इंसान दो ही तरह के होते हैं, अच्छे
और बुरे. चाहे वो किसी भी धर्म को मानने वाले क्यों न हों.
हर धर्म में अच्छे लोग भी हैं, बुरे लोग भी
हैं. दो दिन से ट्विटर पर तबलीगी हीरोज़, तबलीगी जमात
पर गर्व है, आदि ट्रेंड करवाया जा रहा है. इसने मुझे सोचने पर
मजबूर कर दिया कि क्या सचमुच यह लोग हीरो हैं और जो अब तक इन्हें गलत बता रहे थे – वह
विलेन हैं?
मैंने
इस ट्रेंड के बहुत सारे ट्वीट पढ़े, पर एक भी
ट्वीट मुझे ऐसा नहीं मिला जो इन्हें हीरो बनने का अवसर देने वालों का एहतराम करे.
निःसंदेह दूसरों को खून देकर जान बचाने वाले लोग हीरो ही हैं. उनके इस प्रयास का
जितना भी धन्यवाद किया जाए, उनकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है. लेकिन काश कि यह
लोग उन लोगों से माफी भी मांग लेते, जिनके कारण आज
इस लायक हो पाए हैं कि दूसरों की जान बचा सकें.
मैं साफ तौर पर यह मानता हूं कि
दिल्ली में जो मरकज हुआ, उसके लिए जितना गुनाहगार तबलीगी जमात है, उतना
ही बड़ा गुनाह सरकार ने भी किया है. यह संभव ही नहीं कि सरकार की जानकारी के बिना
इतना बड़ा सम्मेलन हो जाए, इतने देशों के लोग आ जाएं, वह भी
ऐसे समय में जब पूरी दुनिया में यात्रा पर प्रतिबंध लगने वाला था या लग चुका था.
लेकिन तबलीगी जमात ने अपनी बदनामी खुद की. काश कि यह लोग स्वयं आगे आ जाते और
स्वयं ही यह घोषणा कर देते कि हां भाई हम इस मरकज में शामिल थे, हमारा
टेस्ट करो और अगर हम पॉजिटिव हैं तो हमारा इलाज करो. हम नहीं चाहते कि हमारे कारण
हमारे दूसरे भाई बंधु खतरे में पड़ें. आज पूरे देश में इनकी वाहवाही होती. आज देश
का हर इंसान इनका ऋणी होता और कोरोना से लडाई की
स्थिति भी अपने देश में निश्चित ही इस से बेहतर होती.
हिन्दू
और मुस्लिम समुदाय कन्धे से कन्धा मिलाकर एकसाथ यह जंग लड़ता. एक शानदार और एक
भारत का संदेश पूरी दुनिया के सामने जाता, किंतु
इन्होंने ऐसा नहीं किया. इन्होंने अपना टेस्ट करने आए लोगों पर पत्थर फेंकना शुरू
किया, उन पर थूकना शुरू किया, उनका
इलाज करने वाली महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार किया और इसी कारण देश की आम जनता में
इनके खिलाफ माहौल बनना शुरू हुआ, उसके
पहले नहीं. स्थिति तब और बिगड़ गई, जब इनके समाज
के लोगों ने इनकी निंदा कर पुलिस, सरकार और
स्वास्थ्य कर्मियों के साथ सहयोग करने की सलाह देने की बजाय इन का बचाव करना शुरू
कर दिया. आज अगर सरकार, स्वास्थ्य कर्मियों और पुलिस वालों ने अपने अपमान
को भुलाकर, जोर जबरदस्ती कर इनका इलाज ना किया होता तो यह सब
लोग अपने साथ-साथ अपने अपनों को भी लेकर जमीन के अंदर सो रहे होते. दूसरों का जीवन
बचाने के लिए खुद जीवित भी रह पाते, इसमें संदेह
है.
ध्यान
देने की बात यह है कि कोरोना योद्धाओं में
सभी समुदायों के लोग शामिल हैं. इंदौर में टेस्ट करने गई एक मुस्लिम महिला
स्वास्थ्य कर्मी पहले दिन चोट खाने के बाद दूसरे दिन पुनः उसी जगह पर उन्हीं लोगों
का टेस्ट करने गई, जिन लोगों ने उस पर पत्थर बरसाये थे. उसे कभी ‘हीरो’ नहीं
बताया गया. हम आशा करते हैं जो लोग इन को हीरो बनाने पर तुले हुए हैं वो लोग सरकार, स्वास्थ्य
कर्मियों और पुलिसकर्मियों की भी सराहना अवश्य करेंगे, अपना
अपमान और शारीरिक हिंसा सहकर भी इन लोगों ने सच्ची इंसानियत की जो अद्वितीय मिसाल
कायम की है, खुद जख्म खाकर भी जख्म देने वाले का जीवन बचाया है, उसका
भी एहतराम अवश्य करेंगे. ये अवश्य स्वीकार करेंगे कि विलेन तो कोई नहीं है, किंतु
इन्हें अपनी जान पर खेल कर हीरो बनने का मौका देने वाले उस से भी बडे़ हीरो अवश्य
मौजूद हैं. संख्या बल के आधार पर किसी मुद्दे को ट्रेंड कर देना अलग बात है और
इंसानियत के आधार पर किसी के दिल में जगह बना लेना अलग. संकट गहरा है, अदृश्य
है, बहुत ही भयंकर है और वार करने से पहले हिंदू
मुस्लिम नहीं देखता.
भारत
जिन्दाबाद!
- मुकेश कुमार सिंह
श्रोत - विश्व
संवाद केन्द्र, भारत
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