कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020
ऐसे पारिस्थितिक तंत्र
के सृजन का वहां, जहां कृषक और व्यापारी, ऐसी कृषक उपज के, विक्रय और क्रय संबंधी चयन की स्वतंत्रता का उपभोग करते हैं, जो
प्रतिस्पर्धात्मक वैकल्पिक व्यापारिक चैनलों के माध्यम से लाभकारी कीमतों को सुकर
बनाता है, का उपबंध करने के लिए; बाजारों के भौतिक परिसर या
विभिन्न राज्य कृषि उपज बाजार संबंधी विधानों के अधीन अधिसूचित समझे गए बाजारों के
बाहर कृषक उपज का दक्ष, पारदर्शी और निर्बाध अंतराज्यिक और अंतःराज्यिक व्यापार और
वाणिज्य के संवर्धन के लिए; इलैक्ट्रानिक व्यापार के लिए सुसाध्य ढ़ांचे का और उससे संबंधित
या उसके आनुषंगिक विषयों का उपबंध करने के
लिए विधेयक
क्या है विधेयक, जानें पूरा विवरण : भारत
गणराज्य के इकहत्तरवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह
अधिनियमित हो :—.1. (1) इस अधिनियम का
संक्षिप्त नाम कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020 है
।
(2) यह 5 जून, 2020 को
प्रवृत्त हुआ समझा जाएगा ।
2. इस अधिनियम में, जब तक कि
संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो—
(क) “इलैक्ट्रानिक
व्यापारिक और संव्यवहार प्लेटफार्म" से कृषक
उपज का, किसी इलैक्ट्रानिक युक्तियों और इंटरनेट प्रयोग के नेटवर्क के माध्यम से
व्यापार और वाणिज्य के संचालन हेतु प्रत्यक्ष और आनलाइन क्रय और विक्रय को सुकर
बनाने के लिए स्थापित ऐसा प्लेटफार्म अभिप्रेत
है, जहां प्रत्येक ऐसे संव्यवहार का परिणाम कृषक उपज का वास्तविक परिदान होता
है ;
(ख) “कृषक” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो स्वयं या भाड़े
के श्रमिक द्वारा या अन्यथा कृषक उपज के उत्पादन में लगा हुआ है और इसके अंतर्गत
निर्माता, कृषक निर्माता संगठन भी है ;
(ग) “कृषक उपज” से निम्नलिखित अभिप्रेत है,—
(i)
गेहूं, चावल या अन्य मोटा अनाज, दालें, खाद्य तिलहन, तेल, सागभाजी, फल, मेवा,
मसाले, गन्ना और कुक्कुट, सूअर, बकरी, मत्स्य और डेरी उत्पाद सहित ऐसे खाद्य
पदार्थ जो अपनी नैसर्गिक या प्रसंस्कृत रूप में मानव उपभोग के लिए आशयित है ;
(ii) खली और अन्य सांद्रों
सहित पशु चारा ; और
(iii) कच्ची कपास, चाहे उसकी ओटाई की गई है या ओटाई नहीं की गई है,
बिनौला और कच्चा पटसन ;
(घ) “कृषक उत्पादक संगठन” से, कृषकों का कोई ऐसा सगंम या
समूह अभिप्रेत है, चाहे वह किसी नाम से ज्ञात हो, जो—
(i) तत्समय
प्रवृत्त किसी विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत है ; या
(ii) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित
किसी स्कीम या कार्यक्रम के अधीन संवर्धित है;
(ङ) “अंतरराज्यिक व्यापार”
से कृषक उपज के क्रय या विक्रय की ऐसी कार्रवाई
अभिप्रेत है जिसमें एक राज्य का व्यापारी, अन्य राज्य के कृषक या किसी व्यापारी से कृषक उपज का क्रय करते हैं
और ऐसी कृषक उपज का परिवहन उस राज्य से
जहां से व्यापारी ने ऐसी कृषक उपज खरीदी है या जहां से ऐसी कृषक उपज उत्पन्न होती है, भिन्न राज्य में किया जाता है ;
(च) “अंतःराज्यिक व्यापार”
से कृषक उपज के क्रय या विक्रय की ऐसी कार्रवाई अभिप्रेत है, जिसमें एक राज्य का
व्यापारी, उसी राज्य के किसी कृषक या व्यापारी से, कृषक उपज का क्रय करता है, जहां
से व्यापारी ने ऐसी कृषक उपज खरीदी है या जहां ऐसी कृषक उपज उत्पन्न होती है ;
