तमिलनाडु में डीएमके सरकार द्वारा एड़ी-चोटी का जोर लगाने
के बावजूद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पथ संचलन वह रोक नहीं सकी. इस दल की सरकार
ने पहले सत्ता और फिर न्यायालय का प्रयोग करते हुए अड़ंगा डालने का प्रयास किया.
लेकिन वह सफल नहीं हो पाया. रविवार, १६ अप्रैल को राज्य में ४५ स्थानों पर पथ संचलन संपन्न हुआ. उसे प्रतिसाद
भी अपार मिला. जनमानस में चर्चा हुई और मीडिया में स्थान मिला. जो बात नित्यक्रम
से होने वाली थी, उसे अपशगुन करने का प्रयास किया गया और जो
चीज वैसे उपेक्षित रह जाती, उसे प्रमुखता दिलवा दी. अपनी पहचान
के नाम पर हुड़दंग करने वालों को क्या मिला? कुछ भी नहीं.
लेकिन संघशक्ति के सत्य की अनुभूति निश्चित रूप से फिर एक बार मिली.
तमिलनाडु में संपन्न हुए
इन ४५ पथ संचलनों में से प्रमुख संचलन चैन्नई के कोरट्टूर में हुआ. रा. स्व. संघ
के दक्षिण क्षेत्र संघचालक डॉ. आर. वन्नीयराजन और केंद्रीय मंत्री एल. मुरुगन
प्रमुखता से सहभागी थे. उनके अलावा फेडरेशन ऑफ ऑल चेट्टियार संघ के प्रदेशाध्यक्ष
अरुणाचलम, तमिलनाडु नाडर संघ के प्रदेशाध्यक्ष
मुथ्थू रमेश, वीर वन्नियार संघ के प्रदेशाध्यक्ष जय हरी,
बोयार संघ के प्रदेशाध्यक्ष बालचंदर, सौराष्ट्र
समुदाय के अध्यक्ष एस. आर. अमरनाथ, माया वंश महासभा के राज्य
सचिव एस. के. शिवकुमार, वीलेज पीपल्स वेलफेयर एसोसिएशन के
अध्यक्ष सी. पी. पच्चैयप्पन, आदि कार्यक्रम में सहभागी हुए
थे. ये सारे नाम देने का कारण यह जताने के लिए है कि तमिलनाडु के सभी स्तरों और
सारे समुदायों के प्रतिनिधि इसमें सम्मिलित हुए थे.
पथ संचलन का महत्व क्या
है? वास्तव में संघ का संचलन संघ के दैनंदिन
आचरण का एक अंग है. जन साधारण और हिन्दू समाज में
आत्मविश्वास पैदा करने तथा स्वयं-अनुशासन व प्रामाणिकता बनाए रखने के लिए संचलन
होता है. यह ऐसा कार्यक्रम होता है, जिसमें दिखाया जाता है
कि हिन्दू समाज एकजुटता से, दृढ़ता से और स्थिरता से कूच कर
सकता है. संगठन के रूप में रा. स्व. संघ की प्रक्रिया का वह अंग है.
लेकिन तमिलनाडु की द्रमुक
सरकार इस संचलन का होना हजम नहीं कर पाई. कार्यकर्ता आधारित पार्टी का ढिंढोरा
पीटने वाले द्रमुक में हाल में कार्यकर्ताओं में अव्यवस्था का माहौल है. दो या तीन
दशकों पूर्व द्रविड आंदोलन में (फिर उसका स्वरूप चाहे जो हो) अथवा द्रमुक पार्टी
में जो एका था, वह कब का नदारद हो
गया है. आज द्रमुक और उसकी सरकार की स्थिति उस शाही हवेली जैसी है, जिसकी सारी रौनक चली गई है. परिवारवाद से ऊब चुके लोगों को नया विकल्प
चाहिए. साथ ही लगातार सत्ता के कारण कार्यकर्ताओं में पैठ बना चुकी गुंडागिरी को
लेकर भी लोगों में रोष है. एक तरफ अपनी यह फिसलन और दूसरी तरफ संघ स्वयंसेवकों का
बढ़ने वाला बल और उनकी निष्ठा एम. के. स्टालिन को नागवार नहीं गुजरेगी तो और क्या
होगा?
यही कारण था कि उन्होंने
संघ के संचलन पर पाबंदी लगाने का तानाशाही आदेश जारी किया जो उनके नाम के अनुरूप
ही था. संघ का संचलन होना था 02 अक्तूबर,
2022 यानि महात्मा गांधी जयंती के दिन. उसके लिए चेन्नई सहित ५०
स्थानों पर संचलन की योजना संघ ने की थी. इसके लिए पुलिस से विधिवत् अनुमति भी
मांगी गई थी. लेकिन उसी दिन चिरुत्तैगल विडुदलै कट्चि पार्टी द्वारा मानव श्रृंखला
आंदोलन की घोषणा किए जाने का कारण देते हुए, कानून-व्यवस्था
की समस्या का बहाना बनाकर यह अनुमति नकारी गई.
इस पर पहले मद्रास उच्च
न्यायालय और बाद में उच्चतम न्यायालय में केस चला और उच्चतम न्यायालय ने संचलन
होने के पक्ष में निर्णय दिया. तब कहीं जाकर आखिर रविवार को यह संचलन संपन्न हुआ.
इसके लिए भी पुलिस ने १२ शर्तें लगाई थीं, जिनका पालन करते हुए संचलन संपन्न हुए.
राज्य के अलग-अलग हिस्सों
में निकले संचलनों को जो प्रतिसाद मिला, वह स्वयंस्फूर्त था. उनकी तस्वीरें और वीडियो घूम रहे हैं. अकेले चेन्नई
में कोरट्टूर के संचलन में पेरांबूर, तिरुवोट्टीयुर, अम्पाथूर और वडपलनी इलाकों के 1,200 से अधिक
स्वयंसेवक गणवेश में सहभागी हुए थे. दक्षिण तमिलनाडु में यह आंकड़ा १२ हजार से
अधिक और उत्तर तमिलनाडु प्रांत में ८ से अधिक था. यानि दोनों प्रांत मिलाकर २०
हजार से अधिक स्वयंसेवकों ने संचलन किया. स्थानीय मीडिया ने भी इसे अच्छी-खासी
प्रसिद्धि दी. (इसमें द्रमुक के ‘दिनकरन’ जैसे समाचारपत्रों अथवा चैनलों का अपवाद है, लेकिन
जिनकी नस-नस में छिछलापन भरा है, उनसे कोई और अपेक्षा कैसे
की जा सकती है?)
यह एक जबरदस्त तमाचा है, उन लोगों पर जो संघ का भयगंड़ स्वयं भी
रखते हैं और दूसरों में पैदा करते है ताकि वे अपनी रोटी सेंक सकें. इसके पीछे एक
कारण हिन्दूफोबिया भी है.
यही कारण है कि राज्य
सरकार और पुलिस ने इससे पूर्व हिन्दू मक्कल काट्चि तमिलगम संगठन को भी राज्यस्तरीय
सम्मेलन के लिए अनुमति देने से इन्कार किया था. उसका भी कारण वही था – कानून और व्यवस्था. उस संगठन को भी
मद्रास उच्च न्यायालय ने 29 जनवरी, 2023 को राज्यस्तरीय सम्मेलन करने की अनुमति दी थी.
सत्यमेव जयते हमारे देश
के उच्चतम न्यायालय का ध्येय वाक्य है. उसी न्यायालय के आदेश पर, अपने लोकतांत्रिक अधिकारों पर अमल करते
हुए, उस लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति पूर्ण सम्मान रखते
हुए और दिखाते हुए संघ ने यह कर दिखाया है.
विघ्नैः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमाना, प्रारब्धमुत्तमजनाः
न परित्यजन्ति …..इस
उक्ति के अनुसार संघ की सज्जनशक्ति का विश्व को फिर से दर्शन हुआ है.
- देविदास देशपांडे
(स्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत)
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