राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा
फाल्गुन कृ. ९-११ युगाब्द ५११३
के अवसर पर
सरकार्यवाह श्री सुरेश (भय्या) जी जोशी द्वारा प्रस्तुत वार्षिक प्रतिवेदन (२०११-२०१२)
प. पू. सरसंघचालक जी, आदरणीय अ. भा. पदाधिकारी गण, अ. भा. कार्यकारी मंडल के सम्माननीय सदस्य, क्षेत्रों एवम् प्रांतों के मान्यवर संघचालक, कार्यवाह, अ. भा. प्रतिनिधि सभा के सदस्य गण, सामाजिक जीवन के विविध क्षेत्रों में कार्यरत समस्त निमंत्रित बंधुओं तथा बहनों, युगाब्द ५११३ तथा मार्च २०१२ में संपन्न हो रही इस अ. भा .प्रतिनिधि सभा में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
आज हम अपने अनेक बंधुओं की, जो वर्षों से हमारे मध्य रहे, उनकी अनुपस्थिति अनुभव कर रहे हैं। जिनका नाम लेते ही गोमाता का स्मरण होता है ऐसे गोरक्षा हेतु समर्पित जोधपुर प्रांत के मा. संघचालक श्री भंवरलाल जी कोठारी अपने परिवार जनों के साथ यात्रा कर लौटे ही थे कि अपने जीवन की अंतिम यात्रा पर निकल गये। दीर्घ समय तक काशी प्रांत के मा. संघचालक रहे श्री राजेंद्र जी अग्रवाल अब हमारे मध्य नहीं रहे। कर्नाटक के श्री व्यंकटेश गुरूनायक ने गुलबर्गा में वि. हि. प. के माध्यम से सेवा का प्रभावी कार्य प्रारम्भ किया, अपने प्रसन्न व्यक्तित्व से अनेक गणमान्य व्यक्तियों को कार्य से जोड़ने में वे सफल रहे, किन्तु कर्क रोग से संघर्ष करते हुए, उन्होंने भी हमसे विदा ले ली। पंजाब के ज्येष्ठ प्रचारक श्री कृष्णचंद्र जी भारद्वाज का वृद्धावस्था (९२ वर्ष) के चलते शरीर शान्त हो गया। दरभंगा विभाग के मा. संघचालक श्री नरेंद्रसिंहजी, अरूणाचल के संभाग कार्यवाह रहे,श्री रूतुम कामगो एक दुर्घटना के चलते असमय ही चल बसे। आगरा के श्री सत्यनारायण जी गोयल जो छायाचित्रों के संकलन के लिए जाने जाते थे,अपने कलाकुंज परिवार को छोड़कर हमारे मध्य से चले गये।जयपुर निवासी विद्याभारती के डा. मधुकर जी भाटवडेकर, एन. एम. ओ. के आजीवन सदस्य डा. पी. एस. माथुर जी, कपूरथला के पत्रकार,पूर्व प्रचारक श्री मदनलाल जी बिरमानी, आज हमारे मध्य में नहीं हैं। संस्कार भारती के अ.भा.कोषाध्यक्ष के रूप में दायित्व निर्वहन करने वाले श्री पूरनचंद जी अग्रवाल अकस्मात् ही हमें छोडकर चले गये।मुंबई के निवासी प्रखर चिंतक और सामाजिक विषयों पर अपने लेखनी से सबको प्रभावित करने वाले डा. अरविंद गोडबोले जी,राष्ट्रधर्म के सह संपादक और अ. भा. साहित्य परिषद के महामंत्री श्री रामनारायण जी त्रिपाठी,‘पर्यटक’, कर्क रोग के कारण असमय ही हमसे विदा हो गये। वनवासी कल्याण आश्रम के कार्य को झारखण्ड प्रांत में स्थायी रूप प्रदान करनेवाले एवं प्रांतीय उपाध्यक्ष रहे श्री नारायण जी भगत और झारखण्ड प्रांत के मंत्री रहे श्री सत्यदेव राम जी स्वर्गस्थ हो गये।नागपूर में सहकारी क्षेत्र में कार्य की नींव रखनेवाले, गुजरात में प्रचारक इस नाते कार्य किया था ऐसे श्री जमनादास जी शाह भी अब हमारे बीच नहीं है।
भारतीय जनता पार्टी में कार्यरत ज्येष्ठ प्रचारक श्री अश्विनी कुमार जी अल्प बीमारी से, चेन्नई के भा. ज. पा. के पदाधिकारी श्री सुकुमारन नंबियार जी,तथा जाने-माने अध्ययनशील व्यक्तित्व के धनी श्री अनिल गुप्ता जी असमय ही अपनी यात्रा समाप्त कर गये। भा. ज. पा. के उत्कल प्रदेश के अध्यक्ष रहे ऐसे श्री असीत बसु जी का भी देहान्त हो गया। कर्नाटक प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री श्री वी. एस. आचार्य जी का तीव्र हृदयाघात से अकस्मात् निधन हुआ।
१९६२ में बांगलादेश से आये हिन्दू शरणार्थियों की सेवाकार्य में जिनकी प्रमुख भूमिका थी ऐसे भारत सेवाश्रम संघ के उपाध्यक्ष स्वामी अभयानन्द जी महाराज, विदर्भ के आध्यात्मिक संत पूज्य पंडीतकाका धनागरे भी नहीं रहे।कर्नाटक के पूर्व मुख्यमन्त्री श्री एस. बंगरप्पा और महाराष्ट्र के राजनैतिक क्षेत्र में प्रदीर्घ समय तक सक्रिय रहे ऐसे संभाजीनगर के श्री बापूसाहेब कालदाते भी अब हमारे मध्य में नहीं हैं।ऐसे ही संगीत एवं गायन के क्षेत्र में जिन्होंने अपनी साधना से केवल असम ही नहीं बल्कि सारे देश को प्रभावित किया ऐसे पद्मविभूषण मा. भूपेन्द्र जी हजारिका और वर्षों तक सिने सृष्टि में छाये रहे ऐसे श्री देवानंद जी अपनी कला साधना के लिए देशवासियों की स्मृति में बने रहेंगे। अणुउर्जा आयोग के अध्यक्ष रहे श्री पी. के. अयंगार, प्रसिद्ध उद्योगपति एवं सामाजिक कार्यों में रूचि रखनेवाले श्री अरविन्द जी मफतलाल,प्रसिद्ध नृत्य निर्देशक सुबल सरकार, प्रख्यात लेखिका, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित श्रीमती इंदिरा गोस्वामी, रंगकर्मी पद्मभूषण श्री सत्यदेव दुबे, प्रथम महिला फोटो पत्रकार पद्मविभूषण होमाई व्यारावाला, वैष्णव गीतों के लिये गुजराती साहित्य जगत में ‘उशनस’ नाम से प्रख्यात श्री नटवरलाल पंड्या,श्रेष्ठ भारतीय फुटबॉल खिलाडी, कोलकाता के मोहनबागान क्लब के संस्थापक सदस्य श्री शैलेन मन्ना का पार्थिव शरीर भी नहीं रहा, किन्तु वे अपनी विज्ञान, उद्योग,कला-साहित्य एवं खेल के लिए देशवासियों के स्मृति में सदा बने रहेंगे।
