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Monday, October 26, 2009

सामर्थ्यशाली समाज



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सामर्थ्यशाली समाज ही समस्याओं को हल करने में सक्षम
बालासाहब देवरस

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस जी का १९९० की विजयदशमी पर नागपुर में दिया गया उदबोधन सार रूप में यहाँ प्रस्तुत है |राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिन्दू समाज को सामर्थ्य संपन बनाना चाहता है. उसकी इच्छा है की यह सामर्थ्य समाज में स्वाभाविक रीती से सदैव विद्यमान रहे. किसी बाह्य संघठन द्वारा समाज की रक्षा की जाती रहे, यह उचित नहीं. एक विशेष प्रकार का व्यवहार करने वाले व्यक्तियों का समूह ही समाज कहलाता है.

विशिष्ट व्यबहार करने वाले व्यक्तिओं के बीच एक स्वाभाविक व्यवस्था होती है. क्यों कि उस व्यवस्था में ही समाज का वास्तविक सामर्थ्य निहित है.जब समाज में इस प्रकार का सामर्थ्य जागृत होजाता है तो वह अपनी हर समस्या का हल निकलने के लिये स्वयमेव सदा तैयार रहता है. संघ इस प्रकार के स्वाभाविक सामर्थ्य के जागरण का कार्य कर रहा है.
अब प्रश्न उठता है कि यह होगा कैसे?

द्वितीय महायुद्ध के समय इंगलैंड का उदहारण इस प्रश्न का उत्तर देते हुए इसकी दिशा का निर्देश करता है. महायुद्ध की चपेट में आकर फ्रांस, पोलेंड आदि देश कुछ ही दिनों में समाप्त हो गए. इंग्लॅण्ड को भी एक बार अपने सश्त्राश्त्र समेट कर डन्कर्क से भागना पड़ा. लगता था कि अब इंग्लॅण्ड समाप्त हो गया. लेकिन इंग्लॅण्ड विजयी हुआ. उसे यह सफलता क्यों मिली?

इंग्लॅण्ड के समाज के स्वाभाव में जो सामर्थ्य छिपा है, सफलता का सारा श्रेय वास्तव में उसी को है. युद्ध काल में उन पर नित्य बम बारी होती थी. माकन नष्ट हो गए थे. जनता खाइयों में सोती थी. ६-७ वर्ष तक बहुत ही कठिन जीवन व्यतीत करना पड़ा था. किसी ने भी आत्मसमर्पण करने या शरणागत होने की आवाज तक नहीं उठाई. सम्पूर्ण समाज ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी.

उन्होंने संकटों पर विजय प्राप्त कर ली. अतः जो समाज स्वाभाविक रूप से शक्तिशाली एवं साहसी होता है वही अपने को सुरक्षित रख पता है. जब तक समाज की यह स्वाभाविक अवस्था नहीं बनती उसकी अंतर्बाह्य समस्याएं सुलझाई नहीं जा सकती. संघ कार्य की कल्पना भी ऐसी है.

किसी भी राष्ट्र का बड़प्पन इस बात पर निर्भर नहीं है कि उसके नेता कितने महान, बुद्धिमान और बड़े हैं. वरन इस बात पर निर्भर है कि उस राष्ट्र का सामान्य जन कितना बड़ा है, कितना धैर्यवान और सामर्थ्यशाली है. उसका आचार विचार व व्यवहार कैसा है? जिस समाज में लोग स्वार्थ ग्रस्त हों, सम्पूर्ण समाज और देश का कभी विचार ना करते हों, उस समाज का जीवन बहुत दिन नहीं चल सकता. अपने हिन्दू धर्म में इसीलिए कहा गया है कि स्वार्थ छोड़ कर परमार्थ का कार्य करना चाहिए. स्वार्थ में लीन व्यक्ति को राक्षस कहा गया है. जहाँ का सामान्य व्यक्ति स्वार्थ रहित हो जाता है उस समाज में सहज एवं स्वाभाविक सामर्थ्य उत्पन्न हो जाता है.


