- राकेश सैन
राष्ट्र
विरोधी शक्तियों का स्वाभाविक व साझा दुश्मन है – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ. जब भी, जहाँ भी और किसी भी तरह की राष्ट्रविरोधी गतिविधि होती है, तो संघ स्वत: सामने आ खड़ा होता है. पंजाब में आतंकवाद के दौर में भी संघ
ने आतंकवाद का सामना किया. इसी का परिणाम रहा कि आज ही के दिन (25 जून) 1989 को मोगा में संघ की शाखा पर आतंकी हमला
हुआ, जिसमें 25 स्वयंसेवकों ने अपना
बलिदान दिया.
आतंकियों
ने संघ का ध्वज उतारने के लिए कहा था, पर स्वयंसेवकों ने ऐसा करने से स्पष्ट मना कर दिया और उनको रोकने का यत्न
किया, पर किसी की बात न सुनते हुए आतंकवादियों ने अन्धाधुन्ध
फायरिंग करनी शुरू कर दी, जिसमें 25 जीवन
बलिदान हुए. घटना ने न केवल पंजाब में हिन्दू-सिख एकता को नवजीवन दिया, बल्कि आतंकियों के मंसूबे नाकाम हुए. क्योंकि
घटना के अगले ही दिन उस जगह दोबारा शाखा लगी, जिससे आतंकियों
के मंसूबों को पस्त किया.
25 जून, 1989 को (अब के शहीदी पार्क) प्रतिदिन की ही
तरह शहर निवासी सैर के लिए आए थे. उस दिन भी जहाँ नागरिक पार्क में सैर का आनन्द
ले रहे थे, वहीं दूसरी तरफ शाखा भी लगी हुई थी. इस दिन संघ
का एकत्रीकरण था, और शहर की सभी शाखाएँ नेहरू पार्क में लगी
थीं. अचानक पिछले गेट से भाग-दौड़ की आवाज सुनाई दी और
पता चला कि वहाँ से आतंकी अन्दर घुस आए हैं, बावजूद इसके कोई
भागा नहीं. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार आतंकवादियों ने आते ही शाखा में
स्वयंसेवकों से ध्वज उतारने के लिए कहा, लेकिन स्वयंसेवकों
ने साफ मना कर दिया. इस पर आतंकवादियों ने अंधाधुंध फायरिंग (लगभग 6.25 पर) करनी शुरू कर दी. हर तरफ भगदड़ मच गई.
गोलियों की बरसात रुकने के बाद हर तरफ खून का तालाब दिखाई दे रहा था. घायल
स्वयंसेवक तड़प रहे थे.
इस
गोली कांड के दौरान 25 लोग बलिदान हो गए,
वहीं शाखा में शामिल स्वयंसेवकों के साथ ही आसपास के करीब 31
लोग घायल भी हो गए थे. घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था,
लेकिन फिर भी स्वयंसेवकों ने हिम्मत नहीं छोड़ी और अगले ही दिन 26
जून, 1989 को फिर से शाखा लगाई. बाद में नेहरू
पार्क का नाम बदल कर शहीदी पार्क कर दिया गया, जो आज
देशभक्तों के लिए तीर्थस्थान है.
इस
गोली कांड में बलिदानी होने वालों में लेखराज धवन, बाबू राम, भगवान दास, शिव दयाल,
मदन गोयल, मदन मोहन, भगवान
सिंह, गजानन्द, अमन कुमार, ओमप्रकाश, सतीश कुमार, केसो
राम, प्रभजोत सिंह, नीरज, मुनीश चौहान, जगदीश भगत, वेद
प्रकाश पुरी, ओमप्रकाश और छिन्दर कौर (पति-पत्नी), डिंपल, भगवान दास, पण्डित
दुर्गा दत्त, प्रह्लाद राय, जगतार राय
सिंह, कुलवन्त सिंह थे.
गोली
काण्ड में प्रेम भूषण, राम लाल आहूजा,
राम प्रकाश कांसल, बलवीर कोहली, राज कुमार, संजीव सिंगल, दीनानाथ,
हंसराज, गुरबख्श राय गोयल, डॉ. विजय सिंगल, अमृत लाल बांसल, कृष्ण देव अग्रवाल, अजय गुप्ता, विनोद धमीजा, भजन सिंह, विद्या
भूषण नागेश्वर राव, पवन गर्ग, गगन बेरी,
रामप्रकाश, सतपाल सिंह कालड़ा, करमचन्द और कुछ अन्य स्वयंसेवक घायल हुए थे.
दंपति ने आतंकियों को ललकारा
गोलीकाण्ड
के बाद छोटे गेट से भाग रहे आतंकवादियों को वहाँ मौजूद एक साहसी पति-पत्नी ओम
प्रकाश और छिन्दर कौर ने बड़े जोश से ललकारा और पकड़ने की कोशिश की. लेकिन एके-47 से हुई गोलीबारी ने उनको भी मौत की नीन्द सुला दिया. साथ ही आतंकवादियों
को पकड़ते समय पास के घरों के पास खेल रहे बच्चों में से डेढ़ साल की डिम्पल को भी
मौत ने अपनी तरफ खींच लिया.
10 साल की उम्र में गोलीकांड आँखों से देखने वाले एक नौजवान नितिन जैन ने
बताया कि उनका घर शहीदी पार्क के बिल्कुल सामने था. रविवार का दिन होने के कारण वह
सुबह पार्क में चला गया. जैसे ही आतंकवादियों ने धावा बोलकर गोलियाँ चलानी शुरू
कीं, वह धरती पर लेट गया और जब आतंकवादी भाग रहे थे तो सभी
ने उनको पकड़ने की कोशिश की. नितिन भी इसको खेल समझ कर भागने लगा, तो एक व्यक्ति ने उसको पकड़ कर घर भेजा.
दंगा चाहने वाले भी हुए निराश
आतंकियों
ने तो संघ पर हमला कर हिन्दू-सिक्ख एकता में दरार डालने का प्रयास किया था, साथ में कुछ दंगा सन्तोषियों ने भी कहना शुरू कर दिया कि सिक्खों ने अब
लगाया है शेर की पूँछ को हाथ. संघ ने न तो देश में सांप्रदायिक माहौल खराब होने
दिया और न ही शहर में. अगले ही दिन शाखा लगा कर आतंकियों व देशविरोधी ताकतों को
संदेश दिया कि हिन्दू-सिक्ख एकता को कोई तोड़ नहीं सकता और न ही सिक्ख पंथ के नाम
पर चलने वाला आतंकवाद पंजाबी एकता को तोड़ सकता है.
25 जून के अगले दिन संघ के स्वयंसेवक गीत गा रहे थे – कौन कहंदा हिन्दू-सिख
वक्ख ने, ए भारत माँ दी सज्जी-खब्बी अक्ख ने’ अर्थात कौन
कहता है कि हिन्दू-सिक्ख अलग-अलग हैं, ये तो भारत माता की
बाईं और दाईं आँख हैं.
अगली
ही सुबह जब स्वयंसेवकों की ओर से शाखा का आयोजन किया गया तो उस दौरान बलिदानियों
की याद को जीवित रखने के लिए शहीदी स्मारक बनाने का संकल्प लिया गया. इसी कार्य के
अधीन मोगा पीड़ित मदद और स्मारक समिति का भी गठन हुआ.
शहीदी
स्मारक की नींव का पत्थर 9 जुलाई को माननीय
भाऊराव देवरस द्वारा रखा गया. इस स्मारक का उद्घाटन 24 जून,
1990 को रज्जू भैया द्वारा किया गया. आज भी हर साल बलिदानियों की
याद में श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया जाता है.
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