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Thursday, September 29, 2022

पीएफआई और सहयोगी संगठनों के काले कारनामों व आतंकी संगठनों से संबंध का कच्चा चिट्ठा

नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने इस्लामिक संगठन पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगाया है. यानि अगले पांच साल के लिए पीएफआई पर प्रतिबंध जारी रहेगा. सरकार ने अधिसूचना में इस्लामिक संगठन की करतूतों की भी जानकारी दी है. पीएफआई के अंतराष्ट्रीय आतंकी संगठनों से संबंध हैं. गृह मंत्रालय की ओर से बताया गया कि जांच में पीएफआई और इसके सहयोगी संगठनों के बीच स्पष्ट संबंध स्थापित हुआ है.

रिहैब इंडिया फाउंडेशन, पीएफआई के सदस्यों के माध्यम से धन जुटाता है. कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन रिहैब फाउंडेशन, केरल के कुछ सदस्य पीएफआई के भी सदस्य हैं. पीएफआई के नेता जूनियर फ्रंट, आल इंडिया इमाम काउंसिल, नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन और नेशनल विमेंस फ्रंट की निगरानी, समन्वय करते हैं.

 

पीएफआई ने समाज के विभिन्न वर्गों युवाओं, छात्र, महिलाओं, इमामों, वकीलों या समाज के कमजोर वर्गों के बीच अपनी पहुंच बढ़ाने के उद्देश्य से सहयोगी संगठनों या अग्रणी संस्थानों की स्थापना की है. जिसका एकमात्र उद्देश्य इसकी सदस्यता, प्रभाव और फंड जुटाने की क्षमता को बढ़ाना है. पीएफआई हब के रूप में कार्य करते हुए सहयोगी संगठनों या संबद्ध संस्थाओं का जनता के बीच पहुंच हेतु अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए करता है.

अधिसूचना के अनुसार, पीएफआई और इसके सहयोगी संगठन एक सामाजिक, आर्थिक और राजनीति संगठन के रूप में कार्य करते हैं. लेकिन ये गुप्त एजेंडा के तहत समाज के एक वर्ग विशेष को कट्टर बनाकर लोकतंत्र की अवधारणा को कमजोर करने की दिशा में कार्य करते हैं तथा देश के संवैधानिक प्राधिकार और संवैधानिक ढांचे के प्रति घोर अनादर दिखाते हैं. पीएफआई और इसके सहयोगी संगठन विधि विरुद्ध क्रियाकलापों में संलिप्त रहे हैं, जो देश की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा के प्रतिकूल है और जिससे शांत तथा सांप्रदायिक सद्भाव का महौल खराब होने और देश में उग्रवाद को प्रोत्साहन मिलने की आशंका है.

पीएफआई के कुछ संस्थापक सदस्य स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के नेता रहे हैं. पीएफआई का संबंध जमात उल मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) से भी रहा है. ये दोनों संगठन प्रतिबंधित संगठन हैं. पीएफआई वैश्विक आतंकवादी समूहों इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) के साथ अंतरराष्ट्रीय संपर्क के कई उदाहरण हैं. पीएफआई और इसके सहयोगी संगठन चोरी छिपे देश में असुरक्षा की भावना को बढ़ावा देकर एक समुदाय के कट्टरपंथ को बढ़ाने का काम कर रहे हैं. जिसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि इसके कुछ सदस्य अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों से जुड़ चुके हैं.

केंद्र सरकार का मानना है कि उपरोक्त कारणों के दृष्टिगत विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 (1967 का 37) की धारा 3 की उप धारा 1 के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग करना आवश्यक है. जिसकी इन तथ्यों से भी पुष्टि होती है

 

1.  पीएफआई कई आपराधिक और आपकी मामलों में शामिल रहा है और यह देश के संवैधानिक प्राधिकार का अनादर करता है. बाह्य स्रोत से प्राप्त धन और वैचारिक समर्थन के साथ यह देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है.

2.  विभिन्न मामलों में अन्वेषण से यह स्पष्ट हुआ है कि पीएफआई और उसके कार्यकर्ता बार-बार हिंसक और विध्वंसक कार्यों में संलिप्त रहे हैं. जिनमें एक कॉलेज प्रोफेसर का हाथ काटना, अन्य धर्मों का पालन करने चाले संगठनों से जुड़े लोगों की निर्मम हत्या करना, प्रमुख लोगों और स्थानों को निशाना बनाने के लिए विस्फोटक प्राप्त करना, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना आदि शामिल हैं.

3.  पीएफआई काडर कई आतंकवादी गतिविधियों और कई व्यक्तियों जैसे संजीत (केरल, नवंबर 2021), योगम (तमिलनाडु 2019), नंदू (केरल 2021), अभिमन्यू (केरल 2018), विविन (केरल 2017), शरत (कर्नाटक 2017), आर रुद्रेश (कर्नाटक 2016), प्रवीण पुजारी (कर्नाटक 2016), शशि कुमार (तमिलनाडु 2016), प्रवीण नेतारू (कर्नाटक 2022) की हत्या में शामिल रहे. ऐसे आपराधिक कृत्य और जघन्य हत्याएं, सार्वजनिक शांति को भंग करने और लोगों के मन में आतंक का भय पैदा करने के एकमात्र उद्देश्य से की गई है.

