भगवान शंकर की पवित्र नगरी काशी में ही स्वामी विवेकानंद ने धर्म संसद शिकागो जाने का निर्णय लिया था। वर्ष 1889 में प्रतिज्ञा की थी कि ‘शरीर वा पातयामि, मंत्र वा साधयामि’ (आदर्श की उपलब्धि करूंगा, नहीं तो देह का ही नाश कर दूंगा)।
अर्दली बाजार स्थित ‘गोपाल लाल विला’ (अब एलटी कालेज परिसर) से स्वामी विवेकानंद का जन्म से नाता रहा है, वह यहां अनेक बार स्वास्थ्य लाभ के लिए आए। कई संदर्भ इतिहास के पन्नों में मिलता है। वह प्रवास स्थल आज भी है। यह कभी ‘गोपाल लाल विला’ के नाम से जाना जाता था। स्वामी जी ने ‘गोपाल लाल विला’ को अपने स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि से उत्तम स्थान माना था। स्वामीजी ने भगिनी निवेदिता, स्वामी ब्रतानंद व सुश्री वुली बुल को जो पत्र लिखा था, उसमें इसका उल्लेख है। स्वामी विवेकानंद ने काशी की अंतिम यात्रा 1902 में की थी। उस दौरान वह बीमार थे। वह ‘गोपाल लाल विला’ में ठहरे व एक महीने तक यहीं स्वास्थ्य लाभ किया। 14 मार्च, 1902 को यहां से बहन निवेदिता को भेजे पत्र में लिखा था कि ‘मुझे सांस लेने में काफी तकलीफ है। यहां आम, अमरूद के बड़े-बड़े पेड़ हैं, गुलाब का खूबसूरत बगीचा है और तालाब में सुंदर कमल खिले रहते हैं। ये जगह मेरे स्वास्थ्य के लिए उत्तम है। यहां से कुछ मील दूर बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली सारनाथ भी है।’ (पत्रवली नामक किताब में यह प्रकाशित है)। कुछ दिन बाद स्वास्थ्य खराब होने के कारण स्वामीजी बेलूर मठ चल गए। चार जुलाई, 1902 को महामानव विवेकानंद महासमाधि में लीन हो गए। 39 वर्ष पांच माह और 24 दिन की आयु में उन्होंने शरीर त्याग दिया।
स्वामी विवेकानंद के जन्म से पूर्व उनकी मां भुवनेश्वरी देवी ने एक रात स्वप्न में भोले शंकर को ध्यान करते देखा। उस दौरान वह संतान को लेकर बहुत परेशान थीं। मंदिरों में मन्नत मांग रही थीं। उन्होंने इस स्वप्न की बात काशी में रहने वाली अपनी एक महिला रिश्तेदार से बताई। बाकायदा इस बात का जिक्र ‘स्वामी निखिलानंद जी’ ने अपनी किताब में किया है। विवेकानंद की मां भुवनेश्वरी देवी, पिता विश्वनाथ दत्त काशी आए और सूतटोला स्थित वीरेश्वर मंदिर में पूजा अर्चना की, मन्नत मांगी। बताते हैं कि जब कुछ दिनों बाद यहां से कोलकाता वापस गए तो विवेकानंद, मां की गर्भ में थे। 12 जनवरी, 1863 को उनका जन्म हुआ व मां ने उनका बचपन का नाम वीरेश्वर रखा। बाद में जब स्कूल में गए तो नरेंद्रनाथ नाम रखा गया। वर्ष 1887 में पहली बार 24 वर्ष की अवस्था में स्वामी विवेकानंद काशी आए। गोलघर स्थित दामोदर दास की धर्मशाला में ठहरे। सिंधिया घाट पर गंगास्नान के दौरान बाबू प्रमदा दास मित्र से सामना हुआ। बगैर शब्दों के दोनों के बीच संवाद हुआ। प्रमदा दास स्वामीजी को घर ले आए। इसके बाद स्वामीजी का काशी आने का सिलसिला कायम रहा और पांच बार यहां आए। पूरा देश स्वामी विवेकानन्द की 150वीं जयंती मना रहा है। उक्त स्थल आज सरकार द्वारा उपेक्षित है। इस ऐतिहासिक स्थल को सजाने और संवारने की जरूरत है। sabhar : Dainik jagran
अर्दली बाजार स्थित ‘गोपाल लाल विला’ (अब एलटी कालेज परिसर) से स्वामी विवेकानंद का जन्म से नाता रहा है, वह यहां अनेक बार स्वास्थ्य लाभ के लिए आए। कई संदर्भ इतिहास के पन्नों में मिलता है। वह प्रवास स्थल आज भी है। यह कभी ‘गोपाल लाल विला’ के नाम से जाना जाता था। स्वामी जी ने ‘गोपाल लाल विला’ को अपने स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि से उत्तम स्थान माना था। स्वामीजी ने भगिनी निवेदिता, स्वामी ब्रतानंद व सुश्री वुली बुल को जो पत्र लिखा था, उसमें इसका उल्लेख है। स्वामी विवेकानंद ने काशी की अंतिम यात्रा 1902 में की थी। उस दौरान वह बीमार थे। वह ‘गोपाल लाल विला’ में ठहरे व एक महीने तक यहीं स्वास्थ्य लाभ किया। 14 मार्च, 1902 को यहां से बहन निवेदिता को भेजे पत्र में लिखा था कि ‘मुझे सांस लेने में काफी तकलीफ है। यहां आम, अमरूद के बड़े-बड़े पेड़ हैं, गुलाब का खूबसूरत बगीचा है और तालाब में सुंदर कमल खिले रहते हैं। ये जगह मेरे स्वास्थ्य के लिए उत्तम है। यहां से कुछ मील दूर बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली सारनाथ भी है।’ (पत्रवली नामक किताब में यह प्रकाशित है)। कुछ दिन बाद स्वास्थ्य खराब होने के कारण स्वामीजी बेलूर मठ चल गए। चार जुलाई, 1902 को महामानव विवेकानंद महासमाधि में लीन हो गए। 39 वर्ष पांच माह और 24 दिन की आयु में उन्होंने शरीर त्याग दिया।
स्वामी विवेकानंद के जन्म से पूर्व उनकी मां भुवनेश्वरी देवी ने एक रात स्वप्न में भोले शंकर को ध्यान करते देखा। उस दौरान वह संतान को लेकर बहुत परेशान थीं। मंदिरों में मन्नत मांग रही थीं। उन्होंने इस स्वप्न की बात काशी में रहने वाली अपनी एक महिला रिश्तेदार से बताई। बाकायदा इस बात का जिक्र ‘स्वामी निखिलानंद जी’ ने अपनी किताब में किया है। विवेकानंद की मां भुवनेश्वरी देवी, पिता विश्वनाथ दत्त काशी आए और सूतटोला स्थित वीरेश्वर मंदिर में पूजा अर्चना की, मन्नत मांगी। बताते हैं कि जब कुछ दिनों बाद यहां से कोलकाता वापस गए तो विवेकानंद, मां की गर्भ में थे। 12 जनवरी, 1863 को उनका जन्म हुआ व मां ने उनका बचपन का नाम वीरेश्वर रखा। बाद में जब स्कूल में गए तो नरेंद्रनाथ नाम रखा गया। वर्ष 1887 में पहली बार 24 वर्ष की अवस्था में स्वामी विवेकानंद काशी आए। गोलघर स्थित दामोदर दास की धर्मशाला में ठहरे। सिंधिया घाट पर गंगास्नान के दौरान बाबू प्रमदा दास मित्र से सामना हुआ। बगैर शब्दों के दोनों के बीच संवाद हुआ। प्रमदा दास स्वामीजी को घर ले आए। इसके बाद स्वामीजी का काशी आने का सिलसिला कायम रहा और पांच बार यहां आए। पूरा देश स्वामी विवेकानन्द की 150वीं जयंती मना रहा है। उक्त स्थल आज सरकार द्वारा उपेक्षित है। इस ऐतिहासिक स्थल को सजाने और संवारने की जरूरत है। sabhar : Dainik jagran
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