उन्होंने कहा कि अमीर-गरीब, छोटा बड़ा और ताकतवर और कमजोर एवं जीवन व मौत यह भी सृष्टि की एक प्रक्रिया है. आज देश में समानता की आवश्यकता नहीं है. आज जरूरत है समरसता अर्थात आकर्षण की. जब तक हममें एक दूसरे के प्रति चाहत (आत्मीयता) नहीं होगी, तब तक हमारे देश का विकास सम्भव नहीं है. हम सभी एक ही पिता की संतान हैं. हमारे समाज में जो कुरीतियां आयी हैं, उसे विदेशी ताकतों ने अपनी-अपनी नीति के अनुसार समय-समय पर गलत तरीके ऐसे साहित्य के माध्यम से प्रचारित किया. हमारे हिन्दू समाज में पहले लिखने की कोई परम्परा नहीं थी. सभी अपने पूर्वजों के नाम से अपनी पहचान बनाते गये और उसी ने समाज में दूरी पैदा कर दी. कभी ऐसी हालत हो गई कि लोग अपने गोत्र भी भूल गये और वह पूर्वजों के नाम से ही अपनी पहचान बताते रहे. जिसका परिणाम यह हुआ कि विभिन्न जातियां उत्पन्न हो गईं. लेकिन सच यही है कि हम सभी कश्यप की ही संतान हैं. कश्यप के पहले भी हम एक थे और कश्यप के बाद भी हम एक ही पूर्वज की संतान हैं. प्रकृति में जो चल रहा है, वह सदैव चलता रहेगा. यदि सभी स्त्री एक सामान हो जाएं या पुरूष समान हो जाएं या फिर दुनिया में केवल स्त्री ही रह जाए, या पुरूष ही रहें तो पूरी सृष्टि विनाश के कगार पर पहुंच जाएगी. सभी एक सामान नहीं हो सकते है. ऐसा कोई कहता है, यह मिथ्या है. यह संसार विकार्षण से नहीं आकर्षण से संचालित हो रहा है. सभी एक दूसरे के पूरक हैं.
Sunday, March 6, 2016
हिन्दू समाज को समरस बनाने के लिए समानता की नहीं समरसता की जरूरत – अभय जी
उन्होंने कहा कि अमीर-गरीब, छोटा बड़ा और ताकतवर और कमजोर एवं जीवन व मौत यह भी सृष्टि की एक प्रक्रिया है. आज देश में समानता की आवश्यकता नहीं है. आज जरूरत है समरसता अर्थात आकर्षण की. जब तक हममें एक दूसरे के प्रति चाहत (आत्मीयता) नहीं होगी, तब तक हमारे देश का विकास सम्भव नहीं है. हम सभी एक ही पिता की संतान हैं. हमारे समाज में जो कुरीतियां आयी हैं, उसे विदेशी ताकतों ने अपनी-अपनी नीति के अनुसार समय-समय पर गलत तरीके ऐसे साहित्य के माध्यम से प्रचारित किया. हमारे हिन्दू समाज में पहले लिखने की कोई परम्परा नहीं थी. सभी अपने पूर्वजों के नाम से अपनी पहचान बनाते गये और उसी ने समाज में दूरी पैदा कर दी. कभी ऐसी हालत हो गई कि लोग अपने गोत्र भी भूल गये और वह पूर्वजों के नाम से ही अपनी पहचान बताते रहे. जिसका परिणाम यह हुआ कि विभिन्न जातियां उत्पन्न हो गईं. लेकिन सच यही है कि हम सभी कश्यप की ही संतान हैं. कश्यप के पहले भी हम एक थे और कश्यप के बाद भी हम एक ही पूर्वज की संतान हैं. प्रकृति में जो चल रहा है, वह सदैव चलता रहेगा. यदि सभी स्त्री एक सामान हो जाएं या पुरूष समान हो जाएं या फिर दुनिया में केवल स्त्री ही रह जाए, या पुरूष ही रहें तो पूरी सृष्टि विनाश के कगार पर पहुंच जाएगी. सभी एक सामान नहीं हो सकते है. ऐसा कोई कहता है, यह मिथ्या है. यह संसार विकार्षण से नहीं आकर्षण से संचालित हो रहा है. सभी एक दूसरे के पूरक हैं.
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