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Thursday, October 22, 2015

आज भारत की गीता, भारत का योगदर्शन, भारत के तथागत विश्वमान्य हो रहे हैं – डॉ. मोहन भागवत जी


पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत का विजयादशमी उत्सव 2015 (गुरुवार दिनांक 22 अक्तुबर 2015) के अवसर पर दिया उद्बोधन -
नागपुर. कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि आदरणीय डॉ. वीके सारस्वत जी अन्य निमंत्रित अतिथि गण, उपस्थित नागरिक सज्जन, माता भगिनी तथा आत्मीय स्वयंसेवक बन्धु -
विजयादशमी के प्रतिवर्ष संपन्न होने वाले पर्व के निमित्त आज हम यहां एकत्रित हैं. संघ कार्य प्रारम्भ होकर आज 90 वर्ष पूर्ण हुए. यह वर्ष भारतरत्न डॉ. भीमराव जी उपाख्य बाबासाहेब आम्बेडकर की जन्मजयंती का 125वां वर्ष है. सम्पूर्ण देश में सामाजिक विषमता की अन्यायी नागपुर (1कुरीति को चुनौती देते हुए उन्होंने जीवनभर संघर्ष किया. स्वतंत्र भारत के संविधान में आर्थिक व राजनीतिक दृष्टि से उस विषमता को निर्मूल कर समता के मूल्यों की प्रतिष्ठापना करने वाले प्रावधान वे कर गये. संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी के शब्दों में आचार्य शंकर की प्रखर बुद्धि व तथागत बुद्ध की असीम करुणा का संगम उनकी प्रतिभा में था.
गत वर्ष संघ के संस्थापक पू. डॉ. हेडगेवार जी की जयंती का भी 125वां वर्ष था. समतायुक्त शोषणमुक्त हिन्दू समाज के सामूहिक उद्यम के आधार पर संपूर्ण विश्व में उदाहरण स्वरूप परमवैभव संपन्न भारत के निर्माण का स्वप्न उन्होंने देखा था. उस लक्ष्य के लिये प्रामाणिकता से, निस्वार्थबुद्धि से व तन-मन-धन पूर्वक सतत् प्रयास करने वाले कार्यकर्ताओं के निर्माण की पद्धति देकर वे गये. उस कार्यपद्धति के जानकार, संघ के तृतीय सरसंघचालक स्व. बालासाहब देवरस का जन्मशती वर्ष प्रारम्भ हो रहा है. संघ की ही कार्यपद्धति में पले बढ़े तथा भारतीय दर्शनों के सनातन मूल्यों के आधार पर, राष्ट्र की व्यवस्था का संपूर्ण व युगानुकूल वैचारिक  दिग्दर्शन करनेवाले ‘एकात्म मानव दर्शन’ को देने वाले स्व. पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय का जन्मशतव्दी वर्ष भी प्रारम्भ हो चुका है.
नागपुर 1सुखद संयोग ऐसा है कि भारत में सुशासन का आदर्श प्रस्थापित कर, दक्षिणपूर्व एशिया महाद्वीप में अपनी सनातन भारतीय संस्कृति की मंगलसूचक पताका फहराने वाले राजराजेश्वर राजेन्द्र चोल महाराजा के राज्यारोहण का भी 1000वां वर्ष मनाया जा रहा है तथा, जाति, मत, पंथ के भेदों को पूर्णतः नकारकर, रूढ़ियों की बेड़ियों को तोड़कर भक्ति मार्ग को समाज के सभी घटकों के लिये खुला करते हुए, सामाजिक समरसता के जागरण का पुनः प्रवर्तन करने वाले श्री रामानुजाचार्य का 1000वीं जयंति का वर्ष भी अगले वर्ष संपन्न करने की तैयारी समाज में हो रही है. जम्मू-कश्मीर में शैव सिद्धान्त के महान आचार्य अभिनव गुप्त का भी यह 1000वीं जयंति का वर्ष चल रहा है. कर्मसु कौशलम् वसमत्व के साथ फलाशारहित निरन्तर विहित कर्म करने का संदेश देनेवाली श्रीमद्भगवद्गीता का 5151वां वर्ष गीता जयंती तक चलेगा.
इस वर्ष हमें छोड़ गये समाज के दो श्रद्धेय धुरीण, नई पीढ़ी में आत्मविश्वास  व देश गौरव जगाकर उन्हें देश के लिये हर क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करने की प्रेरणा देने में ही जीवन लगा देने वाले पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम, व वैदिक शिक्षक बनकर अपने समाज में तथा विश्व में सनातन संस्कृति के विषय में युगानुकूल दृष्टि, गौरव व सक्रियता जगाने वाले स्वामी दयानन्द सरस्वती, इन दोनों का जीवनकार्य व संदेश भी भारत गौरव व सामाजिक एकता ही था. इन सब संयोगों के स्मरण का कारण यही है कि आज भी हमारे आपके परिवारों से लेकर सम्पूर्ण विश्व की समृद्धि, शांति व उन्नति के लिए हमारा कर्तव्य भी हमें समृद्ध, समर्थ व समरस भारत के निर्माण के लिए आह्वान कर रहा है. संपूर्ण समाज की संगठित शक्ति के आधार पर विजय प्राप्त करने का पथ ही आज का विचारणीय विषय है.
नागपुर2जीवन के सब क्षेत्रों में विजिगीषु नीति के आधार पर स्वावलम्बी, सामर्थ्य संपन्न, वैभव संपन्न, पूर्ण सुरक्षित होकर, संपूर्ण विश्व को मंगलप्रद उत्कर्ष कारक नेतृत्व देने वाला भारत खड़ा करना तब सम्भव होगा जब, समतायुक्त, शोषणमुक्त, गौरव संपन्न, संगठित व प्रबुद्ध समाज का उद्यम उन नीतियों के समर्थन में चलेगा तथा ऐसे समाज की दृढ़ इच्छाशक्ति प्रजातांत्रिक व्यवस्था में चलने वाले तंत्र की तथा उसके संवैधानिक चालकों को दिग्दर्शक होगी. सजग, स्पष्ट, अचूक नीतियांतथा स्वार्थ भेदरहित विवेकी समाज यह दोनों कारक देश के भाग्य-परिवर्तन के लिए अनिवार्य है, इसलिए उनका उभयपक्षतः एक दूसरे से पूरक बनकर चलना आवश्यक है.
इस दृष्टि से जब आज के देश के परिदृश्य का विचार करते हैं, तब एक बहुत ही सुखद व आशादायक चित्र सामने आता है. दो वर्ष पूर्व में जो निराशा का, अविश्वास का, वातावरण था, वह अब प्रायः लुप्त हो गया है. अपेक्षाओं का तथा अपेक्षापूर्ति के विश्वास का वातावरण निर्माण हुआ है. उस वातावरण का साक्षात् अनुभव देश के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक पहुंचे तथा, अपने स्वयं के अनुभव से, अपने व देश के भाग्य परिवर्तन में, समाज के विश्वास की मात्रा निरन्तर बढ़ती रहे, इसका ध्यान रखना होगा.
यह सभी अनुभव कर रहे हैं कि पिछले दो वर्षों में बहुत द्रुतगति से भारत की विश्व में प्रतिष्ठा बढ़ी है. पड़ोसी देशों से संबंध अपने देश का हित ध्यान में रखते हुए सुधारने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाये गए हैं तथा वे सफल परिणाम भी दे रहे हैं. लगता है कि विश्व को आधुनिक भारत का एक अलग नया परिचय मिल रहा है. स्वगौरव तथा आत्मविश्वास से युक्त होकर, संपूर्ण विश्व के प्रति अपना परंपरागत सद्भावनापूर्ण नागपुर (3)दृष्टिकोण रखते हुए, दृढ़तापूर्वक देशहित की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय राजनय में दो टूक अपनी बात कहने वाला, विश्व के किसी भी देश में निर्माण हुए संकट में अपना मित्रतापूर्ण हाथ बढ़ाने वाला, भारत का नया अनोखा रूप धीरे-धीरे आकार लेता देख, विश्व के देश स्तब्ध, लुब्ध व नई आशा से आशान्वित हैं. भारत की गीता, भारत का योगदर्शन, भारत के तथागत विश्वमान्य हो रहे हैं. भारतीय मानस व परंपरा के श्रद्धा के विषयों पर ध्यान जाना तथा उनकी सुरक्षा व मानरक्षा के लिए नीतिगत पहल भी प्रारम्भ हुई है. तथाकथित महाशक्तियों के अवांच्छनीय प्रभाव जाल से मुक्त होने के लिए छटपटाने वाली विकसनशील दुनिया नेतृत्व के लिए भारत की ओर देख रही है. भारतवर्ष की उन्नत तथा अवनत अवस्था में भी उसने विश्व को अपना कुटुम्ब मानकर अपनी सजगता, दृढ़ता व शक्ति के आधारपर, राष्ट्रहित व विश्वहित, दोनों को प्रामाणिकता से साधने की परंपरा निभायी है. राजनय की उस शैली का थोड़ा-थोड़ा अनुभव पुनः मिलने लगा है. विश्व के सामने व देश के प्रत्येक घटक के अंतःकरण की अनुभूति में, भारत का यह देदीप्यमान स्वरूप पूर्णतः अवतरित हो, यह आवश्यक है. उसके लिए जीवन के सभी अंगों में नये विचार व नये पुरुषार्थ का प्रकटीकरण हमें करना होगा. युगयुग से चलते आये हमारे अक्षुण्ण राष्ट्रजीवन के मूल व सर्वहितकारी सत्य के आधार पर, युगानुकूल नीति, तद्नुकूल व्यवस्थाएं तथा उनको क्षमतापूर्वक धारणा करने वाले समाज का नया रूप गढ़ना पड़ेगा.
नागपुर3“साहेब वाक्यं प्रमाणम् की मानसिक दासता का मन से पूर्ण उच्चाटन करते हुए, भारतीय चित्त व मानस के आधार पर, विश्व से जो अच्छा, उचित व सत्य प्राप्त होता है, उसको देशोपयोगी बनाकर, अपने देश के लिये काल सुसंगत पथ का स्वतंत्र विचार तथा तदनुरुप समाज में, विद्वानों व चिन्तकों में, प्रशासकों व प्रशासनों में तथा शासन व नीतियों में विचार व आचरण का परिवर्तन किए बिना, विश्व को उदाहरण स्वरूप, स्वावलम्बी, समतायुक्त, शोषणमुक्त, सामर्थ्य संपन्न, समृद्ध भारत का निर्माण संभव नहीं. कई शतकों से विश्व का चिन्तन जिस दृष्टि पर आधारित है, उस दृष्टि का अधूरापन अब वैज्ञानिक कसौटियों पर भी सिद्ध हो रहा है तथा उस अधूरे चिन्तन के परिणामों के अनुभव भी उस दृष्टि व चिन्तन के ही पुनर्विचार की आवश्यकता अधोरेखित कर रहे हैं.
1951 में संयुक्त राष्ट्र संघ के सामाजिक व आर्थिक कार्यविभाग ने इस अधूरे चिन्तन का संपूर्ण समर्थन करते हुए यह कहा था – There is a sense in which rapid economic progress is impossible without painful adjustments. Ancient philosophies have to be scrapped; old social institutions have to disintegrate. Bonds of caste, creed and race have to burst and large numbers of persons who cannot keep up with the progress have to have their expectations of a comfortable life frustrated. Very few communities are willing to pay the full price of economic progress.
यह आत्यंतिक तक जडव़ादी, अहकेन्द्रित, मानवीय संवेदनशून्य दृष्टि विश्व पर थोपी गई, उसके सर्वविदित परिणामों के अनुभव जब इसके पुरस्कर्ताओं को भी होने लगे, तब उनकी इस भाषा में एकदम ”घूम जाव“(उलट) परिवर्तन दिखाई दिया. अक्तूबर 2005 में जी 20 राष्ट्रों के केन्द्रीय अधिकोषों के गवर्नरों का सम्मेलन कहता है – We note that development approaches are evolving over time and thus नागपुर (1)need to be updated as economic challenges unfold. —— We recognize there is no uniform development approach that fits all the countries. Each country should be able to choose the development approaches and policies that best suit its specific characteristics while benefitting from their accumulated experience in policy making over last decades, including the importance of strong macroeconomic policies for sustained growth.
बाद में 2008 में और अधिक स्पष्टता के साथ इसी बात को दोहराते हुए विश्व बैंक का समाचार बुलेटिन यह कहता है – In our work across the world we have learnt the hard way that there is no one model that fits all. Development is all about transformation. It means taking the best ideas, testing them in new situations and throwing away what doesn’t work. It means, above all, having the ability to recognize when we have failed. This is never an easy thing to do. It is ever more difficult for an organization to do so, be it the government or the World Bank, which constantly need to adapt to the changing nature of developmental challenge.
नागपुर (2)इस स्वानुभूति के बाद विष्व में विकास को लक्षित कर चलने वाले संवादों में ‘‘समग्र’’ (Holostic) ‘‘धारणक्षम विकास’’ (Sustainable development) आदि वाक् प्रयोगों का सुनाई देना प्रारंभ हुआ है तथा पर्यावरण की भी थोड़ी-थोड़ी चिंता होने लगी है. इसलिए प्रयोग-अनुभव-परिवर्तन के चक्र में से गुजरती हुई इस अधूरी दृष्टि को ध्रुव सत्य मानने के भ्रमजाल से मुक्त होकर, हमें अपनी स्वयं की समयसिद्ध शाश्वत दृष्टि के आधार पर ही चलना उपयुक्त होगा. वह दृष्टि समन्वय व सहयोग पर आधारित है. जीवन को अर्थ-काम प्रधान नहीं, धर्म व संस्कार प्रधान मानती है. धारणक्षम विकास के लिये कम से कम ऊर्जा व्यय, अधिकतम रोजगार, पर्यावरण, नैतिकता व कृषि के प्रति पूरकता तथा स्वावलम्बन व विकेन्द्रित अर्थतन्त्र का पुरस्कार करने वाले उद्योग तंत्र को मानती है. कौशल विकास तथा उत्पादन में वृद्धि पर उसका जोर रहता है. देश के सबसे अंतिम व्यक्ति की अभाव, अशिक्षा व अपमान से मुक्ति तथा ऐसे वर्ग का विकास इस अपनी दृष्टि में राष्ट्रीय विकास का आधार व विकास का प्रमाण माना जाता है. इसके लिए कृषि व किसान, लघु, मध्यम व कुटीर उद्योग; छोटे व्यापारी व कारीगर इनका अधिक ध्यान रखना पड़ेगा. आर्थिक, सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले सभी संगठनों, चिन्तकों कार्यकर्ताओं को, नीतिकारों को, शासन, प्रशासन सभी को यह दिशा ध्यान में रखना आवश्यक है.