(छ) “अधिसूचना” से
केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा राजपत्र में प्रकाशित की गई कोई अधिसूचना
अभिप्रेत है और तद्नुसार “अधिसूचित” पद
का वही अर्थ लगाया जाएगा ;
(ज) “व्यक्ति” के अंतर्गत निम्नलिखित है—
(क)
कोई व्यष्टि;
(ख)
कोई भागीदारी फर्म;
(ग)
कोई कंपनी;
(घ)
कोई सीमित दायित्व भागीदारी;
(ङ)
कोई सहकारी सोसाइटी;
(च)
कोई सोसाइटी ; या
(छ) ऐसा कोई संगम या व्यक्ति निकाय जो केन्द्रीय सरकार या
राज्य सरकार के किसी चालू कार्यक्रम के अधीन सम्यक् रूप से एक समूह के रूप में
निगमित या मान्यताप्राप्त है ; (झ) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार
द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ;
(ञ) “अनुसूचित कृषक उपज” से विनियमन के लिए किसी राज्य कृषि
उपज बाजार समिति अधिनियम के अधीन विनिर्दिष्ट कोई कृषि उपज अभिप्रेत है ;
(ट) “राज्य” के अंतर्गत संघ राज्यक्षेत्र भी है ;
(ठ) “राज्य कृषि उपज बाजार समिति अधिनियम” से भारत में
प्रवृत्त कोई ऐसा राज्य विधान या संघ राज्यक्षेत्र
का विधान, चाहे किसी भी नाम से ज्ञात हो, अभिप्रेत है, जो उस राज्य में की कृषि
उपज को विनियमित करता हैं;
(ड) “व्यापार क्षेत्र” से—
(क) फार्म गेट;
(ख) कारखाना परिसर;
(ग) भांडागार;
(घ) खत्ती;
(ङ) शीतागार;
(च) कोई अन्य ढांचा या स्थान,सहित कोई ऐसा क्षेत्र या
अवस्थान, उत्पादन, संग्रहण और संकलन का ऐसा स्थान अभिप्रेत है जहां से भारत के
राज्यक्षेत्र में कृषक उपज का भारत के राज्यक्षेत्र में व्यापार किया जा सकेगा
किन्तु इसके अन्तर्गत—
(i) भारत में प्रवृत्त प्रत्येक कृषि उपज
बाजार समिति अधिनियम के अधीन गठित बाजार समितियों द्वारा व्यवस्थित और संचालित
मुख्य बाजार यार्ड, उप-बाजार यार्ड और बाजार उप-यार्ड की भौतिक सीमाओं; और
(ii) अनुज्ञप्तियां धारण करने वाले
व्यक्तियों द्वारा व्यवस्थित प्राइवेट बाजार यार्डों, प्राइवेट बाजार उप यार्डों,
प्रत्यक्ष विपणन संग्रहण केन्द्रों और प्राइवेट कृषक उपभोक्ता बाजार यार्डों या
किन्हीं भांडागारों, खत्तियों, शीतागारों, भारत में प्रवृत्त प्रत्येक राज्य कृषि
उपज विपणन समिति अधिनियम के अधीन बाजार या समझे गए बाजारों के रूप में अन्य संरचनाओं,
से मिलकर बना कोई परिसर, अहातों और संरचनाएं सम्मिलित नहीं हैं;
(ढ) “व्यापारी” से कोई ऐसा
व्यक्ति अभिप्रेत है जो अन्तरराज्यिक व्यापार या
अंतः राज्यिक व्यापार या उन दोनों के संयोजन द्वारा, थोक व्यापार, खुदरा, अंत्य
उपयोग, मूल्य वर्धन, प्रसंस्करण, विनिर्माण, निर्यात, उपभोग के प्रयोजन के लिए या
ऐसे अन्य प्रयोजनों के लिए स्वयं या एक या अन्य व्यक्तियों की ओर से कृषक उपज का
क्रय करता है।
अध्याय 2
कृषक उपज के व्यापार और वाणिज्य का संवर्धन और
सरलीकरण3. किसी व्यापार क्षेत्र में व्यापार और वाणिज्य की स्वतन्त्रता :
इस अधिनियम के उपबन्धों
के अधीन रहते हुए, किसी कृषक या व्यापारी या इलैक्ट्रानिक व्यापार और
संव्यवहार प्लेटफार्म को, किसी व्यापार क्षेत्र में कृषक उपज में अन्तरराज्यिक या अंतःराज्यिक
व्यापार और वाणिज्य करने की स्वतन्त्रता होगी।
4. अनुसूचित कृषक उपज का
व्यापार और वाणिज्य :
(1) कोई व्यापारी,
किसी व्यापार क्षेत्र में किसी कृषक या किसी अन्य व्यापारी के साथ अनुसूचित कृषक
का अन्तरराज्यिक व्यापार या अंतःराज्यिक व्यापार कर सकेगा :
