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Tuesday, April 28, 2020

स्वदेशी स्वीकार – चीनी बहिष्कार – स्वदेशी से बनाएं समृद्ध भारत




भारत में विश्व की 17.7% जनसंख्या निवास करती है और इतनी ही अर्थात विश्व की 18.4% जनसंख्या चीन में भी है. लेकिन, विश्व के विनिर्माणी उत्पादन अर्थात वर्ल्ड मैनुफेक्चरिंग में चीन का अंश 21.5% है, वहीं हमारा अंश मात्र 3% है.  भारत में  हम अपनी आवश्यकता व उपयोग में लाई जाने वाली वस्तुओं के उत्पादन में जितनी अधिक भागीदारी स्वदेशी वस्तुओं की बढ़ाएंगे, उतने ही अधिक से अधिक रोजगार का सृजन कर हम, देश के सकल घरेलू उत्पाद भी उसी अनुपात में वृद्धि कर सकेंगे. ऐसी उत्पादन वृद्धि से ही सरकार के राजस्व की आय में वृद्धि होगी, व्यापार घाटे पर नियन्त्रण हो सकेगा और उससे रुपया भी सुदृढ़ होगा और इसके परिणामस्वरूप देश में उन्नत प्रौद्योगिकी का विकास हो सकेगा. देश के बाजारों में आज चीनी वस्तुओं की भरमार से, जहाँ देश के बहुतांश उद्योगों के बन्द होने से हमें बेरोजगारी व बैंकों को नॉन परफार्मिग एसेट्स का सामना करना पड़ रहा है. देश का विदेश व्यापार घाटा भी असहनीय हो रहा है.
पिछले वर्ष भारत का चीन के साथ 54 अरब डॉलर का विदेश व्यापार घाटा था एवं वर्ष 2017-2018 में चीन के साथ हमारा व्यापार घाटा 63 अरब (4.5 लाख करोड़ रुपये) का रहा है. भारत लगभग 90 अरब डॉलर (7 लाख करोड़ रुपये) का आयात करता रहा है. इस प्रकार भारत के साथ शत्रुतापूर्ण कार्यवाहियों में लिप्त चीन का 7-10 लाख करोड़ रुपयों से आर्थिक सशक्तिकरण करना एक गम्भीर आत्मघाती कदम है.
चीन में 1949 में कम्युनिस्ट शासन की स्थापना के समय से ही चीन की साम्यवादी सरकार भारत के विरूद्ध निरंतर शत्रुतापर्ण कार्रवाईयों लिप्त रही है. चीन ने 1962 में भारत पर आक्रमण करके लगभग पूरे स्विट्जरलैंड के क्षेत्रफल (41,000 वर्ग किमी.) जितने 38,000 वर्ग किमी. क्षेत्रफल के अक्साई-चिन पर अधिकार कर लिया था, जो आज तक उसी के अधिकार में है. इसके साथ ही विगत 10 वर्षों से वह प्रतिवर्ष 150 से 400 बार हमारी सीमा में घुसपैठ करता रहा है और इन्हीं घुसपैठों के माध्यम से इंच दर इंच आगे बढ़ते हुए हमारे कई अत्यंत उर्वरा चरागाह क्षेत्रों व ऊंचाई वाले रणनीतिक महत्व के क्षेत्रों पर अधिकार करता जा रहा है. दूसरी ओर पाकिस्तान के साथ हुये भारत के 1965, 1971 और 1999 के खुले युद्ध में भी चीन पाकिस्तान को समर्थन देता रहा है. चीन की ये भारत विरोधी कार्यवाहियों बढ़ती ही जा रही हैं. हाल ही में चीन ने जून 2017 में सिक्किम में भारतीय सीमा में घुसकर बुलडोजर से सेना के दो बंकर भी तोड़ दिए. इसी प्रकार चीन द्वारा इन विगत 10 वर्षों में अनेक अवसरों पर भारत द्वारा आतंकवादियों के सम्बन्ध में लाए प्रस्तावों का संयुक्त राष्ट्र में विरोध, आणविक आपूर्ति समूह में प्रवेश का विरोध, ब्रह्मपुत्र का जल रोकना व आए दिन की घुसपैठ आदि सभी भारत के विरूद्ध घोर शत्रुतापूर्ण कार्यवाहियां है. वस्तुतः चीन में 1949 में साम्यवादी सरकार के बनने के बाद से ही भारत के प्रति वह निरन्तर शत्रुतापूर्ण व्यवहार करता रहा है. आज वह भारत के विरूद्ध आर्थिक, सामरिक, आतंकवादी व कूटनीति प्रेरक द्वेषपूर्ण कार्यवाहियों में लिप्त हो प्रत्यक्ष व परोक्ष में सब प्रकार से हानि पहुंचाने के कार्य कर रहा है. स्वयं चीन की भारत विरोधी गतिविधियाँ तो चरम पर हैं ही, वह पाकिस्तान को भी हर प्रकार की भारत विरोधी कार्यवाही के लिए सभी वैध व अवैध तरीकों से सहयोग कर रहा है.