प्राकृतिक आपदाओं, आतंकवाद, नक्सलवाद आदि में हिंसात्मक कार्यवाही के चलते परलोक गमन कर गए ऐसे सभी बंधुओं के परिवार के प्रति हम संवेदाना व्यक्त करते हैं और दिवंगत महानुभावों को हम श्रद्धांजलि अर्पण करते हैं।
प्रतिवर्षानुसार देशभर में गत वर्ष हम सबके प्रयासों से सम्पन्न हुए सभी संघ शिक्षा वर्ग अपने कार्यवृद्धि एवं गुणात्मकता की दृष्टि से उपयोगी सिद्ध हुए।गत वर्ष २०११ में देश में कुल ६९ वर्ग संपन्न हुए।प्रथम वर्ष के वर्ग प्रांत की योजना से एवं द्वितीय वर्ष के वर्ग क्षेत्रशः संपन्न हुए। २०११ के नवम्बर - दिसम्बर में तृतीय वर्ष के विशेष वर्ग का भी आयोजन नागपूर में किया गया था।
प्रथम वर्ष में ७३२२ स्थानों से ११५०७ शिक्षार्थी तथा द्वितीय वर्ष में २१०२ स्थानों से २७८१ शिक्षार्थी उपस्थित रहे। तृतीय वर्ष सामान्य वर्ग में ६७५ स्थानों से ७३२ शिक्षार्थी उपस्थित रहे। तृतीय वर्ष विशेष में संपूर्ण देश से ४७४ शिक्षार्थी उपस्थित थे। विशेष वर्ग में सम्मिलित हुए शिक्षार्थी दायित्व और अनुभव की दृष्टि से समृद्ध थे। अतः वर्ग का वातावरण बहुत ही अच्छा रहा। सभी ने वर्ग को सफलतापूर्वक पूर्ण किया।
तृतीय वर्ष सामान्य वर्ग के समापन समारोह में कांची कामकोटी पीठाधीश पूज्यश्री जयेंद्र सरस्वति महाराज का विशेष रूप से आशीर्वचन प्राप्त हुआ। इसी अवसर पर विजयवाडा के आदरणीय श्री गंगराजुजी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इस प्रकट कार्यक्रम में प. पू. सरसंघचालक जी का उद्बोधन हुआ। जयपुर निवासी क्षत्रिय युवा संघ के अ. भा. प्रमुख आदरणीय भगवानसिंह जी ने भी वर्ग में ३ दिन रहकर वर्ग का अवलोकन किया।
उपलब्ध जानकारी के अनुसार वर्तमान में देश में २७९७८ स्थानों पर ४०८९१ शाखाएं चल रही हैं। ८५०८ स्थानों पर साप्ताहिक मिलन तथा ६४४५ स्थानों पर संघ मंडली के रूप में कार्य चल रहा है।
२०११ के मार्च में पुत्तूर में संपन्न अ. भा. प्रतिनिधी सभा में कुछ बिंदुओं को ध्यान में रखकर गुणात्मक समीक्षा के दृष्टि से निवेदन किया गया था।परिणामतः प्रांत-प्रांत में सभी स्तर पर गुणात्मक वृद्धि एवं समीक्षा की प्रक्रिया प्रारंभ हुई है।
प. पू. सरसंघचालक जी का प्रवास
प. पू. सरसंघचालकजी का प्रवास इस वर्ष १९ प्रांन्तों में हुआ है। प्रवास में मुख्यतः जिला तथा मंडल कार्यकर्ताओं का वर्ग एवं समन्वय बैठक की योजना प्रांत द्वारा हुई थी। अरुणाचल प्रदेश में मा. मोहनराव भागवत जी का प. पू. सरसंघचालक इस नाते प्रथम बार प्रवास सोत्साह संपन्न हुआ। अलवर (राजस्थान) में संपन्न शारीरिक प्रदर्शन कार्यक्रम विशेष उल्लेखनीय है।कार्यक्रम में सहभागी स्वयंसेवकों ने निरंतर २२ मिनिट शारीरिक प्रदर्शन कार्यक्रम प्रस्तुत कर अपनी क्षमता का परिचय दिया। प. पू. सरसंघचालक जी का गुवाहाटी, जम्मू,भोपाल, हरीगढ़ (अलीगढ़), बिलासपुर (हिमाचल) और मुंबई शहरों में विशेष निमंत्रित व्यक्तियों के साथ हुए वार्तालाप के कार्यक्रम, कोच्ची में गुरुपूजन उत्सव, भाग्यनगर में MMRI के कार्यक्रम में एवं नागपुर में व्याख्यान उल्लेखनीय रहे।
वडोदरा में संपन्न अ. भा. शारीरिक वर्ग में २२७ कार्यकर्ता सम्मिलित हुए।इस प्रकार का वर्ग चार वर्ष के बाद होता है। वर्ग में पू. सरसंघचालक जी, मा. सरकार्यवाह जी, मा. सह सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।
इस वर्ष पूर्व आन्ध्र प्रांत में ‘जयभेरी’, छत्तीसग़ढ़ प्रांत में ‘नादसंगम’, देवगिरी प्रांत में ‘राष्ट्र चेतना’ नाम से घोष शिविरों का आयोजन किया गया। शिविर की पूर्व तैयारी के नाते स्थान-स्थान पर अच्छे प्रयास हुए।पूर्व आन्ध्र के घोष शिविर में २७ जिलों से ५७० वादक, छत्तीसगढ़ में २५ जिलों के ७० स्थानों से ५५८ वादक और देवगिरी प्रांत में १५ जिलों के ५९ स्थानों से ३५१ वादक उपस्थित रहे। परिणामतः इन प्रान्तों में विभिन्न स्थानों पर अच्छे घोष दल बन गए है।
संघ शिक्षा वर्ग के पश्चात् प्रांत बौद्धिक प्रमुखों की अखिल भारतीय बैठक और प्रशिक्षण के साथ-साथ बौद्धिक वक्ता कार्यशाला भी सम्पन्न हुई। इसी प्रकार सभी प्रान्तों में प्रान्त बैठकें व बौद्धिक प्रशिक्षण वर्ग हुए।
-दिसम्बर मास में भाग्यनगर में तृतीय वर्ष वर्ग (२००९-२०१०) के चयनित कार्यकर्ताओं का विशेष बौद्धिक प्रशिक्षण वर्ग हुआ। जिसमें भोगवादी जीवनशैली के दुष्परिणाम, ग्राम विकास, समाज में महिलाओं का स्थान, पर्यावरण असंतुलन और स्वामी विवेकानन्द जी की दृष्टि में राष्ट्रीय पुनरुत्थान सहित ११ महत्वपूर्ण विषयों पर ३८ कार्यकर्ताओं के द्वारा विषयों की प्रस्तुति हुई। नई पीढ़ी के कार्यकर्ताओं के विकास की दृष्टि से यह अच्छी उपलब्धि है।