4.  पीएफआई के वैश्विक आतंकवादी समूहों के साथ अंतरराष्ट्रीय संपर्क के कई उदाहरण हैं. इसके कुछ सदस्य आईएसआईएस में शामिल हुए हैं और सीरिया, ईराक और अफगानिस्तान में आतंकी कार्यकलापों में भाग लिया है. इसमें से पीएफआई के कुछ काडर इन संघर्ष क्षेत्रों में मारे गए और कुछ को राज्य पुलिस तथा केंद्रीय एजेंसियों ने गिरफ्तार किया. इसके अलावा पीएफआई का संपर्क प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन जमात उल मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) से भी रहा है.

5.  पीएफआई के पदाधिकारी और काडर तथा इससे जुड़े अन्य लोग बैंकिंग, चैनल, हवाला, दान आदि के माध्यम से सुनियोजित आपराधिक षड्यंत्र के तहत भारत के भीतर और बाहर से धन इकट्ठा कर रहे हैं. फिर उस धन को वैध दिखाने के लिए कई खातों के माध्यम से उसका अंतरण, लेयरिंग और एकीकरण करते है. आखिर में ऐसे धन का प्रयोग भारत में विभिन्न आपराधिक, विधि विरुद्ध और आतंकी कार्यों में करते हैं.

6.  पीएफआई की ओर से उनसे संबंधित कई बैंक खातों में जमा धन के स्रोत, खाताधारकों के वित्तीय प्रोफाइल मेल नहीं खाते हैं और पीएफआई के कार्य भी उसके घोषित उद्देश्यों के अनुसार नहीं पाए गए. इसलिए आयकर अधिनियम 1961 (1961 का 3) की धारा 12 ए या 12 एए के तहत मार्च 2021 में इसका पंजीकरण रद्द कर दिया. इन्हीं कारणों से आयकर विभाग ने आयकर अधिनियम 1961 की धारा 12 ए या 12 एए के तहत रिहैब इंडिया फाउडेशन के पंजीकरण को भी रदद् कर दिया.

7.  उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात राज्य सरकारों ने भी पीएफआई को प्रतिबंधित करने की अनुशंसा की है.

Monday, September 19, 2022

जौनपुर : अमेरिकी मुस्लिम दूल्हा-दुल्हन भारतीय रंग में हिन्दू रीति-रिवाज से किया विवाह


जौनपुर| भारतीय संस्कृति का आकर्षण कुछ ऐसा है कि अमेरिका से भारत घूमने आए मुस्लिम जोड़े ने जौनपुर के ऐतिहासिक त्रिलोचन महादेव मंदिर में हिंदू परंपरा से शादी रचाई। अमेरिकी मूल के मुस्लिम कियमाह दिन खलीफा अपनी प्रेमिका केशा खलीफा के साथ भारत घूमने आए हुए हैं। घाट पर घूमने के दौरान उन्हें भारतीय संस्कृति से लगाव हो गया था। 

कियमाह और केशा ने ज्योतिष से मिलकर अपनी कुंडली तैयार कराई। इसके बाद दोनों ने हिंदू परंपरा से शादी करने का फैसला किया। वे जौनपुर के ऐतिहासिक त्रिलोचन महादेव मंदिर पहुंचे। दुल्हन के जोड़े के लिए केशवा ने केसरिया और लाल बॉर्डर की साड़ी पहनी। हिंदू परंपरा और रीति-रिवाज से दोनों ने अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लिए।

कनाडा – स्वामीनारायण मंदिर में तोड़फोड़, भारत विरोधी नारे लिखे


टोरंटो स्थित स्‍वामीनारायण मंदिर में कुछ लोगों द्वारा तोड़फोड़ की गई है, साथ ही मंदिर की दीवार पर भारत विरोधी नारे भी लिखे गए हैं. भारत सरकार ने घटना पर कड़ी आपत्ति दर्ज करवाई है. ओटावा स्थित भारतीय उच्‍चायोग ने घटना की निंदा करते हुए कनाडा प्रशासन से मामले की जांच करने और आरोपियों के खिलाफ त्‍वरित कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है. यह काम किस संगठन का है, इसकी अभी कोई जानकारी नहीं मिली है.

कनाडा के टोरंटो में स्थित भव्य स्वामी नारायण मंदिर परिसर में कुछ लोग घुस गए, मंदिर में तोड़फोड़ की और दीवारों पर भारत विरोधी नारे लिखे. घटना को अंजाम देने के पश्चात आरोपी भाग गए. वायरल सीसीटीवी फुटेज में दीवारों पर खालिस्तान जिंदाबाद और हिन्दुस्तान मुर्दाबाद जैसे नारे लिखे दिख रहे हैं. सूचना मिलने पर मंदिर प्रशासन ने मामले की शिकायत टोरंटो पुलिस से की.