आनन्द की बात है कि नीति आयोग के घोषणापत्र में इस दिशा के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं. स्पष्ट है कि यह परिवर्तन एकदम नहीं होगा. विरासत में मिली आर्थिक स्थिति के तल से सामान्य धरातल पर आना, अनेक राजनीतिक संतुलनों को तथा प्रशासकीय अनिवार्यताओं को साधने-पाटने की कसरत कर, देश के सामान्य वर्गों तक विकास का अनुभव पहुंचाना तथा उनका भी सहभाग प्राप्त करते हुए सबके विश्वास की स्थिरता व वृद्धि होती रहे यह देखना, धैर्यपूर्वक परिणामों की प्रतीक्षा करना यह सभी को करना पड़ता है. मुद्रा बैंक, जन-धन योजना, गैस सब्सिडी को छोड़ देने का आह्वान, स्वच्छ भारत अभियान, कौशल विकास, ऐसी कुछ उपयोगी पहल इस दृष्टि से सरकार के द्वारा की गयी हैं. विकास नीतियों के जमीन पर दिखने वाले परिणामों की यथातथ्य जानकारी मिलना तथा विकास में सभी को सहभागी बनाने की दृष्टि से सार्थक संवाद व क्रियान्वयन की गति को बढ़ाने की आवश्यकता लगती है.
देश के भाग्य परिवर्तन में सब प्रकार की नीतियों की सफलता सम्पूर्ण समाज के उद्यम, सहयोग क्षमता तथा समझदारी पर निर्भर करती है. समाज का प्रबोधन व प्रशिक्षण उसके लिए अनिवार्य शर्त है. आजकल विकास का विचार करते समय देश की जनसंख्या भी एक विचार का विषय बनता है. हमारे देश की जनसंख्या नियंत्रण नीति विचारपूर्वक बनानी पड़ेगी. जनसंख्या बोझ है या साधन है? दोनों प्रकार से विचार कर देखना चाहिए. 50 वर्षों के पश्चात् हमारे देश के संसाधन तथा व्यवस्थाएं कितने लोगों को पोषण रोजगार व जीवन विषयक अवसर तथा सुविधाएं दे सकेंगे? 50 वर्षों के पश्चात् हमारे देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए कितने हाथों की आवश्यकता रहेगी? सन्तान वृद्धि का कष्ट व उनके मन संस्कारित करने का कार्य माताओं को करना पड़ता है.
उनका पोषण, स्वास्थ्यरक्षण, मानमर्यादा का संरक्षण, उनका सशक्तिकरण, उनका प्रबोधन, उनके लिए अवसर तथा उसका लाभ ले सकने की स्वतंत्रता इन सबकी कैसी व्यवस्था है, वह कैसी होनी पड़ेगी? 50 वर्ष के बाद हमारे देश की पर्यावरण स्थिति की हमारी कल्पना क्या है? पिछले दो जनगणनाओं के आंकड़े प्रसिद्ध होने के पश्चात् जनसंख्या का स्वरूप व उसमें उत्पन्न हुआ, असंतुलन आदि की भी पर्याप्त चर्चा हो रही है. देश के वर्तमान तथा भविष्य पर उसके भी परिणाम होते हैं, हो रहे हैं. वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर इन सब बातों का समग्र विचार कर संपूर्ण देश की प्रजा के लिए समान जनसंख्या नीति बनाने की आवश्यकता है. वह नीति मात्र शासन तथा कानून के बल से लागू नहीं होती. उसके स्वीकार करने के लिए समाज का मन बनाने के प्रयास भी पर्याप्त मात्रा में करने पड़ते हैं. उनका भी विचार नीति बनाते समय ही कर लेना उचित रहेगा. मनुष्य की सहज प्रवृत्तियां, पंथ-संप्रदायों की आचरण परम्पराएं, समाज में चलती आई सांस्कृतिक परम्पराएं ये ऐसे विषय हैं, जिनमें, यदि देश काल परिस्थिति के अनुसार आवश्यक व उचित हो तो भी, वैसा परिवर्तन केवल कानून के परिवर्तन से, अथवा उसके पीछे खड़े किये शासन के दण्ड के बलमात्र से न कभी हुआ है, न कभी होगा. ऐसे परिवर्तनों के पहले व बाद में भी, समाज प्रबोधन द्वारा मन बनाने का सौहार्दपूर्ण प्रयास शासन, प्रशासन, माध्यम, तथा समाज के धुरीण व सज्जनों को सतत् करना पड़ता है. सस्ती लोकप्रियता अथवा राजनीतिक लाभ लेने के मोह से दूर रहते हुए, सत्य के ही दिग्दर्शन में, समाज के सभी वर्गों के प्रति आत्मीयतापूर्ण भाव रखकर ही, समाज का मन प्रबोधन के द्वारा बदला जा सकता है. हाल ही के दिनों में ऐसे कुछ निर्णय आये, जिससे संबंधित वर्गों में जो वेदना के भाव उभरे उनसे बचा जा सकता था.
उदाहरण के लिए जैन मतानुयायी वर्ग में संथारा, दिगंबर आचार्यों का विशिष्ट जीवनक्रम, बालदीक्षा आदि पद्धतियां पुराने समय से चली आ रही हैं. उन परम्पराओं के कारण, महत्व, तथा उनके पीछे का चिन्तन आदि को, पंथ-सम्प्रदायों के आचार्यों के साथ चर्चा कर गहराई के साथ समझे बिना उनसे छेड़छाड़ का परिणाम समाज के स्वास्थ्य, सौहार्द व अंततोगत्वा देश के लिए घातक होगा. प्रत्येक पंथसम्प्रदाय अपनी मान्यताओं एवं परम्पराओं का समय पर विश्लेषण कर, देश-काल-परिस्थिति के अनुसार उनमें बदल कर, मूल्यों के कालसुसंगत आचरण का रूप खड़ा करता जाता है, यह भी हमारे देश की ही परंपरा है. उसके अनुसार परम्पराओं का पुनर्विचार व परिवर्तन भी होना अच्छा है. परन्तु यह कार्य उस समूह के अंदर से ही हर बार किया गया है, बाहर से थोपने का प्रयास केवल विवादों को ही जन्म देता आ रहा है. कोई भी व्यवस्था परिवर्तन समाजमन परिवर्तन के बलपर ही यशस्वी हुआ है.
परिवर्तन के लिए समाज में एक महत्वपूर्ण साधन होता है शिक्षा की व्यवस्था. हाल के वर्षों में वह व्यापार का साधन बनती जा रही है. इसीलिए वह महंगी होकर सर्वसामान्य व्यक्ति की पहुंच के बाहर भी होती जा रही है. स्वाभाविक ही शिक्षा के उद्देश्य पूरे होते हुए समाज में दिखाई नहीं दे रहे हैं. शिक्षा का उद्देश्य विद्या दान के साथ-साथ, विवेक, आत्मभान व आत्मगौरव से परिपूर्ण, संवेदनशील, सक्षम, सुसंस्कृत मनुष्य  का निर्माण यह होना चाहिए. इस दृष्टि से समग्रता के साथ शिक्षापद्धति के अनेक प्रयोग विश्व में व देश में भी
चल रहे हैं. उन सारे प्रयोगों का ठीक से संज्ञान लेना चाहिए. उनके निष्कर्ष व अब तक शिक्षा के बारे में अनेक तज्ञों, संगठनों तथा आयोगों के द्वारा दिये गये उपयुक्त सुझावों का अध्ययन कर, पाठ्यक्रमों से लेकर शिक्षा संचालन, शुल्क व्यवस्था आदि शिक्षा पद्धति के सब अंगों तक में कुछ मूलभूत परिवर्तन लाने का विचार करना होगा. शिक्षा समाजाधारित होनी चाहिए. शिक्षा की दिशा उसके उद्देश्य व आज के समय की आवश्यकता दोनों की पूर्ति करने वाली हो, इतनी परिधि में पद्धति की स्वतन्त्रता भी देनी चाहिए. शिक्षा व्यापारीकृत न हो, इसलिए शासन को भी सभी स्तरों पर शिक्षा संस्थान अच्छी तरह चलाने चाहिए. सारी प्रक्रिया का प्रारम्भ शिक्षकों के स्तर की तथा उनमें दायित्वबोध की चिन्ता, उनके परिणामकारक प्रशिक्षण तथा मानकीकरण के द्वारा करने से होना पड़ेगा. परन्तु इन सबके साथ-साथ हम अभिभावकों, यानी समाज का भी दायित्व, इस प्रक्रिया में बहुत महत्व रखता है. क्या हम अपने घर के बालकों को अपने उदाहरण से व संवाद से यह सिखाते हैं कि जीवन में सफलता के साथ, किंबहुना उससे अधिक, महत्व सार्थकता का है? क्या हम अपने आचरण से सत्य, न्याय, करुणा, त्याग, संयम, सदाचार आदि का महत्व नई पीढ़ी के मन में उतारने में सफल हो रहे हैं? क्या हमारी पीढ़ी इस प्रकार के व्यवहार का आचरण हमारे सामाजिक व व्यावसायिक क्रियाकलापों में छोटे-मोटे लाभ-हानि की परवाह किये बिना आग्रहपूर्वक व सजगता के साथ कर रही है? हमारे करने, बोलने, लिखने से समाज विशेषकर नई पीढ़ी एकात्मता, समरसता व नैतिकता की ओर बढ़ रही है या नहीं इसका भान हम- समाज का प्रबोधन करने वाला नेतृवर्ग तथा माध्यम-रख रहे हैं क्या?
राज्यव्यवस्था, अर्थव्यवस्था आदि व्यवस्थाएं मनुष्यों के आचरण को नियंत्रित करती हैं, ”यथा राजा तथा प्रजा“; यह सत्य का एक पहलू है. इसलिए नीतियां समाज को जोड़ने वाली, दुर्बलतम घटक की उन्नति की चिन्ता करते हुए समाज के सभी घटकों की उन्नति का समन्वय साधने वाली होनी ही चाहिए. अपने देश का चुनाव तंत्र, प्रशासन, कर व्यवस्था, उद्योग नीति, शिक्षा नीति, कृषिनीति, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं आदि में अनेक मूलभूत सुधार कर उनको अधिक व्यवस्थित व लोकोपयोगी बनाने की आवश्यकता है, यह बात सही है.
पाकिस्तान की शत्रुता बुद्धि, चीन का विस्तारवाद, विश्व में बढ़ती हुई कट्टरता व अहंकार तथा अंतरराष्ट्रीय राजनीति की शतरंज में चली गई कूटनीतिक कुचालों के कारण उत्पन्न हुआ आतंकवादी ISIS का संकट, इन सबके परिणामस्वरुप अपने देश के सामने पहले से खड़ी सीमा सुरक्षा की व अतंर्गत सुरक्षा की समस्या और जटिल व गंभीर बनती जा रही है. बाहरी सत्ता से समर्थित अथवा बाहरी विचार से प्रेरित आतंकवाद के कारण गुमराह होकर उस गलत राह पर अग्रसर होने वाले कुछ लोग अपने देश में भी मिल जाते है.
हमारे विविधतापूर्ण समाज को संगठित कर सकने वाला सूत्र कौन सा है? (1) निश्चित ही वह, सब विविधताओं का स्वीकार व सम्मान करने वाली हमारी सनातन संस्कृति-हिन्दू संस्कृति है. वही सब भारतीयों का स्वभाव, उनकी मूल्य परंपरा है. (2) उस संस्कृति के आचरण को ही जिन हमारे पूर्वज महापुरुषों ने अपना जीवन बनाया, उसके पोषण संवर्धन के लिए अथक परिश्रम किया, उसकी सुरक्षा प्रतिष्ठा के लिए स्वयं को बलिदान कर दिया, उनका गौरव हमारे लिए आज भी प्रेरणा व आदर्श बना हुआ है. (3) जिस सुजल-सुफल चैतन्यमयी मातृभूमि में हमें उस संस्कृति के आधारभूत सत्य का तथा तद्भूत धर्म का साक्षात्कार हुआ, जिसकी दिव्य समृद्धि व पोषण ने हमें उदारचेता व सत्प्रवृत्त बनाया, उसकी प्रेमभक्ति उन पूर्वजों से ही विरासत में हमें मिली. वह आज भी देश के प्रत्येक व्यक्ति के पुरुषार्थ जागृति का सामर्थ्य रखती है. इन तीनों सूत्रों से अपनी भाषा, प्रान्त, पंथ, पक्ष आदि की विविधता को सुरक्षित रखकर भी व्यक्ति सहज ही मनःपूर्वक जुड़ता है. अपनी छोटी पहचान सुरक्षित रखकर समाज की विशाल पहचान का अंग बन जाता है. इन तीनों सूत्रों के आधार पर विकसित मानवतापूर्ण पुरुषार्थ, दृष्टि, चिन्तन व तदनुरूप निर्णय, अविरोधी आचरण को ही हम हिन्दुत्व कहते हैं. ऐसे इस हिन्दू समाज का जीवन सनातन समय से – ”हिन्दू“ शब्द के उत्पन्न होने के बहुत पहले से – इसी त्रिसूत्री के आधार पर समयानुकूल रूपों को धारण करते चलता आया है. इस देश के हिताहित का दायित्व केवल और केवल उसका है. इस अपने हिन्दुस्थान देश का भाग्य और भवितव्य, हिंदू समाज के साथ एकरूप है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गत 90 वर्षों से देश के भाग्यविधाता हिन्दूसमाज को, देश के लिए उद्यम करने योग्य बनाने का अविरत प्रयत्न कर रहा है. संघ निर्माता डॉ. हेडगेवार जी ने यह अच्छी तरह समझ लिया था, कि देशहित, राष्ट्रहित, समाजहित के काम किसी को भी ठेके पर नहीं दिए जा सकते. समाज को ही संगठित व योग्य बनकर दीर्घकाल उद्यम करना पड़ता है, तब देश वैभव सम्पन्न बनता है. समाज की यह तैयारी कराने वाले कार्यकर्ताओं को गढ़ने का कार्य ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है. संघ की सरल साद्गीपूर्ण कार्यपद्धति से तैयार होकर निकले स्वयंसेवकों का कर्तृत्व आज सबके सामने है, वे आज समाज के स्नेह विश्वास के कृतज्ञ भागी हैं, भारत के लिए जगन्मान्यता भी प्राप्त कर रहे हैं. आईये, हम सब इस पवित्र कार्य के सहयोगी कार्यकर्ता स्वयंसेवक बनें. क्योंकि दुनिया को आवश्यक प्रतीत होती हुई नई राह देने वाला भारत बनाने का एकमात्र पथ यही है. भारतीय समाज को अपनी सनातन पहचान के आधार पर दोषरहित व संगठित होना ही पड़ेगा. निःशंक, निर्भय होकर सब प्रकार के भेदों को समाप्त करने वाले व मनुष्य मात्र को वास्तविक स्वतंत्रता देकर उसमें मानवता व बंधुभाव भरने वाले धर्ममूल्यों के अमृत से सिंचित अपने व्यक्तिगत तथा सामूहिक आचरण से मानव समाज को सुख शांति व मुक्ति देनी होगी. यही उपाय है, यही करना है.
हिन्दू हिन्दू एक रहें, भेदभाव को नहीं सहें, संघर्षों से दुःखी जगत को, मानवता की शिक्षा दें..
”भारत माता की जय“

