राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के तीसरे दिन की प्रेस ब्रिफिंग
सर कार्यवाह माननीय सुरेश जी जोशी "भैय्या जी जोशी" पत्रकारों से बात करते हुए |
जयपुर 17 मार्च। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह सुरेश जोशी (भैय्या जी जोशी ) ने रविवार को जयपुर में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि देश की सीमा क्षेत्र में पाकिस्तान द्वारा बर्बरता का परिचय देना, प्रति रक्षा सौदों पर प्रष्न चिह्न लगना, महिला उत्पीडन की वेदनादायक घटनाएं आदि से देश में जो परिस्थितियां बनी है वे संघ के साथ ही समस्त देश भक्तों के लिए चिंता का विषय है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने सभी विषयों पर चर्चा कर प्रस्ताव और व्यक्तव्य के माध्यम से समाज के सामने यह विषय लाने का प्रयास किया है।
सर कार्यवाह माननीय सुरेश जी जोशी "भैय्या जी जोशी" एवं माननीय मनमोहन जी वैध्य |
उन्होंने अखिल भारतीय प्रतिनिधि में तीन दिन तक चले मंथन के बारे में मीडिया को बताया कि पाकिस्तान और बंगलादेश में हिन्दुओं पर हो रहे अन्तहीन अत्याचारों के परिणामस्वरूप वे लगातार बड़ी संख्या में शरणार्थी बनकर भारत में आ रहे हैं। यह बहुत ही लज्जा एवम् दुःख का विषय है कि इन असहाय हिन्दुओं को अपने अपने मूल स्थान और भारत दोनों में ही अत्यंत दयनीय जीवन बिताने को विवश होना पड़ रहा है।
बंगलादेश के बौद्धों सहित समस्त हिन्दुओं एवं उनके पूजास्थलों पर वहाँ की हिंदु और भारत विरोधी कुख्यात जमाते इस्लामी सहित विभिन्न कट्टरपंथी संगठनों द्वारा हाल ही में किये गए हमलों की तीव्र निंदा की गई। पाकिस्तान के हिंदु सुरक्षा, सम्मान और मानवाधिकारों से वंचित निम्न स्तर का जीवन बिता रहे हैं। सिक्खों सहित समस्त हिन्दुओं पर नित्य हमले आम बात है। बलपूर्वक मतान्तरण, अपहरण, बलात्कार, जबरन विवाह, हत्या और धर्मस्थलों को विनष्ट करना वहाँ के हिन्दुओं के प्रतिदिन के उत्पीडि़त, जीवन का भाग हो गये हैं। पाकिस्तान की कोई भी संवैधानिक संस्था उनकी सहायता के लिए आगे नहीं आती है। परिणामस्वरूप पाकिस्तान के हिंदु भी पलायन कर भारत में शरण मांगने को विवश हो रहे हैं। 1950 के नेहरु-लियाकत समझौते में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि दोनों देशों में अल्पसंख्यकों को पूर्ण सुरक्षा और नागरिकता के अधिकार प्रदान किये जायेंगे। भारत में हर संवैधानिक प्रावधान का उपयोग तथाकथित अल्पसंख्यकों को न केवल सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया गया अपितु उनको तुष्टिकरण की सीमा तक जानेवाले विशेष प्रावधान भी दिए गए। वे आज भारत में जनसांख्यिकी, आर्थिक, शैक्षिक, और सामाजिक सभी दृष्टि से सुस्थापित हैं। इसके विपरीत, पाकिस्तान और बंगलादेश के हिंदु लगातार उत्पीडन के परिणामस्वरूप घटती जनसंख्या, असीम गरीबी, मानवाधिकारों के हनन और विस्थापन की समस्याओं से ग्रस्त है। पूर्व और पश्चिम पाकिस्तान में विभाजन के समय हिन्दुओं की जनसंख्या क्रमशः 28ः और 11ः थी तथा खंडित भारत में 8ः मुस्लिम थे। आज जब भारत की मुस्लिम आबादी 14ः तक बढ़ गयी है वहीं बंगलादेश में हिंदु घटकर 10ः से कम रह गए है और पाकिस्तान में वे 2 प्रतिशत से भी कम है।
