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Monday, February 28, 2022

नाना जी द्वारा स्थापित विद्या भारती वर्तमान में दुनिया की सबसे बड़ी गैर सरकारी शिक्षा तंत्र - प्रो. राकेश उपाध्याय

काशी। रविवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी दक्षिण भाग, मानस नगर के शिवाला शाखा में भारत रत्न नाना जी देशमुख की पुण्यतिथि पर ग्रामोदय से राष्ट्रोदय विषय पर कार्यक्रम आयोजित किया गया।

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो. राकेश उपाध्याय जी ने नाना जी देशमुख के योगदान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि नाना जी का जन्म ऐसे समय में हुआ जब स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था। 13 वर्ष की अवस्था में उनकी भेंट संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी से हुई। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के कारण वे सब्जी बेचते थे और शाखा नियमित जाते थे। यही से राष्ट्र प्रेम का अंकुर उनके मन में फूटा। डॉ.हेडगेवार जी के निधन के बाद वे संघ प्रचारक बने। उन्होंने सर्वप्रथम गोरखपुर से संघ कार्य शुरू किया। उन्होंने धीरे धीरे आस पास के जिलों में 250 शाखाएं खड़ी की। विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति के परिवेश में ज्ञान प्राप्त हो इस हेतु से विद्या भारती की स्थापना की। जो वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा गैर सरकारी शिक्षा तंत्र है। 1948 में आपने पांचजन्य और organiser पत्रिका के संपादन का कार्य किया।

उन्होंने स्वयंसेवकों की बताया कि वे जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। 1967 में वह जनसंघ से लोकसभा में पहुंचे।

इन्होने राजनीतिक जीवन से भी सेवनिवृति की बात कहीं और उस पर विचार करते हुए 60 वर्ष की आयु में राजनितिक जीवन से सन्यास ले लिया। नाना जी द्वारा स्थापित चित्रकूट ग्रामीण विश्वविद्यालय उनके कर्मवीरता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों का परिचय नगर कार्यवाह रजनीश ने कराया।

कार्यक्रम में मुख्य रूप से जयप्रकाश, महेश, गिरनारी, भरत, अभय सहित कई स्वयंसेवक उपस्थित थे।

विश्व संवाद केंद्र काशी के प्रमुख राघवेंद्र जी ने बताया कि ग्रामोदय से राष्ट्रोदय के उद्देश्य के अंतर्गत नानाजी देशमुख ने चित्रकूट में दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की थी। उन्होंने बताया कि शिक्षा, आजीविका, चिकित्सा एवं कृषि के विकास क्षेत्र में दीनदयाल शोध संस्थान आज भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उनकी स्मृति में आज भी गांवों के सहयोग से दीनदयाल शोध संस्थान वार्षिक आयोजन के अंतर्गत उनके उद्देश्यों को पूरा करने में जुटा हुआ है।

Saturday, February 26, 2022

१२ दिवसीय निःशुल्क नाट्य प्रशिक्षण कार्यशाला सम्पन्न

काशी। कला एवं साहित्य समर्पित संस्था संस्कार भारती, काशी प्रांत और सांस्कृतिक संस्था इंटरनेशनल परफॉर्मिंग आर्ट्स फेस्टिवल के संयुक्त संयोजन में बारह दिवसीय नि:शुल्क नाट्य प्रशिक्षण कार्यशाला का समापन समारोह संपन्न हुआ। सामनेघाट स्थित  सरस्वती शिशु मंदिर के सभागार में आयोजित कार्यशाला में प्रशिक्षकों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में काशी और आसपास के वीरों की कालजयी जीवन घटनाओं को रेखांकित किया।

कार्यशाला में  नौटंकी की सुविख्यात प्राचीन विधा का प्रशिक्षण प्रशिक्षकों द्वारा प्रशिक्षुओं को दिया गया। समापन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संस्कार भारती के प्रदेश अध्यक्ष सनातन दुबे ने कहा कि लोक विधाएं व्यक्ति को जीवंत बनाए रखती हैं और नौटंकी तो लोग जागरण की अप्रतिम मशाल है। अध्यक्षता करते हुए संस्कार भारती काशी प्रांत के अध्यक्ष गणेश प्रसाद अवस्थी ने कहा कि संसार एक रंगमंच है जहां व्यक्ति अपने किरदार का जब प्रमाणिकता के साथ निर्वाह करता है तब वह लोकप्रिय एवं इतिहास का व्यक्ति बन जाता है। इस दौरान कार्यक्रम में उपस्थित आईपैफ के निर्देशक श्याम पांडेय ने कहा कि हमें भारतवर्ष की प्रतिभाओं को समय-समय पर कार्यशालाओं के माध्यम से अपनी लोक विधाओं से जोड़ने में सहयोग करना चाहिए।

कार्यशाला प्रशिक्षकों में डॉ. अष्टभुजा मिश्रा, पटकथा लेखक सुनील किशोर द्विवेदी, रंगकर्मी सुधीर पांडेय एवं अभिनेता बृजमोहन यादव ने नाटक "गदर बनारस" के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की वीर गाथाओं का बड़ी सहजता से उल्लेख किया।

मंचन के पूर्व अतिथियों ने मां सरस्वती के तैल चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कर माल्यार्पण किया। संस्कार भारती संस्कार भारती के देवी गीत के पश्चात सरस्वती वंदना एवं कथक नृत्यांजलि प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का समापन सामूहिक रूप से राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम गाकर किया गया|

इस दौरान प्रमोद पाठक, दिनेश श्रीवास्तव, डॉ वेद प्रकाश शर्मा, दयाराम यादव, सौरभ सिंह, ज्योति भट्टाचार्य एवं अभय सिंह समेत बड़ी संख्या में कला प्रेमी एवं संभ्रांत नागरिक उपस्थित थे।  धन्यवाद ज्ञापन सुधीर पांडेय एवं संचालन सुनील किशोर द्विवेदी ने किया|

Thursday, February 24, 2022

सम्राट विक्रमादित्य भवन सम्पूर्ण समाज के विकास का केन्द्र बने – डॉ. मोहन भागवत

 

उज्जैन. विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान द्वारा संचालित विद्या भारती मालवा के प्रशिक्षण, शैक्षिक अनुसंधान केन्द्र एवं प्रांतीय कार्यालय ‘‘सम्राट विक्रमादित्य भवन’’ का लोकार्पण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसघंचालक डॉ. मोहन भागवत जी के करकमलों तथा श्री श्री 108 श्री महंत श्यामगिरी जी महाराज (राधे-राधे बाबा) तथा पवन जी सिंघानिया (मैनेजिंग डायरेक्टर, मोयरा सरिया, इन्दौर) के विशेष अतिथ्य एवं डी. रामकृष्ण राव जी (अखिल भारतीय अध्यक्ष, विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान) की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ.

सरसंघचालक जी ने कहा कि ‘‘सम्राट विक्रमादित्य भवन’’ का निर्माण सभी के लिए आनन्ददायी है. शिक्षा एवं स्वास्थ्य अत्यंत महत्वपूर्ण है. आज व्यक्ति किराये का मकान लेकर भी बच्चों को शिक्षा देता है. विद्या भारती वर्तमान शिक्षा के साथ बच्चों को कुछ और भी सिखाती है तथा सम्म्पूर्ण शिक्षा देने का प्रयास करती है. पशु-पक्षी भी अपना जीवन चलाने के लिए ज्ञान प्राप्त करते हैं, किन्तु उनके सीखने की सीमा होती है. मनुष्य के सीखने की कोई सीमा नहीं होती. मनुष्य देवता भी बन सकता है. रावण भौतिक व आध्यात्मिक क्षेत्र की विद्याओं का ज्ञाता था, किन्तु उसके समाज विरोधी होने के कारण आज भी भगवान श्री राम की ही पूजा होती है. सोने की लंका से अयोध्या अच्छी मानी जाती है.


उन्होंने कहा कि पश्चिम के लोग मानते हैं कि मनुष्य सृष्टि का उपभोगकर्ता है. हमारा मानना है कि अपनी गुणवत्ता का उपयोग सब के लिये हो. राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 मनुष्य को सबके लिये उपयोगी बनाना चाहती है, उपद्रवी नहीं. विद्या भारती का लक्ष्य स्पष्ट है, अपने गुणों के साथ सब का विकास करना. आचार्यों को प्रशिक्षित करने से ही शिक्षा का लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं. सीखने वाले के स्तर पर जाकर ही सीखने की प्रेरणा दी जा सकती है. छोटे बच्चों के रोने पर प्रोफेसर द्वारा फिजिक्स की बड़ी बातें करने से वह चुप नहीं हो सकता, उसे तो रोचक तरीके से कुछ बताने पर ही चुप कराया जा सकता है.

शिक्षक के व्यवहार पर कहा कि अलग-अलग स्तर पर शिक्षा देते हुए संतुलित व्यवहार प्रयोग सिद्ध प्रत्यक्ष आचरण दिखना आवश्यक है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार हमें आधुनिक तकनीक का उचित उपयोग करते हुए, साथ ही अपनी दिशा और लक्ष्य को न भूलते हुए अगली पीढ़ीयों का निर्माण करना है. एक बंगाली कविता का उल्लेख करते हुए कहा ‘‘विधि तोहे छोडबे ना‘‘ अर्थात यदि तुम दिशा और सही तरीका नहीं छोड़ोगे तो तुम्हारा भाग्य तुम्हें कभी नहीं छलेगा.

मोहन जी भागवत ने सम्राट विक्रमादित्य भवन को केवल विद्या भारती ही नहीं, अपितु सामाजिक विकास का केन्द्र बनाने कि बात कहीं. उन्हाने कहा कि इस प्रोजेक्ट पर समाज को अपनी छत्रछाया बनाए रखना होगी.

विद्या भारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष डी. रामकृष्णराव जी ने कहा कि इस भवन से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में सहायता मिलेगी. एन ई पी में सीखने की पद्धति एवं बच्चों का सामर्थ्य बढ़ाने पर जोर दिया गया है. शिक्षकों का सशक्तिकरण एवं शिक्षा में पूर्व छात्रों की भूमिका तय करने से हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति होगी. ये भवन सामाजिक विकास के केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध होगा.

इस अवसर पर तीन पुस्तकों 1.‘‘कनकश्रृंगा (स्मारिका) 2. बालगीतांक (देवपुत्र) 3. अमर क्रांतिवीर उमाजी राजे (श्री अभय मराठै) का विमोचन सरसघंचालक डॉ. मोहन भागवत जी, एवं मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया.

सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान मालवा के प्रदेश सचिव प्रकाशचंद्र जी धनगर ने बताया कि चितांमण गणेश मंदिर मार्ग पर बने ‘‘सम्राट विक्रमादित्य भवन में विद्यार्थियों का भविष्य संवारने, आधुनिक शिक्षा के साथ भारतीय संस्कार देने के उद्देश्य से विद्या भारती द्वारा प्रशिक्षण, शैक्षिक अनुसंधान केन्द्र प्रांतीय कार्यालय में सम्पूर्णं प्रांत से प्रतिवर्ष लगभग 20 हजार स्कूली शिक्षक, प्रशिक्षण प्राप्त करने आएंगे. प्रत्येक शिक्षक-शिक्षिकाओं एवं कार्यकर्ताओं को 15 दिवसीय आवसीय प्रशिक्षण दिया जाएगा.

भवन में चार संस्थान सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान मालवा, ग्राम भारती शिक्षा समिति मालवा, वनवासी सेवा न्यास और माता शबरी अनुसूचित जनजाति सेवा न्यास की प्रांतीय गतिविधियों का संचालन किया जाएगा.

इस प्रशिक्षण, शौक्षिक अनुसंधान केन्द्र एवं प्रांतीय कार्यालय ‘‘सम्राट विक्रमादित्य भवन’’ में प्रशिक्षण केन्द्र का भी निर्माण किया गया है. जिसमें 200 कार्यकर्ताओं के आवासीय प्रशिक्षण की व्यवस्था के साथ स्मार्ट क्लासरूम, टीएलएम एवं लेंग्वेज, गणित व कम्प्यूटर की प्रयोगशालाएं, अनुसंधान, 400 व्यक्ति की क्षमता का सर्वसुविधायुक्त ऑडिटोरियम बनाया गया है.

यह भवन निजी क्षेत्र की पहली ग्रीन बिल्डिंग है. चार मंजिला यह भवन ग्रीन बिल्डिंग कंसेप्ट पर आधारित है. इसका निर्माण इस तरह से किया गया है कि दिन में बिजली जलाने और एसी चलाने की आवश्यकता नहीं होगी. बिजली के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग होगा. रेन वाटर हार्वेस्टिंग के साथ पानी के दोबारा उपयोग की व्यवस्था भी की गई है. जिससे भवन के आसपास हरियाली रहेगी.

समिति मीटिंग एवं कार्यकर्ता मीटिंग रूम, आईसीटी एवं मीडिया रूम, ओपन एयर थियेटर, मंदिर एवं पिरामिड आकार का ध्यान केंद्र रखा गया है. इसके निर्माण में महेश्वर किले की शैली का उपयोग किया गया है. लोकार्पण कार्यक्रम का संचालन हरिशंकर मेहता ने किया. आभार संस्था के अध्यक्ष डॉ. कमलकिशोर जी चितलांग्या ने व्यक्त किया. कार्यक्रम वन्दे मातरम् के साथ संपन्न हुआ.


देश या धर्म की रक्षा करना भारत में पाप है?

 

नई दिल्ली. कर्नाटक के शिवमोगा में हर्षा के बाद अब तेलंगाना के करमन घाट, दिलसुख नगर हैदराबाद में मंदिर में घुस कर गौरक्षक पर जानलेवा हमले से क्षुब्ध विश्व हिन्दू परिषद ने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि इस्लामिक जिहादी हिन्दुओं के धैर्य की परीक्षा लेने से बाज आएं. विहिप के केन्द्रीय महासचिव मिलिंद परांडे ने कहा कि गौ रक्षा व धर्म रक्षा हेतु समर्पित हिन्दुओं की नृशंस हत्या करने वालों व उनको समर्थन व सहयोग देकर हिन्दुओं को डराने वालों को समझना होगा कि यदि वे बाज नहीं आए तो हिन्दू युवक सड़कों पर उतरेंगे. हिंसक जिहादियों की कब्र अब भारत में ही खोदी जाएगी.

    तेलंगाना व महाराष्ट्र में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हिन्दू युवकों के विरुद्ध सरकारी दमन चक्र की भी भर्त्सना करते हुए कहा कि राज्य सरकारें क्या मुस्लिम तुष्टीकरण की आड़ में इतनी अंधी हो गई हैं कि हिंसक जिहादियों की बजाय पीड़ित हिन्दू समाज के लोगों को ही गिरफ्तार कर रही हैं? क्या गौरक्षा करना और देश या धर्म की रक्षा करना भारत में पाप है? देशभक्तों का दमन और धर्मद्रोही व देश द्रोहियों से ममता अब और बर्दाश्त नहीं की जा सकती. महाराष्ट्र व तेलंगाना जैसे राज्यों के कुछ राज नेताओं, पार्टियों व संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की इसी मानसिकता के कारण ही हिंसक जिहादियों का मनोवल बढ़ता है. हिन्दू समाज इसे कदापि स्वीकार नहीं करेगा. 

    इस बीच कर्नाटक में विहिप बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने हिन्दू समाज के साथ सम्पूर्ण कर्नाटक में हर्षा को न्याय व पीएफआई पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग करते हुए प्रदर्शन किए. प्रदर्शनकारियों ने जिलाधीशों को इस संबंध में ज्ञापन भी सौंपे.

Wednesday, February 23, 2022

युवा ग्रैंडमास्टर प्रगननंदा ने दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी कार्लसन को हराया

भारत के युवा ग्रैंडमास्टर रमेशबाबू (आर) प्रगननंदा ने रैपिड शतरंज टूर्नामेंट एयरथिंग्स मास्टर्स के आठवें दौर में दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन को हरा दिया. यह ऑनलाइन टूर्नामेंट था. प्रगननंदा ने सोमवार की सुबह खेली गयी बाजी में काले मोहरों से खेलते हुए कार्लसन को 39 चालों में हराया.

प्रगननंदा मैग्नस कार्लसन को हराने वाले तीसरे भारतीय शतरंज खिलाड़ी हैं. उनसे पहले यह कमाल केवल विश्वनाथन आनंद और पी हरिकृष्णा ही कर पाए थे. कार्लसन पर विजय के साथ ही 16 साल की उम्र के भारतीय ग्रैंडमास्टर के प्रतियोगिता में अब आठ अंक हो गए हैं और वह आठवें दौर के बाद संयुक्त रूप से 12वें स्थान पर हैं.

पिछले दौर की बाजियों में प्रगननंदा अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाए थे. इस वजह से कार्लसन पर उनकी यह जीत उत्साहित करने वाली है. इससे पहले उन्होंने टूर्नामेंट में केवल लेव आरोनियन के खिलाफ जीत दर्ज की थी. इसके अलावा प्रगननंदा ने दो बाजियां ड्रॉ खेलीं, जबकि चार बाजियों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. उन्होंने अनीश गिरी और क्वांग लीम के खिलाफ बाजियां ड्रॉ करायी थी, जबकि एरिक हैनसेन, डिंग लिरेन, जान क्रिज़स्टोफ डूडा और शखरियार मामेदयारोव से उन्हें हार झेलनी पड़ी थी.

कुछ महीने पहले नार्वे के कार्लसन से विश्व चैंपियनशिप का मुकाबला हारने वाले रूस के इयान नेपोमनियाचची 19 अंक के साथ शीर्ष पर हैं. उनके बाद डिंग लिरेन और हैनसेन (दोनों 15 अंक) का नंबर आता है. एयरथिंग्स मास्टर्स में 16 खिलाड़ी भाग ले रहे हैं. इसमें खिलाड़ी को जीत पर तीन अंक और ड्रॉ पर एक अंक मिलता है. प्रारंभिक चरण में अभी सात दौर की बाजियां खेली जानी बाकी हैं.

ग्रैंडमास्टर रमेशबाबू प्रगननंदा तमिलनाडु के रहने वाले हैं. उन्होंने सात साल की उम्र में वर्ल्ड यूथ चैस चैंपियनशिप जीती थी. फिर नौ साल की उम्र में अंडर-10 टाइटल अपने नाम किया था. वे ग्रैंडमास्टर बनने वाले दुनिया के पांचवें सबसे कम उम्र के शतरंज खिलाड़ी हैं. उन्हें साल 2018 में ग्रैंडमास्टर का दर्जा मिला था. तब उनकी उम्र 12 साल 10 महीने और 13 दिन थी.

Wednesday, February 16, 2022

संत शिरोमणि भक्त रैदास (रविदास)

-तुलसीनारायण

प्रारंभिक जीवन : संत रविदास का जन्म वाराणसी में चर्मकार परिवार में हुआ। माघ पूर्णिमा विक्रमी संवत् 1433 सन् 1376 को। इनकी लौकिक शिक्षा नहीं हुई पर इनका रुझान बाल्यकाल से ही से ही ईश्वर भक्ति की ओर था। उस काल में लोग पेशेगत व्यापार ही करते थे। अतः उन्होंने भी चर्मकार का कार्य शुरू किया। इनकी पत्नी का नाम लोना था। इनके व्यवसाय में ठीक से मन ना लगने के कारण पिता ने मकान के पीछे एक झोपड़ी दी, वे उसमें रहकर भगवत भक्ति व कुछ चर्मकारी व्यवसाय करने लगे। ये संतों को मुफ्त में ही जूते बना कर देते थे। उनके पेशे पर कभी इनको शर्म नहीं आई। उन्होंने संत रामानंद जी को कहा कि मैं तो चर्मकार हूँ, आप मुझे अपना शिष्य बना ले तो… रामानंद ने कहा कि हमारे यहां कोई छोटा बड़ा नहीं होता। उन्होंने शिष्य बनाकर कहा भक्ति करो, भजन लिखो व व्यवसाय भी करते रहो।

तत्कालिक सामाजिक स्थिति : उस समय मुगलों का भय, आतंक, अपमान, मंदिर विध्वंस जैसा बर्बर माहौल था, दूसरी ओर हिंदू समाज में जातिभेद, कर्मकांड, कुरीतियों का बोलबाला था। हालांकि भारत में प्रारंभ में ऐसा नहीं था बाद में आया पर निरंतर बाहरी हमलों से सब लोग समाज-धर्म की रक्षा में लग गये। तो विकास का प्रवाह रुक गया। उस समय का चित्रण रैदास के शब्दों में –

मेरी जाति नीची पाती नीति ओछा जन्म हमारा।

हम शरणागत राजा रामचंद्र के, कहि रविदास चमारा।।

उन्होंने भगवान के सामने विनम्रता से अपनी स्थिति को स्वीकार कर प्रभु के हवाले किया। उस काल में संतों ने भक्ति मार्ग से देश-धर्म का प्रयास निरंतर किया।

ईश्वर भक्ति : उस काल में पलायन न करके, समाज की निंदा न करके सबको सन्देश दिया कि भगवत भक्ति करो, वहां कोई भेद नहीं। समाज को निराशा से उबारा व सद्मार्ग मार्ग दिखाया। वो कहते हैं जब सबमें प्रभु है तो जाति भेद कैसा –

जाति एक जाने एक ही चिन्हा, देह अवमन कोई नही भिन्न।

कर्म प्रधान ऋषि-मुनि गांवें, यथा कर्मफल तैसहि पावें।

जीव कै जाती वरन कुल नांहि, जाती भेद है जग मूरखाई।

नीति-समृति-शास्त्र सब गावें, जाती भेद शउ मूढ़ बतावें।

वे कहते थे की मंदिर में विराजित मूर्ति नहीं बल्कि घट-घट वासी की भक्ति करो।

संतन के मन होत है सब कै हित की बात

घट-घट देखें अलख को, पूछे जाति न पांति

रविदास जन्म के करनै ,होत न कोऊ नीच

नर को नीच कर डाटि है, ओछे कर्म की कीन

जन्म से नहीं बल्कि कर्म से व्यक्ति ऊँची जाति का होता है ।

ब्राह्मण छतरी बैस सूद्र, रविदास जनम है नाहिं।

जो चाहई सुबरन कऊ, पावह करमन नाहिं।।

इनकी सर भक्ति का रूप, लोक जागरण का कार्य देखकर हजारों लोग शिष्य शीशे बने। वह सभी जातियों के थे।

काशी नरेश, झाली रानी, मीराबाई शिष्य बने : संत रैदास का भक्ति भाव देखकर काशी नरेश इनके शिष्य बने। इनकी प्रसिद्धि का ही परिणाम था कि चित्तौड़ की झाला रानी शिष्या हो गई। एक बार चित्तौड़ के महाराणा ने इनको निमंत्रण दिया। संत रैदास चित्तौड़ पधारें, महाराणा ने खूब सम्मान किया। भोजन के समय ब्राह्मणों ने विरोध किया पर भोजन के समय सबको अहसास हुआ कि सबके बगल में रैदास बैठे हैं तो इससे सब लोग रैदास की भक्ति को मान गये।

मीराबाई भी इनकी शिष्या बनी इससे दो बातें ध्यान आतीं हैं। एक, मीराबाई मूर्तिपूजक थी यानी साकार व निराकार भक्ति का मेल हुआ। दूसरी, जातिगत भेद मानने वालों के सामने एक अनुकरणीय उदहारण।

भक्त रैदास का समान : स्वयं रैदास ने कहा कि उनके परिवार के लोग वाराणसी के आसपास मरे होए जानवर धोने का कार्य करते हैं पर मैं तो प्रभु का दास बना रहा इस कारण विप्र, आचार्य, सब दंडवत प्रणाम, सम्मान करते हैं।

उन्हें सारे देश में सम्मान मिला उनके 40 पदों को गुरु ग्रंथ साहिब में स्थान मिला।

आज बड़ी संख्या में लोग है जो अपने आपको रैदासी कहकर गौरव अनुभव करते हैं।

रैदास को मुसलमान बनाने का प्रयास : संत रैदास को मुसलमान बनाने पर इनके लाखों भक्त भी मुसलमान बन जाएंगे इस लालच से कई मुसलमान आये परन्तु सफल नहीं हुए। ‘सदना पीर’ आया तो मुस्लिम बनाने, पर इनकी अध्यात्मिक साधना से प्रभावित होकर स्वयं ‘रामदास’ नाम से शिष्य हो गया।

संत रैदास में दोनों बातें थीं - 1. जातिगत भेद, विषमता, कर्मकांड, ढोंग, कुरीतियों का विरोध। 2. वैदिक धर्म के दार्शनिक पक्ष में अपनी पूरी आस्था बनाए रखना।

सिकंदर लोदी ने प्रयास किया, लालच दिया मुस्लिम बनाने का। तो  रैदास का सीधा सपाट उत्तर उनकी समझ दृष्टि को स्पष्ट स्पर्श करता है –

वेद वाक्य उत्तम धरम, निर्मल वाका ज्ञान।

यह सच्चा मत छोड़कर, मैं क्यों पढूँ कुरान।

श्रुति-सास्त्र-समृति गई, प्राण जाय पर धर्म न जाई।

कुशन बिहश्त न चाहिए, मुझकों हूर हजार।

वेद धर्म त्यागू नहीं, जो गल चलै कटार।

वेद धर्म है पूरण धर्मा, करी कल्याण मिटावै भरमा।

सत्य सनातन वेद हैं, ज्ञान धर्म मर्याद।

जो न जाने वेद को, वृथा करें बकवाद।

सिकंदर लोदी ने धमकी दी तो निर्भीकता से उत्तर दिया –

मैं नहीं दब्बू बाल गंवारा, गंग त्याग गहें लाल किनारा।

प्राण तजू पर धरम न देऊँ, तुझसे शाह सत्य कह देऊँ।

चोटी-शिखा कवहूँ नहीं त्यागूँ, वस्त्र समेत देह भाल त्यागूँ।

कंठ कृपाण का करौ प्रहारा, चाहे डुबाओ सिन्धु मंझारा।

भक्ति की पराकाष्ठा : वो कहते हैं कि प्रभु आपकी सार्थकता के लिए हम आवश्यक है वो अधिकार पूर्वक किस प्रकार प्रभु से जुड़े हैं।