परंतु कोई व्यापारी, कृषक
निर्माता संगठनों या कृषि सहकारी सोसाइटी के सिवाय किसी अनुसूचित कृषक उपज का तब
तक व्यापार नहीं करेगा जब तक ऐसे व्यापारी को आय-कर अधिनियम, 1961 के अधीन स्थायी
खाता संख्यांक आबंटित न किया गया हो या उसके पास कोई ऐसा अन्य दस्तावेज जो
केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाए, न हो ।
(2) केन्द्रीय सरकार, यदि
उसकी यह राय है कि लोक हित में ऐसा करना आवश्यक और समीचीन है किसी व्यापार क्षेत्र
में किसी व्यापारी के इलैक्ट्रानिक रजिस्ट्रेशन प्रणाली, व्यापार संव्यवहार की
रीतियां और अनुसूचित कृषक उपज के भुगतान की पद्धति विहित कर सकेगी।
(3) प्रत्येक व्यापारी जो
कृषकों के साथ संव्यवहार करता है, व्यापार की गई अनुसूचित कृषक उपज का भुगतान उसी
दिन या यदि प्रक्रियात्मक रूप से ऐसा अपेक्षित है, तो इस शर्त के अधीन रहते हुए कि
कृषक को शोध्य भुगतान की रकम में वर्णित परिदान की रसीद उसी दिन दी जाएगी, अधिकतम
तीन कार्यदिवस के भीतर भुगतान करेगा:
परंतु केन्द्रीय सरकार,
क्रेताओं से संदाय रसीद के साथ जुड़े हुए संबद्ध कृषक उपज संगठन या कृषि सहकारी
सोसाइटी, चाहे किसी भी नाम से ज्ञात हो, द्वारा भुगतान की भिन्न भिन्न प्रक्रिया
विहित कर सकेगी।
5. इलैक्ट्रानिक व्यापारिक और संव्यवहार प्लेटफार्म :
(1) आय-कर अधिनियम, 1961 के अधीन आबंटित स्थायी खाता
संख्यांक या ऐसा कोई अन्य दस्तावेज, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाए,
रखने वाला कोई व्यक्ति (किसी व्यष्टि से भिन्न) कोई कृषक निर्माता संगठन या कृषि सहकारी
सोसाइटी, किसी व्यापार क्षेत्र में अनुसूचित कृषक उपज के अन्तर-राज्यिक या अंतःराज्यिक
व्यापार को सुकर बनाने के लिए कोई इलैक्ट्रानिक व्यापारिक और संव्यवहार प्लेटफार्म
स्थापित कर सकेगा और उसका प्रचालन कर सकेगा:
परन्तु इलैक्ट्रानिक
व्यापारिक और संव्यवहार प्लेटफार्म स्थापित और प्रचालित करने वाला व्यक्ति,
व्यापार की रीति, फीस, अन्य प्लेटफार्मों के साथ अन्तर व्यवहार्य सहित तकनीकी
पैरामीटर, तर्कसंगत व्यवस्थाएं, गुणवत्तापूर्ण निर्धारण, यथासमय भुगतान, प्लेटफार्म
के प्रचालन के स्थान की स्थानीय भाषा में मार्गदर्शक सिद्धांतों का प्रसारण जैसी
उचित व्यापार पद्धतियों और ऐसे अन्य विषयों के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत तैयार
करेगा और उनका क्रियान्वयन करेगा।
(2) यदि केन्द्रीय सरकार
की यह राय है कि लोक हित में ऐसा करना आवश्यक और समीचीन है तो वह, नियमों द्वारा,
किसी व्यापार क्षेत्र में अनुसूचित कृषक उपज के उचित अन्तर-राज्यिक और अंतराराज्यिक
व्यापार और वाणिज्य को सुकर बनाने के लिए इलैक्ट्रानिक व्यापारिक मंचों के लिए—
(क) रजिस्ट्रीकरण की प्रक्रिया, मानदंड,
रीति विनिर्दिष्ट कर सकेगी; और
(ख) आचार संहिता, अन्य प्लेटफार्म के साथ अन्तर व्यवहार्य
सहित तकनीकि पैरामीटर जिसके अंतर्गत अनुसूचित कृषक उपज की तर्कसंगत व्यवस्थायें और
उनका गुणवत्तापूर्ण निर्धारण भी है, विनिर्दिष्ट कर सकेगी ।
6. व्यापार क्षेत्रों में राज्य कृषि उपज बाजार समिति अधिनियम, आदि के
अधीन बाजार फीस :
किसी राज्य कृषि उपज बाजार समिति अधिनियम या किसी अन्य
राज्य विधि के अधीन किसी कृषक या व्यापारी या इलैक्ट्रानिक व्यापारिक और संव्यवहार
प्लेटफार्म से किसी व्यापार क्षेत्र में अनुसूचित कृषक उपज में व्यापार और वाणिज्य