मंदिर की दीवारों पर लिखे नारे देखने के पश्चात माना जा रहा है कि ये खालिस्तान समर्थकों का काम है, वैसे पिछले दिनों पाकिस्तान से खालिस्तान के नाम पर ऑनलाइन अराजकता की बात सामने आने के कारण इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साजिश भी माना जा रहा है.

घटना के बाद से कनाडा के हिन्दू समुदाय में आक्रोश है और सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग की जा रही है. कनाडा में भारतीय उच्चायोग ने स्वामीनारायण मंदिर में तोड़-फोड़ की निंदा की. भारतीय उच्चायोग ने ट्वीट कर तोड़-फोड़ और भारत विरोधी नारे लिखे जाने को निंदनीय करार दिया. साथ ही कनाडा के अधिकारियों से घटना की जांच करने का आग्रह भी किया है.

भारतीय मूल के कनाडा के सांसद चंद्र आर्य ने कहा कि यह कोई अकेली घटना नहीं है. इससे पहले भी अन्य मंदिरों में नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा चुकी है.

ब्रैम्पटन दक्षिण की सांसद सोनिया सिद्धू ने घटना पर दुख व्यक्त करते हुए ट्वीट किया कि हम एक बहुसांस्कृतिक और बहु-धार्मिक समुदाय में रहते हैं. जहां हर कोई सुरक्षित महसूस करने का हकदार है. ब्रैम्पटन के मेयर पैट्रिक ब्राउन ने इस तरह के हमले पर निराशा व्यक्त की. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि कनाडा में इस तरह की नफरत का कोई स्थान नहीं है. उम्मीद जताई कि घटना के लिए जिम्मेदार अपराधियों को जल्द से जल्द न्याय के कठघरे में लाया जाएगा.

Saturday, September 17, 2022

भारतीय भाषाओं के प्रति संघ का दृष्टिकोण

- लोकेन्द्र सिंह

तुर्की जब स्वतंत्र हुआतब आधुनिक तुर्की के संस्थापक कमालपाशा ने जिन बातों पर गंभीरता से ध्यान दियाउनमें से एक भाषा भी थी. कमालपाशा ने विरोध के बाद भी बिना समय गंवाए शिक्षा से विदेशी भाषा को हटा कर तुर्की को अनिवार्य कर दिया. क्योंकिवह तुर्की के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का विस्तार करना चाहते थेइसके लिए उन्हें अपनी भाषा की आवश्यकता थी. क्योंकि, उस समय तुर्की अरबी लिपि में लिखी जाती थीइसलिए उन्होंने एक घोषणा और की, जिसमें उन्होंने स्पष्ट कहा कि वे लोग सरकारी नौकरी से वंचित कर दिए जाएंगेजिन्हें लैटिन लिपि का ज्ञान नहीं होगा.

इसी प्रकार दुनिया भर में बिखरे यहूदियों को जब उनकी भूमि प्राप्त हुईतो उन्होंने भी अपनी भाषा हिब्रूको ही अपनाया. सोचिएभूमिहीन यहूदियों की भाषा कहीं लिखत-पढ़त के व्यवहार में नहीं थी. इसके बाद भी जब यहूदियों ने इजराइल का नवनिर्माण किया तो राख के ढेर में दबी अपनी भाषा हिब्रू को जिंदा किया.

 

आज जिस अंग्रेजी की अनिवार्यता भारत में स्थापित करने का प्रयास किया जाता हैउसके स्वयं के देश ब्रिटेन में वह एक जमाने में फ्रेंच की दासी थी. बाद में ब्रिटेन के लोगों ने आंदोलन कर अपनी भाषा अंग्रेजी’ को उसका स्थान दिलाया. अपनी भाषा में समस्त व्यवहार करने वाले यह देश आज अग्रणी पंक्ति में खड़े हैं. अपनी भाषा में शिक्षा-दीक्षा के कारण ही यहाँ के नागरिक अपने देश की उन्नति में अधिक योगदान दे सके. अपनी भाषा का महत्व दुनिया के लगभग सभी देश समझते हैं. इसलिए उनकी आधिकारिक भाषा उनकी अपनी मातृभाषा है. किंतुहम अभागे लोग जब स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भी मानसिक दासिता से मुक्ति नहीं पा सके. महात्मा गांधी के आग्रह के बाद भी अंग्रेजी का मोह नहीं छोड़ सके.

भारत में जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की चर्चा अकसर हिन्दू संगठन या फिर राजनीतिक संदर्भ में होती हैवह संगठन सदैव अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए उपाय करता रहता है. किंतु, इस नाते उसका उल्लेख कम ही हो पाता है. अपनी संस्कृति की श्रेष्ठता को स्थापित करने के प्रयत्नों में संघ मातृभाषा’ के महत्व को भी रेखांकित करता है. दरअसलसंघ मानता है कि “भाषा किसी भी व्यक्ति एवं समाज की पहचान का एक महत्त्वपूर्ण घटक तथा उसकी संस्कृति की सजीव संवाहिका होती है. देश में प्रचलित विविध भाषाएँ एवं बोलियाँ हमारी संस्कृतिउदात्त परंपराओंउत्कृष्ट ज्ञान एवं विपुल साहित्य को अक्षुण्ण बनाये रखने के साथ ही वैचारिक नवसृजन हेतु भी परम आवश्यक हैं”.

अंग्रेजी के प्रभाव में जिस तरह भारतीय भाषाओं को नुकसान हो रहा है. यहाँ तक कि भारतीय भाषाओं के बहुत से शब्द विलुप्त हो गए हैं. उनमें अंग्रेजी और विदेशी भाषाओं के शब्दों की भरमार हो गई है. इस अनाधिकृत घुसपैठ से कई बोलियाँ और भाषाएँ या तो पूरी तरह विलुप्त हो चुकी हैं या फिर विलुप्त होने की कगार पर हैं. भारतीय भाषाओं की इस स्थिति को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पहल करते हुए 2015 में नागपुर में आयोजित अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में ‘भारतीय भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्द्धन की आवश्यकता’ शीर्षक से प्रस्ताव पारित कर महत्वपूर्ण कदम उठाया. हालांकिसंघ अपने प्रारंभ से ही भारतीय भाषाओं के संवर्द्धन के लिए प्रयासरत है. किंतुआज की स्थिति में भारतीय भाषाओं पर आसन्न विकट संकट को देखकर संघ ने सभी सरकारोंअन्य नीति निर्धारकों और स्वैच्छिक संगठनों सहित समस्त समाज से आग्रह किया कि वह अपनी भाषाओं को बचाने के लिए आगे आएं. इसके लिए संघ ने अपने प्रस्ताव में कुछ करणीय कार्यों एवं उपायों का उल्लेख किया है.

भारत के राजनेताओं की स्वार्थपरक नीतियों एवं संकीर्ण सोच के कारण देश का बहुत अहित हुआ है. स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भी हिन्दी उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक संपर्क की भाषा थी. हम चाहते तो उस समय हिन्दी को राष्ट्रभाषा का सम्मान दे सकते थे. उसे राजकाज की भाषा बना सकते थे और अन्य भारतीय भाषाओं को भी यथोचित सम्मान दे सकते थे. राज्यों में उनकी भाषा और देश स्तर पर हिन्दी के प्रचलन को बढ़ा सकते थे. किंतुहमारे औपनिवेशिक दिमागों ने यह स्वीकार नहीं किया और अंग्रेजी को ही राज-काज की भाषा बनाए रखा. भाषाओं का ऐसा झगड़ा प्रारंभ किया कि भारतीय भाषाएं अपने ही घर में आपस में एक-दूसरे के विरुद्ध हो गईं और अंग्रेजी उन सबके ऊपर हो गई. पिछले 70 वर्षों में इस भाषा नीति का परिणाम यह हुआ कि आज हमें अपनी भाषाओं को बचाने के लिए अभियान और आह्वान लेकर निकलना पड़ रहा है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज भारतीय भाषाओं की चिंता नहीं कर रहा हैबल्कि उसने स्वतंत्रता के तीन वर्ष पश्चात ही हिन्दी को न केवल राष्ट्रभाषा अपितु विश्वभाषा बनाने का आह्वान किया था. दो मार्च, 1950 को रोहतक में हरियाणा प्रांतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का आयोजन हुआ था. इस अवसर पर संघ के सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ‘श्रीगुरुजी’ ने जो उद्बोधन दिया था, उसका शीर्षक ही था – ‘हिन्दी को विश्वभाषा बनाना है’. अपने उद्बोधन में सर्वप्रथम उन्होंने स्पष्ट किया कि भारतीय भाषाओं का आपस में कोई कलह नहीं है. इस देश की सभी भाषाएं हमारी ही हैंहमारे राष्ट्र की हैं. सभी समान प्रेम और आदर की पात्र हैं. उनमें छोटे-बड़ेपन का सवाल ही पैदा नहीं होता. उन्होंने यह भी स्मरण दिलाया कि परकीय आक्रमण से पूर्व हम अपनी ही भाषा में संवाद करते थे. पूर्वकाल में सब प्रकार के व्यवहार की भाषा संस्कृत थीउसके बाद धीरे-धीरे यह स्थान प्राकृत ने लिया और इसी समय संस्कृत से विभिन्न प्रांतीय भाषाओं का जन्म हुआ. अब जब हम स्वतंत्र हो गए हैंतब स्वत: ही हमें पुन: अपनी भाषा को व्यवहार में लाना चाहिए. वर्तमान परिस्थिति में भारत के सभी प्रांतों के मध्य व्यवहार की भाषा स्वाभाविक रूप से हिन्दी हो सकती है. हिन्दी की पताका वैश्विक पटल पर फहराने के लिए इस साहित्य सम्मेलन में उपस्थित साहित्यकारों से उन्होंने आग्रह किया कि “हिन्दी विषयक प्रस्ताव पारित कर घर बैठे तो कुछ नहीं होने वाला. हमें हिन्दी को सच्चे अर्थ में सम्पन्न भाषा बनाना है. हिन्दी के विषय में प्रखर स्वाभिमान की भावना जाग्रत करनी चाहिए. अपने कर्तव्य से जगत् की सर्वश्रेष्ठ भाषाओं में उसे सन्मान्य स्थान प्राप्त करा देंगेऐसा विश्वास जगाना पड़ेगाहिन्दी को उस स्थान पर पहुँचाने के लिए प्रचंड कार्यशक्ति आवश्यक है. यह कार्य सबकी एकत्रित और संगठित शक्ति से ही संभव है. इस दृष्टि से अपनी सब शक्ति इस कार्य में लगाकर हिन्दी को उसका योग्य स्थान शीघ्रातिशीघ्र प्राप्त करा देंगे”. हिन्दी को लेकर यह भाव हम सबके मन में होने चाहिए.

