स्वस्थ प्रजातंत्र के लिए शत प्रतिशत मतदान जरूरी : सरसंघचालक
नागरिकों के चुनावी समय के कर्तव्य पर जोर डालते हुए सरसंघचालक ने कहा कि उदासीनता को त्यागकर इस दिशा में होनेवाले सभी प्रयासों में चुनाव करानेवाली व्यवस्थाओं व व्यक्तियों से हमारा सहयोग होना चाहिए। लेकिन चुनाव में मतदान करनेभर से और सारा भार चुने हुए लोगों के सिर पर डाल देने से हमारा कर्तव्य समाप्त नहीं हो जाता, वरन चुनाव के बाद प्रत्याशी के कार्यों पर नजर रखते हुए उसे सीधे पटरी पर बनाए रखने की जिम्मेदारी भी जनता की होती है।
उल्लेखनीय है कि विजयादशमी का यह कार्यक्रम नागपुर स्थित रेशिमबाग़ परिसर में सम्पन्न हुआ। इस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि विख्यात लेखक लोकेश चंद्र उपस्थित थे, साथ ही सरकार्यवाह भैयाजी जोशी, नागपुर महानगर के संघचालक दिलीप गुप्ता व सह संघचालक लक्ष्मण पार्डिकर तथा विदर्भ प्रांत के सह संघचालक राम हरकरे व्यासपीठ पर विराजमान थे।
आगे देश की आर्थिक स्थिति पर विचार रखते हुए सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कहा कि सामान्य व्यक्तियों के जीवन को त्वरित प्रभावित करनेवाली देश की आर्थिक स्थितियां होती हैं। और, हमारे देश की सामान्य जनता प्रतिदिन बढ़नेवाली महंगाई की मार से त्रस्त है। दो वर्ष पूर्व हमारे देश के आर्थिक महाशक्ति बनने की चर्चा बड़े जोर से चल रही थी, अब रूपये के लुढकने का क्रम जारी है। उन्होंने कहा कि वित्तीय घाटा, चालू खाते का घाटा एवं विदेशी विनियम कोष में निरन्तर कमी की चर्चा चल रही है। आर्थिक विकास दर में बढ़ती गिरावट को देखते हुए स्पष्ट होता है कि हमारे अर्थ तंत्र के संचालन की गलत दिशा हो रहा है। आश्चर्य यह है कि इन सब स्थितियों के बावजूद सरकारी हठधर्मिता नीतियों की दिशा बदलने के लिये बिल्कुल तैयार नहीं है।
शासन की गलत नीतियां
देश की सुरक्षा
डॉ. भागवत ने कहा कि देश की सुरक्षा पर छाए संकटों के बादल भी ज्यों के त्यों बने हैं। भारत की सीमाओं में घुसपैठ, भारत के चारों ओर के देशों में अपने प्रभाव को बढ़ाकर भारत की घेराबंदी करना, भारत के बाजारों में अपने माल को झोंकना आदि का क्रम चीन के द्वारा पूर्ववत चल रहा है। हमारी ओर से पूरी इच्छाशक्ति दृढ़ता व सामर्थ्य के साथ इसका उत्तर दिया जाना चाहिए, पर ऐसी गंभीर घटनाओं को छुपाया जाता है। इधर पाकिस्तान की नीतियों में भारत के प्रति उसका द्वेष का स्पष्ट दिखता है, फिर भी अपनी ओर से पाकिस्तान के दु:साहस को बढ़ानेवाली नीति का वही ढीला-ढाला भोला-भाला रूख हमारे शासन की ओर से होता है। यह बात किसी के समझ में नहीं आती।
उत्तर पूर्वांचल की समस्या का जिक्र करते हुए सरसंघचालक ने कहा कि वहां की देशभक्त जनता की उपेक्षा कर वोट बैंक की राजनीति के चलते अलगाववादी कट्टरपंथी व घुसपैठ कर आई विदेशी ताकतों का बेहूदा तुष्टीकरण दिखाई देता है। वहां के विकास की उपेक्षा पूर्ववत चल रही है। इतने वर्षों में वहां की सीमाओं तक पथनिर्माण, वहां की जनता को रोजगार के अवसर देनेवाली विकास योजनाएं तथा वहां की सीमाओं की चौकसी व मजबूती को चाकचौबंद रखने में कोई संतोषजनक प्रगति नहीं दिखाई दे रही है।
डॉ. भागवत ने कहा कि देश के सुरक्षा की दृष्टि से इन संकटों की बिसात को देखते हुए नेपाल, तिब्बत, श्रीलंका, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, म्यांमार तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में भारतीय मूल के लोगों के हितों का संवर्धन करते हुए उन देशों से आत्मीय संबंधों में दृढ़ता लाने की आवश्यकता है। पर इस दिशा में सरकार के कार्य में उदासीनता दिखाई देती है। इसलिए इस दृष्टि से अपनी सामरिक तैयारी व स्वयंपूर्णता, सूचनातंत्र तथा सुरक्षाबलों का संख्यात्मक विकास व उनका मनोबल बढ़े ऐसे उपाय होना चाहिए।
