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Sunday, April 15, 2012

रक्त का धर्म है मानवता और मानव को जीवन देना: इन्द्रेश कुमार

















वाराणसी, 15 अप्रैल। विश्व संवाद केन्द्र के सभागार में धर्म संस्कृति संगम काशी सारनाथ के तत्वावधान में ‘‘भारत की खुशहाली सुरक्षा एवं विश्वशांति में सर्वपंथ समन्वय का महत्व’’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए मुख्यवक्ता इन्द्रेश कुमार ( अ.भा.कार्यकारिणी सदस्य, रा.स्व.संघ ) ने कहा कि धर्म समाज को जोड़ता है। रक्त का धर्म है मानवता और मानव को जीवन देना है। नफरत और घृणा के लिए मन में स्थान नहीं है। अहिंसा, अक्रोध, सत्य, मैत्री, करूणा, प्रेम, स्वतंत्रता, सम्मान, सुरक्षा, रोटी, पर्यावरण से ही समरसता एवं खुशहाली आयेगी। चिन्तन में यदि घृणा आ जायेगी तो सत्य के निकट नहीं जाने देगी। भाषा, जाति, पंथ, दल, क्षेत्र आदि से उÿपर उठकर माँ गंगा की अविरलता एवं निर्मलता के लिए कार्य करने की आवश्यकता है। पेड़ बल है जल जीवन है। कैलाश मानसरोवर के मुक्ति के लिए संघर्ष करना होगा। समन्वय एवं समरसता का साहस भारतीय संस्कृति में ही है।
उन्होंने कहा कि भष्टाचार, आतंकवाद, मतान्तरण, प्रदूषण, छुआछूत, बेरोजगारी, अशिक्षा एवं असुरक्षा से समाज कमजोर हो रहा है। अपने मूल पर गौरव का भाव रखते हुए बाकी लोगों का सम्मान करना चाहिए। समरसता और समन्वय की धारा तेजी के साथ बहनी चाहिए।
उन्होंने कविता के माध्यम से सन्देश दिया कि - ‘‘ सपनो के परदे आंखों से हटाती है, किसी भी बात से हिम्मत नहीं हारना, हिम्मत ही इन्सान को चलना व मंजिल पर पहुँचाना सिखाती है।’’
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो. गेशे नवांग सामतेन (कुलपति, केन्द्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय, सारनाथ) ने कहा कि भारत में प्राचीन काल से संवाद की विकसित परम्परा रही है। आध्यात्मिक, शैक्षणिक एवं दार्शनिक दृष्टि से देखा जाय तो सभी मत-पंथ के लोग आपस में संवाद करते रहे है। भारत के लोग हमेशा सहिष्णु रहे हैं। काशी प्राचीन काल से सांस्कृतिक राजधानी रही है। यहाँ केे विचार सारे विश्व को आलोकित करता है। हमारे दृष्टि में सर्वपंथ समन्वय अनिवार्य किया जाय।
उन्होंने कहा कि खुशहाली एवं सुरक्षा केवल भौतिक संसाधनों से नही प्राप्त किया जा सकता है। खुशहाली व्यक्ति के अन्दर धार्मिक परम्परा द्वारा आती है। निर्भय जीवन के लिए हथियार नहीं बल्कि धार्मिक मूल्यों की आवश्यकता है। शिक्षा में सुधार आवश्यक है। नैतिक शिक्षा पर जोर देते हुए उन्होंने आज की शिक्षा से यदि खुशहाली नहीं आ रही है तो मौलिक परिवर्तन आवश्यक है। संभी पंथों के द्वारा व्यक्ति परिवर्तन से समाज में खुशहाली एवं शांति लायी जा सकती है।
मुफ्ती अब्दुल वातिन नोमानी (मुफ्ती-ए-शहर बनारस खतीब व इमाम शाही मस्जिद ज्ञानवापी) ने कहा कि पूरी दुनियां में अमन चैने सुकुन हर आदमी चाहता है। कुरान सरीफ में इन बातों का जिक्र है। यदि हमारे मुल्क में अमन होगा तो पूरी दुनियां में अमन कायम होगा। भारत के सभी नागरिकों की जिम्मेदारी है कि हमारा मुल्क तरक्की करे। हम अपनी जिम्मेदारी को समझें। कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य करने की जरूरत है। गंगा को दूषित करने वाली सरकार की कोई योजना हमें मंजूर नहीं है।