के लिए कोई बाजार फीस या उपकर या उद्ग्रहण चाहे किसी भी नाम से ज्ञात हो उद्गृहीत
नहीं किया जाएगा।
7. कीमत सूचना और बाजार आसूचना प्रणाली :
(1) केन्द्रीय सरकार, किसी केन्द्रीय सरकार संगठन के
माध्यम से, कृषक उत्पाद के लिए कीमत सूचना और बाजार आसूचना प्रणाली और उससे
सम्बंधित सूचना के प्रसारण हेतु एक रूपरेखा विकसित कर सकेगी।
(2) केन्द्रीय सरकार, ऐसे
संव्यवहारों के संबंध में, जो विहित किए जाएं, किसी व्यक्ति से, सूचना उपलब्ध
करवाने के लिए एक इलैक्ट्रानिक व्यापारिक और संव्यवहार प्लेटफार्म का स्वामी होने
की और उसके प्रचालन की अपेक्षा कर सकेगी।
स्पष्टीकरण—इस धारा के प्रयोजनों के लिए “केन्द्रीय सरकार संगठन” पद के अन्तर्गत कोई अधीनस्थ या सहबद्ध कार्यालय, सरकार के स्वामित्वाधीन
या संबंधित कंपनी या सोसाइटी भी है।
अध्याय 3
विवाद समाधान
8. कृषकों के लिए विवाद समाधान तंत्र :
(1) इस अधिनियम की धारा 4 के अधीन कृषक और किसी व्यापारी
के बीच किसी संव्यवहार से उद्भूत किसी विवाद की दशा में, पक्षकार, आवेदन फाइल करके
उपखंड मजिस्ट्रेट से, सुलह के मार्फत पारस्परिक प्रतिग्राह्य समाधान की ईप्सा कर
सकेंगे जो ऐसे विवाद को, विवाद के आबद्धकर परिनिर्धारण को सुकर बनाने के लिए उसके
द्वारा नियुक्त सुलह बोर्ड को निर्दिष्ट करेगा।
(2) उपधारा (1)
के अधीन उपखंड मजिस्ट्रेट द्वारा नियुक्त प्रत्येक सुलहबोर्ड, एक अध्यक्ष और कम से
कम दो और चार से अनधिक ऐसे सदस्यों से मिलकर बनेगा जिन्हें उपखंड मजिस्ट्रेट ठीक
समझे।
(3) अध्यक्ष, उपखंड मजिस्ट्रेट के पर्यवेक्षण और नियंत्रण
के अधीन सेवारत कोई अधिकारी होगा और अन्य सदस्य विवाद के पक्षकारों का
प्रतिनिधित्व करने हेतु बराबर संख्या में नियुक्त व्यक्ति होंगे और किसी पक्षकार
का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त कोई व्यक्ति उस पक्षकार की सिफारिश पर
नियुक्त किया जाएगा :
परन्तु यदि कोई पक्षकार,
सात दिन के भीतर ऐसी सिफारिश करने में असफल रहेगा तो उपखंड मजिस्ट्रेट ऐसे
व्यक्तियों की नियुक्ति करेगा जिन्हें वह उस पक्षकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए
ठीक समझे ।
(4) जहां, सुलह
कार्यवाहियों के दौरान किसी विवाद के संबंध में कोई समाधान हो जाता है वहां तद्नुसार
समाधान ज्ञापन बनाया जाएगा और वह ऐसे विवाद के पक्षकारों द्वारा हस्ताक्षरित होगा
जो पक्षकारों पर आबद्धकर होगा।
(5) यदि उपधारा (1) के
अधीन संव्यवहार के पक्षकार, इस धारा के अधीन उपवर्णित रीति में तीस दिन के भीतर
विवाद का समाधान करने में असमर्थ रहते हैं तो वे संबद्ध उपखंड मजिस्ट्रेट से
सम्पर्क कर सकेंगे जो ऐसे विवाद के समाधान के लिए उपखंड प्राधिकारी होगा।
(6) उपखंड प्राधिकारी,
स्वप्रेरणा से या किसी याचिका के आधार पर या किसी सरकारी अभिकरण से निर्देश के
आधार पर धारा 4 या उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबन्धों के किसी उल्लघंन का
संज्ञान लेगा और उपधारा (7) के अधीन कार्रवाई करेगा।
(7) उपखंड प्राधिकारी, इस
धारा के अधीन विवाद या उल्लंघन का विनिश्चय, उसके फाइल किए जाने की तारीख से तीस
दिन के भीतर संक्षिप्त रीति में करेगा और—
(क) विवादाधीन रकम की वसूली का आदेश
पारित कर सकेगा; या
(ख) ऐसी शास्ति अधिरोपित कर सकेगा जो
धारा 11 की उपधारा (1) के अधीन अनुबद्ध है; या
(ग) इस अधिनियम के अधीन प्रत्यक्ष रूप या अप्रत्यक्ष रूप से
ऐसी अवधि के लिए, जो वह ठीक समझे अनुसूचित कृषक उपज के किसी व्यापार और सम्बंधी व्यापारिक कार्य को करने से
विवादग्रस्त व्यापारी को अवरुद्ध करने का आदेश पारित कर सकेगा।
(8) उपखंड प्राधिकारी के
आदेश से व्यक्ति को पक्षकार, ऐसे आदेश के तीस दिन के भीतर अपील प्राधिकारी (कलक्टर
या कलक्टर द्वारा नामनिर्दिष्ट अपर कलक्टर) के समक्ष अपील कर सकेगा जो ऐसी अपील
फाइल किए जाने की तारीख से तीस दिन के भीतर अपील का निपटारा करेगा।
(9) इस धारा के अधीन उपखंड
प्राधिकारी या अपील प्राधिकारी का प्रत्येक आदेश किसी सिविल न्यायालय की डिक्री का
बल रखेगी और उस रूप में प्रवर्तनीय होगी और डिक्रीत रकम की भू-राजस्व के बकाए के रूप
में वसूली की जाएगी।
(10) उपखंड प्राधिकारी के
समक्ष कोई याचिका या कोई आवेदन और अपील प्राधिकारी के समक्ष कोई अपील फाइल करने की
रीति और प्रक्रिया वह होगी जो विहित की जाए।
9. इलैक्ट्रानिक व्यापारिक और संव्यवहार प्लेटफार्म के
प्रचालन के अधिकार का निलंबन या रद्दकरण :
(1) कृषि विपणन सलाहकार, विपणन और निरीक्षण निदेशालय, भारत
सरकार या राज्य सरकार का ऐसा कोई अधिकारी जिसे केन्द्रीय सरकार द्वारा राज्य सरकार
के परामर्श से ऐसी शक्तियां प्रत्यायोजित की गई हैं, स्वप्रेरणा से या किसी याचिका
के आधार पर या किसी सरकारी अभिकरण के निर्देश के आधार पर, प्रक्रियाओं, मानदण्डों, रजिस्ट्रीकरण की रीति
और आचार संहिता के किसी अंग का या धारा 5
के अधीन स्थापित इलैक्ट्रानिक व्यापारिक और संव्यवहार प्लेटफार्म द्वारा उचित
व्यापार पद्धतियों के मार्गदर्शक सिद्धांतों के किसी अंग का संज्ञान ले सकेगा और
प्राप्ति की तारीख से साठ दिन के भीतर आदेश द्वारा और ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध
किए जाएं, वह—
(क) कृषकों और व्यापारियों को संदेय रकम
की वसूली का आदेश पारित कर सकेगा;
(ख) ऐसी शास्ति अधिरोपित कर सकेगा, जो
धारा 11 की उपधारा (2) में नियत की गई है; या
(ग) इलैक्ट्रानिक व्यापारिक और संव्यवहार प्लेटफार्म के रूप
में प्रचालन के अधिकार को ऐसी अवधि के लिए, जो वह ठीक समझे निलम्बित कर सकेगा या
उसे रद्द कर सकेगा:
परंतु रकम की वसूली,
शास्ति के अधिरोपण या प्रचालन के अधिकार के निलम्बन या रद्दकरण का कोई आदेश, ऐसे
इलैक्ट्रानिक व्यापारिक और संव्यवहार प्लेटफार्म के प्रचालक को सुनवाई का अवसर दिए
बिना पारित नहीं किया जाएगा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन
किया गया प्रत्येक आदेश का सिविल न्यायालय की डिक्री का बल होगा और उस रूप में
प्रवर्तनीय होगा तथा डिक्रीत रकम भू-राजस्व के बकाए के रूप में वसूल की जाएगी ।
10. प्रवर्तन के अधिकार के रद्दकरण के विरुद्ध अपील :
(1) धारा 9 के अधीन किसी आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, ऐसे
आदेश की तारीख से साठ दिन के भीतर, केन्द्रीय सरकार द्वारा इस प्रयोजन के नाम-
निर्दिष्ट ऐसे अधिकारी को, जो भारत सरकार के संयुक्त सचिव की पंक्ति से नीचे का न
हो, अपील कर सकेगा :
परन्तु कोई अपील साठ दिन
की उक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात् किन्तु नब्बे दिन की कुल अवधि के अपश्चात् भी
ग्रहण की जा सकेगी यदि अपीलार्थी अपील प्राधिकारी का यह समाधान कर देता है कि उसके