इंग्लॅण्ड, जर्मनी, इस्रायल, जापान, भारत आदि देशो के पुर्नार्निर्मान का इतिहास द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद प्रारंभ हुआ है. जर्मनी ने इन वर्षों में पहले से भी अधिक आर्थिक उन्नति कर ली है. जापान और इस्रायल ने भी चमत्कार कर दिखाया है. इस्रायल निवासी यहूदियों का हाल पुराने ज़माने के लाला लोगों के सामान रहा है. इतिहास में उनको पैसे के लिए मरने वाले, लोभी, कायर, युद्ध कला से अनभिज्ञ आदि बताया गया है. परन्तु इन्ही यहूदियों ने लगातार संघर्ष कर अपनी जन्म भूमि इस्रायल को प्राप्त किया. १९४८ के बाद २५ वर्षों तक वे युद्ध करते रहे. इस्रायल कि आधी जनसँख्या घरों की छतों पर बैठी लडाई लड़ती रही और आधा समाज भूमिगत होकर कारखाने चलता रहा.


उन पर अरबो का भय सदैव बना रहता था. परन्तु आज अरबों पर उनकी धाक है. अल्पकाल में ही उन्होंने अपनी आन्तरिक व्यवस्था उन्नत एवं मजबूत कर ली. तथा बाह्य आक्रमण के लिए भी सामर्थ्य उत्पन्न कर लिया. यह कैसे संभव हुआ?
इसका एक ही कारण है की वहां के सामान्य व्यक्ति के व्यवहार sइ समाज में स्वाभाविक सामर्थ्य जाग्रत हो गया. अपने समाज के सामान्य लोगो में जो शक्ति का वास्तविक स्रोत है उसी स्वाभाविक सामर्थ्य को जागृत करने के लिए संघ कार्य चल रहा है


गोरक्षा एवं गोसंवर्धन

अति प्राचीन काल से भारत में गोवंश की महिमा गायी गयी है. वेदों में अनेक स्थानों पर गो पूजा, गो संबर्धन इत्यादि विषयक आदेश पाए जाते हैं. गोरक्षा एवं पूजा में मानव का सम्पूर्ण हित सन्निहित है. ऐसा गोवंश का गौरव पूर्ण उल्लेख किया गया है. इन बातों को सब विद्वान जानते हैं. इस कारण यहाँ उपर्युक्त वचन उद्धृत करने की आवशकता नहीं है. पौराणिक एवं ऐतिहासिक काल में गो विषयक श्रृद्धा प्रस्फुटित होती हुई स्पष्ट दिखती है. भारतीय जीवन के सर्वव्यापी आदर्श पूर्णावतार भगवान श्री कृष्ण तो स्वयं गोपाल, गोविन्द आदि नामो से पुकारे जाते हैं.

अनेक राजा, सम्राट, चक्रवर्ती अपने को गो-ब्राह्मण प्रतिपालक के ब्रीदवाक्य से गौरवान्वित करने में धन्यता का अनुभव करते थे. भारतीय राष्ट्र जीवन में से पराभूतता का पराभव कर आक्रमणकारियों का दमन करने वाले स्वराज्य संस्थापक श्री छत्रपति शिवाजी महाराज अपने निकटतम अतीत के तेजस्वी, सर्वगुण संपन्न युग पुरुष इसी ब्रीदवाक्य से उदघोषित किये जाते थे. बाल्यकाल से ही गोवध के प्रति उनकी उग्रता हुई, यह सर्व विदित ही है.

भारतीय सांस्कृतिक आधार पर पुनरुत्थान के कार्य में संलग्न अपने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जन्मदाता के जीवन में आये ऐसे रोम हर्षक प्रसंगों से सब परिचित हैं. उन्होंने अपने धन या प्राणों को सहर्ष संकट में डाल कर वधिको से गोरक्षा की थी. आज की अन्यान्य संस्थाओं में जो अग्रगण्य रहे, उन सबने गोरक्षा एवं गो संवर्धन को अपने जीवन का सर्वश्रेष्ट भूषन माना.

अनादिकाल से इस प्रकार पूज्य एवं अवध्य होने पर भी भारत में गोवध कैसे चल पड़ा? इस प्रश्न का उत्तर भी इतिहास देता है. जब कोई असंस्कृत आक्रमणकारी समाज किसी देश में विजेता के उन्माद से रहने लगता है, तब मानो अपने विजय का रस लेने के लिए पराजित जाति को अपमानित करना, उसके श्रृद्धा स्थानों को नष्ट भ्रष्ट करना, उसका धन मान लूटना इत्यादि न्रिशंश अत्याचार करने के लिए वह प्रयत्न पूर्वक प्रस्तुत होता है.

साथ ही अपनी विजय तथा नवस्थापित सत्ता को बनाये रखने के लिए विजितो के सब मान विन्दुओं को ठेस लगा कर नष्ट भ्रष्ट कर उनकी चित्तवृत्तियाँ इतनी आहत एवं स्वाभिमान शुन्य बनाना कि उनके मन् में कभी पुनरोत्थान का विचार ही उत्पन्न ना हो और प्राप्तदासता में ही सुखानुभव हो.

इसी प्रवृत्ति के फलस्वरूप भारत में स्थित मुसलमानों ने गो हत्या को मानो धार्मिक कृत्य माना. ईद आदि त्योहारों पर गोहत्या मानो अनिवार्य विधि मान कर प्रकट रूप में अतात्देशिया जनता की भावनाओ को चोट पहुचाने में अपने को धन्य माना. अन्यथा कुरान शरीफ में गो वध का आदेश या विधि कही भी ना होते हुए और गोपालन पुण्य कारक है, ऐसा उल्लेख होते हुए भी गोहत्या का उनके द्वारा यह विपरीत आग्रह क्यों?

यह ठीक है कि गोमांस भक्षण उस पंथ में निषिद्ध नहीं है, परन्तु आग्रह पूर्वक गो हत्या करने का आदेश भी नहीं है. बाद में परकीय शासन के रूप में आये हुए अंग्रेजों ने भी श्रृद्धा भंग के रूप में इस कार्य को अधिक कुशलता से कैसे चालू रखा यह बात किसी से छिपी नहीं. अंग्रेज शासकों की इस नीति व गोमांस भक्षक होने के कारण और साथ ही मुसलमानों के स्वभाव को देख कर गो वध बहुत परिमाण में चलता ही रहा.

अब तो अंग्रजो का शासन नहीं है। मुसलमान भी यहाँ विजेता के रूप में नहीं है. किन्तु इसी देश में एत्त्देशीय हिन्दू समाज के साथ रहेने के लिए विवश है. हिन्दू समाज ने सदा ही सब मतों - पंथो का सत्कार कर अपना कर्त्तव्य पूरा किया है. अब मुसलमान, इसाई आदि समाजो को अपने कर्तव्य को समझ कर चलने की, भारतीय राष्ट्र जीवन की श्रद्धाओं को अपनाने की, उन्हें जीवन में उतने की आवश्कताहै.


देश की परिस्थितियां डरावनी: भागवत

रविवार, २५ अक्तूबर २००९

जयपुर. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत ने कहा है कि उग्रवाद, आपसी भेदभाव की चिंता हर किसी को सता रही है। देश की वर्तमान परिस्थितियां डरावनी हैं। मुस्लिमों को हिंदुओं से हिंदुओं को मुस्लिमों से, ईसाई को दोनों से डराकर अपना काम निकालने वाले बहुत हैं।हम डरने वाले नहीं और यही हमारी राष्ट्रीय पहचान है। यह डरावनी परिस्थिति तब जाएगी जब देश समर्थ बनेगा। केशव विद्यापीठ (जामडोली) में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन का उद्घाटन करते हुए भागवत शिक्षा के बढ़ते व्यवसायीकरण पर खूब बरसे।उन्होंने कहा कि डिग्रियां पैसों से मिल रही हैं, जिससे पैसा नहीं मिलता, उसे शिक्षा नहीं माना जाता। शिक्षा समर्थ और स्वाभिमानी समाज के निर्माण के लिए होनी चाहिए जबकि हकीकत यह है कि इसका उपयोग सौदेबाजी के लिए होने लगा है।भागवत ने कहा कि शिक्षा में बदलाव की बात तो सब करते हैं लेकिन इसका बीड़ा उठाने वाले कम ही हैं। शिक्षा में सूचना एवं ज्ञान के साथ नैतिकता एवं विवेक का मिश्रण आवश्यक है तभी जाकर संपूर्ण समाज की रचना हो सकेगी। विज्ञान के साथ नैतिकता नहीं होगी तो जिसे राम बनाना होगा वह रावण बन जाएगा।दिशा, समझ और विवेक के अभाव में रोजगारपरक शिक्षा, सौदेबाजी से ऊपर नहीं उठ सकती। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के अध्यक्ष के. नरहरि ने ऐसे विद्यार्थियों का निर्माण करने पर जोर दिया जो शिक्षा को मिशन मानें न कि वृत्ति।
स्त्रोत:http://www.bhaskar.com/2009/10/25/091025061756_mohan_bhagwat_in_jaipur.html#

सोमवार, २६ अक्तूबर २००९ समाचार पत्रों से




Saturday, October 24, 2009

विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा आजमगढ़ गई

वाराणसी। गुरुवार की रात महानगर पहुंची विश्व मंग गो ग्राम यात्रा शुक्रवार की सुबह आजमगढ़ के लिए रवाना हो गई। यात्रा के लिए विदाई समारोह महमूरगंज स्थित माहेश्वरी भवन में आयोजित किया गया। यहां यात्रा में शामिल रथ की आरती उतारने के साथ पाणिनी कन्या महाविद्यालय की छात्राओं ने वेद मंत्रों का सस्वर पाठ किया।
इस मौके पर महाविद्यालय की संचालिका मेधा ने पंचगव्य का महत्व बताया। कहा कि पंचगव्य की उपयोगिता व महत्व को भूलना किसी दृष्टि से उचित नहीं है। भारतीय किसान संघ के प्रांत संगठन मंत्री रामचेला ने कहा कि भारत के उज्जवल भाविष्य की परिकल्पना तभी साकार होगी जब हम गोवंश की रक्षा के लिए तत्पर रहेंगे। फैशन की गिरफ्त में आकर चमड़े से बने सामानों का उपयोग करने से बचने की भी उन्होंने सलाह दी। संघ के विभाग प्रचारक मनोज कुमार ने कहा कि जहां गौ माता होती हैं वह स्थान तीर्थ स्थल होता है। कार्यक्रम में जानेमाने चिंतक व विचारक केएन गोविंदाचार्य, विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मंत्री हुकुम चंद्र, भाजपा के वरिष्ठ नेता हरिश्चंद्र श्रीवास्तव हरीश जी, महानगर अध्यक्ष प्रेमप्रकाश कपूर, सूर्यकांत जालान, मधुसूदन, सौरभ श्रीवास्तव, सीताराम केदिलाय आदि प्रमुख रूप से मौजूद थे। कार्यक्रम संचालन पवन उपाध्याय ने किया।