Saturday, October 17, 2015

विजयादशमी उद्बोधन का सीधा प्रसारण देखें

आत्मीय बन्धुवर!
               सादर प्रणाम,
बाबा विश्वनाथ की कृपा से सदैव प्रसन्न रहें। यह पोस्टर आप अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने का कष्ट करें।


Sunday, June 21, 2015

भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर है ”योग“ ः दत्तात्रेय होसबाले

भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर है ”योग“ ः दत्तात्रेय होसबाले
वाराणसी, 21 जून। निवेदिता ”िाक्षा सदन बालिका इण्टर कालेज, तुलसीपुर, महमूरगंज में अंतर्रा’ट्रीय योग दिवस के अवसर पर आयोजित योग कार्यक्रम में रा’ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मा0 मोहन मधुकर भागवत जी की उपस्थिति में स्वयंसेवकों ने सामूहिक रूप् से भाग लिया। इस अवसर पर योग कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि योग भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर है। योग का तात्पर्य जोड़ना है, योग मात्र आसन, प्राणायाम एवं रोगोपचार तक ही सीमित नही है। योग मन कोे “ारीर से, मनु’य को प्रकृति से, विचार को कर्म से तथा  परमपिता परमात्मा से आत्मा के मिलन का साधन है।



उन्होंने कहा कि योग किसी न किसी रूप में पूरे वि”व में प्रचलित है। योग जैसे ही भारत मूल के ध्यान को भी चीन एवं जापान में ”जेन“ के नाम से जाना जाता है। हजारों वर्’ा पहले से ही हमारे ऋ’िा-मुनियों ने योग को पूरे वि”व में फैलाने का प्रयास किया। योग वि”व में कई नामों से जाना जाता है- पातंजलि योग, हठ योग, लय योग, जैन योग, बौद्ध योग आदि। वि”व भी भारत की संस्कृति का गुणगान करता रहा है और इसकी महत्ता को समझ चुका है। यही कारण है कि संयुक्त रा’ट्र संघ ने कुछ वर्’ा पहले ऋग्वेद को वि”व धरोहर के रूप में स्वीकार किया। मा0 दत्तात्रेय जी ने भगवान ”िाव को आदियोग गुरू बताया क्योंकि भगवान ”िाव ने ही सप्त ऋ’िायों को प्रथम बार अ’टांग योग दर्”ान कराया। योग का महत्व हमारे मा0 प्रधानमंत्री जी ने अपने अमेरिकी यात्रा के दौरान वि”व के समक्ष रखा और उनका ध्यान आकर्’िात कराया। बाद में दिसम्बर मे आयोजित संयुक्त रा’ट्र संघ की बैठक में योग को 177 दे”ाों की मान्यता मिली और 21 जून को वि”व योग दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। रा.स्व.संघ ने भी 2015 मार्च में नागपुर में सम्पन्न अपनी अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा बैठक में एक प्रस्ताव द्वारा संयुक्त रा’ट्र संघ के निर्णय का अभिनन्दन करते हुए सभी दे”ावासियों से योग दिवस में सहभागी होने के लिए आग्रह किया था। आज के दिन सैकड़ों दे”ा योग दिवस मना रहे हैं यह हम सब भारतवासियों के लिए गौरव का वि’ाय है। इसमें संघ के कई केन्द्रीय अधिकारी प्रमुख रूप से मा0 सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी, मा0 मधुभाई कुलकर्णी जी, मा0 इन्द्रे”ा कुमार जी, मा0 अनिल ओक जी एवं क्षेत्रीय, प्रान्तीय एवं जिलों से आये कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।




    

Tuesday, June 16, 2015

21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर 21 आसन के वीडियो

                                      21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर 21 आसन के वीडियो

Sunday, May 31, 2015

चेतना प्रवाह का पर्यावरण विशेषांक विमोचित

सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटकर ही चुनौतियों 
का मुकाबला संभव : हितेश शंकर
वाराणसी,३१ मई। विकास के साथ-साथ आज प्रकृति का पूरी तरह दोहन हो रहा है। पृथ्वी पर प्रदूषण प्रसार के लिए मनुष्य ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। वेदों से लगायत स्मृति साहित्य और संस्कृति साहित्य में पर्यावरण सम्बन्धी चेतना व अनुशासन की चर्चा है। जबतक मन और विचार के स्तर पर हमारे अन्दर शुचिता नहीं आयेगी, पर्यावरण प्रदूषण कायम रहेगा। यह विचार आज लंका स्थित विश्व संवाद केन्द्र में ‘चेतना प्रवाह’ के पर्यावरण विशेषांक के विमोचन के अवसर पर विद्वान् वक्ताओं ने व्यक्त किये। 


मुख्य अतिथि ‘पाञ्चजन्य’ साप्ताहिक के सम्पादक हितेश शंकर ने कहा कि आज मानवता विकास के उस मोड़ पर है, जहाँ विकास करते हुए जीवन को भी सफल बनाना है। विकास के साथ ही चुनौतियाँ भी बढ़ती है। हम अपनी सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटकर ही आसन्न चुनौतियों का मुकाबला कर सकते हैं। कहाकि जो पिण्ड में है, वही ब्रह्माण्ड में है। कहाकि जीवनदायी प्रकृति के प्रति हमें कृतज्ञ होना चाहिए और उसके संरक्षण के लिए यथेष्ठ प्रयास जरूरी है। अध्यक्षता करते प्रियरंजन शर्मा ने कहाकि एक वृक्ष़्ा मानव जाति ही नहीं अपितु समस्त चराचर के लिए उपयोगी है। शुद्ध हवा और पानी जीवन की सबसे बड़ी अनिवार्यता है तथा वायु ही प्राण शक्ति है। कहाकि भारतीय समाज के संचालन में सदा से विश्व दृष्टि रही है। प्रकृति केवल मनुष्य के उपयोग के लिए नहीं रची गई है। जबकि मनुष्य स्वयं को प्रकृति विजेता मान बैठा है। हमारे वेद मनुष्य को पर्यावरण के सभी घटकों की शुद्धि के प्रति जागरूक रहने का संदेश देते हैं। 
मुख्य वक्ता इतिहास संकलन योजना के  राष्ट्रीय संगठन मंत्री डॉ. बालमुकुन्द ने कहा कि प्राकृतिक संतुलन और पर्यावरण के महत्व को समझने और समझाने की जरूरत है। पर्यावरण संतुलन बनाये रखने में वनस्पतियों की अहम भूमिका है। पर्यावरण के घटक अपने दिव्य गुणों के दान से पर्यावरण को शुद्ध और स्वस्थ रखते हैं। विषय स्थापना करते महामना मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान काशी विद्यापीठ के निदेशक प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने कहा कि शुद्ध पर्यावरण जीवन का विस्तार है। जिस सृष्टि का निर्माण त्रिदेवों यथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने किया, आज उसी सृष्टि पर मानवीय गलतियों और लोभभाव के चलते खतरा खड़ा हो गया है। स्वागत भाषण विश्व संवाद केन्द्र प्रमुख नागेन्द्र जी ने, संचालन विशेषांक के सम्पादक डॉ. अत्रि भारद्वाज ने और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. हंस नारायण सिंह ‘राही’ ने किया।  
 डॉ.पतञ्जलि मिश्र के वैदिक मंगलाचरण से कार्यक्रम का शुभारम्भ और मालविका तिवारी द्वारा प्रस्तुत वन्दे मातरम् गान से कार्यक्रम का समापन हुआ। इस मौके पर रामाशीष जी, डॉ. विजयनाथ पाण्डेय, डॉ. अभय पाण्डेय, प्रो. आलोक राय, डॉ. हरेन्द्र राय, डॉ. वाचस्पति त्रिपाठी, डॉ. राजेश सिंह, प्रो. कविन्द्र नारायण तिवारी, डॉ. अर्चना उपाध्याय, डॉ. चन्दनलाल गुप्ता,डॉ. जी.एस. त्रिपाठी, प्रो. देवव्रत चौबे, देवी प्रसाद सिंह प्रो. प्रमथेश पाण्डेय, र्आंकार शर्मा, मुनेन्द्र सिंह तोमर, उदय सरोज अग्रवाल, जगदीश प्रशाद पण्डेय, ओम राहुल सिंह, सुनील किशोर द्विवेदी, मनोज पाण्डेय,  प्रदीप राय, चेत नारायण सिंह, डॉ. विवेकानन्द तिवारी, धर्मेन्द्र सिंह, राम गोपाल तिवारी, राम प्रसाद,  आदि की गरिमामयी उपस्थिति रही।