आतंरिक सुरक्षा
डॉ. भागवत ने बताया कि जम्मू के किश्तवाड़ में बसनेवाले हिन्दू व्यापारियों की संख्या किश्तवाड़ शहर में अत्यल्प (15 प्रतिशत) है। वहां के दुकानों पर सांप्रदायिक विद्वेष से प्रेरित भीड़ ने हमला किया। राज्य सरकार के गृहमंत्री तथा वहां के पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति व उकसावे में लूटपाट व विध्वंस का यह षडयंत्र सुनियोजित ढंग से चला। शेष जम्मू क्षेत्र की देशभक्त जनता के त्वरित व प्रभावी विरोध के कारण हिन्दुओं की प्राण रक्षा हुई। कई करोड़ों की उनकी हानि के ऐवज में अब राज्य सरकार हिन्दुओं को कुछ लाख की भरपाई देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान रही है। उपद्रवकारी व उनके पक्षपाती सूत्रधारों पर कानूनी कारवाई का तो कोई विचार ही नहीं है। यह वही जम्मू कश्मीर राज्य है, जहां के मुख्यमंत्री ने कुछ ही दिन पहले वहां यात्रा पर आए यूरोपीय प्रतिनिधि मंडल को यह कहा कि जम्मू-कश्मीर राज्य का भारत में विलय नहीं, सशर्त जुड़ाव हुआ है। इससे घाटी की राजनीति में सक्रिय उन शक्तियों की मानसिकता प्रगट होती है जो सत्ता में बैठकर तरह-तरह के अवैध कुचक्र चलाकर समूचे जम्मू-लद्दाख-कश्मीर से ही भारत की एकात्मता, अखंडता व राज्य के भारत का अविभाज्य अंग होने के पक्षधरों को क्रमश: बेदखल करना चाहती है। और दुर्भाग्य से केन्द्र की राजनीति पिछले दस वर्षों से उन्हीं का पृष्ठपोषण कर रही है।
दुर्भाग्य है कि देश की प्रजा को समदृष्टि से देखकर देश का शासन चलाना जिनका दायित्व है उन्हीं की ओर से मन, वचन और कर्म से हिन्दू समाज के विरोध में अथवा तथाकथित अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण के लिये यह बातें हो रही है। जिस प्रकार देश के गृहमंत्री ने तथाकथित अल्पयंख्यक युवकों के बारे में नरमी बरतने की सूचना राज्यों के शासकों को भेजी तथा जिस प्रकार तमिलनाडु में हाल में ही घटित हिन्दू नेताओं के कट्टरपंथियों द्वारा हत्याओं की उपेक्षाओं की शृंखला पहले उपेक्षा हुई, और बाद में जांच में ढिलाई देखी गई।
शिक्षा नीति में बदलाव आवश्यक
देश में महिला पर अत्याचारों के प्रमाण में वृद्धि के पीछे प्रमुख कारणों में संस्कारों का अभाव यह भी एक कारण है। नई पीढ़ी को उत्तम संस्कार मिले इसकी व्यवस्था हमारे समाज की कुटुंब-व्यवस्था में भी है। इसलिए इस दिशा में अपनी कुटुंब-व्यवस्था का अध्ययन व कुछ अनुसरण करने की इच्छा आज विश्वभर में दिखाई देती है। परन्तु उसके इस महत्व को बिल्कुल ही न समझकर विभिन्न अनावश्यक कानूनों को लाकर कुटुंब के अन्तर्गत व्यक्तियों के संबंधों को भी अर्थ व्यवहार में बदलने का प्रयास चला है। वह सदभावना से किया गया हो तो भी उसके पीछे की सोच में कुटुंब-व्यवस्था समाज में सामाजिक सुरक्षा व सामाजिक उद्यम का कितना अहम् उपकरण रहा है, इसके अध्ययन का अभाव निश्चित रूप से दिखाई देता है।
हिन्दू समाज की अवहेलना
उन्होंने कहा कि देश की ये सारी स्थितियां देशवासियों के जीवन को प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रभावित करती हैं। राजनीतिक दलों व नेताओं को चुनकर सत्ता में भेजनेवाले मतदाता भी हम सभी सामान्य जन ही होते हैं। इसलिए परिस्थिति की चर्चा भयभीत होने के लिए नहीं, उपाय करने के लिए करनी चाहिए।
समर्थ कुटुंब व्यवस्था
