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Saturday, April 29, 2023

छत्रपति शिवाजी के जीवन पर आधारित ऐतिहासिक महानाट्य "जाणता राजा" का पोस्टर विमोचन

काशी। सेवा भारती काशी प्रान्त की ओर से आयोजित जाणता राजा का पोस्टर विमोचन शुक्रवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्वतंत्रता भवन सभागार में किया गया। कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख श्रीमान अनिल ओक ने कहा कि महानाट्य जाणता राजा वर्तमान परिस्थितियों में आमजन के मध्य छत्रपति शिवाजी जैसी दहाड़ मरेगा। हिन्दवी साम्राज्य की स्थापना के लिए शिवा जी ने ऐसे मित्र बनाये जिनका आदर्श वर्तमान परिस्थिति में भी प्रासंगिक है शिवाजी नाई का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि युद्ध में पारंगत न होते हुए भी स्वराज के लिए अपने प्राणों की चिंता न करके शत्रु के दल में सीधा प्रवेश किया। वहीं बाजी प्रभुदेश पाण्डे ने छत्रपति शिवाजी के प्राणों की रक्षा के लिए मात्र तीन सौ मावलों को लेकर चार हजार पठान घुड़सवारों के साथ भीड गये और वीरगति को प्राप्त हुए वर्तमान में महाराष्ट्र का वह स्थान पावन खिण्ड के नाम से प्रसिद्ध है। राष्ट्रभक्ति का भाव शिवाजी में कूट-कूटकर भरा था। उन्हें राजा बनने की इच्छा नहीं थी परन्तु हिन्दवी साम्राज्य की स्थापना के लिए उन्होंने छत्रपति की उपाधि धारण की शिवाजी महिलाओं का भी विशेष सत्कार करते थे। गरीब महिला के साथ दुर्व्यवहार करने के कारण अपने सगे मामा मोहिते को भी आजीवन कारावास का दण्ड दिया। त्वरित निर्णय लेना छत्रपति शिवाजी की विशेषता थी मात्र 60 सैनिकों को लेकर शाइस्ता खान के महल में एक लाख सैनिकों को गुरिल्ला युद्ध करके पराजित किया। नये दुर्गों का निर्माण, नौसेना की स्थापना, सुशासन हेतु पंत प्रधानों की नियुक्ति छत्रपति शिवाजी द्वारा रामराज्य की परिकल्पना को साकार करती है। शिवाजी के इन्हीं आदशों को कलमबद्ध करते हुए बाबा साहब पुरन्दरे जी ने महानाट्य की रचना की। इस प्रस्तुति में लगभग 6 मंजिला मंच बनेगा। नाट्य प्रस्तुति में 300 से ऊपर कलाकार भाग लेंगे। इस नाटक की सबसे बड़ी विशेषता इसका नियत समय पर प्रारम्भ होता है। मुख्य वक्ता ने शिवाजी के जीवन पर आधारित काव्य पाठ किया। पूरा सभागार हर-हर महादेव के उद्घोष से गूंज उठा जब अनिल ओक जी ने महानाट्य के कुछ संवादों का ऑडियो क्लिप सुनाया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री श्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि शिवाजी का नाम सुनते ही मन में एक प्रकार का तरंग, उमंग और उत्साह पैदा होता है बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करना शत्रुओं की पकड़ से भी सहजता से बाहर आ जाना यह गुण छत्रपति शिवा जी को श्रेष्ठ बनाता है। इस महानाट्य को देखने पर ऐसा लगेगा जैसे हम सभी उसी काल में पहुंच गये हो। द्वितीय मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री श्री ब्रजेश पाठक जी ने कहा हमारी संस्कृति को पुरातन काल में बहुत चोट पहुंची। जिसके उत्थान का कार्य शिवाजी ने किया। यह नाटक भारत की व्यवस्था को बदलने के उद्देश्य से आयोजित किया जाएगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दिव्य प्रेम सेवा मिशन के संस्थापक आशीष गौतम ने कहा कि छत्रपति शिवाजी केवल महाराष्ट्र के गौरव नहीं है बल्कि सम्पूर्ण भारत के आस्था के केन्द्र है जिस प्रकार गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित को जन-जन तक पहुंचाया उसी प्रकार छत्रपति शिवाजी के जीवनचरित को बाबा साहब पुरन्दरे ने इस नाटक के माध्यम से जनता के बीच में पहुंचाने का कार्य किया है। इस नाटक द्वारा प्राप्त आय से चिकित्सालय निर्माण की योजना है।

कार्यक्रम का प्रारम्भ मंचासीन अतिथियों द्वारा भारत माता शिवाजी के चित्र एवं मालवीय जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके हुआ। वैदिक विद्वानों द्वारा वैदिक मंगलाचरण प्रस्तुत किया गया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की छात्राओं द्वारा कुलगीत की प्रस्तुति की गयी। कार्यक्रम के अन्त में वन्देमातरम का गायन हुआ। कार्यक्रम का संचालन प्रीतेश आचार्य द्वारा किया गया स्वागत भाषण सेवा भारती काशी प्रान्त के अध्यक्ष डॉ. राहुल सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. राघव मिश्रा ने किया।

कार्यक्रम में प्रमुख रूप से प्रज्ञा प्रवाह के संयुक्त क्षेत्र संयोजक रामाशीष जी. पूर्वी उ0प्र0क्षेत्र के क्षेत्र कार्यवाह डॉ. वीरेन्द्र क्षेत्र सेवा प्रमुख नवल किशोर, सह क्षेत्र सेवा प्रमुख युद्धवीर क्षेत्र ग्राम्य विकास प्रमुख चन्द्रमोहन, क्षेत्र मुख्य मार्ग प्रमुख राजेन्द्र सक्सेना, सेवा भारती की क्षेत्र प्रचारिका शारदा दीदी काशी प्रान्त कार्यवाह मुरलीपाल, सह प्रान्त कार्यवाह डॉ. राकेश, प्रान्त प्रचारक रमेश सह प्रान्त प्रचारक मुनीश, प्रान्त प्रचारक प्रमुख रामचन्द्र प्रान्त कार्यकारिणी सदस्य श्याम सहित बड़ी संख्या में विद्वतजन एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित रहें।

Saturday, April 22, 2023

पृथ्वी दिवस – जल संरक्षण से बदलेगी स्थिति

- डॉ. सौरभ मालवीय


पृथ्वी हमारा निवास स्थान है. मनुष्य सहित सभी प्राणी इसी धरती पर जन्म लेते हैं और इसी पर जीवन यापन करते हैं. पृथ्वी हमारे जीवन का आधार है. पृथ्वी से हमें वायु, जल और भोजन प्राप्त होता है. यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पृथ्वी ने मनुष्य व अन्य सभी प्राणियों को जीवन प्रदान किया है. किन्तु मनुष्य ने पृथ्वी को क्या दिया? इस प्रश्न का उत्तर यही है कि मनुष्य ने पृथ्वी को कुछ नहीं दिया, अपितु उसे दूषित करने का कार्य किया है. वायु प्रदूषित होकर विषैली हो गई है और जल भी दूषित हो रहा है. स्थिति इतनी भयंकर है कि यमुना सहित अनेक नदियों का जल पीने योग्य नहीं है. केंद्रीय भूजल बोर्ड के एक अध्ययन के अनुसार 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 221 जिलों के कुछ स्थानों का जल आर्सेनिक युक्त पाया गया है.

दूषित पेयजल के सेवन से उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. ऐसे क्षेत्रों के लोग दूषित जलजनित रोगों की चपेट में आ जाते हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार भूजल संकट के कारण देश के लगभग 50 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को आज भी स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है. ऐसे में वे दूषित जल पीने को विवश हैं. देश में लोगों को पर्याप्त जल नहीं मिल पा रहा है. देश में प्रति व्यक्ति पानी की वार्षिक 1700 घन मीटर से कम उपलब्धता है. देश में पानी की उपलब्धता के पुनर्मूल्यांकन के अध्ययन के आधार पर आशंका व्यक्त की गई है कि वर्ष 2031 के लिए प्रति व्यक्ति पानी की औसत वार्षिक उपलब्धता घटकर 1367 घन मीटर रह जाएगी, जिससे जल संकट और गंभीर हो जाएगा.

एक रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल वैश्विक जल स्रोत का मात्र 4 प्रतिशत ही उपलब्ध है, जबकि यहां विश्व की कुल वैश्विक जनसंख्या का 18 प्रतिशत भाग निवास करता है. केंद्रीय जल आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2010 में देश में उपलब्ध कुल जल स्रोतों में से 78 प्रतिशत का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा रहा था. जल संकट के कारण वर्ष 2050 तक यह दर घटकर लगभग 68 प्रतिशत रह जाएगी. यह शुभ संकेत नहीं है.

उल्लेखनीय है कि देश के लगभग 198 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य क्षेत्र के लगभग आधे भाग की सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं. इसमें से 63 प्रतिशत क्षेत्र में भूमिगत जल से सिंचाई की जाती है, जबकि 24 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई के लिए नहरों के जल का उपयोग किया जाता है. इसमें 2 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई तालाब एवं कुंओं के जल से की जाती है तथा 11 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई के लिए अन्य स्रोत का उपयोग किया जाता है. इससे स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय कृषक आज भी सिंचाई के लिए भूमिगत जल पर निर्भर करते हैं. इसलिए भूजल का अत्यधिक दोहन किया जाता है. इससे भूमिगत जल स्तर निरंतर गिरता जा रहा है.

जल प्राणियों के जीवन का आधार है. जल के बिना कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता. सूखे एवं भूमि का जल स्तर नीचे गिरने के कारण अनेक क्षेत्रों में जल संकट व्याप्त हो गया है. इससे निपटने के लिए जल संरक्षण अति आवश्यक है. भीषण गर्मी के समय देश के प्राय: समस्त क्षेत्रों में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जल की समस्या उत्पन्न हो जाती है. तालाब भी शुष्क हो जाते हैं. कुंओं का जल बहुत नीचे उतर जाता है अथवा वे भी सूख जाते हैं.

इस कारण ग्रामीणों को उपयोग के लिए पर्याप्त जल प्राप्त नहीं होता है. इस समस्या के दृष्टिगत केंद्र सरकार ने अमृत सरोवर योजना प्रारम्भ की है. 24 अप्रैल ,2022 को अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में इसका शुभारंभ किया था. योजना का उद्देश्य देश के प्रत्येक जिले में कम से कम 75 जल निकायों का विकास एवं कायाकल्प करना है. देशव्यापी इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक राज्य के प्रयेक जिले में 75 से अधिक तालाबों का निर्माण करवाना है.

अमृत सरोवर योजना से राज्यों को अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त हो सकेंगे. तालाबों का निर्माण होने तथा पुराने तालाबों का जीर्णोद्धार होने से क्षेत्र के लोगों की जल की समस्या का समाधान हो सकेगा. इससे गर्मी के समय भूजल स्तर को बनाए रखने में सहायता प्राप्त होगी. इन तालाबों के जल का उपयोग कृषि कार्यों के लिए किया जा सकेगा. इसके अतिरिक्त पशु पालन में भी जल का उपयोग हो पाएगा. आवारा पशुओं एवं पक्षियों को भी पीने के लिए जल उपलब्ध हो सकेगा. इसके अतिरिक्त तालाबों का निर्माण होने से उस स्थान पर सौंदर्यीकरण होगा. तालाबों के तट पर पीपल, बरगद, नीम, अशोक, सहजन, महुआ, जामुन एवं कटहल आदि के पौधे लगाए जाएंगे. इससे जहां पर्यावरण स्वच्छ होगा तथा हरियाली में वृद्धि होगी, वहीं इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सकेगा. इससे ग्रामीण क्षेत्र में अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हो सकेगी. इन तालाबों का उपयोग मछली पालन, मखाने एवं सिघाड़े की खेती में भी किया जा सकेगा.

योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में 50 हजार से अधिक तालाबों का निर्माण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. प्रत्येक तालाब एक एकड़ क्षेत्र में होगा, जिसमें 10 हजार घन मीटर पानी धारण करने की क्षमता होगी. इस बात का विशेष ध्यान रखा जाएगा कि इसमें वर्ष भर जल भरा रहे. अमृत सरोवर योजना के माध्यम से ग्राम वासियों को मनरेगा योजना के अंतर्गत रोजगार उपलब्ध करवाया जा सकेगा.

उल्लेखनीय है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को विश्वभर में पृथ्वी दिवस मनाया जाता है. अमेरिका के पर्यावरणविद जेराल्ड नेल्सन ने 22 अप्रैल, 1970 को इसका शुभारम्भ किया था. उन्होंने संयुक्त राज्य के सीनेटर और गवर्नर के रूप में कार्य किया. उन्होंने पर्यावरण सक्रियता के एक नये अभियान का प्रारम्भ किया था. वर्ष 1969 में सैन फ्रांसिस्को में यूनेस्को सम्मेलन के दौरान 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाने की घोषणा की गई थी. इसके पश्चात से यह दिवस मनाया जा रहा है. अब इसे विश्व के 192 से अधिक देशों में मनाया जाता है. आज जब पर्यावरण के समक्ष अनेक प्रकार के संकट उत्पन्न हो गए हैं, ऐसी स्थिति में इसका महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है.

देशभर में पृथ्वी दिवस के उपलक्ष्य में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. इसमें सरकारी स्तर के कार्यक्रम भी हैं तथा पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य कर रही स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यक्रम भी सम्मिलित हैं.

