हमारे धर्म ग्रंथों में भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद के जनक बताया गया है. हमारे ग्रंथ और शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक देवता किसी न किसी शक्ति से पूर्ण होते हैं. किसी के पास अग्नि की शक्ति है, कोई प्राण ऊर्जा का कारक, कोई आकाश और कोई हवा का संरक्षक है. इसी प्रकार चिकित्सा क्षेत्र में धन्वंतरि जी स्थान रखते हैं. भगवान धन्वंतरि आरोग्य देने वाले हैं जिनके स्मरण मात्र से रोगों से मुक्ति मिलती है| कई औषधियों की प्राप्ति इन्हीं के द्वारा ही प्राप्त हुई है. उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करने वाले देवता भी हैं. पृथ्वी पर उपस्थित समस्त वनस्पतियों और औषधियों के स्वामी भी धन्वंतरि को ही माना गया है. भगवान धनवन्तरि के आशीर्वाद से ही आरोग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है. ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु का विभिन्न अवतारों में से एक अवतार भगवान धन्वंतरि का भी है| धर्म ग्रंथों के अनुसार कार्तिक मास की त्रयोदशी को भगवान धन्वंतरि अवतरित हुए थे, इसीलिए इसी तिथि को भगवान धन्वंतरि का पूजन कर हम संसार को रोग मुक्त करने की मंगलकामना करते हैं|
धनवन्तरि का स्वरुप :
धनवन्तरि को भगवान विष्णु का ही एक अंश रुप माना जाता रहा है. इनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें से ऊपर के दोनों हाथों में चक्र और शंख धारण किए होते हैं. अन्य दो हाथों में से औषधि और अमृत कलश स्थित है.
धन्वंतरि जयंती का महत्त्व :
धन्वंतरि जयंती की विस्तृत जानकारी हमारे ग्रंथों - भागवत, महाभारत, पुराणों इत्यादि में उल्लेख से प्राप्त होता है. भगवान धन्वंतरि को समस्त स्थानों पर आरोग्य प्रदान करने वाला ही बताया गया है. धन्वंतरि संहिता द्वारा ही देव धन्वंतरि के कार्यों का पता चलता है. यह ग्रंथ आयुर्वेद का मूल ग्रंथ भी माना गया है. पौराणिक मान्यता अनुसार आयुर्वेद के आचार्य सुश्रुत मुनि ने धन्वंतरिजी से ही इस शास्त्र का उपदेश प्राप्त किया था.
कौन थे धन्वंतरि ?
भारतीय इतिहास में धन्वंतरि आयुर्वेद प्रवर्तक थे। इनको देवताओं का वैद्य या आरोग्य का देवता भी कहा जाता है। देवासुर संग्राम में जब देवताओं को दानवों ने आहत कर दिया, तब असुरों के द्वारा पीड़ित होने से दुर्बल हुए देवताओं को अमृत पिलाने की इच्छा से हाथ में कलश लिए धन्वंतरि समुद्र मंथन से प्रकट हुए। देव चिकित्सक धन्वंतरि का अवतरण कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी (धनतेरस) को हुआ था। प्रति वर्ष इसी तिथि को आरोग्य देवता के रूप में धन्वंतरि की जयंती मनाई जाती है। उनके नाम के स्मरण मात्र से समस्त रोग दूर हो जाते हैं, इसीलिए वह भागवत महापुराण में ‘स्मृतिमात्रतिनाशन’ कहे गए हैं। समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले थे। उसी में भगवान विष्णु के नामों का जाप करते हुए पीतांबरधारी एक अलौकिक पुरुष का आविर्भाव हुआ। 24 अवतारों में एक विष्णु के अंशावतार वही चतुर्भुज धन्वंतरि के नाम से प्रसिद्ध हुए और आयुर्वेद के प्रवर्तक कहलाए। आयुर्वेद के आठ अंग इस प्रकार हैं- काय चिकित्सा, बाल चिकित्सा, ग्रह चिकित्सा, ऊर्ध्वांग चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, दंत चिकित्सा, जरा चिकित्सा और वृष चिकित्सा।
धन्वंतरि कूप का है बड़ा महत्व :
प्रचलित कथाओं के अनुसार महाभारत काल में राजा
परीक्षित को नागराज तक्षक से महाराजा परीक्षित को भंगवान धन्वंतरि बचाने जा रहे
थे। उसी समय भगवान धन्वंतरि और नागराज तक्षक की भेंट मध्यमेश्वर क्षेत्र स्थित
महामृत्युंजय महादेव मंदिर के परिसर में स्थित कूप के पास हुई। भगवान धन्वंतरि और
नागराज तक्षक ने अपने-अपने प्रभाव का परीक्षण किया। अपने विष से हरे पेड़ को सुखा
देने वाले नागराज तक्षक उस समय परेशान हो गए जब उन्होंने देखा कि भगवान धन्वंतरि
ने अपनी चमत्कारी औषधि से उसे पुनः हरा-भरा कर दिया। तब नागराज तक्षक ने छलपूर्वक
भगवान धन्वंतरि की पीठ पर डस लिया, जिससे कि वह औषधि का लेप
वहां न लगा सकें। उसी समय भगवान धन्वंतरि ने अपनी औषधियों की मंजूषा कूप में डाल
दी थी, जिसे काशी में धन्वंतरि कूप कहा जाता है।
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