प्रचार विभाग द्वारा २०११-१२ में विभिन्न प्रशिक्षण वर्गों का आयोजन किया गया।जिस में समूह चर्चा (Panel Discussion), पत्रकार वार्ता (Press Conference), जैसे विषयों पर प्रायोगिक प्रशिक्षण, तज्ञों की उपस्थिति में किया गया।
जागरण पत्रिका, विश्व संवाद केंद्र, प्रकाशन विभाग, नियतकालिक पत्रिका आदि कार्यों के संचालन करनेवाले प्रमुख बंधुओं की भी अलग-अलग बैठकें हुईं।
सेवा विभाग द्वारा राष्ट्रीय सेवा भारती के सहयोग से १० स्थानों पर ‘सेवा संगम’ का आयोजन किया गया। देशभर में संपन्न इस प्रकार के कार्यक्रमों में १७ प्रांतों से ७०६ संस्थाओं के प्रतिनिधि उपस्थित रहे।जिनमें ४८० महिलाओं सहित ३१५३ प्रतिनिधि सहभागी हुए। इन कार्यक्रमों में पूज्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी, पूज्य स्वामी सत्यमित्रानंद जी, पूज्य स्वामी कैलाशानंद जी आदि संतों का आशिर्वचन एवं अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। उत्साह, प्रेरणा, आत्मविश्वास की वृद्धि की दृष्टि से यह सभी कार्यक्रम सफल रहे।इस प्रकार के सामूहिक चिंतन, अनुभवों का आदान-प्रदान निरंतर चलता रहे यही भाव ‘सेवा संगम’ के कार्यक्रमों से ध्यान में आया है।
विश्वमंगल गो-ग्राम यात्रा का सुप्रभाव एवं स्वयंसेवकों की ग्राम विकास में सक्रियता के कारण लगभग २०० ग्राम प्रभात ग्राम हुए हैं। कुछ प्रांतों में उपक्रमशील शाखाओं के कारण ग्रामों में सामाजिक परिवर्तन का कार्य हो रहा है।अधिकांश प्रांतों में गोवंश संरक्षण एवं जैविक कृषि का अभियान जैसा चल रहा है। ‘कल्पतरु’ पतरातु (झारखण्ड), मोहद (मध्यप्रदेश), इडकादू (कर्नाटक),कठाडा (गुजरात) जैसे ग्रामों में ग्राम स्वावलंबन के प्रयोग उल्लेखनीय है।नवम्बर २०११ को मोहद में हुई बैठक में देशभर से ७५ कार्यकर्ता उपस्थित रहे ।इस बैठक में ग्रामों में मातृशक्ति, शिशु-बाल-युवा शक्ति एवं सज्जनशक्ति के सामुहिक प्रयत्न से कार्य आगे बढ़े, ऐसा चिंतन हुआ।
दक्षिण तमिलनाडु प्रान्त का विशाल एकत्रीकरण कन्याकुमारी में आयोजित किया गया। स्वामी विवेकानन्द के सार्धशती समारोह के उद्घाटन के रूप में आयोजित इस एकत्रीकरण में पूरे प्रांत से १५९०६ पूर्ण गणवेशधारीं तरूणों की उपस्थिति, प्रान्त में कार्यवृद्धि को दर्शाती है।५२००० नागरिक इस समारोह में उपस्थित रहे। प. पू. सरसंघचालक जी का उद्बोधन हुआ। यह विशाल एकत्रीकरण निश्चित ही प्रान्त के कार्यकर्ताओं के परिश्रम का तथा संघकार्य की स्वीकार्यता का परिचय देता है।
कर्नाटक उत्तर का हिन्दुशक्ति संगम, महाशिविर
गत दो वर्षो से २७ से २९ जनवरी २०१२ को सम्पन्न इस महाशिविर की व्यापक तैयारियां चल रही थी।इस शिविर में १९८२ स्थानों से २१७६३ संख्या उपस्थित रही।
१९८१ में संयुक्त कर्नाटक प्रान्त का महाशिविर संपन्न हुआ था। उस शिविर में २१००० संख्या रही थी।इतने वर्षों में काफी कार्यवृद्धि हुई है।जनसामान्य का सहयोग अच्छा रहा।लगभग १५% शिविरार्थी पहली बार संघ के किसी कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। अनुशासन, शारीरिक प्रदर्शन एवं व्यवस्थायें बहुत ही अच्छी रही।समस्त प्रसार माध्यमों का सहयोग भी संतोषजनक रहा। यह शिविर कर्नाटक उत्तर प्रान्त के संघकार्य में वृद्धि लानेवाला सिद्ध होगा।
शिविर में ५५% मंडलों का प्रतिनिधित्व व ६६ केन्द्रों से १६१६ घोष वादकों की उपस्थिति उल्लेखनीय है।शिविर में देश, संस्कृति एवं संघ से संबंधित‘युगदृष्टि’ नामक प्रदर्शनी लगायी गई। ३ दिनों में १ लाख से अधिक नागरिकों ने शिविर का अवलोकन किया।
अंतिम दिन ३ प्रकार की गोष्ठियों का आयोजन किया गया। इन गोष्ठियों में १७६ पूज्य संत, १५०० गणमान्य नागरिक और ३५०० महिलायें उपस्थित रहीं। समापन कार्यक्रम में ४७००० नागरिक उपस्थित थे।
कुछ वर्षों के अन्तराल से इस वर्ष सम्पूर्ण प्रान्त में जिलाशः शिविरों का आयोजन किया गया। प्रांत में संपन्न कुल २१ शिविरों में १६३३ स्थानों से १४८९० स्वयंसेवकों ने भाग लिया। एक शिविर में तो ४५५ महाविद्यालयीन छात्र सहभागी हुए, जिसमें ४५ छात्र एक ही महाविद्यालय से आये थे।
इसी प्रांत में धर्म जागरण समन्वय विभाग द्वारा एक वर्ष पूर्व गोंड जनजाति के २०० प्रमुख व्यक्तियों की बैठक कर गोंड जनजाति की विभिन्न समस्याओं पर चर्चा हुई थी।उसी में विशाल हिन्दू सम्मेलन आयोजित करना निश्चित किया गया। ४० विभिन्न स्थानों पर ५२ सामाजिक बैठकों का आयोजन किया गया।कार्यक्रम की सिद्धता हेतु ७० कार्यकर्ताओं ने ३०० ग्रामों में सम्पर्क किया।
इस सम्मेलन में ८००० पुरूष एवं ३००० महिलाओं की उपस्थिति रही।विशेषतः साधु-सन्तों ने भी भाग लेकर इस कार्यक्रम की गरिमा बढ़ायी।हरिद्वार से स्वामी चिन्मयानन्द जी एवं श्री श्री विद्यारण्य भारती जी के पावन सान्निध्य में यह कार्यक्रम संपन्न हुआ।