नि:संदेश केंद्र सरकार की अमृत सरोवर योजना जल संरक्षण के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करेगी. इससे जल संरक्षण के अभियान को प्रोत्साहन भी मिलेगा. अपनी पृथ्वी को बचाने के लिए हम सबको मिलकर कार्य करना होगा.

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार वि.वि. भोपाल में सहायक प्राध्यापक है.)

Thursday, April 20, 2023

पुणे में अक्षय तृतीया को होगा बालासाहब देवरस अस्पताल का शिलान्यास

पुणे| बालासाहब देवरस पॉलिक्लीनिक के कार्याध्यक्ष शिरीष देशपांडे और कार्यवाह बद्रीनाथ मूर्ती ने कहा कि आम लोगों के लिए सस्ती दरों पर आधुनिक चिकित्सा सुविधा देने के उद्देश्य से पुणे वैद्यकीय सेवा व शोध प्रतिष्ठान द्वारा संचालित बालासाहब देवरस अस्पताल का शिलान्यास शनिवार, २२ अप्रैल २०२३ को अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर होगा| शहर के कात्रज क्षेत्र में खड़ी मशीन चौक में ८०० बेड का यह अस्पताल दो चरणों में बनाया जाएगा|

शिलान्यास समारोह में केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री डॉ.मनसुख मांडविया, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य सुरेश जोशी (भय्याजी जोशी), पुणे जिला के पालकमंत्री चंद्रकांत दादा पाटिल, पुणे वैद्यकीय सेवा व संशोधन प्रतिष्ठान के मानद अध्यक्ष तथा श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र के कोषाध्यक्ष पूजनीय गोविंददेव गिरीजी, सीरम इन्स्टीट्यूट ऑफ इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ.अदार पूनावाला, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पश्चिम महाराष्ट्र प्रांत के संघचालक नानासाहेब जाधव आदि गणमान्य अतिथि उपस्थित रहेंगे|

प्रस्तावित ८०० बेड के सुसज्जित अस्पताल व अत्याधुनिक भवन का शिलान्यास समारोह लोकशाहीर अण्णाभाऊ साठे सभागार में सुबह १०.३० बजे होगा|

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय सरसंघचालक श्रद्धेय बालासाहब देवरस आपातकाल के दौरान कुछ वर्ष पुणे स्थित येरवड़ा जेल में बंद थे| साथ ही जीवन के अंतिम कुछ वर्षों तक उनका वास्तव्य मित्रमंडल चौक में स्थित कौशिक आश्रम में था| सेवा आयाम को उनके द्वारा दी गई दिशा का विचार और दृष्टि सामने रखते हुए ही अस्पताल को उनका नाम देने का निर्णय प्रतिष्ठान ने लिया|

पुणे के कई विशेषज्ञ व गणमान्य डॉक्टरों की टीम के सहयोग से इस परियोजना की विस्तृत योजना बनाई गई है| संघ के शताब्दी वर्ष यानि २०२५ तक परियोजना का पहला चरण पूर्ण करने का लक्ष्य है|

 

Wednesday, April 19, 2023

तमिलनाडु पथ संचलन – संघशक्ति के सत्य की अनुभूति…

तमिलनाडु में डीएमके सरकार द्वारा एड़ी-चोटी का जोर लगाने के बावजूद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पथ संचलन वह रोक नहीं सकी. इस दल की सरकार ने पहले सत्ता और फिर न्यायालय का प्रयोग करते हुए अड़ंगा डालने का प्रयास किया. लेकिन वह सफल नहीं हो पाया. रविवार, १६ अप्रैल को राज्य में ४५ स्थानों पर पथ संचलन संपन्न हुआ. उसे प्रतिसाद भी अपार मिला. जनमानस में चर्चा हुई और मीडिया में स्थान मिला. जो बात नित्यक्रम से होने वाली थी, उसे अपशगुन करने का प्रयास किया गया और जो चीज वैसे उपेक्षित रह जाती, उसे प्रमुखता दिलवा दी. अपनी पहचान के नाम पर हुड़दंग करने वालों को क्या मिला? कुछ भी नहीं. लेकिन संघशक्ति के सत्य की अनुभूति निश्चित रूप से फिर एक बार मिली.