साम्यवादियों द्वारा देश में भाषा के आधार पर अलगाव के बीज बोने के जब प्रयत्न हुए तब श्रीगुरुजी ने हिन्दी विरोधी आंदोलन पर प्रश्न उठाए और एक सम्यक दृष्टिकोण समाज के सामने रखा. हिन्दी विरोध को अनावश्यक बताते हुए फरवरी 1965 में दिल्ली में उन्होंने कहा – “हिन्दी विरोधी आंदोलनकारी एवं चेन्नई के उपद्रवकारी यह नहीं सोचते कि जब अंग्रेजों ने हमें जीतकर हमारे ऊपर अपना शासन लादाउस समय उन्होंने हम पर अपनी भाषा अंग्रेजी भी थोपी थी. आज उस थोपी हुई चीज को बनाए रखना ही थोपना है. हमें तो इस बोझ को हटाना ही होगा. अंग्रेजों के साथ ही अंग्रेजी को भी चले जाना चाहिए था”. यहाँ श्रीगुरुजी ने स्पष्ट किया कि अपनी भाषा को व्यवहार में लानाउसे थोपना नहीं है. अपितु अंग्रेजों की थोपी हुई भाषा को बनाए रखना ही वास्तविक अर्थों में थोपना है. अपने इस भाषण में उन्होंने अंग्रेजी के कारण हो रहे नुकसान को भी बताया. स्मरण रहे कि श्रीगुरुजी की मातृभाषा हिन्दी नहीं, अपितु मराठी थी. परंतु राष्ट्र को एकसूत्र में जोड़े रखने और अपनी संस्कृति को अक्षुण्य रखने के लिए वे सबसे आग्रह कर रहे थे कि खुले हृदय से हम हिन्दी को स्वीकार करें. वे कहते हैं – “हिन्दी को स्वीकार करने में कौन-सी कठिनाई है. मैं तो मराठी भाषी हूँपर मुझे हिन्दी परायी भाषा नहीं लगती. हिन्दी मेरे अंत:करण में उसी धर्मसंस्कृति और राष्ट्रीयता का स्पंदन उत्पन्न करती हैजिसका मेरी मातृभाषा मराठी के द्वारा होता है.

अपने इसी भाषण में भारत की एकता एवं अखण्डता के लिए हिन्दी की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए श्रीगुरुजी कहते हैं – “हिन्दी का अध्ययन अपने धर्म और संस्कृति की परंपरा का ही अध्ययन है. हिन्दी का विस्तार अपने जीवन का ही विस्तार है. अत: हिन्दी को संपूर्ण भारत के जीवन की कड़ी के रूप में स्वीकार करना और उसका इस दृष्टि से विकास करनाअपने राष्ट्रीय जीवन की एकता की स्वीकृति और उसका विकास ही है. देश की भाषाओं में सर्वाधिक प्रचलित हिन्दी को यदि हम ग्रहण करके नहीं चलेतो थोड़े ही दिनों में भाषाओं के आधार पर देश के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे. संविधान केवल कानून के बल पर सबको जोड़कर रखने में समर्थ नहीं होगा. अत: किसी के मन में किंचित मात्र भी देश-प्रेम हैभारतीयता की लगन हैराष्ट्रीय अस्मिता को बनाए रखने की चाह हैतो हमें परकीय भाषा का अभिमान छोड़करअंतर प्रांतीय व्यवहार के लिए तथा समग्र देश को एक कड़ी में बांधनेवाली भाषा के नाते हिन्दी को ग्रहण करना चाहिए”.