Sunday, March 15, 2015

मसर्रत आलम की रिहाई पर संघ देशवासियों के आक्रोश के साथ : दत्तात्रय होसबले

मसर्रत आलम की रिहाई पर संघ देशवासियों के आक्रोश के साथ : दत्तात्रय होसबले

DSC_0182नागपुर, मार्च 13. जम्मू-कश्मीर की मुफ़्ती सरकार द्वारा कश्मीरी अलगाववादी नेता मसर्रत आलम की रिहाई से पूरे देश में जनाक्रोश है. इस आक्रोश का समर्थन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सह सरकार्यवाह दत्तात्रय होसबले ने कहा कि हम देशवासियों के साथ हैं. उन्होंने यह भी कहा कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी संसद में इस पर आक्रोश व्यक्त किया था. सह सरकार्यवाह अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक के पहले दिन मीडिया को सम्बोधित कर रहे थे. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में सबकुछ ठीक चल रहा है, ऐसा हम नहीं मानते. सह सरकार्यवाह ने कहा कि आज एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल (भाजपा) वहां सरकार में शामिल है, यह एक प्रयोग के तौर पर है.
उन्होंने कहा कि संघ का कार्य समाज में सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण करना है. संघ समाज को संगठित करने का कार्य करता है, इसलिए हम समाज के सम्पर्क में रहते हैं. संघ की शाखा हमारी ऊर्जा का केंद्र है. शाखा के माध्यम से हमें ऊर्जा मिलती है. इसी ऊर्जा के बल पर संघ के द्वारा देशभर समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सेवाकार्य चलता है.
उन्होंने बताया कि देश भर में लगने वाली शाखाओं में तीन साल की अवधि में बढ़ोतरी हुई है. शाखा स्थान वर्ष 2012 की संख्या 5161 से बढ़कर वर्ष 2015 में 10413 हो गए हैं, ऐसे ही प्रतिदिन लगने वाली शाक्षाओं की संख्या वर्ष 2012 की संख्या 33,222 से बढ़कर वर्तमान में 51,330 हो गई है. इसी प्रकार साप्ताहिक मिलन की संख्या 12847 और मासिक मंडली की संख्या 9008 है, केवल युवा छात्रों की 6077 शाखाएं हैं. कुल 55010 स्थानों पर संघ कार्य चल रहा है.
सह सरकार्यवाह होसबले ने बताया कि गत मार्च के पश्चात संघ शिक्षा वर्गों में प्रथम वर्ष सामान्य और विशेष वर्गों में 59 वर्ग हुए, जिसमें 9609 स्थानों से 15332 शिक्षार्थी सहभागी हुए. वहीं द्वितीय वर्ष सामान्य एवं विशेष के 16 वर्गों में 2902 स्थानों से 3531 शिक्षार्थी सहभागी हुए. तृतीय वर्ष में 657 स्थानों से 709 संख्या रही. उन्होंने बताया कि विभिन्न प्रान्तों में सम्पन्न प्राथमिक वर्गों में भी ग्रामों का प्रतिनिधित्व एवं शिक्षार्थियों की संख्या भी अच्छी रही है. इन वर्गों में कुल मिलाकर 23 हजार 812 शाखाओं से 80 हजार 409 शिक्षार्थी सम्मिलित हुए.
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संघ से बहुत सारे नए लोग जुड़ रहे हैं. वे लोग संघ के बारे में जानना चाहते हैं, अतः पश्चिम बंगाल में आधा और एक दिन का ‘संघ परिचय वर्ग’ का आयोजन किया गया. इस परिचय वर्ग में दक्षिण बंगाल में 11 हजार और उत्तर बंगाल में 5000 नए लोग शामिल हुए.
दक्षिण कर्नाटक में ‘समर्थ भारत’ संकल्पना को लेकर 2 दिवसीय चर्चा सत्र का आयोजन किया गया. इसके तहत सोशल मीडिया द्वारा पंजीयन के लिए युवाओं को आह्वान किया गया. देश व समाज के लिए कार्य करने की इच्छा रखनेवाले युवाओं का इसमें भरपूर उत्साह देखने मिला. इस 2 दिवसीय आयोजन में दक्षिण कर्नाटक से 3852 युवा सम्मिलित हुए. इस आयोजन में ग्राम-विकास, सेवा-बस्ती के कार्य, जल संवर्धन, स्वयंसेवी कार्य, महिलाओं की समस्या, शैक्षिक प्रयोग, पर्यावरण, वैचारिक आन्दोलन, मतिमंद और विकलांगों की समस्याएं आदि विषयों पर चर्चा हुई. इस समग्र आयोजन की संकल्पना को इन शब्दों में वर्णित किया जा सकता है – “समूह हेतु संकल्पना” और “संकल्पना हेतु समूह” (Team for Theme and Theme for Team). यही कारण है कि 77 युवकों ने एक वर्ष देश के लिए अर्पित करने के लिए सिद्धता प्रगट की.
सह सरकार्यवाह होसबले से पत्रकारों ने पूछा कि क्या वे मोदी सरकार के 9 महीने के कार्य से संतुष्ट हैं? तो उन्होंने जवाब दिया कि असंतुष्ट होने का कोई कारण नहीं है और संतुष्टि के लिये उन्हें 5 वर्ष का समय दिया जाना चाहिये. भूमि अधिग्रहण कानून के सन्दर्भ में पूछा गया कि संघ से जुड़े भारतीय किसान संघ और मजदूर संघ इस बिल का विरोध कर रहे हैं, ऐसे में संघ किसके साथ है? उन्होंने कहा कि भारतीय किसान संघ और मजदूर संघ स्वतंत्र संगठन हैं. सरकार की नीतियों में सुधार के लिये अपनी भावनाएं व्यक्त करने का उनका अधिकार है. लेकिन जब किसी विषय पर कोई सुझाव या कुछ आपत्ति हो तो बैठकर उन नीतियों में सुधार करने के लिये संघ प्रेरित करता है.
भारत में कोई अल्पसंख्यक नहीं है जहां सब लोग ‘सांस्कृतिक, राष्ट्रीयता और डीएनए से हिंदू’ हैं.‘‘आप किसे अल्पसंख्यक कहेंगे ? हम किसी को भी अल्पसंख्यक नहीं मानते हैं. देश में अल्पसंख्यक की कोई अवधारणा नहीं है क्योंकि अल्पसंख्यक कोई है ही नहीं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘मोहन भागवतजी ने कई बार कहा है कि भारत में जन्म लेने वाला सभी हिंदू हैं. चाहे वे इसे मानते हों या नहीं, सांस्कृतिक, राष्ट्रीयता और डीएनए के तौर पर एक हैं.’’

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा प्रस्ताव प्रस्ताव १ : अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का स्वागत

संयुक्त राष्ट्र की ६९ वीं महासभा द्वारा प्रति वर्ष २१ जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की घोषणा से सभी भारतीय, भारतवंशी व दुनिया के लाखों योग-प्रेमी अतीव आनंद तथा अपार गौरव का अनुभव कर रहे हैं . यह अत्यंत हर्ष की बात है कि भारत के माननीय प्रधान मंत्री ने २७ सितम्बर २०१४ को संयुक्त राष्ट्र की महासभा के अपने सम्बोधन में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का जो प्रस्ताव रखा उसे अभूतपूर्व समर्थन मिला. नेपाल ने तुरंत इसका स्वागत किया. १७५ सभासद देश इसके सह-प्रस्तावक बने तथा तीन महीने से कम समय में ११ दिसम्बर २०१४ को बिना मतदान के, आम सहमति से यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया.
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा इस बात की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहती है कि योग भारतीय सभ्यता की विश्व को देन है . ‘युज’ धातु से बने योग शब्द का अर्थ है जोड़ना तथा समाधि. योग केवल शारीरिक व्यायाम तक सीमित नहीं है, महर्षि पतंजलि जैसे ऋषियों के अनुसार यह शरीर मन, बुद्धि और आत्मा को जोड़ने की समग्र जीवन पद्धति है. शास्त्रों में ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:’, ‘मनः प्रशमनोपायः योगः’ तथा ‘समत्वं योग उच्यते’ आदि विविध प्रकार से योग की व्याख्या की गयी है, जिसे अपनाकर व्यक्ति शान्त व निरामय जीवन का अनुभव करता है. योग का अनुसरण कर संतुलित तथा प्रकृति से सुसंगत जीवन जीने का प्रयास करने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है, जिसमें दुनिया के विभिन्न संस्कृतियों के सामान्य व्यक्ति से लेकर प्रसिद्ध व्यक्तियों, उद्यमियों तथा राजनयिकों आदि का समावेश है. विश्व भर में योग का प्रसार करने के लिए अनेक संतों, योगाचार्यों तथा योग प्रशिक्षकों ने अपना योगदान दिया है, ऐसे सभी महानुभावों के प्रति प्रतिनिधि सभा कृतज्ञता व्यक्त करती है. समस्त योग-प्रेमी जनता का कर्तव्य है कि दुनिया के कोने कोने में योग का सन्देश प्रसारित करे.
अ. भा. प्रतिनिधि सभा भारतीय राजनयिकों, सहप्रस्तावक व प्रस्ताव के समर्थन में बोलनेवाले सदस्य देशों तथा संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों का अभिनन्दन करती है जिन्होंने इस ऐतिहासिक प्रस्ताव को स्वीकृत कराने में योगदान दिया . प्रतिनिधि सभा का यह विश्वास है कि योग दिवस मनाने व योगाधारित एकात्म जीवन शैली को स्वीकार करने से सर्वत्र वास्तविक सौहार्द तथा वैश्विक एकता का वातावरण बनेगा.
अ.भा. प्रतिनिधि सभा केंद्र व राज्य सरकारों से अनुरोध करती है कि इस पहल को आगे बढ़ाते हुए योग का शिक्षा के पाठ्यक्रमों में समावेश करें, योग पर अनुसन्धान की योजनाओं को प्रोत्साहित करें तथा समाज जीवन में योग के प्रसार के हर संभव प्रयास करें. प्रतिनिधि सभा स्वयंसेवकों सहित सभी देशवासियों, विश्व में भारतीय मूल के लोगों तथा सभी योग-प्रेमियों का आवाहन करती है कि योग के प्रसार के माध्यम से समूचे विश्व का जीवन आनंदमय स्वस्थ और धारणक्षम बनाने के लिए प्रयासरत रहें.