तमिलनाडु में संपन्न हुए इन ४५ पथ संचलनों में से प्रमुख संचलन चैन्नई के कोरट्टूर में हुआ. रा. स्व. संघ के दक्षिण क्षेत्र संघचालक डॉ. आर. वन्नीयराजन और केंद्रीय मंत्री एल. मुरुगन प्रमुखता से सहभागी थे. उनके अलावा फेडरेशन ऑफ ऑल चेट्टियार संघ के प्रदेशाध्यक्ष अरुणाचलम, तमिलनाडु नाडर संघ के प्रदेशाध्यक्ष मुथ्थू रमेश, वीर वन्नियार संघ के प्रदेशाध्यक्ष जय हरी, बोयार संघ के प्रदेशाध्यक्ष बालचंदर, सौराष्ट्र समुदाय के अध्यक्ष एस. आर. अमरनाथ, माया वंश महासभा के राज्य सचिव एस. के. शिवकुमार, वीलेज पीपल्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष सी. पी. पच्चैयप्पन, आदि कार्यक्रम में सहभागी हुए थे. ये सारे नाम देने का कारण यह जताने के लिए है कि तमिलनाडु के सभी स्तरों और सारे समुदायों के प्रतिनिधि इसमें सम्मिलित हुए थे.

पथ संचलन का महत्व क्या है? वास्तव में संघ का संचलन संघ के दैनंदिन आचरण का एक अंग है. जन साधारण और हिन्दू  समाज में आत्मविश्वास पैदा करने तथा स्वयं-अनुशासन व प्रामाणिकता बनाए रखने के लिए संचलन होता है. यह ऐसा कार्यक्रम होता है, जिसमें दिखाया जाता है कि हिन्दू समाज एकजुटता से, दृढ़ता से और स्थिरता से कूच कर सकता है. संगठन के रूप में रा. स्व. संघ की प्रक्रिया का वह अंग है.

लेकिन तमिलनाडु की द्रमुक सरकार इस संचलन का होना हजम नहीं कर पाई. कार्यकर्ता आधारित पार्टी का ढिंढोरा पीटने वाले द्रमुक में हाल में कार्यकर्ताओं में अव्यवस्था का माहौल है. दो या तीन दशकों पूर्व द्रविड आंदोलन में (फिर उसका स्वरूप चाहे जो हो) अथवा द्रमुक पार्टी में जो एका था, वह कब का नदारद हो गया है. आज द्रमुक और उसकी सरकार की स्थिति उस शाही हवेली जैसी है, जिसकी सारी रौनक चली गई है. परिवारवाद से ऊब चुके लोगों को नया विकल्प चाहिए. साथ ही लगातार सत्ता के कारण कार्यकर्ताओं में पैठ बना चुकी गुंडागिरी को लेकर भी लोगों में रोष है. एक तरफ अपनी यह फिसलन और दूसरी तरफ संघ स्वयंसेवकों का बढ़ने वाला बल और उनकी निष्ठा एम. के. स्टालिन को नागवार नहीं गुजरेगी तो और क्या होगा?

यही कारण था कि उन्होंने संघ के संचलन पर पाबंदी लगाने का तानाशाही आदेश जारी किया जो उनके नाम के अनुरूप ही था. संघ का संचलन होना था 02 अक्तूबर, 2022 यानि महात्मा गांधी जयंती के दिन. उसके लिए चेन्नई सहित ५० स्थानों पर संचलन की योजना संघ ने की थी. इसके लिए पुलिस से विधिवत् अनुमति भी मांगी गई थी. लेकिन उसी दिन चिरुत्तैगल विडुदलै कट्चि पार्टी द्वारा मानव श्रृंखला आंदोलन की घोषणा किए जाने का कारण देते हुए, कानून-व्यवस्था की समस्या का बहाना बनाकर यह अनुमति नकारी गई.

इस पर पहले मद्रास उच्च न्यायालय और बाद में उच्चतम न्यायालय में केस चला और उच्चतम न्यायालय ने संचलन होने के पक्ष में निर्णय दिया. तब कहीं जाकर आखिर रविवार को यह संचलन संपन्न हुआ. इसके लिए भी पुलिस ने १२ शर्तें लगाई थीं, जिनका पालन करते हुए संचलन संपन्न हुए.

राज्य के अलग-अलग हिस्सों में निकले संचलनों को जो प्रतिसाद मिला, वह स्वयंस्फूर्त था. उनकी तस्वीरें और वीडियो घूम रहे हैं. अकेले चेन्नई में कोरट्टूर के संचलन में पेरांबूर, तिरुवोट्टीयुर, अम्पाथूर और वडपलनी इलाकों के 1,200 से अधिक स्वयंसेवक गणवेश में सहभागी हुए थे. दक्षिण तमिलनाडु में यह आंकड़ा १२ हजार से अधिक और उत्तर तमिलनाडु प्रांत में ८ से अधिक था. यानि दोनों प्रांत मिलाकर २० हजार से अधिक स्वयंसेवकों ने संचलन किया. स्थानीय मीडिया ने भी इसे अच्छी-खासी प्रसिद्धि दी. (इसमें द्रमुक के दिनकरनजैसे समाचारपत्रों अथवा चैनलों का अपवाद है, लेकिन जिनकी नस-नस में छिछलापन भरा है, उनसे कोई और अपेक्षा कैसे की जा सकती है?)

