रविवार, २५ अक्तूबर २००९
जयपुर. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत ने कहा है कि उग्रवाद, आपसी भेदभाव की चिंता हर किसी को सता रही है। देश की वर्तमान परिस्थितियां डरावनी हैं। मुस्लिमों को हिंदुओं से हिंदुओं को मुस्लिमों से, ईसाई को दोनों से डराकर अपना काम निकालने वाले बहुत हैं।हम डरने वाले नहीं और यही हमारी राष्ट्रीय पहचान है। यह डरावनी परिस्थिति तब जाएगी जब देश समर्थ बनेगा। केशव विद्यापीठ (जामडोली) में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन का उद्घाटन करते हुए भागवत शिक्षा के बढ़ते व्यवसायीकरण पर खूब बरसे।उन्होंने कहा कि डिग्रियां पैसों से मिल रही हैं, जिससे पैसा नहीं मिलता, उसे शिक्षा नहीं माना जाता। शिक्षा समर्थ और स्वाभिमानी समाज के निर्माण के लिए होनी चाहिए जबकि हकीकत यह है कि इसका उपयोग सौदेबाजी के लिए होने लगा है।भागवत ने कहा कि शिक्षा में बदलाव की बात तो सब करते हैं लेकिन इसका बीड़ा उठाने वाले कम ही हैं। शिक्षा में सूचना एवं ज्ञान के साथ नैतिकता एवं विवेक का मिश्रण आवश्यक है तभी जाकर संपूर्ण समाज की रचना हो सकेगी। विज्ञान के साथ नैतिकता नहीं होगी तो जिसे राम बनाना होगा वह रावण बन जाएगा।दिशा, समझ और विवेक के अभाव में रोजगारपरक शिक्षा, सौदेबाजी से ऊपर नहीं उठ सकती। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के अध्यक्ष के. नरहरि ने ऐसे विद्यार्थियों का निर्माण करने पर जोर दिया जो शिक्षा को मिशन मानें न कि वृत्ति।
स्त्रोत:http://www.bhaskar.com/2009/10/25/091025061756_mohan_bhagwat_in_jaipur.html#
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