इस हृदय विदारक दृश्य को देखते हुए भारत सरकार से यह अनुरोध करती है कि इन दोनों देशों में रहनेवाले हिन्दुओं के प्रश्न पर नए दृष्टिकोण से देखे, क्योंकि उनकी स्थिति अन्य देशों में रहनेवाले हिन्दुओं से पूर्णतया अलग है। इसी के साथ मांग की गई है कि बंगलादेश और पाकिस्तान की सरकारों पर वहाँ के हिन्दुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दबाव बनाए, राष्ट्रीय शरणार्थी एवं पुनर्वास नीति बनाकर इन दोनों देशों से आनेवाले हिन्दुओं के सम्मानजनक जीवन यापन की व्यवस्था भारत में तब तक करें जब तक कि उनकी सुरक्षित और सम्मानजनक वापसी की स्थिति नहीं बनती, बंगलादेश और पाकिस्तान से विस्थापित होनेवाले हिन्दुओं के लिए दोनों देशों से उचित क्षतिपूर्ति की मांग करे, संयुक्त राष्ट्र संघ के शरणार्थी तथा मानवाधिकार से सम्बंधित संस्थाओं ख्न्छभ्ब्त्ए न्छभ्त्ब्, से यह मांग करे कि हिन्दुओं व अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा व सम्मान की रक्षा के लिए वे अपनी भूमिका का निर्वाह करें।
महिला उत्पीडन और सरकार द्वारा सेक्स की आयु घटाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि देश मंे प्राचीन काल से ही महिलाएं श्रद्धा और आदर का केन्द्र रही है। वर्तमान परिस्थितियों मंे महिलाओं की सामाजिक भूमिका पर समाज जागरण की आवश्यकता है। इसके लिए परिवार और समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना अत्यन्त आवश्यक है। सेक्स की आयु घटाने के जवाब में उन्होंने कहा कि यह देश के लिए ठीक नही है और संघ इसका विरोध करता है।
शनिवार, 16 मार्च 2013
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के दूसरे दिन की प्रेस ब्रिफिंग
सह सरकार्यवाह डा कृष्णगोपाल एवं अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख माननीय नन्द कुमार जी पत्रकारों से वार्ता करते हुए |
पत्रकारों से वार्ता का एक दृश्य |
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के दूसरे दिन की प्रेस ब्रिफिंग
जयपुर 16 मार्च। जयपुर के केषव विद्यापीठ जामड़ोली में चल रही अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के दुसरे दिन संवाददाताओं से बात करते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डाॅ.कृष्णगोपाल ने कहा कि पड़ोसी देषों से हो रही घुसपैठ के कारण लगातार जनसंख्या असतुंलन बढ़ता जा रहा है, यह वृद्धि प्राकृतिक नही है। डाॅ.गोपाल ने सरकार्यवाह सुरेष भैय्या जी जोशी द्वारा श्रीलंका के तमिल पीडि़तों की समस्याओं और देष की वर्तमान परिस्थितियों पर जारी दो वक्तव्यों की जानकारी भी दी।
डाॅ.कृष्णगोपाल ने संवाददाताओं द्वारा पूछे गए सवालों के जबाव देते हुए कहा कि महिला उत्पीड़न के खिलाफ कानून तो अच्छा बनना ही चाहिए। इसके साथ ही समाज, परिवार और शैक्षिणिक संस्थाओं में महिलाओं के प्रति आदर भी बढ़ना चाहिए। हर घर, परिवार में संस्कार बढे ऐसे प्रयास समाज में होने चाहिए।
जारी व्यक्तव्य में बताया गया कि गत वर्ष संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यू.एन.एच.आर.सी.) की जेनेवा बैठक से ठीक पहले श्रीलंका सरकार को अपने देश के तमिलों की समस्याओं का समाधान करने के लिए सक्रियतापूर्वक कदम उठा उनके उचित पुनर्वास, सुरक्षा एवं राजनैतिक अधिकारों को भी सुनिश्चित करने की मांग की गई थी। परन्तु एक वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी धरातल पर स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है। इस कारण से वैश्विक जगत का श्रीलंका सरकार की मंशाओं के प्रति संदेह और गहरा हो गया है।
श्रीलंका सरकार को यह पुनस्र्मरण कराना चाहिए कि वह 30 वर्ष के लिट्टे (एल.टी.टी.ई.) एवं श्रीलंका सुरक्षा बलों के मध्य हुए संघर्ष के परिणामस्वरूप हुई तमिलों की दुर्दशा पर आँख मंूदकर नहीं बैठे, जिन्हें इस कारण अपने जीवन, रोजगार, घरों और मंदिरों को भी खोना पड़ा। एक लाख से अधिक तमिल आज अपने देश से पलायन कर तमिलनाडु के समुद्री किनारों पर शरणार्थी के रूप में रह रहे हंै। श्रीलंका में स्थायी शांति तभी संभव है जब सरकार उत्तरी एवं पूर्वी प्रान्तों तथा भारत में रहने वाले तमिल शरणार्थियों की समस्याओं पर गंभीरतापूर्वक एवं पर्याप्त रूप से ध्यान दे। भारत सरकार से यह आग्रह हैं कि वह यह सुनिश्चित करे कि श्रीलंका सरकार विस्थापित तमिलों के पुनर्वास तथा उन्हें पूर्ण नागरिक व राजनैतिक अधिकार प्रदान करने के लिए जिम्मेदारीपूर्वक व्यवहार करे।
देष की वर्तमान परिस्थिति के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि सरकार की अदूरदर्शितापूर्ण नीतियों से बढ़ते आर्थिक संकट और कृषि, लघु उद्योग व अन्य रोजगार आधारित क्षेत्रों की बढ़ती उपेक्षा आज देश के लिए चिन्ता का कारण बन कर उभर रही है। देश के उत्पादक उद्योगों की वृ़द्धि दर आज स्वाधीनता के बाद सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुँच गयी है। इस गिरावट से फैलती बेरोजगारी, निरंतर बढ़ रही महंगाई, विदेश व्यापार में बढ़ता घाटा और देश के उद्योग, व्यापार व वाणिज्य पर विदेशी कम्पनियों का बढ़ता आधिपत्य आदि आज देश के लिए गम्भीर आर्थिक सकंट व पराश्रयता का कारण सिद्ध हो रहे हैं।
कृषि की उपेक्षा से किसानों द्वारा आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं, अधिकाधिक किसानों का अनुबंध पर कृषि के लिए बाध्य होने और सरकार की भू अधिग्रहण की विवेकहीन हठधर्मिता आदि से आज करोडों किसानों का जीवन संकटापन्न होने के साथ ही, देश की खाद्य सुरक्षा भी गम्भीर रूप से प्रभावित हो रही है।
उन्होंने बताया कि आज गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियाँ जहाँ हमारी अगाध श्रद्धा का केन्द्र हैं, वहीं वे करोड़ों लोगों के जीवन का आधार होने के साथ-साथ, देश के बहुत बड़े क्षेत्र के पर्यावरणीय तंत्र की भी मूलाधार हैं। इन नदियों के प्रवाह को अवरूद्ध करने के सरकारों के प्रयास, उन्हें प्रदूषण मुक्त रखने के प्रति उपेक्षा एवं उनकी रक्षार्थ चल रहे आन्दोलनों की भावना को न समझते हुए उनकी उपेक्षा भी गम्भीर रूप से चिन्तनीय है। संघ इन सभी जन आन्दोलनों का स्वागत करता है। कावेरी जैसे नदी जल विवाद भी अत्यन्त चिन्ताजनक हैं। राज्यों के बीच नदी जल विभाजन व्यापक जन हित में, न्याय व सौहार्द पूर्वक होना आवश्यक है। इसी प्रकार प्राचीन रामसेतु, जोे करोडों हिन्दुओं की श्रद्धा का केन्द्र होने के साथ-साथ, वहाँ पर विद्यमान थोरियम के दुर्लभ भण्डारांेेे को सुरक्षित रखने में भी प्रभावी सिद्ध हो रहा है। उसे तोड़ कर ही सेतु-समुद्रम योजना को पूरा करने की सरकार की हठधर्मिता, देश की जनता के लिए असह्य है। पूर्व में भी वहां से परिवहन नहर निकालने हेतु सरकार द्वारा उसे तोडने के प्रयास आरंभ करने पर, उसे राम भक्तों के प्रबल विरोध के आगे झुकना पडा है। आज शासन द्वारा पचैरी समिति के द्वारा सुझाये वैकल्पिक मार्ग को अपनाने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देने के शपथ पत्र से पुनः उसकी नीयत पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है। इसलिए हम सरकार से अनुरोध करतेे हैं कि, जन भावनाओं का सम्मान करते हुए उसे तोड़ने का दुस्साहस न करे। अन्यथा उसे पुनः प्रबल जनाक्रोश का सामना करना पड़ेगा। ऐसे सभी सामयिक घटनाक्रमों के प्रति सरकार को जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए देश हित में व्यवहार करना चाहिए।
डाॅ.कृष्णगोपाल ने संवाददाताओं द्वारा पूछे गए सवालों के जबाव देते हुए कहा कि महिला उत्पीड़न के खिलाफ कानून तो अच्छा बनना ही चाहिए। इसके साथ ही समाज, परिवार और शैक्षिणिक संस्थाओं में महिलाओं के प्रति आदर भी बढ़ना चाहिए। हर घर, परिवार में संस्कार बढे ऐसे प्रयास समाज में होने चाहिए।