यह एक जबरदस्त तमाचा है, उन लोगों पर जो संघ का भयगंड़ स्वयं भी रखते हैं और दूसरों में पैदा करते है ताकि वे अपनी रोटी सेंक सकें. इसके पीछे एक कारण हिन्दूफोबिया भी है.

यही कारण है कि राज्य सरकार और पुलिस ने इससे पूर्व हिन्दू मक्कल काट्चि तमिलगम संगठन को भी राज्यस्तरीय सम्मेलन के लिए अनुमति देने से इन्कार किया था. उसका भी कारण वही था कानून और व्यवस्था. उस संगठन को भी मद्रास उच्च न्यायालय ने 29 जनवरी, 2023 को राज्यस्तरीय सम्मेलन करने की अनुमति दी थी.

सत्यमेव जयते हमारे देश के उच्चतम न्यायालय का ध्येय वाक्य है. उसी न्यायालय के आदेश पर, अपने लोकतांत्रिक अधिकारों पर अमल करते हुए, उस लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति पूर्ण सम्मान रखते हुए और दिखाते हुए संघ ने यह कर दिखाया है.

विघ्नैः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाप्रारब्धमुत्तमजनाः न परित्यजन्ति …..इस उक्ति के अनुसार संघ की सज्जनशक्ति का विश्व को फिर से दर्शन हुआ है.


- देविदास देशपांडे

(स्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत)

Monday, April 17, 2023

क्यों भड़कती है हिंसा?

- बलबीर पुंज


बीते कुछ वर्षों से हिन्दू पर्वों पर निकलने वाली शोभायात्राओं पर हिंसक हमले तेज हुए हैं. ऐसा करने वाले कौन हैं, यह सर्विदित है. परंतु वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? इसे लेकर भ्रम पैदा किया जा रहा है. तथाकथित सेकुलर मीडिया का एक हिस्सा और वामपंथी विचारक हिंसा के शिकार अर्थात्, हिन्दुओं को ही दोषी ठहरा रहे है. उनके विकृत विश्लेषण का सार यह है कि पिछले कुछ दशकों से हिन्दू संगठन, भगवान श्रीराम के सदियों से चले आ रहे शांत और सहिष्णु व्यक्तित्व को एक उग्र रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं इसके परिणामस्वरूप श्रीराम-हनुमान जी से संबंधित जूलुसों में आक्रमकता दिख रही है और इससे आहतविशेष समुदाय के लोगों को हिंसा हेतु उकसाया जा रहा है. अर्थात् यदि हिन्दू अपनी सांस्कृतिक पहचान को मुखरता के साथ प्रस्तुत करेंगे, तो उसकी स्वाभाविक परिणति हिंसा में होगी.

क्या हिन्दू शोभायात्राओं पर हमले हाल ही में शुरू हुए हैं? यह ठीक है कि श्रीराम संबंधित सांस्कृतिक पहचान, 1980 के दशक में प्रारंभ हुए श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के कारण अधिक सार्वजनिक विमर्श में है. परंतु हिन्दू पर्वों पर निकलने वाले जूलुसों या पदयात्राओं पर हमले का इतिहास सदियों पुराना है.

संविधान निर्माता डॉ. भीमराव रामजी आम्बेडकर ने अपनी पुस्तक पाकिस्तान या भारत का विभाजनमें हिन्दू-मुस्लिम संबंधों में तनाव के तीन मुख्य कारणों की पहचान की थी, जिसमें उन्होंने गोहत्या, मस्जिदों के बाहर संगीत और मतांतरण को चिन्हित किया था. बकौल डॉ. आम्बेडकर, “…इस्लाम का भ्रातृत्व, सार्वभौमिक भ्रातृत्व का सिद्धांत नहीं हैमुसलमानों के लिए हिन्दू काफिरहैं, और एक काफिरसम्मान के योग्य नहीं. वह निम्न कुल में जन्मा होता है, जिसकी कोई सामाजिक स्थिति नहीं होती. एक काफिरद्वारा शासित देश, मुसलमानों के लिए दार-उल-हरब है.