फादर आनन्द (आई.एम.एस. निदेशक, विश्व ज्योतिजनसंचार केन्द्र, वाराणसी) ने कहा कि खुशहाली केवल साधन एवं सुविधाओं से नहीं आती बल्कि हमारे अन्दर धार्मिक मूल्यों से आती है। सभी पवित्र ग्रन्थों में समदृष्टि की आवश्यकता है।
डाॅ. कपिलदेव शास्त्री (उपाचार्य, श्री कबीर भगवद् आश्रम, छितूपुर, वाराणसी) ने कहा कि भारत में शांति होगी तो पूरे विश्व में होगी। रागद्वेष से रहित होकर निर्णय करें।
श्री रमाशंकर शुक्ल (जोन कोआर्डिनेटर, संत निरंकारी मण्डल शाखा काशी) ने कहा कि सेवा, सुमिरन और सत्संग की शुरूवात अपने से करनी होगी। आज मनुष्य पैसे के पीछे भाग रहा है। धर्म के सच्चे स्वरूप को सामने लाने की जरूरत है। आचार्य भक्तिपुत्र रोहतम (संस्थापक, भक्तिकुल न्यास एवं संस्थापक मंत्री, राष्ट्रीय संस्कृति परिषद, काशी) ने कहा कि आज विविध सम्प्रदायों के बीच विवाद का कारण अहंकार है। हिंसा और अपराध को लोगों के बीच से निकालना होगा।
डाॅ. हरमिन्दर सिंह दुआ (प्रतिनिधि, गुरूद्वारा प्रबन्धक कमेटी, गुरूबाग, वाराणसी) ने कहा कि सभी धर्माचार्यों का उद्देश्य समाज में फैली बुराईयों को दूर करना है। डाॅ. अशोक कुमार जैन (अध्यक्ष, जैन-बौद्ध-दर्शन विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी) ने कहा कि अपनी बातों के साथ-साथ दूसरों को भी सुनना होगा। सभी प्राणियों के साथ-साथ मित्रता का भाव होना चाहिए।
प्रो. रमेश चन्द्र नेगी (आचार्य, केन्द्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय, सारनाथ, वाराणसी) ने कहा कि सभी सम्प्रदायों के लोग आपस में विचारों का विनिमय करेंगे तो विश्व में अशांति नहीं होगी। श्रीमती अमिता दूबे (प्रतिनिधि, महिला मण्डल, अ.भा. गायत्री परिवार, वाराणसी) ने कहा कि कलयुग में संघे शक्ति की आवश्यकता है। डाॅ. आचार्या नन्दिता देवी चतुर्वेदा (प्रमुख, पाणिनी कन्या महाविद्यालय, वाराणसी) ने कहा कि शांति का मूल वेद और अध्यात्म है। स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती महाराज के शिष्य ब्रह्मचारी ज्योर्तिमयानन्द ने कहा कि खुशहाली मां गंगा की सुरक्षा से आयेगी। जल पहले सुरक्षित हो तो बाकी सब सुरक्षित हो जायेगा। माँ गंगा को निर्मल और अविरल बनाना हम सबका धर्म है।
डाॅ. भागीरथीदास (संत सिद्धपीठ, कबीरचैरा मठ मूलगादी, वाराणसी) ने कहा कि सभी धर्म ग्रन्थों में समानता है। बीच के लोग जो लड़ाई पैदा करते हैं उनकों समझाना होगा। धर्म संस्कृति संगम काशी सारनाथ के अध्यक्ष प्रो. रामरक्षा त्रिपाठी ने कहाकि धर्म एक पवित्र नदी है इसके तत्व को समझना होगा।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से प्रो. जयप्रकाश लाल, प्रो. दीनबन्धु पाण्डेय, डाॅ. गणनाथ द्विवेदी, के.पी. पाण्डेय, आशा शर्मा, चरनजीत ंिसंह, दलजीत सिंह, रविशंकर पाण्डेय, अरविन्द नारायण, नरेन्द्र दत्त तिवारी, लक्ष्मी सिंह, नीरज तिवारी, मुकेश कुमार ओझा एवं नागेन्द्र कुमार सहित सैकड़ों लोग उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन धर्म संस्कृति संगम काशी सारनाथ के मंत्री डाॅ. शुकदेव त्रिपाठी एवं धन्यवाद ज्ञापन धर्म संस्कृति संगम काशी सारनाथ की मंत्री डाॅ. माधवी तिवारी ने किया।
प्रस्तुति: विश्व संवाद केन्द्र, काशी

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