संघ जिस राष्ट्रीयताभारतीयतासंस्कृति की ध्वज पताका थामकर चल रहा हैउसका महत्वपूर्ण घटक भाषा है. यह केवल हिन्दी नहीं है. हिन्दी तो समूचे हिंदुस्थान की प्रतीक है. किंतुहिंदुस्थान की पहचान उसकी विविधता है. यह विविधता भाषाओं में भी है. बोलियों में भी. संघ उसी विविधता में एकात्म संस्कृति का प्रचारक हैइसलिए वह सभी भारतीय भाषाओं एवं बोलियों को लेकर सजग है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता और प्रचारकों ने भारतीय भाषाओं के मध्य जो स्वाभाविक संबंध विकसित किए हैंवह सबके सामने हैं. राष्ट्रीय विचार से अनुप्राणित सभी कार्यकर्ता अपनी मातृभाषा का अभिमान रखते हुए राष्ट्रीय एकताअखण्डता एवं विकास के लिए हिन्दी को प्रतिष्ठित करने के लिए यथासंभव प्रयास करते हैं.

भारतीय भाषाओं की वर्तमान स्थितिउसमें बेहतरी और समस्त भारतीय भाषाओं को नजदीक लाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से वर्ष 2015 में ‘भारतीय भाषा मंच’ मंच की स्थापना भी की गई है. भारतीय भाषा मंच ने अपने उद्देश्य में 18 बिन्दु शामिल किए हैं. प्रतिनिधि सभा ने जिन आग्रहों का उल्लेख अपने प्रस्ताव में किया हैवह सब भारतीय भाषा मंच के उद्देश्यों में शामिल हैं. मंच के प्रयासों का प्रतिफल भी आ रहा है. यहाँ उल्लेखनीय होगा कि प्रतिनिधि सभा ने वर्ष 2015 में भी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा हेतु एक प्रस्ताव पारित किया है. उस प्रस्ताव में संघ ने जोर देकर कहा था कि प्रारंभिक शिक्षण किसी विदेशी भाषा में करने पर जहाँ व्यक्ति अपने परिवेशपरंपरासंस्कृति और जीवन मूल्यों से कटता है. वहीं पूर्वजों से प्राप्त होने वाले ज्ञानशास्त्रसाहित्य आदि से अनभिज्ञ रहकर अपनी पहचान खो देता है. भारत को अपनी पहचान न केवल बचानी हैबल्कि जिस गुरुतर भूमिका के निर्वाहन की ओर वह बढ़ रहा हैउसके लिए भी उसे अपनी भाषाओं का संरक्षण एवं संवर्द्धन करना ही होगा. संभव है कि अपनी भाषा के बिना भी वह विश्व पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा देलेकिन वह उपस्थिति बहुत कमजोर होगी. अपनी संस्कृति को खोकर कोई भी राष्ट्र टिक नहीं सकता है. ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ और ‘नये भारत’ के निर्माण के लिए भी अपनी सांस्कृतिक तत्वों को सहेजना और उनको व्यवहार में लाना आवश्यक है.

नागपुर में आयोजित प्रतिनिधि सभा में भारतीय भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए जो आग्रह किए गए हैंवह इस प्रकार हैं

1.  देशभर में प्राथमिक शिक्षण मातृभाषा या अन्य किसी भारतीय भाषा में ही होना चाहिए. इस हेतु अभिभावक अपना मानस बनाएं तथा सरकारें इस दिशा में उचित नीतियों का निर्माण कर आवश्यक प्रावधान करें.

2.  तकनीकी और आयुर्विज्ञान सहित उच्च शिक्षा के स्तर पर सभी संकायों में शिक्षणपाठ्य सामग्री तथा परीक्षा का विकल्प भारतीय भाषाओं में भी सुलभ कराया जाना आवश्यक है.

3.  राष्ट्रीय पात्रता व प्रवेश परीक्षा (नीट) एवं संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाएं भारतीय भाषाओं में भी लेनी प्रारम्भ की गयी हैंयह पहल स्वागत योग्य है. इसके साथ ही अन्य प्रवेश एवं प्रतियोगी परीक्षाएँजो अभी भारतीय भाषाओं में आयोजित नहीं की जा रही हैंउनमें भी यह विकल्प सुलभ कराया जाना चाहिए.

4.  सभी शासकीय तथा न्यायिक कार्यों में भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. इसके साथ ही शासकीय एवं निजी क्षेत्रों में नियुक्तियोंपदोन्नतियों तथा सभी प्रकार के कामकाज में अंग्रेजी भाषा की प्राथमिकता न रखते हुए भारतीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

5.  स्वयंसेवकों सहित समस्त समाज को अपने पारिवारिक जीवन में वार्तालाप तथा दैनन्दिन व्यवहार में मातृभाषा को प्राथमिकता देनी चाहिए. इन भाषाओं तथा बोलियों के साहित्य-संग्रह व पठन-पाठन की परम्परा का विकास होना चाहिए. साथ ही इनके नाटकोंसंगीतलोककलाओं आदि को भी प्रोत्साहन देना चाहिए.

6.  पारंपरिक रूप से भारत में भाषाएँ समाज को जोडऩे का साधन रही हैं. अत: सभी को अपनी मातृभाषा का स्वाभिमान रखते हुए अन्य सभी भाषाओं के प्रति सम्मान का भाव रखना चाहिए.