अब केसे छुटे राम रट लागी।

प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी। जाकी अंग-अंग बास समानी।।

प्रभु जी तुम धन वन हम मोरा। जैसे चितवन चंद चकोरा।।

प्रभु जी तुम दिया हम बाती। जाकी जोति बरै दिन राति।।

प्रभु जी तुम मोती हम धागा। जैसे सोनहिं लिलत सुहागा।।

प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा। ऐसी भक्ति करै रैदासा

जीवनोपयोगी बातें : कम शब्दों में गहरी बातें।

रैन गँवाई सोये करि, दिवस गवायो खाय

हीरा जन अमोल है, कौड़ी बदले जाय

अंतर गति राचै नहिं, बाहर करै उजास

ते नर जमपुर जायेंगे, सत भाषै रैदास

अपने देश में संतों की वाणी, अभिव्यक्ति, गुरुझान, देशाटन, वातावरण, अंत: प्रेणा से अभिभूत है । उनका विचार, दृष्टि उनकी वाणी से ही व्यक्त होती है । 

उन्होंने कहा कि ह्रदय पवित्र नहीं, प्रभु भक्ति न हो तो तीर्थ यात्रा, कर्मकांड सब व्यर्थ हैं।

आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व उस मुग़ल आक्रान्ताओं के काल में समाज व धर्म की रक्षार्थ अडिंग रहकर, निर्भीकता से सामना करते हुये भक्ति मार्ग द्वारा समाज जागरण किया व भक्ति मार्ग के दीप स्तम्भ बने। ‘मन चंगा तो कठोती में गंगा’ ये घटना भी इन्हीं से सम्बंधित है।

स्रोत - विश्व संवाद केंद्र, तेलंगाना

Thursday, February 10, 2022

हिजाब की आड़ में अराजकता फैलाने से बाज आएं जिहादी व उनके पैरोकार – विहिप

नई दिल्ली. विश्व हिन्दू परिषद ने कहा कि कर्नाटक के उडुपी से प्रारंभ हुआ हिजाब विवाद वास्तव में हिजाब की आड़ में जिहादी अराजकता फैलाने का एक षड्यंत्र है. विहिप के केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेन्द्र जैन ने कहा कि इसे हिजाब जेहाद ही कहा जा सकता है. उडुपी के एक विद्यालय में 6 छात्राओं द्वारा विद्यालय का निर्धारित गणवेश ना पहनने की नाजायज जिद ने एक चिंगारी का रूप धारण कर लिया. पीएफआई जैसे कट्टर इस्लामिक संगठन संपूर्ण कर्नाटक में अराजकता निर्माण करने का एक बड़ा षड्यंत्र रच रहे हैं. बागलकोट जैसे कई स्थानों पर जिहादियों द्वारा की गई पत्थरबाजी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है. हिन्दू समाज व देश के जागरूक नागरिक उनके इन षडयंत्रों को सफल नहीं होने देंगे.

उन्होंने कहा कि जितनी तेजी से संपूर्ण विश्व के इस्लामिक जगत व टूलकिट गैंग ने इस पर प्रतिक्रिया जताई है, उससे साफ प्रकट होता है कि ये भारत में अराजकता फैलाने का कोई भी अवसर नहीं चूकना चाहते. संभवतया ये कर्नाटक में शाहीन बाग दोहराना चाहते हैं. विहिप इन सभी अराजक तत्वों को स्पष्ट करना चाहती है कि कर्नाटक सरकार की सजगता और हिन्दू समाज की सक्रियता के कारण वे सफल नहीं हो पाएंगे.

इस षड्यंत्र की कठपुतली बनी उडुपी की लड़कियों ने विद्यालय में प्रवेश के समय ही जिस फार्म पर हस्ताक्षर किए थे, उसमें स्पष्ट लिखा था कि वह विद्यालय का गणवेश पहनकर ही कक्षा में आएंगी. विद्यालय के विद्यार्थी नियमों का पालन करेंगे तो ही वहां शिक्षा प्राप्त करने का वातावरण बनता है. ये लड़कियां गणवेष पहन कर आ भी रही थीं. हिजाब पहन कर ही आने की उनकी इस जिद ने जिस प्रकार अचानक ही आक्रामक रूप धारण कर लिया, उससे स्पष्ट होता है कि यह जिहादी षड्यंत्र का ही एक भाग है. कांग्रेस के नेतृत्व में टूलकिट गैंग ने इसे समर्थन देने के साथ ही हिन्दू समाज को जिस प्रकार अपमानित किया है, वह घोर निंदनीय है.

विहिप के संयुक्त महामंत्री ने कहा कि कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डी के शिव कुमार ने एक खाली स्तंभ पर भगवा फहराने को जिस प्रकार राष्ट्रीय ध्वज के अपमान के रूप में प्रचारित किया है, वह सत्ता प्राप्त करने की हताशा में एक राष्ट्रघाती प्रयास है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या हिन्दुओं को अपमानित कर जेहादी आग को भड़काने का यह अपराध उनके निर्देश पर हुआ है? यदि नहीं तो उन पर सख्त कार्यवाही करके कांग्रेस के दामन पर लगे दागों को साफ करने का प्रयास करना चाहिए.

उन्होंने आरोप लगाया कि संपूर्ण देश के इन घटनाक्रमों से यह स्पष्ट होता है कि जेहादी तत्व व कांग्रेस के नेतृत्व में संपूर्ण टूलकिट गैंग देश में अराजकता निर्माण करने का प्रयास कर रहे हैं. विहिप उनको स्पष्ट करना चाहती है कि जागरूक समाज उनके इन अपवित्र षड्यंत्रों को अवश्य विफल करेगा. विहिप कर्नाटक सरकार से अपील करती है कि वह इन सभी षड्यंत्रों का पर्दाफाश करे और इनका मजबूती से दमन करे, जिससे वे जेहादी आग को देशभर में ना फैला पाएं.

श्रोत- विश्व संवाद केन्द्र भारत

Monday, February 7, 2022

भारतीय आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था को आज स्वीकार कर दुनिया भारत की ओर आशान्वित दृष्टि से देख रही है – अशोक मेहता

काशी| भारतीय आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था को आज स्वीकार्य कर लिया और भारत एक विश्व गुरु के साथ-साथ विश्वदृष्टा बनने जा रहा है और उस व्यवस्था को स्थापित करेगा, जिसमें असामानतायें और दरिद्रता दूर होंगी। कार्य करने की सुविधा व क्षमता प्रत्येक व्यक्ति को मिलेगी। भारतवर्ष की ओर दुनियाँ आशान्वित दृष्टि से देख रही है| उक्त विचार बसंत पंचमी के दिन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, काशी विभाग द्वारा आयोजित पथ संचालन कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक मेहता (पूर्व अपर महासॉलिसीटर भारत सरकार) ने कहीं|

            काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि मैदान में स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मालवीय जी की हार्दिक इच्छा थी कि हर विश्वविद्यालय में विज्ञान एवं तकनीकी विषय का अध्यापन हिन्दी भाषा में हो, माँ, मातृभाषा एवं मातृभूमि का कोई विकल्प नहीं है। दुर्भाग्य पिछले 70 वर्षों में ऐसा नहीं हुआ। लेकिन अब इच्छुक छात्रों को तकनीकी संस्थानों में 07 भारतीय भाषाओं में अध्ययन का अवसर मिलेगा। मालवीय जी चाहते थे कि विश्वविद्यालय के छात्र-छात्रायें भौतिक सम्पदा के सम्वर्द्धन में तो सक्षम हों ही, साथ ही वे अच्छे नागरिक भी बनें। महामना के शब्दों में ‘‘सम्मानजनक साधनों से धनोपार्जन में सक्षम होने के साथ ही वे अवांछनीय आचरण के आकर्षण से बचें और संस्कृत वाड्मय में संरक्षित उच्च सिद्धान्तों से प्रेरित हों वे दृढ संयम और उज्जवल चरित्र वाले मनुष्य बनें। निःसंदेह, मालवीय जी के समृद्ध भारत के स्वप्न का आशय था ऐसा देश जो भौतिक समृद्धि से परिपूर्ण होने के साथ ही आध्यात्मिक सम्पदा से भी परिपूर्ण हो और उनके लिये शिक्षा इन दोनों महत्वपूर्ण उद्देश्यों की प्राप्ति का साधन थी|

महामना की विश्वविद्यालय का सपना

अनेक भारतीय अंग्रेजी भाषा, रीति-रिवाज और संस्कृति पर गर्व करते थे। यह भावना प्रबल हो रही थी कि भारतीय मूल्य, प्रतीक व सोच-सब तुच्छ हैं। परन्तु मालवीय जी इस धारणा के घोर विरोधी थे। वह इस बात के बड़े समर्थक एवं संरक्षक थे कि भारतीय संस्कृति को इसकी पूर्णता में समझें। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे वाराणसी में एक विश्वविद्यालय स्थापित करना चाहते थे। यह कार्य बहुत जटिल था व इसके लिए प्रचुर संसाधनों की आवश्यकता थी। मालवीय जी ने बनारस में विश्वविद्यालय स्थापित करने की अपनी तीव्र इच्छा व्यक्त की। सभी ने हृदय से इस कल्पना का स्वागत किया। प्रसिद्ध नेता सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी तो अपनी सेवायें देने का प्रस्ताव रखते हुये बोले- "मैं बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी में तब तक निःशुल्क अंग्रेजी के प्रोफेसर के रुप में काम करूँगा जब तक कि कोई उपयुक्त विद्वान नहीं मिल जाता।"

...जब महामना ने ऐनी बेसेण्ट से बात की

ऐनी बेसेण्ट ने 1898 में सेंट्रल हिन्दू स्कूल कमच्छा, वाराणसी की स्थापना की और 1911 में ही उनके मन में भी यूनिवर्सिटी ऑफ इण्डिया का विचार आया। उसी समय दरभंगा नरेश महाराजा रामेश्वर सिंह जी ने भी कुछ अन्य महाराजाओं के साथ शारदा यूनिवर्सिटी को स्थापित करने के बारे में सोचा। 1911 में ही महामना ने ऐनी बेसेण्ट से बात करी। इसी समय दरभंगा नरेश ने भी कहा कि अगर सरकार यूनिवर्सिटी के प्रस्ताव को स्वीकार करती है तो वह भी जुड़ जायेंगे। 11 अक्टूबर 1911 को सरकार की स्वीकृति प्राप्त हुई और दरभंगा नरेश ने समर्थन करने के साथ-साथ 05 लाख रूपये विश्वविद्यालय कोष में समर्पित किये। (दरभंगा कालोनी इसी प्रकार आयी) पहला बोर्ड 22.10.1911 को बना था, जिसके सदस्य दरभंगा नरेश, ऐनी बेसेण्ट, महामना मालवीय, सुन्दर लाल जी, भगवानदास जी, गंगा प्रसाद वर्मा जी, मुंशी ईश्वरशरण भी थे। महामना मालवीय के मार्गदर्शन में हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसाइटी बनी, जिसके सभापति दरभंगा नरेश एवं तीन उपसभापति ऐनी बेसेण्ट, गुरूदास बनर्जी एवं रासबिहारी घोष बने, सचिव सरसुन्दर लाल रहे। सेन्ट्रल हिन्दू स्कूल तथा हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसाइटी का मिलन 27.11.1914 को हो गया। तत्पश्चात् बी0एच0यू0 एक्ट नं0 XVI वर्ष 1915 के द्वारा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना हो गयी। उपरोक्त तथ्य किसी भी प्रकार के संशय को दूर करते हैं। सभी का अपना-अपना योगदान रहा है। हम स्वयंसेवक भारत को परमवैभव पर ले जाने के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं महामना के स्वप्न को शीघ्र ही पूरा करेंगे।

सात्विक प्रवृत्ति का प्रतीक है पीला रंग

उन्होंने बसंत पंचमी के दिन पीले रंग के महत्व को बताते हुए कहा कि हर रंग की अपनी खासियत है जो हमारे जीवन पर गहरा असर डालती है। हिन्दू धर्म में पीले रंग को शुभ माना गया है। पीला रंग शुद्ध और सात्विक प्रवृत्ति का प्रतीक माना जाता है। यह सादगी और निर्मलता को भी दर्शाता है। पीला रंग भारतीय परंपरा में शुभ का प्रतीक माना गया है। सनातन धर्म में इसे आत्मिक रंग अर्थात आत्मा या अध्यात्म से जोड़ने वाला रंग बताया है। पीला रंग सूर्य के प्रकाश का है यानी यह ऊष्मा शक्ति का प्रतीक है। पीला रंग हमें तारतम्यता, संतुलन, पूर्णता और एकाग्रता प्रदान करता है। मान्यता है कि यह रंग डिप्रेशन दूर करने में कारगर है। यह उत्साह बढ़ाता है और दिमाग सक्रिय करता है। नतीजतन दिमाग में उठने वाली तरंगें खुशी का अहसास कराती हैं। यह आत्मविश्वास में भी वृद्धि करता है। हम पीले परिधान पहनते हैं तो सूर्य की किरणें प्रत्यक्ष रूप से दिमाग पर असर डालती हैं।

स्वयंसेवकों के निर्माण की फैक्ट्री है विश्वविद्यालय

मालवीय जी ने विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए विशेष भवन बनवाया था जो आपातकाल की भेंट चढ़ गयी क्योकि यह विश्वविद्यालय स्वयंसेवकों के निर्माण की फैक्ट्री मानी जाती रही है। उन्होंने कहा कि संघ शताब्दी की सफलता हम स्वयंसेवकों पर ही निर्भर है।

            प्रारम्भ में संघ का भगवा ध्वज लगाया गया| स्वयंसेवकों ने विश्वविद्यालय कुलगीत प्रस्तुत किया| अतिथियों का परिचय डॉ. रघुनाथ मोरे ने कराया| कार्यक्रम के पश्चात कृषि विज्ञान संस्थान से पथ संचलन प्रारम्भ हुआ जो संकाय मार्ग से होते हुए सिंह द्वार पर पहुंचा| सभी स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश में दण्ड लेकर घोष वादन की धुन पर क्रमबद्ध पंक्ति में  अनुशासन से चल रहे थे| स्वयंसेवको की ओर से माननीय संघचालक द्वारा मालवीय जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के बाद पथ संचलन स्थापना स्थल पर पहुंचा| वन्देमातरम गायन के बाद कार्यक्रम का समापन हुआ| कार्यक्रम की अध्यक्षता के. के. सिंह छात्र अधिष्ठाता, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने किया|

            इस दौरान उपस्थित लोगों में विभाग संघचालक जयप्रकाश लाल, भाग संघचालक सुनील, नगर संघचालक आर. एन. चौरसिया, विभाग प्रचारक कृष्णचंद्र, देवर्षि, विपिन समेत सैकड़ों की संख्या में स्वयंसेवक उपस्थित थे|