जारी व्यक्तव्य में बताया गया कि गत वर्ष संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यू.एन.एच.आर.सी.) की जेनेवा बैठक से ठीक पहले श्रीलंका सरकार को अपने देश के तमिलों की समस्याओं का समाधान करने के लिए सक्रियतापूर्वक कदम उठा उनके उचित पुनर्वास, सुरक्षा एवं राजनैतिक अधिकारों को भी सुनिश्चित करने की मांग की गई थी। परन्तु एक वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी धरातल पर स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है। इस कारण से वैश्विक जगत का श्रीलंका सरकार की मंशाओं के प्रति संदेह और गहरा हो गया है।
श्रीलंका सरकार को यह पुनस्र्मरण कराना चाहिए कि वह 30 वर्ष के लिट्टे (एल.टी.टी.ई.) एवं श्रीलंका सुरक्षा बलों के मध्य हुए संघर्ष के परिणामस्वरूप हुई तमिलों की दुर्दशा पर आँख मंूदकर नहीं बैठे, जिन्हें इस कारण अपने जीवन, रोजगार, घरों और मंदिरों को भी खोना पड़ा। एक लाख से अधिक तमिल आज अपने देश से पलायन कर तमिलनाडु के समुद्री किनारों पर शरणार्थी के रूप में रह रहे हंै। श्रीलंका में स्थायी शांति तभी संभव है जब सरकार उत्तरी एवं पूर्वी प्रान्तों तथा भारत में रहने वाले तमिल शरणार्थियों की समस्याओं पर गंभीरतापूर्वक एवं पर्याप्त रूप से ध्यान दे। भारत सरकार से यह आग्रह हैं कि वह यह सुनिश्चित करे कि श्रीलंका सरकार विस्थापित तमिलों के पुनर्वास तथा उन्हें पूर्ण नागरिक व राजनैतिक अधिकार प्रदान करने के लिए जिम्मेदारीपूर्वक व्यवहार करे।
देष की वर्तमान परिस्थिति के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि सरकार की अदूरदर्शितापूर्ण नीतियों से बढ़ते आर्थिक संकट और कृषि, लघु उद्योग व अन्य रोजगार आधारित क्षेत्रों की बढ़ती उपेक्षा आज देश के लिए चिन्ता का कारण बन कर उभर रही है। देश के उत्पादक उद्योगों की वृ़द्धि दर आज स्वाधीनता के बाद सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुँच गयी है। इस गिरावट से फैलती बेरोजगारी, निरंतर बढ़ रही महंगाई, विदेश व्यापार में बढ़ता घाटा और देश के उद्योग, व्यापार व वाणिज्य पर विदेशी कम्पनियों का बढ़ता आधिपत्य आदि आज देश के लिए गम्भीर आर्थिक सकंट व पराश्रयता का कारण सिद्ध हो रहे हैं।
कृषि की उपेक्षा से किसानों द्वारा आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं, अधिकाधिक किसानों का अनुबंध पर कृषि के लिए बाध्य होने और सरकार की भू अधिग्रहण की विवेकहीन हठधर्मिता आदि से आज करोडों किसानों का जीवन संकटापन्न होने के साथ ही, देश की खाद्य सुरक्षा भी गम्भीर रूप से प्रभावित हो रही है।
उन्होंने बताया कि आज गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियाँ जहाँ हमारी अगाध श्रद्धा का केन्द्र हैं, वहीं वे करोड़ों लोगों के जीवन का आधार होने के साथ-साथ, देश के बहुत बड़े क्षेत्र के पर्यावरणीय तंत्र की भी मूलाधार हैं। इन नदियों के प्रवाह को अवरूद्ध करने के सरकारों के प्रयास, उन्हें प्रदूषण मुक्त रखने के प्रति उपेक्षा एवं उनकी रक्षार्थ चल रहे आन्दोलनों की भावना को न समझते हुए उनकी उपेक्षा भी गम्भीर रूप से चिन्तनीय है। संघ इन सभी जन आन्दोलनों का स्वागत करता है। कावेरी जैसे नदी जल विवाद भी अत्यन्त चिन्ताजनक हैं। राज्यों के बीच नदी जल विभाजन व्यापक जन हित में, न्याय व सौहार्द पूर्वक होना आवश्यक है। इसी प्रकार प्राचीन रामसेतु, जोे करोडों हिन्दुओं की श्रद्धा का केन्द्र होने के साथ-साथ, वहाँ पर विद्यमान थोरियम के दुर्लभ भण्डारांेेे को सुरक्षित रखने में भी प्रभावी सिद्ध हो रहा है। उसे तोड़ कर ही सेतु-समुद्रम योजना को पूरा करने की सरकार की हठधर्मिता, देश की जनता के लिए असह्य है। पूर्व में भी वहां से परिवहन नहर निकालने हेतु सरकार द्वारा उसे तोडने के प्रयास आरंभ करने पर, उसे राम भक्तों के प्रबल विरोध के आगे झुकना पडा है। आज शासन द्वारा पचैरी समिति के द्वारा सुझाये वैकल्पिक मार्ग को अपनाने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देने के शपथ पत्र से पुनः उसकी नीयत पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है। इसलिए हम सरकार से अनुरोध करतेे हैं कि, जन भावनाओं का सम्मान करते हुए उसे तोड़ने का दुस्साहस न करे। अन्यथा उसे पुनः प्रबल जनाक्रोश का सामना करना पड़ेगा। ऐसे सभी सामयिक घटनाक्रमों के प्रति सरकार को जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए देश हित में व्यवहार करना चाहिए।
देश की वर्तमान परिस्थितियों पर सर कार्यवाह भय्या जी जोशी का वक्तव्य
देश की वर्तमान परिस्थितियों पर सर कार्यवाह भय्या जी जोशी का वक्तव्य
16.03.2013
सरकार की अदूरदर्शितापूर्ण नीतियों से बढ़ते आर्थिक संकट और कृषि,लघु उद्योग व अन्य रोजगार आधारित क्षेत्रों की बढ़ती उपेक्षा आज देश के लिए चिन्ता का कारण बन कर उभर रही है। देश के उत्पादक उद्योगों की वृ़द्धि दर आज स्वाधीनता के बाद सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुँच गयी है। इस गिरावट से फैलती बेरोजगारी, निरंतर बढ़ रही महंगाई, विदेश व्यापार में बढ़ता घाटा और देश के उद्योग, व्यापार व वाणिज्य पर विदशी कम्पनियों का बढ़ता अधिपत्य आदि आज देश के लिए गम्भीर आर्थिक सकंट व पराश्रयता का कारण सिद्ध हो रहे हैं। साथ ही बढ़ते राजकोषीय संकट से,कृषि सहित रक्षा, विकास व लोक कल्याण के लिए संसाधनों का बढ़ता अभाव भी आज गम्भीर रूप से चिंतनीय है। कृषि की उपेक्षा से किसानों द्वारा आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं, अधिकाधिक किसानों का अनुबंध पर कृषि के लिए बाध्य होने और सरकार की भू अधिग्रहण की विवेकहीन हठधर्मिता आदि से आज करोडों किसानों का जीवन संकटापन्न होने के साथ ही, देश की खाद्य सुरक्षा भी गम्भीर रूप से प्रभावित हो रही है। ऐसे में, विविध बहुपक्षीय व्यापारिक समझौते एवं मुक्त व्यापार समझौते भी अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में सरकार को देश हित के अनुरूप निर्णय करने के विरूद्ध बाध्य कर, विकल्प हीनता की स्थिति खड़ी कर रहे हैं, जो अत्यन्त गंभीर चिन्ता का विषय है। ऐसे में आज स्वावलम्बी आर्थिक विकास के लिए, वैकल्पिक आर्थिक पुनर्रचना की पहल की अविलम्ब आवश्यकता है।
आज गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियाँ जहाँ हमारी अगाध श्रद्धा का केन्द्र हैं, वहीं वे करोड़ों लोगों के जीवन का आधार होने के साथ-साथ,देश के बहुत बड़े क्षेत्र के पर्यावरणीय तंत्र की भी मूलाधार हैं। इन नदियों के प्रवाह को अवरूद्ध करने के सरकारों के प्रयास, उन्हें प्रदूषण मुक्त रखने के प्रति उपेक्षा एवं उनकी रक्षार्थ चल रहे आन्दोलनों की भावना को न समझते हुए उनकी उपेक्षा भी गम्भीर रूप से चिन्तनीय है। संघ इन सभी जन आन्दोलनों का स्वागत करता है। कावेरी जैसे नदी जल विवाद भी अत्यन्त चिन्ताजनक हैं। राज्यों के बीच नदी जल विभाजन व्यापक जन हित में, न्याय व सौहार्द पूर्वक होना आवश्यक है। इसी प्रकार प्राचीन रामसेतु, जो करोडों हिन्दुओं की श्रद्धा का केन्द्र होने के साथ-साथ, वहाँ पर विद्यमान थोरियम के दुर्लभ भण्डारों को सुरक्षित रखने में भी प्रभावी सिद्ध हो रहा है। उसे तोड़ कर ही सेतु-समुद्रम योजना को पूरा करने की सरकार की हठधर्मिता, देश की जनता के लिए असह्य है। पूर्व में भी वहां से परिवहन नहर निकालने हेतु सरकार द्वारा उसे तोडने के प्रयास आरंभ करने पर, उसे राम भक्तों के प्रबल विरोध के आगे झुकना पडा है। आज शासन द्वारा पचौरी समिति के द्वारा सुझाये वैकल्पिक मार्ग को अपनाने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देने के शपथ पत्र से पुनः उसकी नीयत पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है। इसलिए हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि, जन भावनाओं का सम्मान करते हुए उसे तोड़ने का दुस्साहस न करे। अन्यथा उसे पुनः प्रबल जनाक्रोश का सामना करना पड़ेगा। ऐसे सभी सामयिक घटनाक्रमों के प्रति सरकार को जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए देश हित में व्यवहार करना चाहिए।