शाखा दृढ़ीकरण की दृष्टि से ‘दृढ़िकरण सप्ताह’ संपन्न हुआ। १५१ स्थानों की २४३ शाखाओं पर विशेष प्रयास हुआ।परिणाम स्वरूप ११४ शाखाएं बढ़ी है।अनुवर्ती प्रयास की दृष्टि से शाखा दर्शन की भी योजना बनायी गयी, परिणाम अच्छे हैं। गत कुछ वर्षों में ‘पुण्यभूमि भारत’, ‘प्रार्थना अभ्यास’, ‘सूर्यनमस्कार’ ऐसे विषयों को लेकर विशेष उपक्रम किये गये थे। इस वर्ष जलसमस्या को ध्यान में रखकर ‘जल साक्षरता सप्ताह’ की योजना बनायी गई।
१ से ८ जनवरी २०१२ के मध्य १७७ ग्रामीण एवं १२० नगरीय स्थानों पर कार्यक्रम सम्पन्न हुए। जलबचत, शुद्ध पेयजल आदि विषयों पर चर्चा,चिपकियां (Sticker) लगाना ऐसे कार्यक्रम हुए। २५६९२ घरों में संपर्क किया गया।क्रियान्वयन में ग्रामीण क्षेत्र की शाखाओं का सहभाग अच्छा रहा।
‘‘सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा अधिनियम’’ विषय को लेकर प्रांत के ३८ जिलों में ५८ स्थानों पर सामाजिक सद्भाव बैठकों का आयोजन किया गया। इसमें लगभग ४१०० विशेष व्यक्तियों की उपस्थिति प्रेरक रही। युवकों की उपस्थिति भी विशेष उल्लेखनीय है। ४० विभिन्न पंथ-संप्रदायों के पू. संतों की उपस्थिति उत्साहवर्धक थी। प्रान्त में इस विषय को लेकर १,५०,००० गुजराती तथा ५००० अंग्रेजी पुस्तिकाओं का विवरण किया गया। विभिन्न बिरादरियों के दीपावली स्नेहमिलन के अवसर पर इस विषय को सबके सम्मुख रखा गया।
हरियाली अमावस्या पर ६५७ स्थानों पर १८१२४ पौधे लगाये गये। ३८२ स्थानों पर ‘अखण्ड भारत संकल्प दिवस’ के कार्यक्रम संपन्न हुए,जिसमें ३३८२८ महाविद्यालयीन विद्यार्थियों ने भाग लिया।प्रांत में चयनित बाल स्वयंसेवकों का शिविर संपन्न हुआ, जिसमें २३८ शाखाओं से ३३८८ बाल स्वयंसेवक सहभागी हुए। धर्मजागरण समन्वय विभाग के तत्वावधान में बडवानी जिले में निकाली गई जागरण यात्रा ने १० दिन में ७५० ग्रामों में सम्पर्क करते हुए, जनसभाओं का आयोजन किया, जिनमें बड़ी संख्या में वनवासी बन्धु-भगिनी सम्मिलित हुए। अंत में बडवानी जिले की ३ तहसीलों में ‘इन्दल राजा की पूजा’ जो वनवासी अंचल में प्रचलित है, उसे सामुहिक रूप से सम्पन्न किया गया।इसमें ३५००० से अधिक वनवासी बन्धु-भगिनी सम्मिलित हुए और सामुहिक रूप से धर्म और संस्कृति रक्षा का संकल्प लिया।
मध्य भारत सर्वाधिक शाखाओं के जिला राजगढ़ में पहली बार प. पू. सरसंघचालक जी के आगमन को निमित्त बनाकर जिले के कार्यकर्ताओं का सम्मेलन तथा हिन्दु समागम का आयोजन किया गया।
सम्मेलन में १०२० ग्रामों से १०२१५ कार्यकर्ता निर्धारित वेश में उपस्थित रहे तथा हिन्दु समागम में ९०० माताओं सहित ९६०० नागरिकों ने सहभागिता की।
दूसरी ओर सबसे कम शाखाओं वाले जिलों में से एक शिवपुरी में १५ जनवरी २०१२ को आयोजित पथसंचलन अभूतपूर्व रहा। शक्ति जागरण हेतु क्रमबद्ध कार्यक्रमों की योजना बनायी गई।प्रमुख कार्यकर्ताओं की एक बैठक आयोजित की गई, जिसमें १००० कार्यकर्ता उपस्थित रहे,पश्चात् जिले भर में १६८ बैठकें आयोजित की गई। ८० कार्यकर्ताओं ने विस्तारक के रूप में समय दिया। २० छात्रावासों, १८ महाविद्यालयों तथा अन्य निजी शिक्षा मार्गदर्शक केन्द्रों से संपर्क किया गया। जिले के ७४९ ग्रामों में से ३५० ग्रामों से कुल ५८०० स्वयंसेवकों ने संचलन में भाग लिया। लगभग १०० परिवारों में से ३ पीढियां एक साथ संचलन में सम्मिलित हुई। इसमें सह सरकार्यवाह मा. सुरेश सोनी जी का उद्बोधन हुआ।
सेवा भारती व सक्षम के सहयोग से प्रान्त के सुदूर वनांचल क्षेत्रों में विशेषतः महिलाओं, बच्चों व विकलांगो हेतु स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन किया गया।प्रान्त के डिंडौरी, शहडोल, दमोह तथा मण्डला जिले में ऐसे शिविर आयोजित किये गये।
जबलपुर महानगर की सेवा बस्तियों का भी समावेश इस योजना में रहा ६०४ कार्यकर्ताओं के द्वारा २८३ चिकित्सकों की सेवायें उपलब्ध कराते हुए, २२६२१ नागरिकों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया। शिविरार्थियों को भगवान राम का चित्र तथा मॉं नर्मदा जी का लाकेट भेंट स्वरूप प्रदान किया गया।अनुवर्तन की योजना भी बनायी जा रही है। जबलपुर महानगर सेवा विभाग के द्वारा पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से शाखाओं के माध्यम से वृक्षारोपण की योजना बनायी गयी। जिसमें ५५०० वृक्ष लगाये गये।
पंजाब प्रान्त में शाखा दर्शन एवं महाविद्यालयीन छात्रों का शिविर विशेष उल्लेखनीय कार्यक्रम रहे। निर्धारित अवधि में १४२ अनुभवी कार्यकर्ताओं द्वारा ४२३ शाखाओं पर प्रवास हुआ। परिणामतः सर्दियों में शाखा बन्द होने का प्रमाण कम रहा।
महाविद्यालयीन छात्रों के कार्य में वृद्धि हो इस दृष्टि से नवम्बर २०११ में शिविर आयोजित किया गया था।शिविर में २०० महाविद्यालयों तथा ३ विश्वविद्यालयों से सहभागिता रही। ३ कुलपति, ८ वरिष्ठ प्राध्यापक तथा ३० अध्यापकों की शिविर मे उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय हैं। १८० नये छात्र प्रथम बार संघ के कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। अनुवर्तन की योजना भी बनी है।