7.  केन्द्र व राज्य सरकारों को सभी भारतीय भाषाओंबोलियों तथा लिपियों के संरक्षण और संवर्द्धन हेतु प्रभावी प्रयास करने चाहिए.

                        (लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालयभोपाल में सहायक प्राध्यापक हैं.)

Tuesday, September 13, 2022

भारत के स्वत्व के जागरण के लिए प्रतिबद्ध संघ

रायपुर में संपन्न तीन दिवसीय अखिल भारतीय समन्वय बैठक के संबंध में  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य जी ने पत्रकारों को जानकारी दी. उन्होंने कहा कि भारत की स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के अवसर पर संघ से प्रेरित सभी विविध संगठनों ने देश के स्वत्व को जागृत करने के लिए कार्य को विस्तार देने पर चर्चा की. बैठक में ग्राहक पंचायत ने स्थानीय वस्तुओं को बढ़ावा देने, विकेंद्रीकृत अर्थव्यवस्था पर जोर देने की बात कही. जबकि स्वदेशी जागरण मंच ने भारतीय अर्थव्यस्था को मापने के मानक (जीडीपी) के स्थान पर एक नई मापन प्रणाली बनाने का विचार रखा. इसी प्रकार भारतीय किसान संघ ने जैविक कृषि को बढ़ावा देने के संबंध में अपने विचार रखे. भारत में केवल शरीर के रोग के उपचार का विषय नहीं है, भारतीय चिकित्सा पद्धति भी परिष्कृत और उन्नत है. वर्तमान परिस्थिति में आरोग्य भारती ने सम्पूर्ण चिकित्सा पद्धति को अपनाने का विचार रखा और उस पर कार्य करने पर अपनी बात रखी. देश में स्वभाषा के मान को प्रशासन में शामिल करने, न्यायपालिका के कार्य प्रणाली में भारतीय भाषा के प्रयोग करने पर विचार हुआ.

सह सरकार्यवाह ने कहा कि देश-दुनिया में संघ कार्य बढ़ रहा है, कोविड संक्रमण के समय में थोड़ा कमजोर हुआ, अब फिर शाखा में वृद्धि हुई है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित 36 संगठन समाज में कार्य कर रहे हैं. ये सभी स्वायत्त, स्वतंत्र हैं. इसलिए इस समन्वय बैठक में कोई निर्णय नहीं होता, केवल विभिन्न विषयों पर चर्चा होती है.

उन्होंने कहा कि स्वाधीनता के 75 वर्ष पूर्ण हुए हैं, इस उत्सव में संघ के विभिन्न संगठनों ने अपना योगदान दिया है. शैक्षिक महासंघ ने 2 लाख विद्यार्थियों की सहभागिता से कार्यक्रम किए, संस्कार भारती ने वंदे मातरम् का गायन किया, पूरे देश में 75 नाटकों का मंचन किया. इस प्रकार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने 87 हजार से अधिक स्थानों पर तिरंगा फहराया. स्वाधीनता संग्राम में पूरे देश के सभी क्षेत्र, वर्ग की सहभागिता रही है, भारत का स्व, यानि स्वाधीनता, स्वदेशी, स्वराज में एक समान शब्द है. समन्वय बैठक में सभी को जोड़ने वाले इस स्व को प्रकट करने पर चर्चा हुई. भारत का तत्व आध्यात्मिकता है, इस पर आधारित जीवन पद्धति ने सभी के जीवन को प्रभावित किया है. ईश्वर एक है, मार्ग अलग-अलग हैं, सभी को सत्य स्वीकार्य है. भारत में एक संस्कृति है जो विविधता का उत्सव मनाती है.

उन्होंने बताया कि रविंद्रनाथ टैगोर ने कहा था राजा, सत्ता के पास सारी व्यवस्था की जिम्मेदारी नहीं थी, केवल सेना, विदेश नीति, प्रशासन राजा की जिम्मेदारी थी. समाज शेष कार्य की जिम्मेदारी निभाता था. समाज का यह तत्व हमने कोरोना काल में देखा है. लाखों लोगों ने बाहर निकल कर साथ में कार्य किया.

एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि कांग्रेस लोगों को नफरत से जोड़ना चाहती है. वे लंबे समय से हमारे प्रति अपने मन में घृणा रखते हैं, इसके बाजवूद हमें लोगों का प्यार मिल रहा है. उनके बाप-दादाओं ने भी संघ का तिरस्कार किया. पूरी ताकत से उसे रोकने का प्रयास किया, हम पर प्रतिबंध लगाए. लेकिन संघ को रोका नहीं जा सका. संघ के सिद्धांत हैं, सिद्धांत को लेकर जीवन भर चलने वाले कार्यकर्ता हैं. त्याग, परिश्रम करने वाले लोग हैं. उहमें समाज के लोगों का लगातार समर्थन मिलता रहा है.

भारत को जोड़ने का काम कोई भी करेगा तो अच्छी बात है, लेकिन जोड़ेंगे किससे? प्रेम से या तिरस्कार से. भारत की पहचान के आधार पर जोड़ने की पहल होनी चाहिए. इससे भारत जुड़ेगा, ऐसा लगता नहीं है.

जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर कहा कि जनसंख्या नियंत्रण को लेकर संघ ने प्रस्ताव पारित किया है. उसमें कहा है कि अगले 50 साल बाद स्थिति क्या रहेगी, उसे देखते हुए नीति बने.

 

Saturday, September 10, 2022

सामाजिक चुनौतियों पर मंथन करेगा संघ

रायपुर, छत्तीसगढ़ | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय समन्वय बैठक – 2022 रायपुर में हो रही है, जिसमें 36 संगठनों के प्रमुख पदाधिकारी सम्मिलित हो रहे हैं. बैठक के संबंध में पत्रकारों को जानकारी देते हुए अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर जी ने कहा कि विद्या भारती, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, सक्षम, वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती, विश्व हिन्दू परिषद, राष्ट्र सेविका समिति, भारतीय जनता पार्टी, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ सहित अन्य सहयोगी संगठनों के प्रतिनिधि सहभागी होंगे. बैठक में सम्मिलित होने वाले सभी संगठन संघ से प्रेरित हैं, सभी समाज जीवन के क्षेत्र में स्वायत्त रूप से काम करते हैं. इन सब संगठनों की वर्ष में एक बार सितंबर माह में बैठक होती है, अपने कार्यों व अनुभवों को साझा करते हैं और इस अवसर पर एक दूसरे से सीखने और समझने का अवसर मिलता है. समान उद्देश्य और लक्ष्य लेकर कार्य करते हैं. कई संगठन मिलकर काम करते हैं जैसे आर्थिक समूह में गत वर्ष स्वावलंबी भारत अभियान प्रारंभ किया गया है, बैठक में इस प्रकार के सामूहिक कार्यों पर भी चर्चा होती है.

उन्होंने बताया कि संघ में अनेक गतिविधियां चलती हैं जैसे गौसेवा, ग्राम विकास, पर्यावरण, कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता के विषय पर, इन विषयों को आगे बढ़ाने पर भी चर्चा होगी. बैठक का उद्देश्य होता है कि समाज के सामने जो चुनौतियां आती हैं, उनका संकलन कर एक दिशा तय करते हैं और राष्ट्रीय भावना से कार्य करते हैं, जिससे कार्य करने की गति बढ़ सके.

सुनील आंबेकर जी ने बताया कि बैठक में सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत, सरकार्यवाह  दत्तात्रेय जी होसबाले, सभी सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी, डॉ. मनमोहन वैद्य जी, अरूण कुमार जी, मुकुंदा जी और रामदत्त जी चक्रधर सहित प्रमुख पदाधिकारी बैठक में सम्मिलित होंगे.

रायपुर में अखिल भारतीय समन्वय बैठक प्रारंभ


रायपुरछत्तीसगढ़ | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय समन्वय बैठक आज प्रातः श्री जैनम् मानस भवनरायपुर में प्रारंभ हुई. बैठक का शुभारंभ सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने भारत माता के चित्र पर पुष्पार्चन करके किया. बैठक में 36 संगठनों के प्रमुख अखिल भारतीय पदाधिकारी भाग ले रहे हैं.



    बैठक में वर्तमान राष्ट्रीय व सामाजिक परिदृश्यशिक्षासेवाआर्थिक व राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होगी. गौसेवाग्राम विकासपर्यावरणकुटुंब प्रबोधनसामाजिक समरसता आदि विषयों को आगे बढ़ाने पर भी चर्चा होगी. संगठन के विस्तार और विशेष प्रयोगों की जानकारी भी साझा की जाएगी. 

बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभी सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जीडॉ. मनमोहन वैद्य जीअरूण कुमार जीमुकुंदा जी और रामदत्त जी चक्रधरअखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य भय्याजी जोशीसुरेश सोनी जीवी भाग्गया जीविद्या भारती के महामंत्री गोविन्द महंती जीअखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठन मंत्री आशीष चौहान जीमहामंत्री निधि त्रिपाठी जीविश्व हिन्दू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार जीराष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका शांतक्का जीकार्यवाहिका अन्नदानम सीताक्का जीसेवा भारती की महामंत्री रेणु पाठक जीभारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा जीमहामंत्री संगठन बी.एल. संतोष जीभारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष हिरण्मय पंड्या जीसंगठन मंत्री बी सुरेन्द्रन जीभारतीय किसान संघ के संगठन मंत्री दिनेश कुलकर्णी जीवनवासी कल्याण आश्रम के अध्यक्ष रामचंद्र खराड़ी जीसंस्कृत भारती के संगठन मंत्री दिनेश कामत जी सहित 240 से अधिक कार्यकर्ता उपस्थित हैं.