘साधयति संस्कार भारती भारते नव जीवनम्’’ से हुआ। कार्यक्रम का समापन सामूहिक वन्देमातरम के गायन से हुआ। धन्यवाद ज्ञापन प्रेम नारायण सिंह एवं संचालन डा.प्रेरणा चतुर्वेदी ने किया।





Sunday, May 26, 2024

सूचनाओं के संवाहक, धर्म के प्रचारक तथा सर्वलोकहितकारी हैं देवर्षि नारद - राजेन्द्र सक्सेना

काशी। आद्य पत्रकार देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक कल्याण के कार्यों में सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। इसी कारण देवर्षि नारद जी को सूचनाओं का संवाहक, धर्मशास्त्रों का सृजनकर्ता देव-दैत्य सभी के मित्र सर्वलोक हितकारी तथा इन्द्र लोक का स्वतंत्र पत्रकार कहा जाता है। उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र मार्ग प्रमुख श्री राजेन्द्र सक्सेना ने देवर्षि नारद जयन्ती कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा।

     लंका स्थित विश्व संवाद केन्द्र काशी के माधव सभागार में आयेजित देवर्षि नारद के जयंती, ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में राजेन्द्र सक्सेना ने आगे कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 1997 से लगातार देवर्षि नारद जयन्ती को विश्व पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाता है। सामान्य रूप से सभी पत्रकार, सम्पादक 30 मई को हिन्दी पत्रकारिता दिवस मनाते हैं। परन्तु 30 मई 1826 को पं0जुगल किशोर शुक्ला जी ने कलकत्ता से पहला हिन्दी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘‘उदन्त मार्तण्ड’’ नाम से प्रकाशित किया। जिसकी सम्पादकीय में उल्लेख है कि 30 मई 1826 को ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया देवर्षि नारद जयन्ती का पर्व है, इस कारण यह प्रथम सोपान उन्हे समर्पित है।

     वक्ता ने आज की वर्तमान पत्रकारिता का उल्लेख करते हुए कहा कि पहले पत्रकारिता मूल्यपरक थी, अब व्यावसायिक पत्रकारिता है। हर तरफ सोशल मीडिया की पत्रकारिता हावी हो रही है, जिस कारण समाज दूषित हो रहा है। उन्होंने संघ मे प्रचार विभाग की भूमिका का उल्लेख करते हुए बताया कि ‘‘माला, मंच और माइक’’ से दूर रहने वाले संगठन संघ को प्रचार विभाग की आवश्यकता क्यों पड़ी? वास्तव में समाज में संघ की सही जानकारी देना प्रचार विभाग का कार्य है। यह व्यक्ति का प्रचार नहीं करता, अपितु विचारों और व्यक्ति के सकारात्मक कार्यों का प्रचार करता है।

विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार डा.वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि वर्तमान में मीडिया तीन सिद्धांतों पर कार्य करता है- सूचना, समाचार  और मनोरंजन। नारद जी की पत्रकारिता में भी यह तीनों तथ्य मिलते हैं। नारद जी की पत्रकारिता पेपर लेस थी। वर्तमान में भी पत्रकारिता पेपरलेस की ओर बढ़ रही है। प्राचीन काल की पत्रकारिता में महाभारत काल का अध्ययन करने पर यह मिलता है कि अर्जुन जैसा प्रश्नकर्ता, कृष्ण जैसा उत्तरदाता एवं संजय जैसा एंकरिंग करने वाला व्यक्ति दुर्लभ है। महाभारत काल में हमें पत्रकारिता के 6 ‘क‘कार (क्या, कहां, क्यो, कब, किसने, किसके द्वारा) मिलता है। आधुनिक पत्रकारिता में इस सिद्धान्त का प्रयोग 1892 में रूडयार्ड किपलिंग ने किया। अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार डॉ.अत्रि भारद्वाज ने कहा कि देवर्षि नारद जी की पत्रकारिता में समाजहित छिपा हुआ है। वास्तव में पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है, यह कहीं भी लिखित नहीं मिलता परन्तु उसकी विश्वसनीयता उसे मजबूत स्तम्भ बनाती है। वर्तमान काल पत्रकारिता में संक्रमण का काल है। सोशल मीडिया ने हमें असामाजिक बना दिया है। ऐसे में देवर्षि नारद की पत्रकारिता धर्मनिष्ठ, सत्यनिष्ठ, संवाद एवं सामंजस्य स्थापित करने की पत्रकारिता है। विषय प्रवर्तन करते हुए कार्यक्रम संयोजक डा. अम्बरीष राय ने कहा कि पत्रकारिता समाज के कल्याण में सत्य और तथ्य को निर्भीक दृष्टि से जनमानस के सम्मुख रखना है।