देश में साधारण केल्कुलेटर, कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, टीवी सेट जैसे उपभोक्ता उत्पादों से लेकर टेलीफोन एक्सचेंज और सौर पैनल तक अनेक साज सामान चीन से आ रहे हैं. देश की कुल मांग का लगभग 50 से 90% तक चीन पर निर्भरता उचित नहीं है. यदि देश के सभी नागरिक चीनी वस्तुओं और अन्य भी विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करते हुए जहाँ -जहां भी स्वदेशी वस्तुएं उपलब्ध होने पर केवल स्वदेशी अर्थात मेड बाई भारत वस्तुओं व सेवाओं को ही क्रय करेंगे तो भारत विश्व की एक अग्र पंक्ति की आर्थिक शक्ति बन सकता है. कृषि उद्योग व्यापार, वाणिज्य व विविध सेवाओं के क्षेत्र में हम क्रमांक एक की आर्थिक शक्ति बन सकते हैं. वर्तमान कोरोना जनित महामारी के कारण भारत सहित विश्व के सभी देश चीन से दूरी बनाकर चीनी वस्तुओं का बहिष्कार व चीनी वस्तुओं के आयातों और चीनी विदेशी निवेश पर कई प्रकार के प्रतिबन्ध आरोपित कर रहे हैं. इसके अतिरिक्त वर्तमान कोरोना संकट व लॉकडाउन के बाद रिवर्स ग्लोबलाइजेशन अर्थात वैश्वीकरण के प्रतिगमन की प्रक्रिया आरम्भ होगी. भारत को इसका लाभ उठाना चाहिए. रिवर्स ग्लोबलाइजेशन में  भारत चीन से आयातों पर निर्भरता न्यूनतम कर, दो अंको में आर्थिक वृद्धि दर अर्जित कर सकता है. वैश्विक स्तर पर भारत की जो विश्वसनीयता, सामर्थ्य व क्षमताएँ प्रकट हुई है, उसे देखते हुए भारत प्रत्यनपूर्वक विश्व का प्रमुख उत्पादन केन्द्र या मेन्युफेक्चरिंग डेस्टिनेशन बन सकेगा. इसके लिए हमे सर्वप्रथम चीनी व अन्य विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्तुओं को प्राथमिकता देनी होगी. चीनी वस्तुओं के बहिष्कार और उससे चीन के पराभव से ही भारत के लिए  उत्पादन, व्यापार व वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (ग्लोबल सप्लाई चैन) का केंद्र बनना आसान होगा. आज हमारे चीन से इलेक्ट्रानिक सामानों का आयात लगभग 45% है, मशीनरी आयात 35%, कार्बनिक रसायन  40%, मोटर वाहन स्पेअर्स और उर्वरक 25%, सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री 65 – 70% और मोबाइल के साज सामान 90% व सोलर पेनल भी 90% चीन से आते हैं. भारत को विविध उत्पादों की आपूर्ति में चीन पर निर्भरता समाप्त करनी होगी. हमारे निर्यातों का 5%  चीन को जाता है. चीन सामान्यतः कच्चे माल का आयात कर निर्मित वस्तुएँ हमे निर्यात करता है. हमें देश में उत्पादन को बढ़ावा देकर स्वयं ही अब कच्चे माल का उपयोग स्वयं ही करना चहिये. चीन जैविक रसायन, प्लास्टिक, मछली उत्पाद, रबर, कपास, अयस्कों आदि का ही प्रमुखता से आयात करता है. कोरोना वायरस जैसे जैविक हथियार से विश्व मानवता के लिये उत्पन्न किये संकट के कारण सम्पूर्ण विश्व ही चीन से दूरी बनाता जा रहा है. इसलिए विश्व बाजारों में उसकी पहुंच समाप्ति की दशा में अब उसकी कच्चे माल की आवश्यकता भी न्यून या समाप्त हो जाएगी. चीन ने षड्यंत्र पूर्वक कोरोना वायरस से भारत सहित विश्व के विरूद्ध एक घृणित जैव आक्रमण किया है. उसे देखते हुए चीन की सभी वस्तुओं का बहिष्कार आज की प्रथम आवश्यकता है. सम्पूर्ण विश्व की व्यवस्थाओं को चौपट कर विश्व की एकमेव सत्ता बनने का दुःस्वप्न संजोकर चीन ने विश्व पर यह वायरस का आक्रमण किया है. ऐसे में वह विश्व को पंगु बना स्वयं एक मात्र महाशक्ति बन पूरे विश्व का अनादि काल तक शोषण करने में सफल नहीं हो जाये. इसके लिए चीनी वस्तुओं का बहिष्कार सबसे सरल व सर्वाधिक प्रभावी उपाय है. ऐसे में यदि हम टूथ पेस्ट, शीतल पेय, जूते के पॉलिश, बल्ब, ट्यूब लाइट, टीबी-फ्रिज, स्कूटर-कार, मोबाइल फोन, केल्कुलेटर व कम्प्यूटर सहित स्कूटर मोटर साइकल व कार पर्यन्त अधिकांश वस्तुओं में स्वदेशी ब्राण्ड या मेड बाई भारत अर्थात स्वदेशी वस्तुएँ ही क्रय करेंगे तो भारत शीघ्र ही विश्व का प्रमुख उत्पादन केन्द्र व अग्रणी आर्थिक शक्ति का स्थान ले सकता है. हमें मेड इन इंडिया या मेक इन इंडिया के नाम पर चीनी व विदेशी कम्पनियों द्वारा देश में असेम्बल किये जा रहे उत्पादों के स्थान  पर मेड बाई भारत या मेड बाई इण्डिया अर्थात पूर्ण स्वदेशी उत्पादों को ही क्रय करना चाहिए. इस सम्बन्ध में स्वदेशी स्वीकार से हमारा आशय निम्नानुसार होना चाहिये”.
0 स्वदेशी, अर्थात् भारतीय उत्पाद या मेड बाई भारत उत्पाद, सेवाएँ व ब्राण्ड ही खरीदना. विदेशी आयातित व विदेशी कम्पनियों के मेड इन इण्डिया उत्पादों को छोड़ देना. चीन में आयातित व चीन के मेड इन इण्डिया ब्राण्ड उत्पाद कतई नहीं खरीदना. चीन मेक इन इण्डिया करने हेतु जो विदेशी निवेश ला रहा है, उसे पैर जमाने का अवसर नहीं देना.
आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा या आर्थिक राष्ट्रवाद, तकनीकी राष्ट्रवाद और मेड बाई भारत की रीति-नीति (स्ट्रेटेजी) का प्रसार व संवर्द्धन
कृषि व उद्योगों में यथेष्ट निवेश बढ़ाना
देश की कृषि जैव सम्पदा अर्थात् हमारे बीजों व पशु नस्लोंका संरक्षण, देश की जैव विविधता का संरक्षण
परिवार में सौहार्दपूर्वक सामाजिक समरसता के प्रसार के साथ हमारी राष्ट्रभाषा, मातृभाषा के संरक्षण के साथ-साथ वेशभूषा, आहार व जीवन मूल्यों को सुरक्षित रखना इस दृष्टि से परिवारों में सकारात्मक व सम्पूरक संवाद व हिन्दी व अपनी मातृभाषा को बढ़ावा अपने पारम्परिक जीवन मूल्यों के दृढ़ीकरण और प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्रीयता का आत्मगौरव बढ़ाना भी आवश्यक है. इस प्रकार आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा, तकनीकी राष्ट्रवाद, मेड बाई भारत को प्रोत्साहन के साथ ही समग्र संस्कृति का संरक्षण आज की प्रमुख आवश्यकता है.
कुटीर उद्योग, पारम्परिक कलाओं, पारम्परिक खाद्य, गीत, संगीत नृत्य नाटिकाओं का संरक्षण संवर्द्धन
अतएव विकास के लिये स्वदेशी उत्पाद व सेवाएँ अर्थात मेड बाई भारतया मेड बाई इण्डियाको छोड़कर कोई भी अन्य मार्ग नहीं है. हम सभी देश भक्त हैं. देश के लिये आवश्यक है कि हम अपनी खरीददारी में रोजगार प्रधान स्थानीय उद्योगों व लघु उद्योगों की वस्तुओं को प्राथमिकता प्रदान करें. विकेन्द्रित उत्पादन से ही समावेशी विकास सम्भव है. लघु उद्योगों के उत्पाद व ब्राण्ड उपलब्ध नहीं होने पर ही रोजगार विस्थापक बड़े उद्योगों के उत्पाद खरीदें. स्वदेशी उत्पादों की तुलना में विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के एवं विदेशों से आयातित उत्पादों का पूर्ण बहिष्कार करें. यदि विदेशी कम्पनियों के उत्पाद देश में नहीं बिकेंगे तो वे कुछ माह भी यहाँ नहीं टिक पाएंगी. स्वदेशी भाव जागरण से ही देश में स्वदेशी एक सशक्त मुद्दा बनेगा. स्वदेशी जागरण मंच 1991 से देश में वैश्वीकरण की शुरूआत के समय से ही यह आवाहन करता रहा है एवं इस मुद्दे पर जन जागरण करता रहा है. हम सब स्वदेशी जागरण मंच का ही अंग हैं. आइये हम सब स्वेदशी भाव जगाकर स्वावलम्बी राष्ट्र बनाएं. यदि अमेरिका जैसा देश (Be American-Buy American) का उद्घोष लगाता है तो हम स्वदेशी की बात क्यों नहीं करें. यदि एक सैनिक देश की राजनीतिक सम्प्रभुता के संरक्षण के लिए सीमा पर अपने प्राण तक न्यौछावर कर देता है, तब हम भी देश की आर्थिक सम्प्रभुता के लिये आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा व्यक्त करते हुए विदेशी वस्तुओं को त्यागकर मेड बाई इण्डिया को बढ़ावा दें. ऐसा करके ही हम स्वयं व हमारी भावी पीढ़ी को आसन्न आर्थिक अराजकता से बचा पाएंगे. आइये, हम सब स्वदेशी जागरण मंच के मेड बाई इण्डिया अभियान को सफल बनाएं. स्वदेशी वस्तु, सेवाएं भाषा, भूषा, भोजन, पारिवारिक मूल्य, समरसता की परम्परा, हमारी जैव विविधता, कृषि, पशुधन, पारम्परिक कलाएँ आदि प्रत्येक स्वदेशी आयाम का प्राणपण से बल दें. इसके साथ ही विदेशी वस्तुओं का परित्याग करें और चीनी वस्तुओं को तो भूल कर भी क्रय नहीं करें.
- प्रोफेसर भगवती प्रकाश
श्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत

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