सरकार्यवाह श्री भैय्या जी जोशी का श्रीलंका के तमिल पीड़ितों की समस्याओं पर वक्तव्य
सरकार्यवाह श्री भैय्या जी जोशी का श्रीलंका के तमिल पीड़ितों की समस्याओं पर वक्तव्य
16 मार्च, 2013। जामडोली, जयपुर।
गत वर्ष संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यू.एन.एच.आर.सी.) की जेनेवा बैठक से ठीक पहले हमने यह वक्तव्य प्रसारित किया था कि श्रीलंका सरकार को अपने देश के तमिलों की समस्याओं का समाधान करने के लिए सक्रियतापूर्वक कदम उठा उनके उचित पुनर्वास, सुरक्षा एवं राजनैतिक अधिकारों को भी सुनिश्चित करे। मैं आज यह कहने को बाध्य हूँ कि एक वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी धरातल पर स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है। इस कारण से वैश्विक जगत का श्रीलंका सरकार की मंशाओं के प्रति संदेह और गहरा हो गया है।
मैं इस अवसर पर श्रीलंका सरकार को यह पुनर्स्मरण कराना चाहता हूँ कि वह 30 वर्ष के लिट्टे (एल.टी.टी.ई.) एवं श्रीलंका सुरक्षा बलों के मध्य हुए संघर्ष के परिणामस्वरूप हुई तमिलों की दुर्दशा पर आँख मुंदकर नहीं बैठ सकती, जिन्हें इस कारण अपने जीवन, रोजगार, घरों और मंदिरों को भी खोना पड़ा। एक लाख से अधिक तमिल आज अपने देश से पलायन कर तमिलनाडु के समुद्री किनारों पर शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं।
हमारा यह सुनिश्चित मत है कि श्रीलंका में स्थायी शांति तभी संभव है जब उस देश की सरकार उत्तरी एवं पूर्वी प्रान्तों तथा भारत में रहने वाले तमिल शरणार्थियों की समस्याओं पर गंभीरतापूर्वक एवं पर्याप्त रूप से ध्यान दे। हम भारत सरकार से यह आग्रह करते हैं कि वह यह सुनिश्चित करे कि श्रीलंका सरकार विस्थापित तमिलों के पुनर्वास तथा उन्हें पूर्ण नागरिक व राजनैतिक अधिकार प्रदान करने के लिए जिम्मेदारीपूर्वक व्यवहार करे।
हमें ध्यान रखना ही होगा कि हिन्द महासागर क्षेत्र में स्थित यह पडोसी द्वीप, जिसके भारतवर्ष से हजारों वर्ष पुराने रिश्ते है,कहीं वैश्विक शक्तियों के भू-सामरिक खेल का मोहरा बन कर हिन्द महासागर का युद्ध क्षेत्र न बन जाए। उस देश के सिंहली व तमिलों के बीच की खाई को ओर अधिक बढाने के प्रयासों को सफल नहीं होने देना चाहिए। इसी में ही श्रीलंका के संकट का स्थायी हल निहित है।
शुक्रवार, 15 मार्च 2013
पत्रकारों से रूबरू होते माननीय दत्तात्रेय जी होस्बोले, सह सरकार्यवाह तथा माननीय नन्द कुमार जी सह अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख का विडियो देखने के लिए क्लीक करे
पत्रकारों से रूबरू होते माननीय दत्तात्रेय जी होस्बोले, सह सरकार्यवाह तथा माननीय नन्द कुमार जी अखिल भारतीय प्सहरचार प्रमुख का विडियो देखने के लिए क्लीक करे
Press brief by Man Dattatrey ji Hosbole, Sah Sar KArywah & Manniya Nand Kumar ji , Akhil Bhartiya Sah Prachar Pramukh
Press brief by Man Dattatrey ji Hosbole, Sah Sar KArywah & Manniya Nand Kumar ji , Akhil Bhartiya Sah Prachar Pramukh
पत्रकारों से रूबरू होते अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख माननीय डा. मनमोहन जी वैद्य का विडियो देखने के लिए क्लीक करे
पत्रकारों से रूबरू होते अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख माननीय डा. मनमोहन जी वैद्य का विडियो देखने के लिए क्लीक करे
ABPS-2013 First Press Brief
ABPS-2013 First Press Brief
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अखिल भारतीय प्रतिनिधी सभा की बैठक प्रारंभ
माननीय दत्तात्रेय जी होस्बोले एवं नन्द कुमार जी |
जयपुर 15 मार्च। अखिल भारतीय प्रतिनिधी सभा का उद्द्याटन प. पूज्य सरसंघचालक डाॅ. मोहनराव भागवत एवं सरकार्यवाह मा. भैय्या जी जोषी द्वारा भारत माता के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्जवलन कर हुआ।
उद्द्याटन सत्र के पश्चात् संवादाताओं को सम्बोधित करते हुए सह-सरकार्यवाह मा. दत्तात्रेय जी होसबोले ने कहा की अखिल भारतीय प्रतिनिधी सभा में 1395 प्रतिनिधी अपेक्षित है, सभा में संघ के गत वर्ष के कार्य की समीक्षा संख्यात्मक, गुणात्मक तथा प्रभावात्मक आधार पर की जायेगी तथा आगामी लक्ष्य निर्धारित किये जायेगे। उन्होनें बताया की विविध क्षेत्र में किये जा रहे कार्याे का लेखा जोखा भी प्रस्तुत किया जायेगा।
उन्होने बताया की गत वर्ष फिन्स (फोरम फार इन्टीग्रेटिड नेषनल सिक्योरिटी) द्वारा आयोजित सरहद को प्रणाम कार्यक्रम में देष के सुदुर क्षेत्रो के 6000 स्वयंसेवको ने देष की सीमाओं पर जाकर प्रत्यक्ष अनुभव किया की वहां की विपरीत परिस्थितियों में सैनिक किस प्रकार देष की रक्षा करते है, वहां रहने वाले सीमावर्ती गांवों के नागरिक किन परेषानीयों का सामना करते है।
उन्होने इस वर्ष स्वामी विवेकानन्द की 150 वीं जयंती पर गठित सार्धषती समारोह समिति द्वारा देष भर में किये जाने वाले कार्यक्रमों की चर्चा करते हुए बताया कि 12 जनवरी 2013 को विवेकानन्द जी के जन्म दिवस पर शोभायात्रा के कार्यक्रमों में लाखो की संख्या में सभी आयु वर्ग व जाति बिरादरी के लोगो का सहभाग रहा। इससे समाज में भारतीयता, हिन्दूत्व का भाव प्रकट हुआ। 18 फरवरी 2013 को सामूहिक सूर्यनमस्कार में लगभग 2.5 करोड विद्यार्थियांे ने भाग लिया। जिसमें मुस्लिम व ईसाई विद्यार्थी भी शामिल थे। स्वामी विवेकानन्द जी का कथन ’स्वस्थ शरीर मेें स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है के अनुरक्ष में इस कार्यक्रम का आयोजन किया।
इस अवसर पर पारित होने वाले प्रस्ताव की जानकारी देते हुए कहा की भारत के विभाजन के 60 वर्ष पष्चात आज भी पष्चिमी पाकिस्तान व पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेष) से लाखों की संख्या में हिन्दू प्रताडित होकर भारत में शरण ले रहे है। उन्होनंे उनके जीवन के लिए आवष्यक सुविधाएं उपलब्ध कराने की दृष्टि से सरकार द्वारा आवष्यक ठोस नीति बनाई जाये। इस हेतु से एक प्रस्ताव विचारार्थ है।
देष की वर्तमान आर्थिक स्थिति, सुरक्षा, आतंकवाद, तुष्टीकरण व नदीयों की स्वच्छता, एकात्मता व पर्यावरण आदि विषयों पर सर कार्यवाह जी मूल प्रेस व्यक्तव्य जारी किया जाएगा। उन्होने देष में बढती हुई नारी उत्पीडन की घटनाओं पर चिन्ता व्यक्त करते हुए इसे अत्यन्त दुखद बताया।
अफजल गुरू के शव उसके परिजनों को सौंपे जाने के लिए पाकिस्तान की संसद में पारित प्रस्ताव की कड़े शब्दों में भत्र्सना करते हुए कहा कि यह भारत के आंतरिक मामलों में और भारत की सम्प्रभुता और सार्वभौमिकता पर सीधा हस्तक्षेप है। एक तरफ तो पाकिस्तान मुंबई आंतकी घटनाओं में शामिल अजमल कसाब और बारह पाकिस्तानी आतंकवादियों के शवों को लेने से मना करता है दूसरी ओर अफजल गुरू के मामले हस्तक्षेप करता है इससे पाकिस्तान का दोहरा चरित्र सामने आया है।
राममंदिर निर्माण के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इस मामले में देषभर के संत महात्मा और धर्माचार्यो ने महाकुंभ में संत सम्मेलन में मंदिर निर्माण का संकल्प दोहराया है। उन्होंने कहा कि ढांचा गिरने के बाद बाबरी मस्जिद एक्षन कमेटी ने कहा था यदि यहां मंदिर था यह सिद्ध हो जाता है तो हम यह स्थान मंदिर के लिए छोड़ देंगे। अब तो हाईकोर्ट के निर्णय के बाद यह सिद्ध हो गया है कि वहां मंदिर था। ऐसे में सरकार को संसद में कानून बनाकर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रषस्त करना चाहिए।
उद्द्याटन सत्र के पश्चात् संवादाताओं को सम्बोधित करते हुए सह-सरकार्यवाह मा. दत्तात्रेय जी होसबोले ने कहा की अखिल भारतीय प्रतिनिधी सभा में 1395 प्रतिनिधी अपेक्षित है, सभा में संघ के गत वर्ष के कार्य की समीक्षा संख्यात्मक, गुणात्मक तथा प्रभावात्मक आधार पर की जायेगी तथा आगामी लक्ष्य निर्धारित किये जायेगे। उन्होनें बताया की विविध क्षेत्र में किये जा रहे कार्याे का लेखा जोखा भी प्रस्तुत किया जायेगा।
उन्होने बताया की गत वर्ष फिन्स (फोरम फार इन्टीग्रेटिड नेषनल सिक्योरिटी) द्वारा आयोजित सरहद को प्रणाम कार्यक्रम में देष के सुदुर क्षेत्रो के 6000 स्वयंसेवको ने देष की सीमाओं पर जाकर प्रत्यक्ष अनुभव किया की वहां की विपरीत परिस्थितियों में सैनिक किस प्रकार देष की रक्षा करते है, वहां रहने वाले सीमावर्ती गांवों के नागरिक किन परेषानीयों का सामना करते है।
उन्होने इस वर्ष स्वामी विवेकानन्द की 150 वीं जयंती पर गठित सार्धषती समारोह समिति द्वारा देष भर में किये जाने वाले कार्यक्रमों की चर्चा करते हुए बताया कि 12 जनवरी 2013 को विवेकानन्द जी के जन्म दिवस पर शोभायात्रा के कार्यक्रमों में लाखो की संख्या में सभी आयु वर्ग व जाति बिरादरी के लोगो का सहभाग रहा। इससे समाज में भारतीयता, हिन्दूत्व का भाव प्रकट हुआ। 18 फरवरी 2013 को सामूहिक सूर्यनमस्कार में लगभग 2.5 करोड विद्यार्थियांे ने भाग लिया। जिसमें मुस्लिम व ईसाई विद्यार्थी भी शामिल थे। स्वामी विवेकानन्द जी का कथन ’स्वस्थ शरीर मेें स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है के अनुरक्ष में इस कार्यक्रम का आयोजन किया।
इस अवसर पर पारित होने वाले प्रस्ताव की जानकारी देते हुए कहा की भारत के विभाजन के 60 वर्ष पष्चात आज भी पष्चिमी पाकिस्तान व पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेष) से लाखों की संख्या में हिन्दू प्रताडित होकर भारत में शरण ले रहे है। उन्होनंे उनके जीवन के लिए आवष्यक सुविधाएं उपलब्ध कराने की दृष्टि से सरकार द्वारा आवष्यक ठोस नीति बनाई जाये। इस हेतु से एक प्रस्ताव विचारार्थ है।
देष की वर्तमान आर्थिक स्थिति, सुरक्षा, आतंकवाद, तुष्टीकरण व नदीयों की स्वच्छता, एकात्मता व पर्यावरण आदि विषयों पर सर कार्यवाह जी मूल प्रेस व्यक्तव्य जारी किया जाएगा। उन्होने देष में बढती हुई नारी उत्पीडन की घटनाओं पर चिन्ता व्यक्त करते हुए इसे अत्यन्त दुखद बताया।
अफजल गुरू के शव उसके परिजनों को सौंपे जाने के लिए पाकिस्तान की संसद में पारित प्रस्ताव की कड़े शब्दों में भत्र्सना करते हुए कहा कि यह भारत के आंतरिक मामलों में और भारत की सम्प्रभुता और सार्वभौमिकता पर सीधा हस्तक्षेप है। एक तरफ तो पाकिस्तान मुंबई आंतकी घटनाओं में शामिल अजमल कसाब और बारह पाकिस्तानी आतंकवादियों के शवों को लेने से मना करता है दूसरी ओर अफजल गुरू के मामले हस्तक्षेप करता है इससे पाकिस्तान का दोहरा चरित्र सामने आया है।
राममंदिर निर्माण के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इस मामले में देषभर के संत महात्मा और धर्माचार्यो ने महाकुंभ में संत सम्मेलन में मंदिर निर्माण का संकल्प दोहराया है। उन्होंने कहा कि ढांचा गिरने के बाद बाबरी मस्जिद एक्षन कमेटी ने कहा था यदि यहां मंदिर था यह सिद्ध हो जाता है तो हम यह स्थान मंदिर के लिए छोड़ देंगे। अब तो हाईकोर्ट के निर्णय के बाद यह सिद्ध हो गया है कि वहां मंदिर था। ऐसे में सरकार को संसद में कानून बनाकर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रषस्त करना चाहिए।
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