गोमाता राष्ट्र माता के रूप में प्रतिष्ठित हों : अविमुक्तेश्वरानंद महाराज



वाराणसी, अक्तूबर २२ – ज्योतिश पीठ के स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा है कि जन जन को पोशित करने वाली गोमाता को राष्ट्र माता के रूप में प्रतिष्ठित होना चाहिए । विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा के लिए वाराणसी के टाउन हाल मैदान में आयोजित कार्यक्रम में जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने यें बातें कहीं । उन्होंने कहा कि आज गोवंश के महत्व को समझ कर भी हिन्दू गोहत्या के विरुद्ध आवाज उठाने में विलंब कर रहा है, गोवंश की रक्षा के प्रति संकल्प ही सनातन धर्म की रक्षा का संकल्प है ।
अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि भारत में कभी हर घर में गाय शृंगार हुआ करती थी, लेकिन आज देश में गोवंश की स्थिति दयनीय बनी हुई है, देश में गोहत्या में निरंतर वृद्धि के कारण आज गावों के परिवारों में गो दर्शन दुर्लभ होता जा रहा है । उन्होंने कहा कि अमृत रूपी गो दुग्ध की उपेक्षा करना हमारी मूर्खता का सबसे बडा परिचायक है, गोपालन के जरिए ही हम अपने जीवन में सुख समृद्धि की प्राप्ति कर सकते है । अविमुक्तेश्वरानंद ने गोदुग्धपान को अत्यंत आवश्यक बताते हुए कहा कि गोदुग्ध से बुद्धि की उर्वरा शक्ति में तीव्र वृद्धि होती है ।
स्वामी परमात्मानंद ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जैविक कृषि को भूल कर रासायनिक खादों के प्रयोग के कारण ही देश की कृषि बदहाल अवस्था में है, आज किसान आत्महत्या के लिए मजबूर है, रासायनिक खादों ने हमारे शत्रु कीटों के साथ मित्र कीटों को भी समाप्त कर दिया है । उन्होंने कहा कि गाय की रक्षा देश व विश्व की रक्षा है, अतः गाय के प्रति प्रत्येक मानव के मन में श्रद्धा व विश्वास का होना अत्यंत आवश्यक है ।
इससे पहले मिर्जापुर में विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा का भव्य स्वागत किया गया । विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा के लिए आयोजित कार्यक्रम में साधु संतों के साथ राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं भाजपा के पूर्व नेता के.एन. गोविंदाचार्य भी उपस्थित थे । गोविंदाचार्य ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि देश में आज असमानता, अपसंस्कृति, भेदभाव का बोलबाला बढा है, परिवार संस्था, विवाह संस्था जैसी पवित्र परंपराएँ नष्ट हो रही है, जल, जमीन, जंगल प्रदूषित ही नही अपितु समाप्त प्राय है । उन्होंने कहा इन सबका सबसे बडा कारण गोवंश की समाप्ति है, गोमाता भारत की विशेषता, अस्मिता की परिचायक है । उन्होंने कहा कि लगभग २५० वर्शों बाद विकास मानक बदलाव के कगार पर है । अब विकास आर्थिक रूप में नही बल्कि संस्कृति के रूप में होगा और यदि हमें विकास करना है तो हमें हमारी संस्कृति गोमाता को बचाना होगा । गोविंदाचार्य ने कहा कि विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा गोसंपदा उसकी संस्कृति, सामाजिक स्थिति के बारे में जनजागरण का प्रयास है ।
विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा आज सुबह प्रयाग से निकलकर मिर्जापुर, जौनपुर होते हुए शाम वाराणासी पहुंची । काषी विश्वनाथ के दरबार में यात्रा का अत्यंत उत्साह के साथ स्वागत किया गया । विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा के लिए आयोजित कार्यक्रम में अनेक संतों के साथ भोजपुरी फिल्म अभिनेता व गायक मनोज तिवारी भी मौजूद थे । मनोज तिवारी ने भोजपुरी अंदाज में गीत गाकर विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा का स्वागत किया । कार्यक्रम में भारी संख्या में लोगों ने साधुसंतों का आशीर्वचन प्राप्त कर गोसंवर्धन का संकल्प भी किया ।

गो ग्राम यात्रा की अगवानी में उमड़ा जनसमूह




सुल्तानपुर, 21 अक्टूबर : अमर कंटक के परम संत परमात्मानंद जी महराज ने कहा कि आज हिन्दू समाज का किसी को भय नहीं है। यही कारण है कि हमारी गौ माता को काटा जा रहा है। जिस दिन हिन्दू समाज का भय लोगों में होगा उसी दिन गोवध बंद हो जायेगा। गाय से खेती, खेती से किसान, किसान से गांव और गांव से देश बचेगा। इसलिए गाय, गांव औ किसान की सुरक्षा जरूरी है। वे आज खुर्शीद क्लब मैदान में विश्वमंगल गो ग्राम यात्रा के आगमन पर धर्म सभा को सम्बोधित कर रहे थे।
कुरुक्षेत्र से संतो के नेतृत्व में निकली विश्वमंगल गो ग्राम यात्रा बुधवार को जिला मुख्यालय पहुंची। जिसे जिले की सीमा पर कूरेभार में विहिप जिलाध्यक्ष नागेन्द्र सिंह, बजरंग दल प्रान्त संयोजक ओम प्रकाश पाण्डेय, डा।जेपी सिंह, भाजपा के पूर्व जिला महामंत्री रामभुवन मिश्र आदि दर्जनों प्रमुख लोगों ने अगवानी की। नगर में भी जगह-जगह श्रद्धालुओं ने शोभायात्रा में शामिल लोगों पर पुष्प वर्षा करके अगवानी की। खुर्शीद क्लब में धर्मसभा के दौरान संत परमात्मानन्द व क्षेत्र प्रमुख नवल किशोर ने भारतीय संस्कृति और गो रक्षा पर आमजनों को सचेत किया। क्षेत्र प्रमुख नवल किशोर ने कहा कि कृषि का आधार गोवंश हैं। इसे हमारे महापुरुषों ने पूजा है। सिक्खों ने गोरक्षा में बड़े बलिदान दिये हैं, लेकिन आज आजादी के बाद तीन हजार से छत्तीस हजार गोवध शालाएं हो गयी हैं। दो लाख में एक लाख गोवंश भारत में ही कटता है। रासायनिक खादों से उर्वरा शक्ति नष्ट हो रही है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। कैंसर रोगी बढ़ रहे हैं। धर्मसभा को यात्रा संचालन समिति के अध्यक्ष डा.जेपी सिंह, ओम प्रकाश पाण्डेय, कृपाशंकर द्विवेदी, सुरेन्द्र सिंह, रतन सिंह आदि ने सम्बोधित किया। नगर संयोजक सुनील श्रीवास्तव धन्यवाद ज्ञापन दिया। इस दौरान विभिन्न पंथों के प्रमुखों में कृष्ण लीला, जगत प्रताप सिंह, नामधारी रतन सिंह, कुलदीप सिंह, झण्डाबाबा, धर्मप्रकाश, हनुमानगढ़ी के पुजारी कृष्णकुमार शास्त्री, डा.पीपी पाण्डेय, युग निर्माण योजना के रामचन्द्र शुक्ल आदि मौजूद रहे। उधर, इलाहाबाद की ओर प्रस्थान करते वक्त जगह-जगह रामगंज, छीड़ा आदि क्षेत्रों में महिलाओं ने अगवानी की। मुसाफिरखाना संवादसूत्र के अनुसार विहिप नेता सुरेश तिवारी, गंगेश सिंह, सुरेन्द्र सिंह, शिवशंकर मिश्र, रुद्रदत्त त्रिपाठी, संतोष श्रीवास्तव, अरूणोदय त्रिपाठी, कन्हैया फौजी आदि ने विश्वमंगल गो यात्रा के दौरान विविध धार्मिक आयोजन किये। संचालक विशम्भर दयाल श्रीवास्तव ने गो सेवा पर व्याख्यान दिया।


