WELCOME

VSK KASHI
63 MADHAV MARKET
LANKA VARANASI
(U.P.)

Total Pageviews

Sunday, March 17, 2024

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अ. भा. प्रतिनिधि सभा में पारित प्रस्ताव – श्रीराममन्दिर से राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर

प्रस्ताव

श्रीराममन्दिर से राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर

पौष शुक्ल द्वादशी, युगाब्द 5125 (22 जनवरी 2024) को श्रीरामजन्मभूमि पर श्रीरामलला के विग्रह की भव्य-दिव्य प्राण प्रतिष्ठा विश्व इतिहास का एक अलौकिक एवं स्वर्णिम पृष्ठ है। हिन्दू समाज के सैकड़ों वर्षों के सतत संघर्ष एवं बलिदान, पूज्य संतों और महापुरुषों के मार्गदर्शन में चले राष्ट्रव्यापी आंदोलन तथा समाज के विभिन्न घटकों के सामूहिक संकल्प के परिणामस्वरुप संघर्षकाल के एक दीर्घ अध्याय का सुखद समाधान हुआ। इस पवित्र दिवस को जीवन में साक्षात् देखने के शुभ अवसर के पीछे शोधकर्ताओं, पुरातत्वविदों, विचारकों, विधिवेत्ताओं, संचार माध्यमों, बलिदानी कारसेवकों सहित आंदोलनरत समस्त हिन्दू समाज तथा शासन-प्रशासन का महत्त्वपूर्ण योगदान विशेष उल्लेखनीय है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा इस संघर्ष में जीवन अर्पण करनेवाले सभी हुतात्माओं के प्रति श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए उपर्युक्त सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती है।

श्रीराममन्दिर में अभिमंत्रित अक्षत वितरण अभियान में समाज के समस्त वर्गों की सक्रिय सहभागिता रही। लाखों रामभक्तों ने सभी नगरों और अधिकांश  गाँवों में करोड़ों परिवारों से संपर्क किया। 22 जनवरी 2024  को भारत ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व में अद्भुत आयोजन किये गए। गली-गली और गाँव-गाँव में स्वप्रेरणा से निकली शोभायात्राओं, घर-घर में आयोजित दीपोत्सवों तथा लहराती भगवा पताकाओं और मंदिरों-धर्मस्थलों में हुए संकीर्तनों आदि के आयोजनों ने समाज में एक नवीन ऊर्जा का संचार किया।

श्री अयोध्याधाम में प्राणप्रतिष्ठा के दिन देश के धार्मिक, राजनैतिक एवं समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के शीर्ष नेतृत्व तथा सभी मत-पंथ-सम्प्रदाय के पूजनीय संतवृंद की गरिमामयी उपस्थिति थी। यह इस बात की द्योतक है कि श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप समरस, सुगठित राष्ट्रजीवन खड़ा करने का वातावरण बन गया है। यह भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारंभ का संकेत भी है। श्रीरामजन्मभूमि पर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से परकीयों के शासन और संघर्षकाल में आई आत्मविश्वास की कमी और आत्मविस्मृति से समाज बाहर आ रहा है। सम्पूर्ण समाज हिंदुत्व के भाव से ओतप्रोत होकर अपने “स्व” को जानने तथा उसके आधार पर जीने के लिए तत्पर हो रहा है।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जीवन हमें सामाजिक दायित्वों के प्रति प्रतिबद्ध रहते हुए समाज व राष्ट्र के लिए  त्याग करने की प्रेरणा देता है। उनकी शासन पद्धति “रामराज्य” के नाम से विश्व इतिहास में प्रतिष्ठित हुई, जिसके आदर्श सार्वभौमिक व सार्वकालिक हैं। जीवन मूल्यों का क्षरण, मानवीय संवेदनाओं में आई कमी, विस्तारवाद के कारण बढ़ती हिंसा व क्रूरता आदि चुनौतियों का सामना करने हेतु रामराज्य की संकल्पना सम्पूर्ण विश्व के लिए आज भी अनुकरणीय है।

प्रतिनिधि सभा का यह सुविचारित मत है कि सम्पूर्ण समाज अपने जीवन में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को प्रतिष्ठित करने का संकल्प ले, जिससे राममंदिर के पुनर्निर्माण का उद्देश्य सार्थक होगा। श्रीराम के जीवन मे परिलक्षित त्याग, प्रेम, न्याय, शौर्य, सद्भाव एवं निष्पक्षता आदि धर्म के शाश्वत मूल्यों को आज  समाज में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्यक है। सभी प्रकार के परस्पर वैमनस्य और भेदों को समाप्त कर समरसता से युक्त पुरुषार्थी समाज का निर्माण करना ही श्रीराम की वास्तविक आराधना होगी।

अ. भा. प्र. सभा समस्त भारतीयों का आवाहन करती है कि बंधुत्वभाव से युक्त, कर्तव्यनिष्ठ, मूल्याधारित और सामाजिक न्याय की सुनिश्चितता करनेवाले समर्थ भारत का निर्माण करें, जिसके आधार पर वह एक सर्वकल्याणकारी वैश्विक व्यवस्था का निर्माण करने में अपनी महती भूमिका का निर्वहन कर सकेगा।

Friday, March 15, 2024

अ.भा.प्र.सभा : अक्षत वितरण अभियान में 45 लाख कार्यकर्ताओं ने 19.38 करोड़ परिवारों से संपर्क किया – डॉ. मनमोहन वैद्य जी

  • प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दिन 9.85 लाख कार्यक्रमों में 27.81 करोड़ लोगों की सहभागिता
  • संघ सम्पूर्ण समाज का संगठन है, 99 प्रतिशत जिलों में संघ कार्य
  • संघ शिक्षा वर्ग के पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण बदलाव
  • नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का शुभारम्भ

नागपुर, 15 मार्च| राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बळिराम हेडगेवार ने कहा था कि, “संघ सम्पूर्ण समाज का संगठन है”. इसका अनुभव हम गत 99 वर्षों से कर रहे हैं. वर्ष 2017 से 2024 तक संघ कार्य के विस्तार का आकलन करने से इसकी व्यापकता ध्यान में आती है. देश के 99 प्रतिशत जिलों में संघ का कार्य चल रहा है. यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य जी ने आज अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के शुभारंभ के पश्चात स्वामी दयानंद सरस्वती परिसर में आयोजित प्रेस ब्रीफिंग के दौरान कही.

मंच पर अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील जी आम्बेकर भी उपस्थित थे. इस अवसर पर अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख द्वय – नरेंद्र कुमार जी और आलोक कुमार जी भी उपस्थित थे.

इससे पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का शुभारम्भ सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने भारत माता के चित्र पर पुष्पार्चन करके किया. इस वर्ष बैठक का आयोजन नागपुर (महाराष्ट्र) में रेशिम बाग, स्मृति मन्दिर परिसर में 15-17 मार्च तक किया गया है. बैठक में सभी 45 प्रांतों से 1500 से अधिक कार्यकर्ता उपस्थित हैं.

डॉ. मनमोहन वैद्य ने संघ कार्य के विस्तार के बारे में बताया कि कार्य की दृष्टि से संघ के 45 प्रान्त हैं, इसके बाद विभाग और फिर जिला, खंड ऐसी रचना है. ऐसे 922 जिलों में, 6597 खंडों (तहसील) में तथा 12-15 गावों का एक समूह जिसे हम मण्डल कहते हैं, ऐसे 27720 मंडलों में संघ की कुल 73,117 दैनिक शाखाएं लगती हैं. गत वर्ष से 4466 शाखाएं बढ़ी हैं. इन शाखाओं में 60 प्रतिशत विद्यार्थी और 40 प्रतिशत नौकरी अथवा व्यवसाय करने वाले कार्यकर्ताओं का समावेश है. इसमें 40 वर्ष से अधिक आयु के प्रौढ़ों की संख्या 11 प्रतिशत है. साप्ताहिक मिलन की संख्या 27,717 है, जिसमें गत वर्ष से 840 साप्ताहिक मिलनों की वृद्धि हुई. संघ मंडली की संख्या 10,567 है. नगर और महानगरों के 10 हजार बस्तियों में 43 हजार प्रत्यक्ष शाखाएं लगती हैं.

महिला समन्वय

महिला समन्वय के कार्य में राष्ट्र सेविका समिति व विभिन्न संगठनों में सक्रिय महिला कार्यकर्ताओं के माध्यम से 44 प्रान्तों में 460 महिला सम्मेलन हुए, जिसमें 5 लाख 61 हजार महिलाएं सहभागी हुईं. संघ के शताब्दी वर्ष की तैयारी की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण है. भारतीय चिन्तन, समाज परिवर्तन में महिलाओं की सक्रिय सहभागिता बढ़े, यही इसका हेतु है.

अहिल्याबाई होल्कर की जन्म की त्रिशताब्दी वर्ष मई 2024 से अप्रैल 2025 तक मनाई जाने वाली है. अहिल्याबाई होल्कर ने देशभर के धार्मिक स्थलों का पुनर्निमाण करवाया और अभावग्रस्त लोगों के आर्थिक स्वावलम्बन के लिए बहुत कार्य किए हैं, जिसके संबंध में समाज को जानकारी नहीं है. इस वर्ष उनके योगदान को सम्पूर्ण भारत में प्रसारित करने की दृष्टि से योजना पर कार्य शुरू है. आगामी लोकसभा चुनाव में शत प्रतिशत मतदान हो, इस हेतु संघ स्वयंसेवक घर-घर जाकर जन जागृति करेंगे.

अयोध्या में रामलला प्राण-प्रतिष्ठा से संघ का व्यापक जनसंपर्क हुआ. अक्षत वितरण अभियान द्वारा 5,78,778 गावों और 4,727 नगरों के कुल 19 करोड़, 38 लाख, 49 हजार, 71 परिवारों से स्वयंसेवक सहित 44 लाख, 98 हजार 334 रामभक्तों ने संपर्क किया. इस अभियान द्वारा प्राप्त उत्साही प्रतिक्रिया और स्वागत ने लोगों में हमारे विश्वास को फिर से आश्वस्त किया.

संघ शिक्षा वर्गों की रचना में नवीन पाठ्यक्रम

संघ शिक्षा वर्ग की रचना में नवीन पाठ्यक्रम जोड़ने का निर्णय हुआ है. पहले संघ शिक्षा वर्ग की रचना में – 7 दिनों का प्राथमिक शिक्षा वर्ग, 20 दिनों का प्रथम वर्ष, 20 दिनों का द्वितीय वर्ष और 25 दिनों का तृतीय वर्ष होता था. अब आगे नवीन रचना में 3 दिनों का प्रारम्भिक वर्ग, 7 दिनों का प्राथमिक शिक्षा वर्ग तथा 15 दिनों का संघ शिक्षा वर्ग तथा कार्यकर्ता विकास वर्ग-एक 20 दिन और 25 दिनों का कार्यकर्ता विकास वर्ग-2 होंगे. इन वर्गों में विशेष रूप से व्यावहारिक प्रशिक्षण का समावेश भी रहेगा.

rss.org संघ के इस बेबसाइट पर प्रतिवर्ष जॉइन आरएसएस हेतु वर्ष 2017 से 2023 तक एक लाख से अधिक रिक्वेस्ट निरंतर आ रही है. जनवरी और फ़रवरी २०२४ में इन आंकड़ों में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद दोगुनी बढ़ोतरी हुई है.



सत्य का सामना कराती है – बस्तर : द नक्सल स्टोरी, अवश्य देखिए

 -    लोकेन्द्र सिंह

द केरल स्टोरी’ के बाद सुदीप्तो सेन ने फिल्म ‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ के माध्यम से आतंकवाद को, उसके वास्तविक रूप में, सबके सामने रखने का साहसिक प्रयास किया है. भारत में कम्युनिस्ट, नक्सल और माओवाद (संपूर्ण कम्युनिस्ट परिवार) के खून से सने हाथों एवं चेहरे को छिपाने का प्रयास किया जाता रहा है. लेफ्ट लिबरल का चोला ओढ़कर अकादमिक, साहित्यिक, कला-सिनेमा एवं मीडिया क्षेत्र में बैठे अर्बन नक्सलियों ने कहानियां बनाकर हमेशा लाल आतंक का बचाव किया और उसकी क्रांतिकारी छवि प्रस्तुत की. जबकि सत्य क्या है, यही दिखाने का काम ‘बस्तर : द नक्सल स्टोरी’ ने किया है. फिल्म संवेदनाओं को जगाने के साथ ही आँखों को भिगो देती है. फिल्म जिस दृश्य के साथ शुरू होती है, वह दर्शकों को हिला देता है. जब मैं ‘बस्तर’ की विशेष स्क्रीनिंग देख रहा था, तब मैंने देखा कि अनेक महिलाएं एवं युवक भी पहले ही दृश्य को देखकर रोते हुए सिनेमा हॉल से बाहर निकल गए. जरा सोचिए, हम जिस दृश्य को पर्दे पर देख नहीं पा रहे हैं, उसे एक महिला और उसकी बेटी ने भोगा है. फिल्म में कुछ दृश्य विचलित कर सकते हैं. यदि उन दृश्यों को दिखाया नहीं जाता, तो दर्शक कम्युनिस्टों की हिंसक मानसिकता का अंदाजा नहीं लगा सकते थे. 76 जवानों को जलाकर मारने की घटना का चित्रांकन, कुल्हाड़ी से निर्दोष वनवासियों की हत्या करने के दृश्य, मासूम बच्चों को उठाकर आग में फेंक देने की घटना, यह सब देखने के लिए दम चाहिए.

सुदीप्तो सेन को सैल्यूट है कि उन्होंने बेबाकी से लाल आतंक के सच को दिखाया है. हालांकि, कम्युनिस्ट हिंसा की और भी क्रूर कहानियां हैं, जिन्हें दिखाया जाना चाहिए था. लेकिन फिल्म में समय की एक मर्यादा है. अपेक्षा है कि सुदीप्तो इस पर एक वेब-सीरीज़ लेकर आएं.

बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ जिस दृश्य से शुरू होती है, फिल्म वहीं से दर्शकों को बाँध लेती है. भारत का राष्ट्र ध्वज तिरंगा फहराने के ‘अपराध’ में नक्सलियों ने एक महिला की आँखों के सामने ही उसके पति के 36 टुकड़े कर दिए और एक पोटली में उसके शव को बाँधकर उसे सौंप दिया. जब वह महिला अपने पति के शव (36 टुकड़े) सिर पर रखकर घने जंगल से अपने घर की ओर जा रही होगी, तब कैसे चल पा रही थी, कल्पना नहीं की जा सकती. उसके सिर पर वह बोझ, दुनिया के किसी भी बोझ से अधिक भारी था. इस केंद्रीय कहानी के इर्द-गिर्द अन्य कहानियां भी साथ-साथ चलती हैं, जो लाल आतंक के सभी शेड्स को दिखाती है. फिल्म समाज के सामने उस नेटवर्क को भी उजागर करती है, जो जंगल से लेकर शहरों तक और नक्सली कैम्प से लेकर एजुकेशन कैम्पस तक फैला हुआ है. मीडिया से लेकर कोर्ट रूम तक की बहसों में किस प्रकार नक्सलियों एवं उनके समर्थकों के पक्ष में माहौल बनाया जाता है, यह भी फिल्म में देखने को मिलता है. हम फिल्म को गौर से देखेंगे तो यह भी भली प्रकार समझ पाएंगे कि नक्सल विचारधारा केवल जंगल तक सीमित नहीं है, वह हमारे आस-पास भी पनप रही है. इस संदर्भ में उस घटनाक्रम को भी दिखाया गया है, जिसमें नक्सलियों ने सोते हुए सीआरपीएफ के 76 जवानों की नृशंस हत्या की और उसका जश्न दिल्ली के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जेएनयू में मनाया गया. भारत विरोधी इस विचारधारा को समझने और उसे फैलने से रोकने में प्रत्येक देशभक्त नागरिक को अपनी भूमिका निभानी होगी.

फिल्म में एक संवाद है – “बस्तर की सड़कें डामर से नहीं, जवानों के खून से बनी हैं”. बस्तर की 55 किलोमीटर लंबी एक सड़क को बनाने के लिए 41 जवानों का बलिदान हुआ है. नक्सली अपने प्रभाव के क्षेत्रों में न तो स्कूल बनने देते हैं और न ही अस्पताल. फिल्म यह भी बताती है कि वनवासी बंधुओं को हिंसा में धकेलकर कम्युनिस्ट धन उगाही का धंधा कर रहे हैं. भारत विरोधी ताकतों से करोड़ों का फंड ले रहे हैं और अपना घर बना रहे हैं. लाल गलियारे के खनिज संपदा की लूट भी कम्युनिस्टों का एजेंडा है. याद रहे कि दुनिया में जहाँ कहीं कम्युनिस्ट सत्ता में रहे, वहाँ उन्होंने लाखों निर्दोष लोगों की हत्याएं की हैं. कम्युनिस्ट आतंक ने सोवियत संघ में दो करोड़ लोगों की हत्या की, चीन में साढ़े छह करोड़, वियतनाम में 10 लाख, उत्तर कोरिया में 20 लाख, कंबोडिया में 20 लाख, पूर्वी यूरोप में 10 लाख, लैटिन अमेरिका में डेढ़ लाख, अफ्रीका में 17 लाख, अफगानिस्तान में 15 लाख लोगों की हत्या की गई है. पिछले 70-75 वर्षों में साम्यवादी प्रयोगों से लगभग 10 करोड़ लोग मारे जा चुके हैं. बोको हरम और आईएसआईएस के बाद दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकी नक्सली हैं.

वर्तमान समय में भारतीय सिनेमा ने एक नयी करवट ली है. सिनेमा अपनी महत्वपूर्ण और आवश्यक भूमिका का निर्वहन कर रहा है. यही कारण है कि ‘द कश्मीर फाइल’ से लेकर ‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ जैसी फिल्में बनाने की हिम्मत निर्माता-निर्देशक कर पा रहे हैं. भारतीय सिनेमा अब उस सच को सामने लाने का साहस दिखा रहा है, जिसे वर्षों से छिपाया जाता रहा या फिर उसका महिमामंडन किया गया. ‘बस्तर’ में निर्देशक सुदीप्तो सेन ने बहुत शानदार काम किया है. यह फिल्म दर्शकों को अंत तक बांधे रखने में सफल होती है. फिल्म के माध्यम से जिस सच को निर्देशक समाज तक ले जाना चाहते हैं, उसमें भी वे सफल रहे हैं. अदा शर्मा ने अपनी भूमिका में एक बार फिर प्रभाव छोड़ा है. उन्होंने एक साहसी और जिम्मेदार पुलिस अधिकारी की भूमिका का निर्वहन किया है. अदा शर्मा के साथ ही इंदिरा तिवारी, शिल्पा शुक्ला, यशपाल शर्मा, राइमा सेन और अनंगशा विस्वास जैसे कलाकारों ने भी अपना प्रभाव छोड़ा है.

द केरल स्टोरी’ के प्रोड्यूसर विपुल अमृतलाल शाह ‘बस्तर’ के भी प्रोड्यूसर एवं क्रिएटिव डायरेक्टर हैं. भारत जिस अघोषित युद्ध का सामना कर रहा है, उसका संपूर्ण सच बताने के लिए 15 मार्च, 2024 को सिनेमाघरों में ‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ आ रही है. सच देखना चाहते हैं तो हिम्मत बटोरकर यह फिल्म अवश्य देखें.

Thursday, March 14, 2024

अ. भा. प्र. सभा : संघ शताब्दी वर्ष पर समाजहित में पंच परिवर्तन पर होगी चर्चा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गत ९९ वर्षों से सामाजिक संगठन के रूप में कार्यरत है. अगले वर्ष २०२५ की विजयादशमी को संघ की स्थापना के १०० वर्ष पूरे हो जाएंगे. शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में कार्य योजना को लेकर इस अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में विचार-मंथन होगा. १५, १६ और १७ मार्च तीन दिन तक चलने वाली बैठक में संघ कार्यों की, विशेष कर संघ शाखाओं की समीक्षा होगी. शताब्दी वर्ष के निमित्त संघ ने कार्य – विस्तार की दृष्टि से १ लाख शाखा का लक्ष्य रखा है. यह जानकारी प्रतिनिधि सभा के पूर्व, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील जी आंबेकर ने प्रेस ब्रीफिंग में दी. इस दौरान मंच पर पश्चिम क्षेत्र संघचालक डॉ. जयंतीभाई भाडेसिया उपस्थित थे.

उल्लेखनीय है कि २०१८ के पश्चात् यह प्रतिनिधि सभा लगभग ६ वर्ष के बाद नागपुर में हो रही है. इस बैठक में पूरे देश से १५२९ प्रतिनिधि अपेक्षित हैं. बैठक में संघ प्रेरित ३२ संगठनों और कुछ समूहों की सहभागिता रहेगी. जिसमें राष्ट्र सेविका समिति की वंदनीय प्रमुख संचालिका शांताक्का जी, विश्व हिन्दू परिषद के आलोक कुमार जी आदि मान्यवर उपस्थित रहेंगे. सभी संगठन देशभर में चलने वाले अपने-अपने कार्यों और उन क्षेत्रों की विविध समस्याओं और उसके समाधान के लिए चल रहे प्रयत्नों से अवगत कराते हैं, उस पर चर्चा होती है.

२२ जनवरी को अयोध्या में श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा से पूरे देश में उत्साह और आनंद का वातावरण बना है. यह ऐतिहासिक घटना भारतीय परिप्रेक्ष्य में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है. इस प्रतिनिधि सभा में इस सम्बन्ध में प्रस्ताव लाया जाएगा.

इस बैठक में संघ के माननीय सरकार्यवाह जी के चुनाव की प्रक्रिया पूरी होगी तथा इसके पूर्व सभी 11 क्षेत्रों के माननीय संघचालकों के चुनाव की प्रक्रिया भी पूरी होगी।

सरसंघचालक जी के देशव्यापी प्रवास की योजना भी निश्चित होगी! साथ ही समाज हित में पंच परिवर्तन के लिए व्यापक चिन्तन होगा. इस पंच परिवर्तन के अंतर्गत – सामाजिक समरसता, कुटुम्ब प्रबोधन, पर्यावरण, ‘स्व’ आधारित व्यवस्था का आग्रह एवं नागरिक कर्तव्य का समावेश रहेगा. यह वर्ष अहिल्याबाई होलकर के जन्म-त्रिशताब्दी वर्ष है. इस निमित्त संघ की ओर से वक्तव्य जारी किया जाएगा. मई, २०२४ से अप्रैल २०२५ की अवधि में यह जन्म-त्रिशताब्दी मनायी जाएगी.

प्रतिनिधि सभा में नये पाठ्यक्रम के साथ होने वाले संघ शिक्षा वर्ग की भी चर्चा होगी.

इस अवसर पर संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख द्वय –नरेन्द्र कुमार जी तथा आलोक कुमार जी भी उपस्थित थे.

Saturday, March 9, 2024

घोष वादन द्वारा नटराज की नगरी में नादांजलि

 

काशी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी दक्षिण भाग के घोष वादकों द्वारा अखिल भारतीय घोष दिवस के उपलक्ष्य में अस्सी घाट स्थित सुबह-ए-बनारस के मंच पर घोष वादन किया गया। आनक, पणव, बंशी, शंख आदि विभिन्न प्रकार के वाद्यों की सुमधुर ध्वनि से पूरा अस्सी घाट क्षेत्र गुंजायमान हो उठा। बंशी पर नीरा, भूप, तिलंग, शिवरंजनी एवं श्रीपाद रचना का वादन हुआ। शंख पर किरण, सोनभद्र एवं श्रीराम रचना का वादन हुआ। इस अवसर पर काशी दक्षिण भाग के मा.संघचालक श्री अरुण कुमार ने कहा कि प्राचीन काल में युद्ध में जाने वाले सैनिकों के उत्साहवर्धन हेतु घोष वादन किया जाता था। बाद में विभिन्न देशों के सेना बैण्ड द्वारा घोष के रागों की रचना की गयी। वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के घोष विभाग द्वारा भी कई भारतीय रागां की रचना की गयी है और यह हर्ष का विषय है कि भारतीय सेना के सभी अंगों द्वारा इन भारतीय रागों को अपने सेना बैण्ड में वादन के लिए प्रयोग किया जाता है।

काशी दक्षिण भाग के घोष प्रमुख शरद जी ने वादन दल का नेतृत्व किया। कार्यक्रम में विश्व संवाद केन्द्र काशी के प्रमुख राघवेन्द्र जी, सह विभाग सेवा प्रमुख विनोद जी, भाग प्रचारक विक्रान्त जी, सम्पर्क कृष्ण मोहन जी सहित बड़ी संख्या में स्वयंसेवक एवं नागरिक उपस्थित रहे।