गांधी जी ने भी हिन्दू-मुस्लिम के बीच सदियों से चले आ रहे तनाव की विवेचना करने का प्रयास किया था. उन्होंने मजहबी खिलाफत आंदोलन (1919-24) का नेतृत्व करके उसी संकट को दूर करने की कोशिश की थी, जिसकी कीमत हिन्दुओं ने मोपला नरसंहार और कोहाट आदि क्षेत्रों में अपने दमन के रूप में चुकाई. इससे आक्रोशित गांधी जी ने 29 मई, 1924 को यंग इंडियापत्रिका में मुस्लिमों को धौंसिया’ (Bully) और हिन्दुओं को कायर’ (Coward) कहकर संबोधित किया और लिखा – “…मुसलमानों की गुंडागर्दी के लिए उन पर गुस्सा होने से कहीं अधिक हिन्दुओं की नामर्दी पर शर्मिंदा हूं. जिनके घर लूटे गए, वे अपने माल-असबाब की हिफाजत में जूझते हुए वहीं क्यों नहीं मर मिटे? जिन बहनों की बेइज्जती हुई, उनके नाते-रिश्तेदार उस वक्त कहां थे? मेरे अहिंसा धर्म में खतरे के वक्त अपने कुटुम्बियों को अरक्षित छोड़कर भाग खड़े होने की गुंजाइश नहीं है. हिंसा और कायरतापूर्ण पलायन में यदि मुझे किसी एक को पसंद करना पड़ा, तो हिंसा को ही पसंद करूंगा.

स्वाभाविक है कि जब गांधी जी और डॉ. आम्बेडकर ने यह विचार रखे थे, तब देश में न तो भाजपा-आरएसएस का अस्तित्व था और ना ही श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति हेतु कोई आंदोलन चल रहा था.

विमर्श बनाया जा रहा है कि देश के कुछ क्षेत्रों में रामनवमी के दौरान भड़की हिंसा, शोभायात्रा निकाल रहे भक्तों द्वारा भड़काऊ नारे और उत्तेजनात्मक क्रियाकलाप के खिलाफ तात्कालिक प्रतिक्रिया थी. यदि ऐसा था, तो हमलावरों के घरों और मस्जिदों की छतों पर एकाएक पत्थरों के ढेर और पेट्रोल बम कैसे पहुंचा? 10 अप्रैल को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय ने रामनवमी पर हिंसा को प्रथम-दृष्या पूर्व नियोजित बताया है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम ने कहा, “एक आरोप है कि छतों से पत्थर फेंके गए. जाहिर है कि 10-15 मिनट के अंदर छत पर पत्थर ले जाना किसी के लिए भी संभव नहीं है.गत वर्ष अप्रैल में जब गुजरात के तीन जिलों में रामनवमी के अवसर पर हिंसा भड़की थी, तब भी पुलिस ने शोभायात्रा से एक दिन पहले खेत में पत्थर इकट्ठा करने, पथराव के लिए पहले से जगह निर्धारित करने और हिंसा के लिए बाहरी लोगों को बुलाने पर तीन मौलवियों को गिरफ्तार किया था. वास्तव में, इन प्रायोजित हिंसक घटनाओं का उपयोग मई 2014 के बाद से उस राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित प्रपंची विमर्श को और अधिक धार देने हेतु किया जा रहा है, जिसमें साक्ष्यों को विकृत करके भारत के बहुलतावादी चरित्र को कलंकित करने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल को मुस्लिम विरोधी प्रचारित करने की मानसिकता है.

श्रीराम मर्यादापुरुषोत्तम हैं. उनमें नैतिकता, संयम और पराक्रम का अद्भुत संतुलन है. जहां एक ओर उन्होंने अपने जीवन के कठिन समय में कांटो भरे मार्ग पर चलकर वृद्ध वनवासी माता शबरी के झूठे बेर खाकर अपने विन्रम और सर्वस्पर्शी स्वभाव का परिचय दिया, तो तीन दिन अनुरोध करने के बाद सागर द्वारा लंका जाने हेतु मार्ग नहीं देने पर श्रीराम ने अपना धनुष- कोदण्डउठा लिया था. इस पर गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं – “विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति. बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति..भक्तों को यह स्वत: अधिकार प्राप्त है कि वे जिस भी रूप में चाहे, अपने आराध्यों की पूजा या उनका स्मरण करें.

भारत में करोड़ों मुसलमान मस्जिदों के साथ-साथ सार्वजनिक स्थानों पर भी जुमे की नमाज पढ़ते हैं. उन पर शायद ही कभी विवाद होता है. यदि किसी संगठन या व्यक्ति ने मार्ग बाधित करके नमाज पढ़ने का विरोध किया, तो उसे तुरंत इस्लामोफोबियाघोषित कर दिया जाता है. दूसरी ओर मुस्लिम बहुल कश्मीर में एक वर्ष में कुछ दिन चलने वाली पवित्र अमरनाथ यात्रा के लिए हजारों हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों को तैनात करना पड़ता है. सच तो यह है कि जिस काफिर-कुफ्रकी अवधारणा ने 1990 के दशक में कश्मीर को उनके मूल निवासियों पंडितोंसे मुक्त कर दिया था, वही चिंतन भारत में सदियों से हिन्दू जूलुसों पर हमला करने हेतु प्रेरित कर रहा है.