राष्ट्रीय मुद्दा है गोमाता की रक्षा का सवाल : गोविन्दाचार्य


वाराणसी। चर्चित चिंतक केएन गोविंदाचार्य ने कहा है कि गोमाता की रक्षा का सवाल राजनीतिक नहीं बल्कि राष्ट्रीय मुद्दा है। 'विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा' को देश के लाखों मुसलमानों का भी समर्थन मिला है। राजनीति दलों व नेताओं में प्रतिबद्धता व समझ का अभाव है, यही कारण रहा कि वोट बैंक के चक्कर में गो माता की रक्षा का मुद्दा अब तक चुनावी एजेंडे में शामिल न हो सका। गाय-गंगा व गांव की रक्षा के लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति व जनांदोलन की आवश्यकता है।
108 दिवसीय 'विश्व मंगल गौ ग्राम यात्रा' के काशी पहुंचने की पूर्व संध्या पर श्री गोविंदाचार्य बुधवार को लंका स्थित विश्व संवाद केंद्र में पत्रकारों से बात कर रहे थे। गो संरक्षण व गो संव‌र्द्धन के मुद्दे को जनांदोलन बनाए जाने पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य सर्वतोन्मुखी हिंसक समृद्धि और पर्यावरण विनाश पर टिके आधुनिक विकास के विकल्प में विश्व के कल्याण के लिए राष्ट्रीय चेतना का जागरण और गांव-गांव में विद्यमान गो संस्कृति के संस्कारों को सुदृढ़ करना है। मेरा स्पष्ट मत है कि विश्व के संसाधनों की निर्मम लूट और साम्राज्यवादी शोषण पर आधारित विकास का वर्तमान मॉडल सम्पूर्ण विश्व के कल्याण में असमर्थ है। विकास के आधुनिक रूप ने पर्यावरण का विनाश किया है। जल, जंगल, जमीन और आकाश को प्रदूषित और क्षरित किया है। यात्रा के दौरान अब तक देश के पांच लाख मुसलमानों ने गो माता की रक्षा के अभियान को अपना समर्थन दिया है।
प्रेसवार्ता में श्री गोविंदाचार्य ने गोमाता की ओर से अनुरोध पत्र जारी किया। पत्र में विकास की अवधारणा मानव केंद्रित न होकर प्रकृति केंद्रित करने, मानवाधिकार के समान जमीन, जल, जंगल, जानवर, प्रकृति के भी अनुल्लंघनीय अधिकार, केंद्र में गो विकास मंत्रालय बनाने, हर प्रखंड में पंचायतों के अनुसार नंदीशाला स्थापित करने, पशु चिकित्सालय का हर न्याय-पंचायत तक विस्तार करने, पशु चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय हर जिले में स्थापित करने, गौ तस्करी के लिए विशेष दंड की व्यवस्था करने, मांस के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने, गाय के दूध का दाम बढ़ाने, कृषि भूमि का अधिग्रहण बंद करने तथा एक फसली या नकदी फसल की खेती पर दबाव घटाने की मांग की गई है।
इस दौरान सुरभि शोध संस्थान के प्रमुख सूर्यकांत जालान ने बताया कि विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा का संदेश देश के लगभग दो लाख गांवों तक पहुंचेगा। यात्रा से जहां गो माता की रक्षा के लिए राजसत्ता पर दबाव बनेगा, वहीं अभियान से देशभर के लोगों को जोड़ने में मदद मिलेगी।

आज भारत में गोवंश समाप्तप्राय : अशोक सिंघल
प्रयाग, अक्तूबर २१ – विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल ने कहा है कि भारत में निरंतर बढ रही गो हत्या का परिणाम ही है कि आज गोवंश समाप्ति की कगार पर है । विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा के लिए प्रयाग में आयोजित कार्यक्रम में जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने ये बातें कही । उन्होंने कहा कि गोवंश की हत्या हिन्दू समाज की संस्कृति की हत्या के समान है । सिंघल ने गोवंश को कृषि का आधार बताते हुए कहा कि आज की खेती आधुनिक उपकरणों द्वारा की जा रही है, ट्रैक्टर द्वारा खेतों की जुताई एवं रासायनिक खादों की उपयोगिता ने हमारी कृषि को कमजोर किया है, जिसके कारण आज का किसान आत्महत्या के लिए मजबूर है ।
अशोक सिंघल ने कहा कि लगभग बीस हजार गाय की हत्य भारत में नित्य हो रही है, जो कि अत्यंत दुखद है । उन्होंने कहा कि प्रत्येक हुन्दू को संकल्प करने की आवश्यकता है कि गोवंश को कसाइयों के हाथों न बिकने दें । उन्होंने विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा को आजादी के बाद अब तक का सबसे बडा लोकजागरण आंदोलन बताते हुए लोगों से गोवंश के पालन व संरक्षण की अपील की ।
शंकराचार्य वासुदेवानन्द सरस्वती ने गाय को स्नेह की देवी की संज्ञा देते हुए कहा कि गाय भगवस्वरूपा, मातृस्वरूपा एवं धातृस्वरूपा है । उन्होंने कहा कि जब तक भारत में गोवंश की हत्या नही रुकेगी भारत का विकास संभव नहीं है । उन्होंने कहा कि गोसंरक्षण कानून की अपेक्षा सरकार से करना निरर्थक है । अतः देश को, समाज को जागृत होकर गोवंश के संरक्षण हेतु आगे आना होगा । शंकराचार्य ने कहा कि मथुरा, प्रयाग, आगरा आदि अनेक स्थानों पर जहाँ गाय के महत्व का वर्णन किया गया है वहाँ पर गो हत्या होना अत्यंत निंदनीय है । उन्होंने कहा कि अनार्थिक गायों को गलत हाथों में बेचकर हम सभी गोहत्या के पाप के भागीदार बन रहें हैं, अतः यह आवश्यक है कि गाय को हम गलत हाथों में न बेचें । उन्होंने कहा कि प्रत्येक हिन्दू अपनी धर्म संस्कृति की रक्षा गोहत्या को रोक कर ही कर सकता है ।
विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा आज सुबह आयोध्या से चलकर शाम प्रयाग पहुंची, यहाँ पर कार्यकर्ताओं द्वारा यात्रा का भव्य स्वागत किया गया । जगह जगह चौराहों पर लोगों ने स्वागत कार्यक्रमों द्वारा यात्रा के साथ चल रहें साधु संतों को माल्यार्पण कर स्वागत किया । गो ग्राम यात्रा इससे पहले सुल्तानपुर, प्रतापगढ होते हुए प्रयाग पहुंची ।