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा प्रस्ताव 2 : मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा देश-विदेश की विविध भाषाओं का ज्ञान प्राप्त करने की पक्षधर है लेकिन उसका यह मानना है कि स्वाभाविक शिक्षण व सांस्कृतिक पोषण के लिए शिक्षा, विशेष रुप से प्राथमिक शिक्षा, मातृभाषा अथवा संविधान स्वीकृत प्रादेशिक भाषा के माध्यम से ही होनी चाहिए.
भाषा केवल संवाद की ही नहीं अपितु संस्कृति एवं संस्कारों की भी संवाहिका है. भारत एक बहुभाषी देश है. सभी भारतीय भाषाएँ समान रूप से हमारी राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक अस्मिता की अभिव्यक्ति करती हैं. यद्यपि बहुभाषी होना एक गुण है किंतु मातृभाषा में शिक्षण वैज्ञानिक दृष्टि से व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक है. मातृभाषा में शिक्षित विद्यार्थी दूसरी भाषाओं को भी सहज रूप से ग्रहण कर सकता है . प्रारंभिक शिक्षण किसी विदेशी भाषा में करने पर जहाँ व्यक्ति अपने परिवेश, परंपरा, संस्कृति व जीवन मूल्यों से कटता है वहीं पूर्वजों से प्राप्त होने वाले ज्ञान, शास्त्र, साहित्य आदि से अनभिज्ञ रहकर अपनी पहचान खो देता है.
महामना मदनमोहन मालवीय, महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ ठाकुर, श्री माँ, डा. भीमराव अम्बेडकर, डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे मूर्धन्य चिंतकों से लेकर चंद्रशेखर वेंकट रामन,प्रफुल्ल चंद्र राय, जगदीश चंद्र बसु जैसे वैज्ञानिकों, कई प्रमुख शिक्षाविदों तथा मनोवैज्ञानिकों ने मातृभाषा में शिक्षण को ही नैसर्गिक एवं वैज्ञानिक बताया है. समय-समय पर गठित शिक्षा आयोगों यथा राधाकृष्णन आयोग, कोठारी आयोग आदि ने भी मातृभाषा में ही शिक्षा देने की अनुशंसा की है. मातृभाषा के महत्व को समझते हुए संयुक्त राष्ट्र ने भी समस्त विश्व में 21 फरवरी को मातृभाषा-दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया है.
प्रतिनिधि सभा स्वयंसेवकों सहित समस्त देशवासियों का आवाहन करती है कि भारत के समुचित विकास, राष्ट्रीय एकात्मता एवं गौरव को बढ़ाने हेतु शिक्षण, दैनंदिन कार्य तथा लोक-व्यवहार में मातृभाषा को प्रतिष्ठित करने हेतु प्रभावी भूमिका निभाएँ. इस विषय में परिवार की भूमिका महत्वपूर्ण है. अभिभावक अपने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा अपनी ही भाषा में देने के प्रति दृढ़ निश्चयी बनें.
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा यह भी आवाहन करती है कि केन्द्र सरकार एवं राज्य-सरकारें अपनी वर्तमान भाषा संबंधी नीति का पुनरावलोकन कर प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा अथवा संविधान स्वीकृत प्रादेशिक भाषा में देने की व्यवस्था सुनिश्चित करें तथा शिक्षा के साथ-साथ प्रशासन व न्याय-निष्पादन भारतीय भाषाओं में करने की समुचित पहल करें.

ABPS Resolution 2 : Education in Mother Language

Akhil Bharatiya Pratinidhi Sabha is fully supportive of study of various languages including foreign languages but it is its considered opinion that for natural learning and to enrich cultural moorings, the education, particularly elementary education should be in mother language or in state languages recognised in our Constitution.
Language is not only the medium of communication but it is also a carrier of culture and value system. Bharat is a multilingual country. All the Bharatiya languages equally reflect national and cultural pride of our country. Although it is a merit to be multilingual but it is scientifically expedient to impart education in mother language for developing the personality. A student educated in mother language can easily grasp other languages as well. A person having elementary education in a foreign language, gets alienated from his surroundings, traditions, culture and values of life, at the same time one also loses his identity, remaining ignorant of ancient knowledge, science and literature.
Eminent thinkers like Mahamana Madanmohan Malaviya, Mahatma Gandhi, Ravindranath Thakur, Sri Maa, Dr. Bhimrao Ambedkar, Dr. Sarvapalli Radhakrishnan and scientists like Chandrashekhar Venkat Raman, Prafulla Chandra Ray, Jagdish Chandra Basu and several prominent educationists and psychologists have opined that it would be both, natural and scientific to impart education in mother language. Various commissions constituted from time to time such as Radhakrishnan Commission, Kothari Commission etc. have also recommended for imparting education in mother language. Taking note of the significance of mother language, the United Nations also decided to observe 21st February as Mother Language Day for whole of the world.
ABPS calls upon the countrymen, including swayamsevaks to play an effective role to establish the dignity of the mother language in education, day-to-day working and public affairs to achieve all-round development, national integrity and pride. In this regard, family has an important role. Parents should have a firm resolve to impart elementary education to their children in their own language.
ABPS calls upon the Union Government and State Governments to review their present language policies and ensure effective system to impart education in mother language or in constitutionally recognised state languages and simultaneously take initiative for use of Bharatiya languages in education, administration and delivery of justice.

सरकार्यवाह जी द्वारा अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा 2015 में प्रस्तुत वार्षिक प्रतिवेदन

सरकार्यवाह जी द्वारा अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा 2015 में प्रस्तुत वार्षिक प्रतिवेदन

DSC_0172परमपूजनीय सरसंघचालक जी, अखिल भारतीय पदाधिकारी गण, अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सभी सदस्यगण, क्षेत्रों एवम् प्रान्तों के मान्यवर संघचालक तथा कार्यवाह बंधुगण, नवनिर्वाचित अखिल भारतीय प्रतिनिधि बंधु तथा सामाजिक जीवन के विविध कार्यों में कार्यरत निमंत्रित बहनों तथा भाइयों का नागपुर के इस पावन परिसर में संपन्न हो रही अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में हृदय से स्वागत है. संभव है कि आप में से कुछ बंधुओं का इस सभा में सम्मिलित होने का यह पहला ही अवसर होगा.
श्रद्धांजलि : वर्षों तक जिनका सान्निध्य तथा मार्गदर्शन हमें प्राप्त होता रहा तथा सामाजिक, राजनीतिक, जन प्रबोधन एवं जन जागरण के क्षेत्र में अपने सामर्थ्य से जिन्होंने जन-जन में अपना स्थान बनाया था, ऐसे कुछ महानुभाव विगत कार्यकारी मंडल की बैठक के बाद हमसे बिछुड़ गये हैं. उनका स्मरण होना स्वाभाविक है.
संघ समर्पित और स्वयंसेवकों के लिए जिनका जीवन आदर्श रहा ऐसे दक्षिण मध्य क्षेत्र के मा. संघचालक टीवी देशमुख जी कर्क रोग से संघर्ष करते-करते हमें छोड़ कर चले गये. गुजरात में जिनका प्रदीर्घ प्रचारक जीवन रहा ऐसे जीतुभाई संघवी अकस्मात अपनी जीवनयात्रा समाप्त कर गये. वनवासी कल्याण आश्रम में विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करने वाले विशेषतः पूर्व एवं उत्तर पूर्व क्षेत्रों में कार्य को सशक्त आधार प्रदान करने वाले डॉ. रामगोपाल जी कर्क रोग से जूझते हुए स्वर्गलोक की यात्रा पर गमन कर गये. बिहार प्रांत में संघ कार्य के विस्तार में जिनकी अहम् भूमिका रही एवं पश्चात् पूर्व सैनिक सेवा परिषद के अखिल भारतीय सह-संगठन मंत्री रहे ऐसे नरेन्द्र सिंह जी आज हमारे मध्य नहीं है. जयपुर महानगर में दायित्व निर्वहन करने वाले प्रचारक श्री तरुणकुमार जी रेल दुर्घटना में स्वर्गगमन कर गये. कर्नाटक प्रांत से प्रचारक जीवन का प्रारंभ करने वाले एवं विश्व हिंदु परिषद् में विभिन्न दायित्वों को निभाने वाले वरिष्ठ प्रचारक श्रीधर आचार्य भी हमारे बीच अब नहीं रहे.
कोलकाता के माननीय संघचालक विश्वनाथ जी मुखर्जी, अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के कार्यकारी अध्यक्ष यतींद्र जी तिवारी, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के भूतपूर्व महामंत्री तथा तेलगु साहित्य और पत्रकारिता क्षेत्र में जाने माने भाग्यनगर के पी. व्यंकटेश्वरलु, पद्मविभूषण से सम्मानित इसरो के भूतपूर्व प्रमुख, स्वनामधन्य बसंतराव गोवारीकर जी, बड़ोदरा के राजपरिवार की सदस्या मृणालिनीदेवी, यह सभी महानुभाव परलोक की यात्रा पर प्रस्थान कर गये.
चित्रपट सृष्टि के जाने-माने कलाकार मुंबई के सदाशिव अमरापुरकर, महाभारत धारावाहिका के दिग्दर्शक रवी चौपड़ा जी, हास्य अभिनेता देवेन वर्मा, सिने जगत के ही गुजरात के उपेन्द्र त्रिवेदी जी और भाग्यनगर के ‘चक्री’ उपनाम से प्रख्यात जी. चक्रधर जी, इन्हें हम पुनः कभी देख नहीं पायेंगे.
व्यंगचित्र के क्षेत्र में प्रतिभा संपन्न, वर्षों तक ‘‘सामान्य मनुष्य’’ के रुप में हमारी स्मृति में रहेंगे ऐसे आरके लक्ष्मण जी, न्याय के क्षेत्र में जिनकी प्रतिबद्धता और प्रखरता से सारा देश परिचित रहा ऐसे न्यायमूर्ति वीआर कृष्ण अय्यर जी, प्रख्यात स्तंभलेखक एवं कार्टूनिस्ट दिल्ली के राजिंदर पुरी, जाने माने पत्रकार तथा पायोनिअर एवं आऊटलुक के संस्थापक संपादक विनोद जी मेहता तथा योजना आयोग के सदस्य के नाते रहे ऐसे रजनी कोठारी जी की अनुपस्थिति सदा ही वेदना देती रहेंगी.
मेघालय के स्वधर्म जागरण संगठन ‘सेंगखासी’ में जिनकी प्रभावी भूमिका रही ऐसे एम्. एफ. ब्लो. (M. F. Blow), वैसे ही मेघालय के ही ‘पनार’ जनजाति में ‘‘दोलोय’’ (धार्मिक एवं प्रशासनिक प्रमुख) थे ऐसे के. सी. रिम्बाय (K. C. Rymbai) जो ‘स्वधर्म’ पालन का विचार दृढ़ता के साथ रखते थे, ऐसे दोनों महानुभाव अंतिम यात्रा पर प्रस्थान कर गये.
बंग्लादेश में जिनका वास्तव्य रहा और हिन्दु समाज जिनके मार्गदर्शन से लाभान्वित होता रहा ऐसे पू. महामण्डलेश्वर स्वामी प्रियव्रत ब्रम्हचारी जी तथा तेवक्केमठम् के पूज्य मठाधिपति शंकरानंद ब्रम्हानंदभूति मूप्पिल स्वामीयार जी का पार्थिव शरीर शांत हो गया.
गोरखाभूमि हेतु आंदोलन का नेतृत्व करने वाले बंगाल के सुभाष घीसिंग, मुंबई से सांसद एवं केन्द्रीय मंत्री रहे मुरली देवरा जी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे अब्दुल रहमान अंतुले जी, महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री, युवा नेता आरआर पाटील जी, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मास्टर हुकुमसिंह, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक केरल के एमपी राघवन् तथा साम्यवादी विचारों के प्रखर पुरस्कर्ता गोविंद पानसरे जी राजनीतिक क्षेत्र में प्रभावी भूमिका निर्वहन करते हुए काल प्रवाह में ओझल हो गये.
विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं में एवं आतंकवादियों के हाथों अपने प्राण गंवाने वाले सामान्य-जन तथा देश की सुरक्षा हेतु अपना जीवन समर्पित करने वाले सेना तथा सुरक्षाबलों के वीर जवान आदि सभी को हम इस अवसर पर स्मरण करते हैं.
इन सभी दिवंगत बंधु-भगिनियों के परिवार जनों के प्रति अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा अपनी शोक संवेदना प्रकट करती है तथा इन दिवंगत आत्माओं को हम श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.
कार्यस्थिति :
2012 में नागपुर में संपन्न अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में हमने कार्य विस्तार पर चिंतन करते हुए निश्चित योजना पर कार्य करना प्रारंभ किया था. तीन वर्षों के सतत प्रयासों के संतोषजनक परिणाम सामने आये हैं. 2012 की तुलना में वर्तमान में 5161 स्थान और 10413 शाखाओं की वृद्धि हुई है. वैसे ही साप्ताहिक मिलन और संघ मंडली की संख्या में भी वृद्धि हुई है. संकलित वृत्त के अनुसार इस समय 33222 स्थानों पर 51330 शाखाएं, 12847 साप्ताहिक मिलन और 9008 संघ मंडली हैं. इसमें तरुण विद्यार्थिओं की 6077 शाखाएं है. कुल मिलाकर 55,010 स्थानों तक हम पहुंच गए हैं.
गत मार्च के पश्चात संपन्न संघ शिक्षा वर्गों में प्रथम वर्ष सामान्य एवं विशेष के 59 वर्गों में 9609 स्थानों से 15332 शिक्षार्थी, द्वितीय वर्ष सामान्य एवं विशेष के 16 वर्गों में 2902 स्थानों से 3531 शिक्षार्थी सहभागी हुए. तृतीय वर्ष के वर्ग में 657 स्थानों से 709 संख्या रही. इसी कालखंड में विभिन्न प्रान्तों में संपन्न प्राथमिक वर्गों में भी ग्रामों का प्रतिनिधित्व एवं शिक्षार्थियों की संख्या भी अच्छी रही है. कुल मिलाकर 23812 शाखाओं से 80409 संख्या रही.
परम पूजनीय सरसंघचालक जी का 2014-15 का प्रवास :  क्षेत्रश: प्रवास में संगठनात्मक बैठकों के साथ-साथ विशेष कार्यक्रमों में उपस्थिति और विशेष संपर्क की योजना बनी थी. देवगिरी प्रान्त का विशाल एकत्रीकरण और इम्फाल में संपन्न शीत सम्मेलन, दोनों ही कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं का सघन प्रयास और समाज का सहभाग अत्यंत प्रेरक रहा. ब्रज एवं उत्तराखंड के महाविद्यालयीन छात्र शिविर, नियोजन और उपस्थिति की दृष्टि से प्रभावी रहे.
कुछ स्थानों पर आयोजित वार्तालाप कार्यक्रमों में प्रसार माध्यमों के प्रमुख व्यक्ति, शिक्षाविद्, न्यायाधीश, शासकीय अधिकारी, संत, साहित्यकार आदि महानुभावों की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही.
विशेष संपर्क के क्रम में मंगलयान योजना के प्रमुख मन्नादुरै, नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी, आचार्य महाश्रमण जी, भंते राहुलबोधि जी, स्वामी दयानंद सरस्वती जी, पुरी के महाराजा गजपती जी आदि महानुभावों से मिलना हुआ.
मा. सरकार्यवाह जी का प्रवास :   वर्ष 2014-15 की प्रवास योजना में अन्यान्य संगठनात्मक बैठकों के साथ ही एक विशेष बैठक का आयोजन सभी स्थानों पर किया गया. कार्य विस्तार के नाते अधिकाधिक ग्रामों तक कार्य खड़ा हो इस दृष्टि से जिले के मुख्य मार्ग पर आने वाले ग्रामों तक संपर्क करने की योजना बनाई गयी. ऐसे सभी ग्रामों से चयनित व्यक्तियों को निमंत्रित किया गया.
प्रवास के दौरान 11 क्षेत्रों में ऐसी 15 बैठकों का आयोजन किया गया जिसमें 34 जिलों के 1522 ग्रामों से 2919 लोग उपस्थित रहे. सभी बैठकों में आगामी कालखंड में कैसी रचना हो इस पर विचार हुआ. बैठकों में नए संपर्क में आए व्यक्तियों का प्रतिशत लगभग 40 रहा. अनुकूल वातावरण का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त हुआ. समग्रता से नियोजन होगा तो अच्छे परिणाम आऐंगे.
कुछ क्षेत्रों में विभिन्न गतिविधियों के प्रमुख कार्यकर्ताओं की बैठकें हुई. विशेषतः धर्मजागरण समन्वय विभाग का कार्य सुनियोजित पद्धति से बढ़ रहा है ऐसा कह सकते हैं.
कार्यकर्ता विकास वर्ग :  कार्यकर्ताओं की क्षमता विकास की दृष्टि से ‘‘कार्यकर्ता विकास वर्ग’’ का विचार किया गया है. जिला-विभाग स्तर का दायित्व निर्वहन करने वाले अधिक सक्षम हों यह विचार करते हुए पाठ्यक्रम तैयार किया गया. यह वर्ग क्षेत्रश: हो रहे हैं. वर्ष 2014-15 में मध्य-क्षेत्र और उत्तर-पश्चिम क्षेत्रों के वर्ग संपन्न हुए. अनुभव अच्छा रहा. प्रतिवर्ष क्षेत्रश: वर्ग होने वाले हैं.
कार्य विभाग वृत्त :
(1) शारीरिक विभाग :  गत वर्ष की तुलना में इस वर्ष प्रहार महायज्ञ में सभी बिंदुओं में – जैसे सहभागी शाखाएं, स्वयंसेवक, कुल प्रहार, 1,000 से अधिक प्रहार लगाने वालों की संख्या आदि – अच्छी वृद्धि हुई है. पचास प्रतिशत से अधिक शाखाओं के 3 लाख 27 हजार स्वयंसेवकों का सहभाग जिसमें 90 प्रतिशत स्वयंसेवक 45 वर्ष से कम आयु के थे. कुल 15 करोड़ 80 लाख प्रहार लगाये गये जो इस कार्यक्रम की उल्लेखनीय विशेषताएं हैं.
इस वर्ष उज्जैन में बालों के लिए मलखंब का विशेष प्रशिक्षण वर्ग आयोजित किया गया, जिसमें 26 प्रातों से 54 बाल एवं किशोर स्वयंसेवक सहभागी हुए.
घोष प्रमुखों की बैठक में 34 प्रांतों का प्रतिनिधित्व रहा. आसन-योग विषय का वर्ग भी संपन्न हुआ जिसमें 38 प्रांतों से 101 स्वयंसेवक सम्मिलित हुए.
(2) बौद्धिक विभाग :  इस वर्ष बौद्धिक विभाग द्वारा भोपाल में एक विशेष ‘अखिल भारतीय बौद्धिक अभ्यास वर्ग’ का आयोजन हुआ. इस वर्ग में (1) हिन्दुत्व – हिन्दु-राष्ट्र, (2) सामाजिक समरसता, (3) विकास की अवधारणा, (4) जैन, बौद्ध, सिक्ख धर्मों का सार, (5) मातृशक्ति इन पाँच विषयों की प्रमुख अधिकारियों द्वारा प्रस्तुति के बाद गटश: गहन चर्चा की गई. परम पूजनीय सरसंघचालक जी द्वारा प्रश्नोत्तर व मार्गदर्शन प्राप्त हुआ. इस वर्ग में कुल 194 उपस्थिति रही.
इस वर्ष सभी शाखाओं में राष्ट्रीय, स्वयंसेवक, संघ इन तीन शब्दों पर व्यापक रूप से चर्चा की गई. परम पूजनीय डॉक्टर जी के जीवन पर दो बौद्धिक वर्गों की योजना भी सभी शाखाओं के लिये की गई थी. लगभग सभी प्रान्तों में इस विषय पर बौद्धिक देने वाले वक्ताओं की तैयारी के लिये कार्यकर्ताओं की कार्यशालाएं भी आयोजित की गईं.
(3) प्रचार विभाग :  नारद जयंती के उपलक्ष्य में पत्रकार सम्मान तथा प्रबोधन के वार्षिक कार्यक्रमों की शृंखला में 118 स्थानों पर कार्यक्रम संपन्न हुए जिसमें 3,401 पत्रकार एवम् अन्य नागरिक उपस्थित रहे. कुल मिलाकर 355 स्तंभ लेखक संपर्क में आये हैं. कम्युनिटी रेडिओ चलाना एवं दूरदर्शन पर पैनल चर्चा के प्रशिक्षण वर्ग भी संपन्न हुए. परिणामस्वरुप 217 कार्यकर्ता विविध भाषाओं के 68 टेलिव्हिजन केद्रों पर आयोजित चर्चा सत्रों में नियमित जाने लगे हैं. पुणे और कोलकाता में पत्रकारों के लिए ‘संघ परिचय वर्ग’ का विशेष उपक्रम का आयोजन हुआ. इन वर्गों में महिला पत्रकारों समेत अच्छी संख्या में पत्रकारों ने सहभागी होकर संघ के बारे में जानने का प्रयास किया. जागरण पत्रिका के माध्यम से 2 लाख 27 हजार ग्रामों से संपर्क स्थापित हुआ है. इस वर्ष देशभर में प्रमुख 912 स्थानों पर 12,652 स्वयंसेवकों द्वारा साहित्य बिक्री के कार्यक्रम आयोजित किये गये.
प्रान्तों में संपन्न विशेष कार्यक्रम :
  1. ऐतिहासिक पथसंचलन – तमिलनाडु : इस वर्ष राजा राजेंद्र चोल के सिंहासनारोहण को 1000 वर्ष पूर्ण हुए. इस निमित्त विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन स्थान-स्थान पर हो रहा था. तमिलनाडु के कार्यकर्ताओं ने 9 नवंबर 2014 को सभी जिला केन्द्रों में पथसंचलन निकालने की योजना बनाई. राजनीतिक दबाव के चलते प्रशासन ने अनुमति देने से इंकार कर दिया. मामला न्यायालय में पहुंचा. न्यायालय ने संघ के पक्ष में निर्णय देते हुए पथसंचलन पर रोक लगाना ठीक नहीं ऐसा कहा, परंतु प्रशासन का दुराग्रह बना रहा. संघ ने न्यायालयीन निर्णय एवं अपनी योजना के अनुसार संचलन निकाले. सभी जिला केन्द्रों में संचलन में नागरिक, महिला एवं पुरुष भी सम्मिलित हुए. 35,000 बंधु-भगिनियों की गिरफ्तारियां हुई. एक अभूतपूर्व शक्ति का दर्शन हुआ है.
विधि सम्मत ढंग से कार्य करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ब्रिटिशकाल के किसी कानून की धारा के अंतर्गत गणवेश में संचलन करने की अनुमति न देना तमिलनाडु सरकार की तानाशाही का ही परिचायक था. प्रशासन के इस व्यवहार को लेकर न्यायालय की अवमानना का मामला दर्ज किया गया है.
  1. ‘समर्थ भारत’ – कर्नाटक दक्षिण : कर्नाटक दक्षिण प्रांत ने एक अभिनव प्रयोग किया. बंगलुरु में ‘समर्थ भारत’ संकल्पना से दो दिवसीय चर्चा सत्र का आयोजन किया गया.
युवाशक्ति, जो देश और समाज के लिए कुछ करना चाहती है, उन्हें चर्चा तथा विचार-विमर्श हेतु मंच उपलब्ध हो इस दृष्टि से ही यह आयोजन किया गया था. सोशल मीडिया द्वारा ऑनलाइन पंजीकरण हेतु आह्नान किया गया. परिणामतः कर्नाटक दक्षिण प्रांत से 3,852 युवक इस दो दिवसीय शिविर में सहभागी हुए. कार्यक्रमों का स्वरूप गटश: चर्चा का था. 48 प्रकार के विषय चर्चा हेतु तय किये गये थे. सामाजिक क्षेत्र के अनुभवी तथा विशेषज्ञ महानुभावों के साथ चर्चा का अवसर सहभागी बंधुओं को मिला. शिविर स्थान पर एक विशेष प्रदर्शनी लगाई गई थी जिसके द्वारा विविध सेवाकार्य और विभिन्न चुनौतियों की जानकारी दी गयी.
ग्राम विकास, सेवा-बस्ती के कार्य, जलसंवर्धन, स्वयंसेवी कार्य, महिला समस्या, शैक्षिक प्रयोग, पर्यावरण, वैचारिक आंदोलन, मतिमंद एवं विकलांग समस्याएँ आदि विषयों पर करणीय बातों की चर्चा हुई.
इस समग्र आयोजन की संकल्पना को इन शब्दों में वर्णित किया जा सकता है – ‘‘समूह हेतु संकल्पना’’ और ‘‘संकल्पना हेतु समूह’’ ( Theme for team and Team for theme). परिणामतः 77 युवकों ने एक वर्ष देश के लिए कार्य करने की सिद्धता प्रकट की.
इस कार्यक्रम से ध्यान में आता है कि युवा वर्ग परिश्रम, समय, शक्ति और अपनी बुद्धिमत्ता समाज हेतु अर्पण करने के लिए तैयार है. आवश्यकता है नियोजन और मार्गदर्शन की. कर्नाटक दक्षिण प्रांत का यह प्रयोग अनुकरणीय है.
  1. साप्ताहिक मिलन द्वारा सामाजिक समरसता हेतु प्रयास, कोंकण : कोंकण प्रान्त में रत्नागिरी जिले के दापोली तहसील का ग्राम आसोंदा. हमेशा पेयजल की समस्या से जूझने वाला यह ग्राम. सभी ग्रामवासियों ने सामूहिक प्रयासों से समस्या निवारण हेतु योजना बनाई. इस हेतु सभी परिवारों से निधि संकलन किया गया. ध्यान में आया कि ग्राम में सोलह परिवारों का सामाजिक बहिष्कार किया हुआ है. ग्राम में व्यवसायी स्वयंसेवकों का साप्ताहिक मिलन प्रायः डेढ़ वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था. सभी स्वयंसेवकों ने बस्ती तथा समुदायश: चर्चा करते हुए सामाजिक समरसता की दिशा में प्रयास प्रारम्भ किया. ग्राम-सभा में इस गंभीर समस्या पर चर्चा हुई. बहिष्कृत सोलह परिवारों को जनजागरण के द्वारा समाज के साथ ससम्मान जोड़ने के प्रयास प्रारम्भ हुआ. लगभग चार महीनों के निरंतर प्रयासों से वातावरण सकारात्मक बनता चला गया. परिणामतः बस्ती वालों ने ही ग्राम प्रमुख को पत्र लिखकर समस्या सुलझाये जाने की जानकारी दी. आज सारे परिवार मिलजुल कर रहते हैं. समाज ने स्वयंसेवकों के प्रयासों की सराहना की.
  2. ‘महासंगम’ – देवगिरी प्रान्त : कार्यविस्तार की कल्पना को सामने रखते हुए देवगिरी प्रान्त ने ‘महासंगम’ का आयोजन दिनांक 11 जनवरी 2015 को किया था. एक वर्ष के श्रृंखलाबद्ध कार्यक्रमों की रचना करते हुए व्यापक संपर्क के द्वारा मंडल इकाइयों तक पहुंचने का प्रयास रहा. प्रान्त के सभी 123 खण्डों में खण्डश: बैठकों का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के पूर्व लगभग तीन मास पूर्व पंजीकरण रोका गया. तब तक 60,000 का पंजीकरण हो चुका था. कार्यक्रम में 1,223 मंडलों से, 686 बस्तियों से, 3,196 स्थानों से 42,870 स्वयंसेवक उपस्थित रहे. महासंगम में लगभग 25,000 नागरिक महिला, पुरुषों की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही.
महासंगम में 60 प्रतिशत उपस्थिति पंद्रह से चालीस आयु वर्ग की थी. भोजन व्यवस्था की दृष्टि से 20,000 हजार परिवारों से ढाई लाख रोटियां संकलित की गई थीं. यह आयोजन प्रान्त में कार्यविस्तार की दृष्टि से अत्यंत परिणामकारक रहा. शाखा, मिलन तथा मंडली की संख्या में अच्छी वृद्धि हुई है.
  1. कार्यकर्ता शिविर, गुजरात : तीन वर्ष पूर्व इस प्रकार के शिविर का विचार किया गया था. तेरह वर्ष से अधिक आयु के स्वयंसेवक, जो शाखा टोली से लेकर ऊपर तक के दायित्व का निर्वहन कर रहे हों, ऐसे ही स्वयंसेवकों को शिविर में शामिल करने का निश्चय किया गया था. यथासमय पंजीकरण प्रक्रिया प्रारंभ हुई और शिविर से तीन मास पूर्व पंजीकरण प्रक्रिया पूर्ण हुई. सभी जिलों एवं तहसीलों से प्रतिनिधित्व रहा. कुल 1,084 मंडलों के 2,165 स्थानों से, 4 महानगरों की 786 बस्तियों से और अन्य नगरों की 819 बस्तियों से 14,370 उपस्थिति रही. 79 प्रतिशत स्वयंसेवक 40 वर्ष से कम आयु वर्ग के थे. प्रदर्शनी विशेष आकर्षण का केन्द्र बनी. नगर के विभिन्न विद्यालयों के छात्र एवं अन्य नागरिक अच्छी संख्या में प्रदर्शनी देखने शिविर स्थान पर आये थे. शिविर में मातृशक्ति, अध्यापक वर्ग और संत ऐसे तीन सम्मेलनों का भी आयोजन किया था. समापन समारोह में द्वारका शारदा पीठ के प.पू. दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त हुआ.
  2. राष्ट्र साधना सम्मेलन, यवतमाल – विदर्भ : ग्यारह जनवरी को विदर्भ प्रान्त के यवतमाल विभाग ने ‘राष्ट्र साधना सम्मेलन’ का आयोजन किया था. कार्यविस्तार एवं दृढ़ीकरण की दृष्टि से किया गया यह आयोजन अपेक्षाकृत सफल रहा.
पूर्व तैयारी के नाते से तीन से सात दिन तक तहसील, जिला और विभाग स्तर के कार्यकर्ता विस्तारक के नाते स्थान-स्थान पर गए. बारह कार्यकर्ता एक से डेढ़ माह तक विस्तारक के नाते निकले. परिणामतः सभी चौबीस तहसीलों से, नगर की सभी चौबीस बस्तियों से, 261 में से 206 मंडलों के 469 ग्रामों से 5,767 स्वयंसेवक इस सम्मेलन में उपस्थित रहे.
शारीरिक कार्यक्रम बहुत अच्छा रहा. परिसर के गणमान्य नागरिकों तथा जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही. संपूर्ण कार्यक्रम में पर्यावरण की दृष्टि से प्लास्टिक का प्रयोग नहीं किया गया. प्रकट कार्यक्रम से पूर्व तीन स्थानों से पथ संचलन निकला. स्वागत समिति के माध्यम से अनेक गणमान्य नागरिकों का सहभाग अच्छा रहा. अनुवर्तन की योजना भी बनी है.
  1. महाविद्यालयीन कार्य, मालवा : प्रांत में इस कार्य हेतु वार्षिक योजना बनाई गयी. उत्सव, संचलन कार्यक्रम महाविद्यालयीन छात्र केन्द्रित हुए. इस वर्ष शीत शिविर में 1238 महाविद्यालयीन स्वयंसेवक उपस्थित रहे. ‘‘परिवर्तन का वाहक – प्राध्यापक’’ इस विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया. इसमें 184 प्राध्यापक उपस्थित थे. चिकित्सा क्षेत्र के छात्रों हेतु ‘‘संघ परिचय’’ वर्ग संपन्न हुआ जिसमें 12 महाविद्यालयों के 126 छात्र उपस्थित रहे.
  2. महाकौशल प्रान्त : महाकौशल प्रान्त के तीन कायक्रमों का वृत्त भी उत्साहवर्धक है.
(1) व्यापक संपर्क योजना – नगरीय क्षेत्रों में सभी बस्तियों में कार्य बढ़े इस दृष्टि से एक संपर्क योजना बनाई गई. एक से सात अक्तूबर इस कालखंड में प्रान्त के सभी 157 नगरों की 1,107 बस्तियों में परिवार संपर्क हेतु गटनायक तय किये गए. कुल 7,254 स्वयंसेवकों के द्वारा 3,17,264 परिवारों से संपर्क हुआ. संघ कार्य की जानकारी के साथ नित्योपयोगी स्वदेशी वस्तुओं की सूची भी घर-घर दी गयी. भविष्य में निश्चित ही नये-नये उपक्रमों के द्वारा बस्तियों में कार्य प्रारंभ होगा.
(2) विस्तारक योजना – 1 से 15 दिसंबर इस कालखंड में अधिक से अधिक स्वयंसेवक विस्तारक निकलें ऐसी योजना बनी थी. प्रान्त के 17 जिलों से 62 नगरों से, 288 शाखाओं से 7 दिन और उससे अधिक दिनों के लिए 839 विस्तारक निकले. परिणामतः 249 नये स्थानों पर शाखा प्रारम्भ हुई हैं. इस वर्ष प्रान्त में संपन्न प्राथमिक शिक्षा वर्गों में 2,884 स्थानों से 6,111 शिक्षार्थी सम्मिलित हुए.
(3) स्वास्थ्य शिविर – सेवा विभाग द्वारा सेवाभारती के सहयोग से सात जिलों में 17 स्वास्थ्य शिविर संपन्न हुए जिसमें 549 ग्रामों से लगभग 24,000 बंधु लाभान्वित हुए. शिविर में 143 विकलांग बंधुओं को साइकिल, 100 को श्रवण यंत्र, 249 को व्हीलचेअर, 75 अंध बंधुओं को ‘सहारा छड़ी’ प्रदान की गयी. 281 शाखा के 736 स्वयंसेवकों ने इन शिविरों में कार्य किया. इस माध्यम से कई विशेषज्ञ चिकित्सक सेवाभारती से जुड़े हैं.
  1. संघ परिचय वर्ग, हरियाणा : हरियाणा प्रान्त में गत सत्र में 4723 कार्यकर्ताओं ने प्राथमिक संघ शिक्षा वर्गों में प्रशिक्षण प्राप्त किया. जिसके फलस्वरुप शाखायुक्त मंडलों की संख्या में 30 प्रतिशत, शाखायुक्त बस्तियों की संख्या में 23 प्रतिशत, शाखा स्थानों में 34 प्रतिशत एवं कुल शाखाओं में 33 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसी प्रकार नये बन्धु जो JOIN RSS के माध्यम से जुड़ने की इच्छा व्यक्त करते है उनके लिये 5 घंटे का एक संघ परिचय कार्यक्रम ‘‘300 मिनिट संघ के निकट’’ 14 दिसंबर 2014 को संपन्न हुआ. जिसमें 225 ऊर्जावान युवाओं की सहभागिता रही.
  2. साहित्य दर्शन एवं पुस्तक प्रदर्शनी तथा पुस्तक मेला, जालंधर – पंजाब : जनसामान्यों को अपने धर्मग्रंथों से, अपने इतिहास के प्राचीन साहित्य से तथा संघ साहित्य से अवगत कराने के उद्देश्य से सोलह से अठारह जनवरी इस मेले का आयोजन किया गया था.
वेद-पुराण, उपनिषद्, जैन ग्रंथ व गुरुग्रंथ साहब की प्रतियों (सैचियों) के साथ महापुरुषों की जीवनियाँ, संघ साहित्य, सामाजिक विषयों पर उपन्यास आदि पुस्तकें बिक्री के लिये उपलब्ध थीं. अनेक गणमान्य महानुभावों की मेले में उपस्थिति प्रेरक रही. उन्नीस विद्यालयों व छह महाविद्यालयों के छात्र मेले में सहभागी हुए. 120 कार्यकर्ता मेले की सफलता हेतु कार्यरत थे. स्थानीय प्रसार माध्यमों का सहयोग भी अच्छा रहा.
  1. महाविद्यालयीन छात्र शिविर, उत्तराखंड : पतंजलि योग पीठ के पावन परिसर में उत्तराखंड प्रांत का महाविद्यालयीन छात्रों का शिविर संपन्न हुआ. प.पू.सरसंघचालक जी का सान्निध्य शिविरार्थियों को प्राप्त हुआ. शिविर की पूर्व तैयारी के नाते स्थान-स्थान पर कार्यकर्ता प्रशिक्षण बैठकें तथा अखंड भारत विषय पर सामूहिक गोष्ठियों का आयोजन किया गया. शिविर पूर्व पंजीकरण किया गया जिसमें 4,703 छात्रों का पंजीकरण हुआ. शिविर में 4,875 महाविद्यालयीन छात्र, 105 विधि स्नातक, 38 शोध छात्र, 93 वैद्यकीय और तकनीकी छात्र उपस्थित थे. 31 प्राध्यापक बंधु भी शिविर में सम्मिलित हुए. प.पू.सरसंघचालक जी की उपस्थिति में आयोजित बैठक में विविध विश्वविद्यालयों के 11 कुलपति उपस्थित थे.
समापन समारोह में पू. स्वामी रामदेव जी की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही. समारोह में लगभग 5,300 नागरिक महिला, पुरुष उपस्थित थे. इस आयोजन के परिणामस्वरुप प्रान्त में महाविद्यालयीन छात्रों की 98 शाखाएं एवं 179 साप्ताहिक मिलन प्रारंभ हुए हैं.
  1. विभागश: एकत्रीकरण, मेरठ प्रांत : इस वर्ष प्रांत में विभागश: एकत्रीकरण की योजना बनाई गई. इस कार्यक्रम हेतु 3,677 गटनायक बनाये गये और 87,116 स्वयंसेवकों का संपर्क हुआ. छह स्थानों पर हुए एकत्रीकरण में 52,985 की उपस्थिति रही. कुल 3,500 ग्रामों का प्रतिनिधित्व हुआ.
  2. युवा संकल्प शिविर, ब्रज प्रांत : आगरा में दिनांक एक से तीन नवंबर ‘युवा संकल्प शिविर’ का आयोजन किया गया. शिविर में सभी जिलों से 1,064 स्थानों से 3,817 शिविरार्थी सम्मिलित हुए. दस अध्यापकों और 153 शिक्षकों की भी उपस्थिति रही. इसके अतिरिक्त लगभग 1,000 स्वयंसेवक प्रबंधक के नाते आये थे. प.पू.सरसंघचालक जी का सान्निध्य प्राप्त हुआ. बाबा श्री सत्यनारायण मौर्य द्वारा प्रस्तुत नाट्य-गीत का मंचन, ओलंपिक पदक विजेता श्री राज्यवर्धन सिंह राठौर व पटना के सुपर-30 के संचालक श्री आनंद कुमार, इनकी उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही.
सामाजिक जीवन में सेवा जागरण की दृष्टि से कार्य करने वाले बंधुओं के स्वागत-अभिनंदन का कार्यक्रम भी आयोजित किया गया था. ‘दिव्य प्रेम सेवा मिशन’ के श्री आशीष गौतम जी, दीनदयाल शोध संस्थान के श्री भरत पाठक जी, वनवासी कल्याण आश्रम कन्या छात्रावास रुद्रपुर की सुश्री वर्षा घरोटे, गोपालक श्री रमेश बाबा एवं ‘कल्यांण करोति’ के संचालक श्री सुनील शर्मा जी आदि युवा कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया गया.
  1. उत्तर असम : उत्तर असम प्रांत में एक विशेष योजना के अनुसार सात दिन के 258 अल्पकालीन विस्तारक निकले जिसके कारण 188 शाखाओं की वृद्धि हुई.
  2. विषेश कार्यक्रम, मणिपुर प्रान्त : अपने प्रवास क्रम में प.पू.सरसंघचालक जी का इस वर्ष मणिपुर जाना हुआ. वर्तमान एवं पूर्व प्रचारक बैठक, एकल विद्यालय के प्रशिक्षण केन्द्र का लोकार्पण, विविध कार्यों में कार्यरत पूर्णकालिक कार्यकर्ता एवं क्षेत्र स्तरीय संगठन मंत्री बैठक आदि कार्यक्रम संपन्न हुए.
दि. 7 दिसंबर 2014 को प्रान्तीय शीत सम्मेलन संपन्न हुआ. समापन कार्यक्रम की अध्यक्षता मणिपुर के महाराजा लैसेंबा सनाचैबा ने की. सम्मेलन में 400 स्थानों से 7,000 नागरिक उपस्थित रहे. इस हेतु 685 गटनायक बनाये गए थे. संघ कार्य की दृष्टि से सम्मेलन की सफलता समाज द्वारा अपने कार्य की स्वीकार्यता का परिचायक है. प्रवास में इम्फाल के गणमान्य विशेष महानुभावों के साथ वार्तालाप का कार्यक्रम भी सफल रहा.
इस वर्ष कार्यविस्तार की दृष्टि से अल्पकालीन विस्तारक योजना बनाई गई. जिसमें कुल 38 विस्तारक निकले. फलस्वरुप 38 शाखाओं की वृद्धि हुई है जिसमें 18 स्थान नये है.
राष्ट्रीय परिदृश्य :
गत दिनों में विविध मंचों, संस्थाओं द्वारा संपन्न हुए कार्यक्रमों में हिन्दु समाज का सहयोग एवं सहभागिता बहुत प्रेरक रही है.
चेन्नई में संपन्न ‘हिन्दु आध्यात्मिक एवं सेवा मेला’ (Hindu spiritual and service fair) में सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं की सहभागिता विशेष रही. लगभग सप्ताह भर चले इस आयोजन में विद्यालयों, महाविद्यालयों के छात्रों का अवलोकनार्थ आना और साथ ही जनसामान्य का उत्साह अवर्णनीय रहा है. लगभग 8 लाख लोग इस कालखंड में कार्यक्रम स्थल पर आये थे. 232 धार्मिक एवं जाति बिरादरी की संस्थाओं ने अपने कार्य की जानकारी प्रस्तुत की. 11-12 प्रांतों से कार्यकर्ता आयोजन देखने आये थे. आयोजन का स्वरूप बहुत ही प्रभावी, आकर्षक रहा है. आने वाले दिनों में देश के अन्य प्रांतों में भी इस प्रकार के आयोजन हों ऐसी कल्पना है. सामाजिक, शैक्षणिक, आध्यात्मिक एवं सेवा के क्षेत्र में हिन्दु संस्थाओं की भूमिका प्रभावी है इस प्रकार का विश्वास निर्माण होता है.
मालवा प्रांत के महेश्वर में नर्मदा तट पर प.पू.सरसंघचालक जी की उपस्थिति में संपन्न ‘माँ नर्मदा हिन्दु संगम’ अपने आप में एक सफल आयोजन सिद्ध हुआ. ग्राम-ग्राम में गठित ‘धर्म रक्षा समिति’ में ग्रामवासियों का सहभाग, कार्यक्रम पूर्व निकाली गई कलश यात्रा में माताओं का सहभाग तथा ग्राम-ग्राम में लगभग 5 लाख परिवारों तक व्यापक संपर्क अभूतपूर्व रहा. प्रत्यक्ष संगम में 1 लाख 35 हजार बंधुओं की और 150 से अधिक संत-वृंद की उपस्थिति हिन्दु विचार की स्वीकार्यता का ही परिचायक है.
वैसे ही मध्यप्रदेश में नर्मदा तट पर संपन्न नदी उत्सव, उत्तराखंड का थारु वनवासी सम्मेलन इन कार्यक्रमों द्वारा जागृत हुई चेतना का भी विशेष उल्लेख आवश्यक है.
राजनीतिक क्षेत्र में राष्ट्रीय विचारों का प्रभाव :
मई 2014 में संपन्न लोकसभा चुनाव में भारत की जनता ने राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दिया है और देश में स्थिर एवं सुव्यवस्थित सरकार बनाने के पक्ष में मतदाताओं ने अपना मत व्यक्त किया है. यह पहला अवसर है कि भारतीय चिंतन में प्रतिबद्धता रखकर चलने वाले राजनीतिक दल को बहुमत से विजयी बनाकर समाज ने अपना विश्वास व्यक्त किया है. कई वर्षों के बाद इस विचार से प्रेरित समूह आज ‘निर्णय-केन्द्र’ में स्थापित हुआ है. नीति निर्धारक, चिंतक एवं तज्ञों के सहयोग से संतुलित चिंतन करते हुए कालसुसंगत योजनाएँ बनें एवं क्रियान्वित हों यह स्वाभाविक अपेक्षा है.
जनसामान्य की इच्छा आकांक्षाओं की पूर्ति के साथ ही देश की सुरक्षा, स्वाभिमान, सार्वभौमत्व अबाधित रहे. भारतीय चिंतकों-मनीषियों द्वारा समय-समय पर प्रस्तुत चिंतन और भारत की जीवनशैली एवं मूल्यों के प्रकाश में विकास की अवधारणा सुनिश्चित करने की आवश्यकता है. ग्रामीण जनजीवन, संस्कृति, अनुसूचित जाति-जनजाति की आवश्यकताओं एवं भावनाओं को सर्वोपरि रखा जाय.
भारत का श्रेष्ठ चिंतन, परंपराएँ, जीवनमूल्य तथा संस्कृति विश्व के लिये सदा मार्गदर्शक रही है. वर्तमान सरकार भारत की अपनी विशेषताओं का विश्व-मंच पर प्रतिनिधित्व करे यही देशवासियों की अपेक्षा है.
जम्मू-कश्मीर में हाल ही में संपन्न हुए चुनावों के बाद राज्य में नई सरकार बनी है किन्तु राज्य के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद द्वारा आतंकवादियों, हुर्रियत कान्फ्रेंस तथा पाकिस्तान को शांतिपूर्ण चुनाव का श्रेय देने वाला वक्तव्य सभी दृष्टि से अवांछनीय ही कहा जायेगा. जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुए चुनावों का श्रेय राज्य की शान्तिप्रिय जनता, राजनीतिक दल, सेना व सुरक्षाबलों, वहां के प्रशासनिक अधिकारियों तथा चुनाव आयोग को ही दिया जाना चाहिये.
विश्व की स्पर्धा में भारत की प्रतिष्ठा बढ़े और शाश्वत विकास का उदाहरण प्रस्तुत करने वाला भारत कैसे विश्व के सम्मुख प्रस्तुत हो यह वर्तमान की एक बड़ी चुनौती है. पड़ोसी देशों से मित्रता बढ़े यह क्षेत्र की सुख शांति के लिये अनिवार्य है. पड़ोसी देशों से भी हम इसी प्रकार के सकारात्मक सहयोग-संवाद की अपेक्षा रखते हैं. विश्वास ही परस्पर मित्रता का आधार रहता है. विविध देशों में रह रहे भारत मूल के निवासी भी वर्तमान सरकार और नेतृत्व की प्रभावी भूमिका से गर्व का अनुभव कर रहे हैं. अतः जन-जन की अपेक्षाओं, भावनाओं एवं संवेदनाओं को समझते हुए वे कार्य करें, देश यही अपेक्षा कर रहा है. जनसामान्य सरकार की मर्यादाओं को भी समझते है.
स्वच्छता अभियान, गंगा सुरक्षा जैसे विषयों पर सरकार द्वारा हो रहे प्रयास निश्चित ही अभिनंदनीय हैं. जनसहभागिता के द्वारा ही ऐसी समस्याओं के समाधान की दिशा में बढ़ा जा सकता है. सही दिशा में चल रहे ऐसे सभी प्रयासों का सारा देश स्वागत कर रहा है.
अराष्ट्रीय शक्तियाँ व्यथित होकर अनावश्यक बातों को चर्चा का मुद्दा बनाकर वातावरण दूषित करने का प्रयास करती रहती हैं. देशवासी इस संदर्भ में सजग रहें. इस दिशा में सभी राष्ट्रीय विचार मूलक शक्तियों को मिलकर पहल करनी होगी.
समापन :  आज देशभर में हम अनुकूलता का अनुभव कर रहे हैं. संघ कार्य की स्वीकार्यता और हिन्दुत्व के चिंतन के प्रति विश्वास भी बढ़ा है. स्वाभाविक ही है कि यह अपने कार्यवृद्धि के लिए भी सुसमय है. यदि हम सुनियोजित ढंग से और परिश्रमपूर्वक योजना बनाते हैं तो आने वाले निकट भविष्य में अपने कार्य के सुपरिणाम हम निश्चय ही अनुभव करेंगे. संकल्प करें, दृढ़तापूर्वक सब मिलकर आगे बढ़ें, जीवन के सभी क्षेत्रों में अपने विचारों का प्रभाव स्थापित करते हुए समाज की सृजनात्मक शक्ति को विश्व के सम्मुख प्रस्तुत करें.