कार्यक्रम का प्रारम्भ मंचासीन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन एवं भारत माता व देवर्षि नारद के चित्र पर पुष्पार्चन से हुआ। स्वागत एवं अतिथि परिचय विश्व संवाद केन्द्र काशी के सचिव प्रदीप कुमार ने किया। कार्यक्रम का समापन सामूहिक वन्देमातरम के गायन से हुआ। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के पर्यावरण गतिविधि संयोजक अजय जी उपस्थित रहें। धन्यवाद ज्ञापन विश्व संवाद केन्द्र काशी के प्रमुख राघवेन्द्र एवं संचालन डा.कुमकुम पाठक ने किया।




Friday, May 24, 2024

मतदान करते समय राष्ट्र के व्यापक लक्ष्य को नहीं भूलना चाहिए - राम माधव जी


काशी। लोकतंत्र में हर एक जन का है कर्तव्य और अधिकार

लोकतंत्र को विजयी बनावे, कर प्रयोग निज मत अधिकार। 

लोकतंत्र में चुनाव का उद्देश्य है कि वर्तमान और भविष्य उज्ज्वल होद्य मत देते समय वर्तमान का चिंतन आवश्यक है परन्तु व्यापक लक्ष्य को नहीं भूलना चाहिए। परिवर्तन का सारथी ऐसे व्यक्ति को बनाना चाहिए जो हर नागरिक को देश में हो रहे बदलाव के प्रति गौरवान्वित कराता हो। उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य श्रीमान राम माधव जी ने “मतदानः हमारा अधिकार भी, परम कर्तव्य भी” विषयक लोकमत परिष्कार संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कहा।

लोक जागरण मंच, काशी द्वारा भेलूपुर स्थित सी.एम. एंग्लो बंगाली इंटर कॉलेज में आयोजित संगोष्ठी में आगे उन्होंने कहा कि भारत की संसद में लोकसभा सभापति के आसन के ऊपर धर्मचक्र प्रवर्तानाय लिखा है जिसका अर्थ है, धर्मचक्र चलते रहना चाहिए। ऐसे में धर्म निरपेक्षता की बात अप्रासंगिक हो जाती हैद्य उन्होंने कहा कि पिछले 10 वर्षों में मतदान के उचित प्रयोग से एक नये भारत का चित्र दुनिया के सामने आया है। आधारभूत परिवर्तन के अलावा सांस्कृतिक परिवर्तन भी देश की दशा को बदल रहा है। हम सभी इस सांस्कृतिक परिवर्तन को 5 बिन्दुओं के अंतर्गत देख सकते हैं। वक्ता ने प्रथम बिंदु के रूप में सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन की चर्चा की। देश के नागरिकों में यह भाव जगा है कि हम सभी इस राष्ट्र के भागीदार हैं। वर्तमान में आर्थिक शुचिता का यह रूप एक नई आर्थिक संस्कृति को जन्म देता है, यही दूसरा बिंदु है। तीसरे बिंदु में उन्होंने बताया कि आज देश के सामान्य नागरिक के मन में अपनी सुरक्षा का भाव नयी सुरक्षा संस्कृति का निर्माण करता है। चौथे बिंदु की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत वर्तमान में भी गुटनिरपेक्ष है परन्तु वर्तमान भारत अपने लोकहित को सर्वोपरि मानते हुए दुनिया में सभी से मित्रता रखता है। अंत में देश के धार्मिक व्यवस्थाओं के अन्दर व्यापक परिवर्तन की चर्चा वक्ता ने की। एनी बेसेंट का कथन देते हुए राम माधव जी ने कहा कि इस देश का धर्म समाप्त हो गया तो भारत समाप्त हो जाएगा। विशिष्ट अतिथि के रूप में मंचासीन संत रविदास मन्दिर के महन्त श्रीमान भारत भूषण जी ने सारगर्भित रूप मे कहा कि राष्ट्र ऐसा होना चाहिए जहाँ सभी का पेट भर सके और सभी में समरसता की भावना होद्य विशिष्ट अतिथि पद्मश्री डा.के.के.त्रिपाठी ने कहा कि लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं का वर्णन वैदिक काल में भी है। हमें अपने मतदान द्वारा ऐसी परंपरा को जन्म देना चाहिए जिससे सारे देश में काशी का सम्मान बढ़े। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए गोरखपुर विश्वविद्यालय के कृतकार्य आचार्य पद्मश्री राजेश्वर आचार्य ने कहा कि काशी का प्रत्येक व्यक्ति समझावन भी जानता है और बुझावन भी जानता है। ऐसे में काशी की प्रतिष्ठा और निष्ठा को स्थापित करने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करे।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में मंचस्थ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन एवं भारत माता के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गयी। वेंकट रमन घनपाठी द्वारा स्वस्तिवाचन किया गया। मतदाता जागरूकता गीत की प्रस्तुति चन्द्रशेखर द्वारा की गयी। धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम संयोजक राहुल सिंह एवं संचालन डॉ.हरेन्द्र राय ने किया।




Thursday, May 9, 2024

भ्रामक विज्ञापनों का समर्थन करने वाले प्रसिद्ध व प्रभावशाली लोग भी समान रूप से उत्तरदायी


नई दिल्ली. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा यदि सोशल मीडिया के प्रभावशाली व्यक्ति और प्रसिद्ध हस्तियां भ्रामक विज्ञापनों में उत्पादों या सेवाओं का समर्थन करते हैं तो वे भी समान रूप से उत्तरदायी होंगे.

मंगलवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) के दिशानिर्देश हैं जो प्रभावित करने वालों को भुगतान किए गए समर्थन के बारे में पारदर्शी होने के लिए कहते हैं.

न्यायालय ने कहा –

हमारा मानना है कि विज्ञापनदाता या विज्ञापन एजेंसियां या समर्थनकर्ता झूठे और भ्रामक विज्ञापन जारी करने के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं. प्रभावशाली लोगों, प्रसिद्ध हस्तियों आदि द्वारा समर्थन, किसी उत्पाद को बढ़ावा देने में बहुत सहायता करता है और उनके लिए यह अनिवार्य है कि विज्ञापनों के दौरान किसी भी उत्पाद का समर्थन करते समय जिम्मेदारी के साथ कार्य करें.”

न्यायालय ने जोर दिया कि प्रभावशाली लोगों और मशहूर हस्तियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे किसी भी उत्पाद का प्रचार करते समय सीसीपीए दिशानिर्देशों का अनुपालन करें और जनता के विश्वास का दुरुपयोग न करें.

ये सीसीपीए दिशानिर्देश और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत अन्य प्रावधान यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि उपभोक्ता बाजार से खरीदे गए उत्पादों, खासकर स्वास्थ्य और खाद्य क्षेत्रों के बारे में जागरूक हो.

न्यायालयों ने टीवी प्रसारकों और प्रिंट मीडिया को स्व-घोषणा पत्र दाखिल करने का निर्देश देते हुए एक अंतरिम आदेश भी पारित किया, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाए कि उनके मंच पर प्रकाशित या प्रसारित कोई भी विज्ञापन भारत में कानूनों जैसे कि केबल टीवी नेटवर्क नियम 1994 और विज्ञापन संहिता के अनुरूप है.

यह स्व-घोषणा प्रपत्र विज्ञापन प्रसारित होने से पहले दाखिल किया जाना है.

न्यायालय ने कहा कि “हम वहां (विज्ञापनदाताओं द्वारा स्व-घोषणा प्रस्तुत करने में) बहुत अधिक लालफीताशाही नहीं चाहते हैं. हम विज्ञापनदाताओं के लिए विज्ञापन देना कठिन नहीं बनाना चाहते. हम केवल यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जिम्मेदारी तय हो”.

केंद्र सरकार को प्रिंट मीडिया पर विज्ञापनों के लिए ऐसे स्व-घोषणा पत्र दाखिल करने के लिए एक नया पोर्टल स्थापित करने का आदेश दिया. न्यायालय ने कहा, यह पोर्टल चार सप्ताह के भीतर स्थापित किया जाना है.

Tuesday, May 7, 2024

राम मन्दिर की जगह बाबरी बनाने जैसे दिवास्वप्न साकार नहीं होंगे

 

नई दिल्ली. पूर्व कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद द्वारा राम मंदिर पर कांग्रेस नेता को लेकर किये गए दावे के बाद विश्व हिन्दू परिषद ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की. विहिप ने कहा कि राम मन्दिर की जगह बाबरी बनाने जैसे दिवास्वप्न साकार नहीं होंगे.

विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय संयुक्त महासचिव डॉ. सुरेंद्र जैन ने कहा कि कांग्रेस के एक पूर्व वरिष्ठ नेता ने यह खुलासा किया है कि राहुल गांधी सत्ता में आने के बाद राम मंदिर की जगह बाबरी मस्जिद बनाएंगे, चाहे उसके लिए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को बदलने के लिए शाहबानो की तरह संविधान में संशोधन करना पड़े. इसका अभी तक किसी ने खंडन भी नहीं किया है. इसका मतलब उन्होंने इस आरोप को स्वीकार कर लिया है.

डॉ. जैन ने कहा कि इंडी गठबंधन का यह निर्णय विश्व के करोड़ों राम भक्तों के लिए एक बड़ी चुनौती है. राम मंदिर की जगह बाबरी मस्जिद बनाने के इरादों का राम भक्त हमेशा की तरह मुंह तोड़ जवाब देंगे. इंडी गठबंधन का सनातन विरोधी व राम विरोधी चरित्र बार-बार सामने आता रहा है. इस अपवित्र गठबंधन के सदस्यों ने ही अयोध्या में कारसेवकों का नरसंहार किया था और गोधरा में 59 कारसेवकों को जिंदा जलाने वालों का साथ दिया था. कांग्रेस ने तो राम मंदिर के निर्णय को लटकाने व भटकाने के लिए वरिष्ठ वकीलों की एक फौज खड़ी कर दी थी. तब भी राम भक्तों के संकल्प के सामने किसी के भी राम मंदिर विरोधी षड्यंत्र सफल नहीं हो सके और भव्य राम मंदिर का निर्माण हो गया तो उन्होंने यह नया प्रपंच रचा है.

ये लोग सत्ता में आने पर संविधान को बदल देना चाहते हैं और राम मंदिर की जगह बाबरी मस्जिद बनाना चाहते हैं. इन्होंने अपने इरादे पहले ही बता दिए हैं. इसलिए ऐसे नेता बार-बार बाबरी की बात करके समाज को भड़काते हैं. छोटे-छोटे बच्चे भी  यही जहर भरे हुए नारे लगा रहे हैं.

विहिप राम भक्तों का आह्वान करती है कि अपने मतदान द्वारा इन राम विरोधी और राष्ट्र विरोधी षडयंत्रों को असफल करें. वे मतदान अवश्य करें. “शत प्रतिशत मतदान और राष्ट्र के हित में मतदान”, हमारा यही संकल्प इन राष्ट्र विरोधी तत्वों को मुंहतोड़ जवाब देने में सफल होगा.

 

Wednesday, May 1, 2024

जूना अखाड़े की अनूठी पहल – अनुसूचित समाज के तपस्वी, ज्ञानवान साधुओं को भी महामंडलेश्वर की उपाधि


भगवान दत्तात्रेय व प्रभु श्रीराम की भक्ति में लीन महेंद्रानंद गिरि जी को जूना अखाड़ा ने जगद्गुरु की उपाधि प्रदान की. महेंद्रानंद गिरि जी वंचित समाज से आते हैं, लेकिन धर्म के प्रति उनके समर्पण के कारण जगदगुरु की उपाधि प्रदान की गई. अब महेंद्रानंद गिरी जी वंचित समाज के अन्य लोगों को सनातन धर्म से जोड़ने के अभियान में जुटे हैं.

वर्ष 2018 में महामंडलेश्वर बनने वाले वंचित समाज के कन्हैया प्रभुनंद गिरि जी कहते हैं – धर्मगुरु बनने के बाद उनका जीवन बदल गया. जो हेय दृष्टि से देखते थे, वे सम्मान करने लगे. महामंडलेश्वर बनने के पश्चात शिक्षा, सेवा प्रकल्प चलाकर मतांतरण रोकने के अभियान में जुटा हूं. कुछ ऐसे ही भाव इसी समाज के कैलाशानंद गिरि जी के हैं. जूना अखाड़ा ने इन्हें भी महामंडलेश्वर बनाया है.

इधर, अखाड़े ने आदिवासियों व वंचित समाज के संन्यासियों को महामंडलेश्वर बनाने का अभियान तेज कर दिया है. दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, अभी तक 52 आदिवासियों का चयन महामंडलेश्वर बनाने के लिए किया है. लोभ-भय, समाज से उपेक्षित व सरकारी सुविधाओं से वंचित लोग मतांतरण करते हैं. इनके घनत्व वाले क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियां सक्रिय हैं. इसे देखते हुए जूना अखाड़ा के संन्यासी इनके बीच समय व्यतीत करके उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने में जुटे हैं. मेल-मिलाप करके उनके बीच के व्यक्ति को धर्मगुरु बनाने की योजना है.

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात और महाराष्ट्र में आदिवासी एवं वंचित समाज के व्यापक घनत्व वाले क्षेत्रों के प्रभावशाली लोगों को अखाड़े से जोड़ा जा रहा है. इसमें कर्मकांड व सनातन धर्म में आस्था रखने वालों को महाकुंभ-2025 में महामंडलेश्वर की उपाधि प्रदान की जाएगी. अभी तक मध्य प्रदेश से पांच, छत्तीसगढ़ से 12, झारखंड से आठ, गुजरात से 15 और महाराष्ट्र के आदिवासी क्षेत्रों से 12 लोगों को महामंडलेश्वर बनाने के लिए चुना गया है.

जूना अखाड़ा ने पिछले 10 वर्षों में 5,150 से अधिक वंचित समाज के संन्यासियों को सनातन धर्म से जोड़ा है. इनके बीच से योग्य लोग महामंडलेश्वर बनाए जाएंगे. जूना अखाड़ा के सभापति श्रीमहंत प्रेम गिरि जी कहते हैं कि पद जाति से नहीं, योग्यता के आधार पर मिलना चाहिए. इसी कारण अखाड़े ने आदिवासी एवं वंचित समाज के योग्य लोगों को महामंडलेश्वर बनाने का निर्णय लिया है.

पद के लिए देनी होती है परीक्षा

जूना अखाड़ा में महामंडलेश्वर पद के लिए संबंधित को परीक्षा देनी पड़ती है. उन्हें पहले अखाड़े के किसी आश्रम से जोड़कर सनातन धर्म के ग्रंथों का अध्ययन कराया जाता है. अगर अनपढ़ हैं तो उन्हें पढ़े-लिखे संन्यासी धर्मग्रंथों का मर्म आत्मसात कराते हैं. घर-परिवार से दूर रहकर भक्ति व त्याग वाली दिनचर्या अपनानी होती है. पांच वर्ष तक इसमें खरा उतरने वालों को पद दिया जाता है.

आज चार लोग बनेंगे महामंडलेश्वर

जूना अखाड़ा ने 30 अप्रैल को गुजरात के सायंस सिटी सोला अहमदाबाद में पट्टाभिषेक समारोह का आयोजन किया है. इसमें वंचित समाज के संन्यासियों का महामंडलेश्वर पद का पट्टाभिषेक होगा. इसमें मंगल दास जी, प्रेम दास जी, हरि प्रसाद जी व मोहन दास बापू जी को महामंडलेश्वर बनाया जाएगा. इनके साथ लगभग पांच हजार लोग सनातन धर्म से जुड़ेंगे.