पास उक्त अवधि के भीतर अपील न करने का पर्याप्त हेतुक था ।
(2) इस धारा के अधीन की
गई प्रत्येक अपील ऐसे प्ररुप और रीति में की जाएगी और उसके साथ उस आदेश की एक
प्रति, जिसके विरुद्ध अपील की गई है और ऐसी फीस संलग्न होगी, जो विहित की जाए ।
(3) किसी अपील के निपटान
की प्रक्रिया वह होगी जो विहित की जाए ।
(4) इस धारा के अधीन फाइल
की गई अपील की सुनवाई और उसका निपटान, उसके फाइल किए जाने की तारीख से नब्बे दिन
की अवधि के भीतर किया जाएगा :
परन्तु किसी अपील के
निपटान से पूर्व अपीलार्थी को सुनवाई का अवसर दिया जाएगा ।
अध्याय 4
शास्तियां
11. अधिनियम और नियमों के उल्लंघन के लिए शास्ति :
(1) जो कोई धारा 4 या उसके अधीन बनाए गए नियमों का उल्लंघन
करेगा, वह ऐसी शास्ति के संदाय का, जो पांच हजार रुपए से कम की नहीं होगी किन्तु
जो पांच लाख रुपए तक की हो सकेगी और जहां उल्लंघन जारी रहता है वहां पहले दिन के
पश्चात् उस प्रत्येक दिन के लिए, जिसके दौरान उल्लंघन जारी रहता है, पांच हजार रुपए
से अनधिक और शास्ति का दायी होगा।
(2) यदि कोई व्यक्ति, जो
किसी इलैक्ट्रानिक व्यापारिक और संव्यवहार प्लेटफार्म का स्वामी है, उसका नियंत्रण
या प्रचालन करता है, धारा 5 और धारा 7 या उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबन्धों का
उल्लंघन करेगा, वह ऐसी शास्ति के संदाय का, जो पचास हजार रुपए से अधिक की नहीं
होगी किन्तु जो दस लाख रुपए तक की हो सकेगी और जहां उल्लंघन जारी रहता है वहां
पहले दिन के पश्चात् प्रत्येक दिन के लिए जिसके दौरान उल्लंघन जारी रहता है दस
हजार रुपए से अनधिक की और शास्ति का दायी होगा।
अध्याय 5
प्रकीर्ण
12. केन्द्रीय सरकार की अनुदेश, निदेश, आदेश या मार्गदर्शक सिद्धांत जारी करने
की शक्ति
केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित
करने के लिए ऐसे अनुदेश, निदेश, आदेश, दे सकेगी या मार्गदर्शक सिद्धांत जारी कर
सकेगी जो वह, केन्द्रीय सरकार के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी या अधिकारी या किसी
राज्य सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी या अधिकारी, किसी
इलैक्ट्रानिक व्यापारिक और संव्यवहार प्लेटफार्म के लिए या किसी ऐसे व्यक्ति के
लिए जो किसी इलैक्ट्रानिक व्यापारिक और संव्यवहार प्लेटफार्म का स्वामी है या उसका
प्रचालन करता है या किसी व्यापारी या व्यापरियों के वर्ग के लिए आवश्यक समझे।
13. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण :
इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों या किए गए आदेशों
के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के सम्बन्ध में कोई
भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या
केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के किसी अधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध
नहीं होगी।
14. अध्यादेश का अध्यारोही प्रभाव होना :
इस अधिनियम के उपबंध, किसी राज्य कृषि उपज विपणन समिति या
तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के कारण प्रभावी
किसी लिखत में अन्तर्विष्ट उससे असंगत किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे।
15. सिविल न्यायालय की अधिकारिता का वर्जन :
किसी सिविल न्यायालय को, किसी ऐसे विषय की बाबत जिसका इस अधिनियम