मेरठ प्रांत में कार्यवृद्धि की विशेष योजना के अंतर्गत महाविद्यालयीन कार्य की ओर विशेष ध्यान दिया गया। गत वर्ष के अनुसार इस वर्ष भी महाविद्यालयीन छात्रों के शिविर विभागशः सम्पन्न हुए। जिसमें ७८६ स्थानों से २९१० छात्र उपस्थित रहे, जिसमें १५८६ छात्र पहली बार संघ के किसी कार्यक्रम में आये। शिविरों में गत वर्ष की तुलना में ७०० छात्र अधिक रहे।
दक्षिण बंग के समुद्री सीमावर्ती जिले गंगासागर एवं सुंदरवन (द. २४ परगना) प्राकृतिक आपदा तथा सांप्रदायिक तनाव से ग्रस्त रहते हैं।अतः सुंदरवन जिले में कार्यवृद्धि हेतु विशेष प्रयास हुआ।प. पू. सरसंघचालक जी के प्रवास को निमित्त बनाकर किये गये प्रयासों के कारण शाखाओं की संख्या ५६ से बढ़कर १२४ तक पहुंच गयी। प. पू. सरसंघचालक जी के कार्यक्रम में पूर्णगणवेश में १८०० स्वयंसेवक और ८००० नागरिक उपस्थित हुए। ५०० स्वयंसेवकों द्वारा सामुहिक शारीरिक कार्यक्रमों का प्रदर्शन किया गया।
दिनांक १८ अक्तूबर २०११ को आये विनाशकारी भूकंप ने उत्तर सिक्किम के लोगों का जनजीवन बुरी तरह अस्तव्यस्त कर दिया। स्वयंसेवकों ने तुरंत ही उपलब्ध साधनों से राहत कार्य प्रारंभ कर दिये। भूकंप पीडित सहायता समिति के नाम से पीडितों को लोगों को त्रिपाल, कम्बल,बर्तन, भोजन सामग्री, दवाईयॉं व अन्य जीवनोपयोगी वस्तुओं का वितरण किया गया। स्थायी सेवा कार्य के लिये ‘कांचनजंगा सेवा ट्रस्ट-सिक्किम’ के नाम से छात्रावास और अन्य सेवा प्रकल्पों की योजना बनाई जा रही है।
सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विरोधी अधिनियम २०११ को लेकर देशभर में प्रबुद्ध नागरिक तथा विभिन्न सामाजिक, धार्मिक समूहों में जागरण की दृष्टि से कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। विशेषतः संपर्क विभाग, वि. हि. परिषद ने इस अधिनियम के विरोध में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन करते हुए‘कॉंग्रेस’ की विभाजनकारी, संविधान विरोधी और विशेषतः हिंदू विरोधी मानसिकता को उजागर किया।उपलब्ध जानकारी के अनुसार देशभर में विभिन्न स्थानोंपर ३११७ कार्यक्रम संपन्न हुए, जिसमें १३६५२ महिलाओं सहित १,५४,३५८ नागरिक सम्मिलित हुए।
भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन
सुयोग्य लोकपाल की निर्मिती एवं विदेशस्थ बैंकों में जमा कालाधन वापस लाया जाय इन विषयों को लेकर गत वर्ष विभिन्न जन आंदोलन देश में चले।आंदोलनों में जनसामान्य की सहभागिता अभूतपूर्व रही। इसमें संघ के स्वयंसेवक भी अपनी सजग नागरिक भूमिका निभाते हुए व्यापक प्रमाण में सक्रियता से सहभागी रहे। स्वार्थपरक राजनीति के चलते आंदोलनों में ‘संघ’की सहभागिता को लेकर अनावश्यक चर्चा भी चलायी गईं। समस्या निवारण के संदर्भ में प्रभावी कदम उठाये जाने के बजाय जनसामान्य का ध्यान हटाने का ही यह प्रयास था।
सत्ता की शक्ति का दुरुपयोग करते हुए आंदोलन को निर्ममता से कुचलने का निंदनीय प्रयास किया गया।
वास्तव में सभी राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक नेतृत्व ने व्यवस्था परिवर्तन पर चिंतन करते हुए प्रभावी उपाय-योजना करने की आवश्यकता है। इसीसे समस्या निवारण की दिशा में कुछ परिणाम दिखाई देंगे।
साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विरोध अधिनियम २०११
इस अधिनियम को लेकर पहले दिन से ही सभी स्तरों पर सर्वदूर विवाद खडा हो गया। समानांतर सत्ता जैसी भूमिका निभानेवाली राष्ट्रीय सलाहाकार परिषद न तो समाज का सही प्रतिनिधित्व करती है न तो उसके द्वारा प्रस्तावित अधिनियम का प्रारूप देशहित में है। प्रारूप की शब्दावली, रखे गये सुझाव राजनीति से प्रेरित एवं हिन्दूविरोधी मानसिकता को ही प्रगट करते हैं।
‘समूह (Group)’ की रचना का सुझाव तो देश के संविधान में व्यक्त‘एकजन’ इस भावना को ही छेद देने वाला है। ‘अल्पसंख्य-बहुसंख्य’शब्द प्रयोग देशवासियों में विभाजन करता है। किसी भी हिंसात्मक या दुराचार के लिये बहुसंख्यक हिंदू वर्ग को ही दोषी माना जायेगा या अल्पसंख्य और बहुसंख्य के आधारपर समान अपराध के लिये भिन्न प्रकार का दंड सुझानेवाला यह प्रस्ताव सर्वथा अनुचित और गैरकानूनी हैं। अनुसूचित जाति/जनजातियों को ‘समुह’ का हिस्सा मानकर हिन्दू समाज से अलग करने का कुटिल षडयंत्र इस प्रस्तावित प्रारूप में प्रगट होता है। इसके अंतर्गत ‘राष्ट्रीय प्राधिकरण (National Authority)’ का प्रस्तावित प्रावधान तो संघीय व्यवस्था के तहत राज्यसरकारों के संविधान प्रदत्त अधिकारों का हनन करनेवाला ही सिद्ध होगा। सभी स्तरों पर और समाज के सभी वर्गों,विभिन्न राजनैतिक दलों, धार्मिक,सांप्रदायिक तथा सामाजिक नेतृत्व द्वारा से जडमूल से नकारना अत्यंत आवश्यक है।
धर्म-संप्रदाय आधारित आरक्षण का विरोध