डॉ. भागवत ने सामाजिक सुधार की चुनौती का आह्वान करते हुए कहा कि अपनी इस सामाजिक पहल में सक्रिय होकर शतकों से चली दम्भ, पाखण्ड व भेद के दानव का अंत क्या हम नहीं कर सकते? हिन्दू समाज के एकरस जीवन का प्रारम्भ करने के लिए सभी हिन्दुओं के लिए सब हिन्दू धर्मस्थान, जल के स्त्रोत व श्मशान खुले नहीं कर सकते? सद्कृति के पक्ष में संपूर्ण समाज परस्पर आत्मीयता व भारतभक्ति के सूत्र में आबद्ध होकर खड़ा हो इसका यही एक उपाय है। देश के तंत्र व व्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन तथा उनके स्वास्थ्य के लिए भी यही एकमात्र रास्ता है। ग्राम-ग्राम में व गली मुहल्ले में इस प्रकार के आचरणों के उदाहरणों से ही सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया की गतिवृद्धि होगी।
पुरुषार्थ का संकल्प
सरसंघचालक के पुरुषार्थ को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि देश के समक्ष बहुत सारी जटिल व विकराल चुनौतियां हैं, उनपर विजय प्राप्त करने के लिए हमें अपनी शक्ति को जागृत कर पुरुषार्थ की पराकाष्ठा करनी पड़ेगी। क्योंकि राष्ट्ररक्षण व पोषण का दायित्व प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जिनपर है उनकी क्षमता की बात तो दूर उनके उद्देश्यों पर ही प्रश्नचिन्ह लगने की स्थिति बनी है। इसलिए हम अपने व्यक्तिगत जीवन में शक्तिसंवर्धन व जीवन परिष्कार का प्रारम्भ करें। हम अपनी दिनचर्या में शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक बल की वृद्धि करने का नित्य अभ्यास करें। अपने भारत देश के भूतकाल का सत्य इतिहास, गौरव, वर्तमान की यथातथ्य जानकारी प्रामाणिक निष्पक्ष सूत्रों से प्राप्त कर हृयंगम करें। देश के भविष्य के संबंध त्यागी व नि:स्वार्थी महापुरूषों के चिन्तन व उनके द्वारा अपने कर्तव्यों के संबंध में उपदेशों की समान बातों का अनुसरण करें। हम संकल्प करें कि हम जीवन की क्षमताओं को परिश्रमपूर्वक बढ़ाकर जीवन में सब प्रकार का यश व विजय प्राप्त कर उसका विनियोग समाज के हित में परोपकार व सेवा के लिए करेंगे।
देश के नियम व्यवस्था का पालन करवाने का जितना दायित्व शासन-प्रशासन का है उतनाही उस नियम व्यवस्था के अनुशासन को दैनंदिन जीवन में स्वयंप्रेरणा से आग्रहपूर्वक पालन करके चलने का दायित्व समाज का है। भ्रष्टाचारमुक्त शुद्ध सामाजिक जीवन का प्रारंभ भी यहीं से होता है। अनुपयुक्त नियम-कानूनों को बदलने के लिये आंदोलन आदि के अधिकार भी संविधान के दायरे में जनता को दिए गए हैं। अत: अपने सभी नागरिक कर्तव्यों का तथा नियम-व्यवस्था का पालन पूर्ण रूप से करने की आदत भी समाज में डालने का काम हमें अपने से प्रारंभ करना होगा।
स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती का स्मरण कराते हुए सरसंघचालक ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्र के पुनर्जागरण की कल्पना की थी। शुद्ध चरित्र, स्वार्थ व भेदरहित अंत:करण, शरीर में वज्र की शक्ति व हृदय में अदम्य उत्साह व प्रेम लेकर स्वयं उदाहरण बन राष्ट्र की सेवा में सर्वस्व समर्पण करनेवाले युवकों के द्वारा ही अपनी पवित्र भारतमाता को विश्वगुरु के पद पर आसीन करने का निर्देश उन्होंने समाज को दिया था।
इसके पूर्व कार्यक्रम के प्रारंभ में ध्वजारोहण के पश्चात मान्यवरों द्वारा शस्त्रपूजन किया गया तथा स्वयंसेवकों ने दंड-व्यायाम योग आदि का प्रदर्शन किया। तत्पश्चात कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि डॉ. लोकेश चन्द्र ने अपने संक्षिप्त भाषण में भारत के इतिहास और संघ भूमि की महिमा का बखान किया, और कहा कि शक्ति के साथ भक्ति का समन्वय हो तो हर विपरीत परिस्थिति पर विजय प्राप्त किया जा सकता है।
नागपुर महानगर संघचालक डॉ. दिलीप गुप्ता ने कार्यक्रम की प्रस्तावना तथा आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर हजारों स्वयंसेवकों के साथ ही भारी संख्या में नागरिक उपस्थित थे।
|
Thursday, October 17, 2013
स्वस्थ प्रजातंत्र के लिए शत प्रतिशत मतदान जरूरी : सरसंघचालक
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment