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Monday, February 7, 2022

भारतीय आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था को आज स्वीकार कर दुनिया भारत की ओर आशान्वित दृष्टि से देख रही है – अशोक मेहता

काशी| भारतीय आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था को आज स्वीकार्य कर लिया और भारत एक विश्व गुरु के साथ-साथ विश्वदृष्टा बनने जा रहा है और उस व्यवस्था को स्थापित करेगा, जिसमें असामानतायें और दरिद्रता दूर होंगी। कार्य करने की सुविधा व क्षमता प्रत्येक व्यक्ति को मिलेगी। भारतवर्ष की ओर दुनियाँ आशान्वित दृष्टि से देख रही है| उक्त विचार बसंत पंचमी के दिन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, काशी विभाग द्वारा आयोजित पथ संचालन कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक मेहता (पूर्व अपर महासॉलिसीटर भारत सरकार) ने कहीं|

            काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि मैदान में स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मालवीय जी की हार्दिक इच्छा थी कि हर विश्वविद्यालय में विज्ञान एवं तकनीकी विषय का अध्यापन हिन्दी भाषा में हो, माँ, मातृभाषा एवं मातृभूमि का कोई विकल्प नहीं है। दुर्भाग्य पिछले 70 वर्षों में ऐसा नहीं हुआ। लेकिन अब इच्छुक छात्रों को तकनीकी संस्थानों में 07 भारतीय भाषाओं में अध्ययन का अवसर मिलेगा। मालवीय जी चाहते थे कि विश्वविद्यालय के छात्र-छात्रायें भौतिक सम्पदा के सम्वर्द्धन में तो सक्षम हों ही, साथ ही वे अच्छे नागरिक भी बनें। महामना के शब्दों में ‘‘सम्मानजनक साधनों से धनोपार्जन में सक्षम होने के साथ ही वे अवांछनीय आचरण के आकर्षण से बचें और संस्कृत वाड्मय में संरक्षित उच्च सिद्धान्तों से प्रेरित हों वे दृढ संयम और उज्जवल चरित्र वाले मनुष्य बनें। निःसंदेह, मालवीय जी के समृद्ध भारत के स्वप्न का आशय था ऐसा देश जो भौतिक समृद्धि से परिपूर्ण होने के साथ ही आध्यात्मिक सम्पदा से भी परिपूर्ण हो और उनके लिये शिक्षा इन दोनों महत्वपूर्ण उद्देश्यों की प्राप्ति का साधन थी|

महामना की विश्वविद्यालय का सपना

अनेक भारतीय अंग्रेजी भाषा, रीति-रिवाज और संस्कृति पर गर्व करते थे। यह भावना प्रबल हो रही थी कि भारतीय मूल्य, प्रतीक व सोच-सब तुच्छ हैं। परन्तु मालवीय जी इस धारणा के घोर विरोधी थे। वह इस बात के बड़े समर्थक एवं संरक्षक थे कि भारतीय संस्कृति को इसकी पूर्णता में समझें। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे वाराणसी में एक विश्वविद्यालय स्थापित करना चाहते थे। यह कार्य बहुत जटिल था व इसके लिए प्रचुर संसाधनों की आवश्यकता थी। मालवीय जी ने बनारस में विश्वविद्यालय स्थापित करने की अपनी तीव्र इच्छा व्यक्त की। सभी ने हृदय से इस कल्पना का स्वागत किया। प्रसिद्ध नेता सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी तो अपनी सेवायें देने का प्रस्ताव रखते हुये बोले- "मैं बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी में तब तक निःशुल्क अंग्रेजी के प्रोफेसर के रुप में काम करूँगा जब तक कि कोई उपयुक्त विद्वान नहीं मिल जाता।"

...जब महामना ने ऐनी बेसेण्ट से बात की

ऐनी बेसेण्ट ने 1898 में सेंट्रल हिन्दू स्कूल कमच्छा, वाराणसी की स्थापना की और 1911 में ही उनके मन में भी यूनिवर्सिटी ऑफ इण्डिया का विचार आया। उसी समय दरभंगा नरेश महाराजा रामेश्वर सिंह जी ने भी कुछ अन्य महाराजाओं के साथ शारदा यूनिवर्सिटी को स्थापित करने के बारे में सोचा। 1911 में ही महामना ने ऐनी बेसेण्ट से बात करी। इसी समय दरभंगा नरेश ने भी कहा कि अगर सरकार यूनिवर्सिटी के प्रस्ताव को स्वीकार करती है तो वह भी जुड़ जायेंगे। 11 अक्टूबर 1911 को सरकार की स्वीकृति प्राप्त हुई और दरभंगा नरेश ने समर्थन करने के साथ-साथ 05 लाख रूपये विश्वविद्यालय कोष में समर्पित किये। (दरभंगा कालोनी इसी प्रकार आयी) पहला बोर्ड 22.10.1911 को बना था, जिसके सदस्य दरभंगा नरेश, ऐनी बेसेण्ट, महामना मालवीय, सुन्दर लाल जी, भगवानदास जी, गंगा प्रसाद वर्मा जी, मुंशी ईश्वरशरण भी थे। महामना मालवीय के मार्गदर्शन में हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसाइटी बनी, जिसके सभापति दरभंगा नरेश एवं तीन उपसभापति ऐनी बेसेण्ट, गुरूदास बनर्जी एवं रासबिहारी घोष बने, सचिव सरसुन्दर लाल रहे। सेन्ट्रल हिन्दू स्कूल तथा हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसाइटी का मिलन 27.11.1914 को हो गया। तत्पश्चात् बी0एच0यू0 एक्ट नं0 XVI वर्ष 1915 के द्वारा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना हो गयी। उपरोक्त तथ्य किसी भी प्रकार के संशय को दूर करते हैं। सभी का अपना-अपना योगदान रहा है। हम स्वयंसेवक भारत को परमवैभव पर ले जाने के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं महामना के स्वप्न को शीघ्र ही पूरा करेंगे।

सात्विक प्रवृत्ति का प्रतीक है पीला रंग

उन्होंने बसंत पंचमी के दिन पीले रंग के महत्व को बताते हुए कहा कि हर रंग की अपनी खासियत है जो हमारे जीवन पर गहरा असर डालती है। हिन्दू धर्म में पीले रंग को शुभ माना गया है। पीला रंग शुद्ध और सात्विक प्रवृत्ति का प्रतीक माना जाता है। यह सादगी और निर्मलता को भी दर्शाता है। पीला रंग भारतीय परंपरा में शुभ का प्रतीक माना गया है। सनातन धर्म में इसे आत्मिक रंग अर्थात आत्मा या अध्यात्म से जोड़ने वाला रंग बताया है। पीला रंग सूर्य के प्रकाश का है यानी यह ऊष्मा शक्ति का प्रतीक है। पीला रंग हमें तारतम्यता, संतुलन, पूर्णता और एकाग्रता प्रदान करता है। मान्यता है कि यह रंग डिप्रेशन दूर करने में कारगर है। यह उत्साह बढ़ाता है और दिमाग सक्रिय करता है। नतीजतन दिमाग में उठने वाली तरंगें खुशी का अहसास कराती हैं। यह आत्मविश्वास में भी वृद्धि करता है। हम पीले परिधान पहनते हैं तो सूर्य की किरणें प्रत्यक्ष रूप से दिमाग पर असर डालती हैं।

स्वयंसेवकों के निर्माण की फैक्ट्री है विश्वविद्यालय

मालवीय जी ने विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए विशेष भवन बनवाया था जो आपातकाल की भेंट चढ़ गयी क्योकि यह विश्वविद्यालय स्वयंसेवकों के निर्माण की फैक्ट्री मानी जाती रही है। उन्होंने कहा कि संघ शताब्दी की सफलता हम स्वयंसेवकों पर ही निर्भर है।

            प्रारम्भ में संघ का भगवा ध्वज लगाया गया| स्वयंसेवकों ने विश्वविद्यालय कुलगीत प्रस्तुत किया| अतिथियों का परिचय डॉ. रघुनाथ मोरे ने कराया| कार्यक्रम के पश्चात कृषि विज्ञान संस्थान से पथ संचलन प्रारम्भ हुआ जो संकाय मार्ग से होते हुए सिंह द्वार पर पहुंचा| सभी स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश में दण्ड लेकर घोष वादन की धुन पर क्रमबद्ध पंक्ति में  अनुशासन से चल रहे थे| स्वयंसेवको की ओर से माननीय संघचालक द्वारा मालवीय जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के बाद पथ संचलन स्थापना स्थल पर पहुंचा| वन्देमातरम गायन के बाद कार्यक्रम का समापन हुआ| कार्यक्रम की अध्यक्षता के. के. सिंह छात्र अधिष्ठाता, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने किया|

            इस दौरान उपस्थित लोगों में विभाग संघचालक जयप्रकाश लाल, भाग संघचालक सुनील, नगर संघचालक आर. एन. चौरसिया, विभाग प्रचारक कृष्णचंद्र, देवर्षि, विपिन समेत सैकड़ों की संख्या में स्वयंसेवक उपस्थित थे|

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