सच्चर कमेटी के सुझावों को स्वीकार करते हुए अन्य पिछडी जाति (OBC)के लिये दिया गया २७% आरक्षण में से ही ४.५% आरक्षण मुस्लिम समाज को देने का केन्द्र सरकार का निर्णय आरक्षण व्यवस्था देने की पृष्ठभूमि के विरोधी है। मुस्लिम समाज की पिछडी जातियों को आरक्षण का प्रावधान तो पहले से ही है। अलग से ४.५% आरक्षण मुस्लिम तुष्टिकरण और ‘व्होट बैंक’सुरक्षित करने की दृष्टि से किया गया प्रावधान है। संप्रदाय आधारित आरक्षण न संविधान सम्मत है न ही देशहित का है। यह पिछडी जातियों के लिये प्राप्त होने वाली सुविधाओं को छीनता है। दूसरी ओर अहिन्दू शिक्षा संस्थानों जो शासकीय अनुदान से संचालित होते है, में अनुसूचित जाति/जनजाति हेतु किया गया आरक्षण का प्रावधान समाप्त कर दिया गया है, जो सर्वथा अनुचित है। इससे अप्रत्यक्ष रूप से मतांतरण को बढावा मिलेगा। देश से मतांतरण, जनसंख्या असंतुलन जैसे खतरे पहले से ही दिखाई देते है। अतः जनजागरण के द्वारा जनमत संगठित करते हुए ‘सत्ता’ पर दबाव निर्माण करके उठाये जा रहे इस प्रकार के हिन्दू समाज विरोधी कदमों का विरोध करने की आवश्यकता है।
प्रतिरक्षा से संबंधित व्यक्तियों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाने की घटनायें और इस विषय में प्रसार माध्यमों द्वारा चलायी जा रही चर्चा जनसामान्य के मन में असमंजस की स्थिति निर्माण करती है। इससे प्रतिरक्षा तंत्र के प्रति श्रद्धा, विश्वास को नुकसान तो होगा ही तंत्र की नैतिक शक्ति पर भी आघात होगा। प्रतिरक्षा तंत्र और वैज्ञानिक किसी प्रकार की राजनीति के शिकार बनने में देश का अहित ही है।निष्पक्ष रूप से निर्णय अवश्य हो लेकिन अनावश्यक संभ्रम की स्थिति बने यह अनुचित होगा।
स्वामी विवेकानंद सार्धशती समारोह
अगले वर्ष देश स्वामी विवेकानंद की सार्ध शती (१५० वां जन्मवर्ष) मनाने जा रहा है। स्वामीजी का जीवन समस्त देशवासियों को तेजस्वी जीवन का संदेश देता है। प्रखर हिन्दुत्व, अपनी मातृभूमि के प्रति अनन्य श्रद्धा, समाज के प्रति अपना मनोभाव एवं कर्तव्य की प्रबल प्रेरणा प्रदान करता है। गत शताब्दी में उनके द्वारा प्रस्तुत किये विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक है।
अपने संघकार्य का स्वरूप तो स्वामी विवेकानंद द्वारा समय-समय पर प्रगट किये गये विचारों का व्यावहारिक प्रगटीकरण है।
वे कहते हैं ‘भारत की राष्ट्रीय एकात्मता याने बिखरी हुई आध्यात्मिक शक्ति का एकत्रीकरण। एकही आध्यात्मिक स्वर जिनके हृदय में झंकृत होते हैं ऐसे लोगों का संघटित समाज याने भारत राष्ट्र है।’ आगे वे कहते हैं कि, ‘स्वयं के प्रति श्रद्धा का पुनर्जागरण होने से ही अपने राष्ट्र के सामने जो प्रश्न है उसका क्रम से निवारण हो सकता है। आज अगर किसी बात की आवश्यकता है तो इस श्रद्धा की’। यह समाज बलसंपन्न बनें, शौर्ययुक्त बनें।सामर्थ्य यही आज की आवश्यकता है। सामर्थ्य यही जीवन है। व्यक्ति को कार्यप्रवण कौन करता है ? सामर्थ्य ही कार्यप्रवण करता है।’’
हिन्दु समाज में सामर्थ्य निर्माण करना यही अपने कार्य का स्वरूप है। प. पू. श्री गुरूजी ने कहा है कि, ‘अपने कोटि-कोटि के समाज को हम एक दिव्य मिश्रण से अनुप्राणित कर, उसके हृदय में एक शुद्ध भावना जगाएं और सबकी शक्ति का सामंजस्य से उपयोग करने वाला अनुशासन उसमें निर्माण करें तो अभेद्य, अजेय, नित्य विजयशाली सामर्थ्य हम खड़ा कर सकेंगे, इसमें कोई संदेह नही। अपनी दिन प्रतिदिन की शाखा कार्यपद्धति में ऐसे सामंजस्ययुक्त प्रचंड सामर्थ्य का अविष्कार करने का अपना संकल्प है।’
नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अ.भा. प्रतिनिधि सभा का आवाहन-
जल संरक्षण-संवर्द्धन की उचित नीति बनाए सरकार
गत 16-18 मार्च को नागपुर में सम्पन्न रा.स्व.संघ की अ.भा. प्रतिनिधि सभा में सरकार्यवाह श्री सुरेश राव उपाख्य भैयाजी जोशी के प्रतिवेदन और संघ व विविध क्षेत्र के वृत्त निवेदन के पश्चात रा.स्व.संघ के संविधान के अनुसार यह चुनाव वर्ष होने के कारण सरकार्यवाह का निर्वाचन होना था, तद्नुसार सह सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी ने चुनाव प्रक्रिया आरम्भ की और उत्तर क्षेत्र के संघचालक डाॅ. बजरंग लाल गुप्त ने श्री भैया जी के कार्यकाल को प्रेरक व उत्साहवर्धक बताते हुए पुनः सरकार्यवाह के रूप में उन्हीं का नाम प्रस्तावित किया। इस बीच अपेक्षित समयावधि में दूसरा कोई नाम प्रस्तावित न होने पर श्री भैयाजी जोशी को पुनः तीन वर्ष के लिए रा.स्व.संघ के सरकार्यवाह के रूप में निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया। श्री भैयाजी जोशी ने अपने निर्वाचन के लिए सभी का आभार व्यक्त करते हुए बड़े भावपूर्ण शब्दों में कहा कि- ‘‘आप सबके सहयोग से ही सरकार्यवाह अपेक्षित दायित्वों को पूरा करने के लिए प्रयत्नशील रहूँगा। ज्येष्ठ बंधुओं से निवेदन है कि वे समय-समय पर मुझे कुछ बातों की ओर इंगित करने का दायित्व निभाएं ताकि समुचित ढंग से मैं अपने दायित्व का निर्वहन कर सकूं। सभी कार्यकर्ता भी निस्संकोच यह करें। मुझे इससे बल मिलेगा।’’ प्रतिनिधि सभा के अन्तिम सत्र में श्री भैयाजी ने नई अ.भा. कार्यकारिणी की घोषणा की, जिसमें इस बार दो नये सह सरकार्यवाह डा. कृष्णगोपाल (असम क्षेत्र प्रचारक) व श्री के.सी. कृष्णन (अ.भा. शारीरिक प्रमुख) बनाए गए। प्रतिनिधि सभा के समापन पर अपने अपने उद्बोधन में सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने आवाहन किया कि विश्व के समक्ष गहरा रहे चतुर्दिक संकटों के दौर में हिन्दू समाज सामथ्र्यवान बनकर स्वयं को तो उबारे ही, वह विश्व को उबारने के लिए भी सिद्ध हो। दुनिया का सुख-शांति के साथ जीना तभी संभव है जब हिन्दू राष्ट्र भारत अपने स्वाभिमान के साथ खड़ा हो। इसके लिए समर्पित संघ के हम सब कार्यकर्ता वर्तमान चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को मात देने वाला अपना संगठन और मजबूत व व्यापक बनाएं।
प्रतिनिधि सभा ने दो महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किए। पहले प्रस्ताव में समाज को बांटने वाली तुष्टीकरण राजनीति और सांप्रदायिक तथा लक्षित हिंसा (रोकथाम) विधेयक के जरिए समाज को बांटने की सोच पर लगाम लगाने का आवाहन किया गया। दूसरे प्रस्ताव में सरकार की ‘राष्ट्रीय जल नीति-2012’ के प्रारूप में आवश्यक सुधार के साथ ही जल को सबके लिए शुद्ध रूप में सुलभ कराने की मांग की गई। यहां हम दोनों प्रस्तावों का मूल पाठ प्रकाशित कर रहे हैं। सं.
प्रस्ताव-1
समाज की एकता और एकात्मता को सर्वोपरि रखंे
भारत में आज भूमि अधिकार, राजनैतिक अधिकार, बाँध तथा नदी-जल का बँटवारा, एक राज्य से दूसरे राज्य में लोगों का स्थानांतर, जाति, जनजाति और संप्रदाय के आधार पर विभिन्न गुटों में हो रहे संघर्ष इत्यादि विविध विषयों पर जन अभियान खड़े होते हुए दिखाई दे रहे हैं। इन अभियानों में कुछ निहित स्वार्थी तत्वों के .त्यों के कारण समाज के विभिन्न घटकों में जो वैमनस्य बढ़ रहा है उस पर अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा चिंता व्यक्त करती है।
अ.भा.प्र.स. कहना चाहती है कि परिपक्व राजनीतिज्ञों द्वारा ऐसे विषयों को अत्यंत सावधानी तथा संवेदनशीलता से संभालना चाहिये। समाज की एकता और एकात्मता को सर्वोपरि मानकर ही ऐसे विषयों का हल ढूँढना चाहिये। दुर्दैव से अनुभव में यही आ रहा है कि क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के लिए जनता की भावनाओं को उछाला जा रहा है, जिसके कारण समाज के एकत्व को क्षति पहुँच रही है।
जन प्रबोधन और जागरण में प्रचार माध्यमों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। ऐसे विषयों में कुछ प्रचार माध्यमों की सनसनी फैलाने की प्रवृत्ति न केवल इन अभियानों को नुकसान पहुँचाएगी वरन सामाजिक तानेबाने पर भी उसका विपरीत असर होगा। ऐसे अभियानों का नेतृत्व करने वाले सामाजिक संगठनों का यह गुरुतर दायित्व बनता है कि वे विभेदकारी प्रवृत्तियों को हावी न होने दें तथा निहित स्वार्थ रखने वाले अन्तर्बाह्य तत्वों को इन अभियानों का लाभ न उठाने दंे, ताकि वे सामाजिक सामंजस्य तथा राष्ट्रीय एकता के वातावरण को हानि न पहुँचा सकें। प्रतिनिधि सभा प्रचार माध्यमों और सामाजिक संगठनों के नेतृत्वकर्ताओं का आवाहन करती है कि वे ऐसे अभियानों को सही दिशा प्रदान करने में रचनात्मक भूमिका निभाएँ।
ऐसे अभियानों को जन्म देने वाले लगभग सभी विषयों में दोनों पक्षों की ओर से वास्तविक व्यथाएँ तथा शिकायतें हो सकती हैं। प्रतिनिधि सभा ऐसे अभियानों के नेताओं तथा सहभागी जनता का आवाहन करती है कि वे समाज की व्यापक एकता और एकात्मता को अपनी दृष्टि से ओझल न होने दें। अपनी माँगों का समर्थन करते हुए इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिये कि अपने वक्तव्यों तथा .त्यों से हमारे सामाजिक तानेबाने में दरार न आये तथा राष्ट्रीय एकता के सूत्र कमजोर न हों।
अ.भा.प्र.स. इसे गंभीर चिंता का विषय मानती है कि ’साम्प्रदायिक तथा लक्षित हिंसा रोक विधेयक’ तथा अल्पसंख्यक आरक्षण जैसे मुद्दों पर केंद्र सरकार की कार्यवाहियाँ समाज के विभिन्न घटकों में विभेद और वैमनस्य पैदा करने का कारण सिद्ध हो रही हैं। केन्द्र तथा कुछ राज्य सरकारों द्वारा अन्य पिछडे़ वर्गों के 27 प्रतिशत आरक्षण में से 4.5 प्रतिशत हिस्सा अल्पसंख्यकों के लिए निकालने के संविधान-विरोधी निर्णय को पूरे राष्ट्र ने नकारना चाहिये। प्रतिनिधि सभा जोर देकर कहना चाहती है कि राष्ट्र की नीतियों का निर्धारण तात्कालिक राजनीतिक लाभ के लिए नहीं वरन एक जन, एक राष्ट्र के सिद्धान्त के आधार पर होना चाहिये। अ.भा.प्रतिनिधि सभा समस्त देशवासियों का और विशेष रूप से स्वयंसेवकों का आवाहन करती है कि क्षुद्र स्वार्थों के लिए सामाजिक एकता को नष्ट करने के कुछ समाज-घटकों के प्रयासों को परास्त करने में सक्रिय भूमिका निभाएँ।
प्रस्ताव-2
राष्ट्रीय जल-नीति प्रारूप-2012 पर पुनर्विचार आवश्यक
देश की प्राकृतिक सम्पदा हमारी समस्त जीव-सृष्टि की पवित्र विरासत हैै। इसलिये अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का यह सुविचारित मत है कि अपने जल संसाधनों, मिट्टी, वायु, खनिज सम्पदा, पशुधन, जैव विविधता और अन्य प्राकृतिक संसाधनों को व्यापारिक लाभ के साधन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये । इन संसाधनों के उपयोेग व संरक्षण के प्रति हमारी दृष्टि, नीति, एवं व्यवहार तात्कालिक निजी लाभ की अपेक्षा समग्र जीव-सृष्टि के सुदीर्घ व पारस्परिकता-युक्त सह-अस्तित्व के सिद्धान्त पर केन्द्रित होने चाहिये। विश्व के 2.5 प्रतिशत भू-भाग व 4 प्रतिशत शुद्ध जल संसाधनों पर हम विश्व के 17 प्रतिशत लोग अवलम्बित हैं। ऐसी स्थिति में पंच-महाभूतों में जल जैसी प्रकृति की पवित्र देन को निजी एकाधिकार एवं व्यापारिक लाभ की वस्तु बनाने की दिशा में सरकार के बढ़ते कदम अत्यंत चिन्ता-जनक हैं।
केन्द्र सरकार ने हाल ही में प्रसारित राष्ट्रीय जल-नीति प्रारूप-2012 में जल को जीवन के आधार के रूप मेें वर्णित करने के साथ ही अत्यन्त चतुराई से विश्व बैंक व बडी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के सुझाए व्यापारिक प्रतिरूप (उवकमस) की क्रियान्विति के प्रस्तावों का समावेश कर इस दिशा में अपनी दूषित मानसिकता को प्रकट कर दिया है। जल-नीति के इस नवीन प्रारूप में जल का शुल्क लागत आधारित करने व जल-उपभोग को नियंत्रित करने के नाम पर जल व विद्युत के दाम बढ़ाने के प्रस्ताव जल को जन-साधारण की पहुँच से बाहर करने वाले सिद्ध होंगे। इन प्रस्तावों का उद्देश्य जल के कारोबार में प्रवेश करने वाली कम्पनियों के लिए लाभ का मार्ग प्रशस्त करना है। विश्व बैंक के सुझाए अनुसार, सार्वजनिक व निजी सहभागिता के नाम पर जलापूर्ति का काम सार्वजनिक नियन्त्रण-रहित निजी एकाधिकार में देने जैसे प्रस्ताव जीवन की इस आधारभूत आवश्यकता को पूरी तरह से निजी एवं बहुत अंशों में विदेशी अधिकार में देने की मानसिकता का ही संकेत कर रहे हैं। विश्व में सर्वत्र जल के निजी एकाधिकार के अनुभव जलापूर्ति की मात्रा, गुणवत्ता, नियमितता व मूल्य की दृष्टि से निराशाप्रद ही रहे हैं। जलनीति में जल को आर्थिक वस्तु या व्यापार योग्य वस्तु ठहराकर, सरकार उन अन्तरराष्ट्रीय व्यावसायिक परामर्शदाताओं को सैद्धान्तिक समर्थन दे रही है जो भारत सहित विकासशील देशों में जल के निजीकरण में खरबों डालर के लाभकारी कारोबार के अवसर देख रहे हैं।
अ.भा. प्रतिनिधि सभा का मानना है कि जल हमारी सम्पूर्ण जीव-सृष्टि के जीवन का आधार है। इसलिए देश के जल संसाधनों के उचित प्रबन्ध, प्रत्येक व्यक्ति को शु़द्ध पेयजल की सहज आपूर्ति एवं कृषि की आवश्यकताओं के साथ ही सभी सार्थक आर्थिक गतिविधियों के लिए उचित मूल्य पर जल उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व है। राष्ट्रीय जल-नीति से लेकर भू-उपयोग परिवर्तन एवं देश के सभी प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से सम्बन्धित विभिन्न मुद्दों पर ग्राम-सभाओं से लेकर उच्चतम स्तर तक गम्भीर विचार-विमर्श और तदनुरूप नीति-निर्माण सरकार की आज पहली प्राथमिकता होनी चाहिये।
इस परिदृश्य में अ.भा.प्रतिनिधि सभा सभी देशवासियों का आवाहन करती है कि जल जैसे प्रकृति के दिव्य उपहार के दुरुपयोग, अपव्यय एवं सभी प्रदूषणकारी गतिविधियों से दूर रहते हुए जल संरक्षण के लिए हर सम्भव प्रयत्न करें। इसके साथ ही प्रतिनिधि सभा सरकार से अपेक्षा करती है कि वह जल जैसे प्रकृति के उपहार को निजी एकाधिकार में देने के स्थान पर उचित जल संरक्षण, संवर्द्धन व प्रबन्धन की नीति अपनाए। जल की बढ़ती आवश्यताओं के लिए पर्याप्त जल उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए जल के पुनर्शोधन, निर्लवणीकरण से लेकर नदियों में प्रवाहमान जलराशि का सार्थक उपयोग सुनिश्चित करने हेतु सभी प्रकार के प्रभावी उपाय भी अत्यंत आवश्यक हैं। देश के जल-स्रोतों के संरक्षण व संवर्द्धन की दृष्टि से गंगा-यमुना सहित सभी नदियों व अन्य जल-स्रोतों में बढ़ रहे प्रदूषण को रोकने व सरस्वती नदी को पुनः प्रवाहित करने के लिए प्रभावी प्रयत्न किया जाना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। सरकार को इन कार्यों में सहयोग हेतु समाज, समाजसेवी संगठनों व धर्माचार्यों से भी सहयोग का आवाहन करना चाहिये। राष्ट्रीय जल-नीति प्रारूप के सम्बन्ध में प्रतिनिधि सभा सरकार को सचेत करती है कि यदि उसने इसे यथावत् स्वीकार करते हुए जल को निजी लाभ का साधन बनाने हेतु जल की कीमत को लागत आधारित बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए तो उसे सशक्त जन-प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा।
No comments:
Post a Comment