या उसके अधीन बनाए गए नियमों द्वारा या उसके अधीन सशक्त किसी प्राधिकारी द्वारा
संज्ञान लिया जा सकता है और उसका निपटारा किया जा सकता है, कोई वाद या कार्यवाही
ग्रहण करने की अधिकारिता नहीं होगी।
16. कतिपय संव्यवहारों को अध्यादेश का लागू न होना :
इस अध्यादेश की कोई बात, प्रतिभूति संविदा (विनियमन)
अधिनियम, 1956 के और उसके अधीन मान्यताप्राप्त स्टॉक एक्सचेंज और क्लीयरिंग
कारपोरेशन और उसके अधीन किए गए संव्यवहारों को लागू नहीं होगी।
17. केन्द्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति :
(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के
उपबन्धों को कार्यान्वित करने के लिए, नियम, अधिसूचना द्वारा बना सकेगी ।
(2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले
बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबन्ध कर सकेंगे, अर्थात्
:—
(क) धारा 4 की उपधारा (2)
के अधीन अनुसूचित कृषक उपज के किसी व्यापारी के लिए इलैक्ट्रानिक रजिस्ट्रीकरण
प्रणाली और व्यापार संव्यवहार की रीतियां;
(ख) धारा 4 की उपधारा (3) के परन्तुक के
अधीन संदाय की प्रक्रिया;
(ग) धारा 8 की उपधारा 10 के अधीन उप खंड
प्राधिकारी के समक्ष याचिका या आवेदन फाइल करने और अपील प्राधिकारी के समक्ष अपील
फाइल करने की रीति और प्रक्रिया;
(घ) धारा 9 की उपधारा (2) के अधीन
संव्यवहारों की बाबत सूचना;
(ङ) धारा 10 की उपधारा (2) के अधीन अपील
फाइल करने का प्ररूप और रीति तथा संदेय फीस;
(च) धारा 10 की उपधारा (3) के अधीन किसी
अपील के निपटान की प्रक्रिया;
(छ) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाए या विहित किया जाना है
।18. नियमों का रखा जाना :
इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया
प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष,
जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में
अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त
आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई
परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही
प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं
बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभावी हो जाएगा। किन्तु नियम के ऐसे
परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर
प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
19. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति :
(1) यदि इस अधिनियम के उपबन्धों को
प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में
प्रकाशित ऐसे आदेश द्वारा, ऐसे उपबन्ध कर सकेगी जो इस अधिनियम के उपबन्धों से
असंगत न हो और जो उस कठिनाई को दूर करने के लिए उसे आवश्यक प्रतीत हो :
परन्तु इस धारा के अधीन कोई आदेश इस अधिनियम के प्रारंभ की
तारीख से तीन वर्ष की अवधि के पश्चात् नहीं किया जाएगा।
(2) इस धारा के अधीन किया
गया प्रत्येक आदेश, किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष
रखा जाएगा।
20. निरसन और व्यावृत्तियां :
(1) कृषक
उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अध्यादेश, 2020 निरसित
किया जाता है ।
(2) ऐसे निरसन के होते हुए भी उक्त अध्यादेश के
अधीन की गई कोई बात या कार्रवाई, इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबंधों के अधीन की गई
समझी जाएगी ।