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं.)

श्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत 

Friday, April 14, 2023

बाबा साहब ने सनातन धर्म को कभी नहीं छोड़ा - रमेश जी

 

चंदौली| बाबा साहब के नाम में ही राम था इनका पूर्ण नाम डॉक्टर भीमराव राम आंबेडकर है, जिसे हमारे समाज की समरसता को प्रभावित करने की दृष्टि से षड्यंत्रपूर्वक हटाया गया| उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चन्दौली जिला द्वारा पर आयोजित डॉ. भीमराव राम अंबेडकर जयंती (समरसता दिवस) विषयक संगोष्ठी में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी प्रान्त प्रचारक श्रीमान रमेश जी ने व्यक्त किया|

    पोदार भवन कैलाशपुरी दीनदयालनगर में आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि समकालीन समाज में व्याप्त विष को पीकर बाबा साहब ने मानवता को अमृत प्रदान किया। भारत को विश्व गुरु बनाना है तो सर्वप्रथम समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाना होगा। उन्होंने कहा कि जाति के आधार पर श्रेष्ठता का निर्धारण नहीं होता है। बाबा साहब ने अपने जीवन में बौद्ध धर्म स्वीकार किया लेकिन सनातन धर्म को कभी नहीं छोड़ा। डॉक्टर साहब ने कहा था कि अगर देश सेवा का अवसर मिले तो सर्वस्व न्यौछावर करके सेवा करना चाहिए।

    संगोष्ठी की अध्यक्षता पूर्व सैन्य अधिकारी बसंत राम जी ने किया। इस अवसर पर गुलाब जी, रामकिशोर पोद्दार जी, जयप्रकाश जी, जगदीश जी, शंभू जी, भुनेश्वर, रोहित, ऋषि, अखिलेश, राम बाबू समेत बड़ी संख्या में आमजन उपस्थित रहे।

प्रतापगढ़ में मनाई गयी बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती

प्रतापगढ़| राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, प्रतापगढ़ के पट्टी खंड द्वारा स्नातकोत्तर महाविद्यालय,पट्टी में बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती की पूर्व संध्या पर डॉ अंबेडकर और समरसता विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया| संगोष्ठी में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ,  काशी प्रांत के सह प्रांत कार्यवाह डॉ राकेश तिवारी ने कहा कि डॉ भीमराव अंबेडकर संपूर्ण समाज में व्याप्त विभिन्न प्रकार की विसंगतियों को दूर करने के लिए आजीवन संघर्ष किये और समरसता को स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया| उन्होंने राष्ट्र के संविधान का निर्माण करके राष्ट्रवाद एकता और अखंडता को स्थापित किया| उन्होंने समय-समय पर अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के माध्यम से समाज को एकता के सूत्र में बांधने का कार्य किया| डॉ. राकेश ने कहा कि डॉ अम्बेडकर का स्पष्ट अभिमत था कि भारत पूर्व में अपने ही लोगो के विश्वासघात के कारण पराधीन रहा| उन्होंने संविधान सभा के अपने भाषण में स्वाधीन भारत को सशक्त बनाये रखने हेतु सामाजिक समरसता, बन्धुत्व, एकता और आपसी सहकार का भाव सुदृढ़ करने पर विशेष जोर दिया| विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर आर. डी. चौधरी ने कहा कि डॉ भीमराव अंबेडकर भारत के सच्चे शिल्पी थे| उन्होंने राष्ट्रवाद की भावना के आधार पर समाज में बंधुत्व का भाव स्थापित करने का कार्य किया है| वो महामानव थे| कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अखिलेश पांडेय ने डॉ भीमराव अंबेडकर के समग्र व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला और कहा कि महापुरुषों के जीवन से संबंधित प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में आते हैं| इसलिए इनका वास्तविक जीवन चरित्र जानना  चाहिए|

     संगोष्ठी कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ भीमराव अंबेडकर एवं भारत माता की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर किया गया| कार्यक्रम का संचालन जिला कार्यवाह डॉ. सौरभ पांडेय ने किया| कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. के.पी. सिंह, डॉ. आर.बी. अग्रहरि, डॉ. मिथिलेश त्रिपाठी,  डॉ. अनिल यादव, नागेंद्र जी, विनय तिवारी, रामेन्द्र जी समेत बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे|