नई दिल्ली. विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय महासचिव
मिलिंद परांडे ने कहा कि नए संसद भवन का उद्घाटन भारत के लोगों की अंतर्निहित एकता, परंपरा, संस्कृति,
जीवन मूल्य (मूल्यों) को दर्शाता एक महान आयोजन है.
आज भारत के लिए एक
महत्वपूर्ण तारीख है जब हमारे प्रधानमंत्री ने नए संसद भवन को राष्ट्र को समर्पित
किया है. यह समर्पण कार्यक्रम तमिझगम के 21 अधीनमों द्वारा सेंगोल को सौंपे जाने से किया गया. अधीनम शैव सिद्धांतम
मठों के प्रमुख हैं, जिनकी स्थापना 1000 साल पहले पूरे तमिलनाडु में शिव मंदिरों और धर्मग्रंथों के प्रचार और
सुरक्षा के लिए की गई थी. सेंगोल, एक राजा के धर्मी शासन,
उसके राज्य के न्यायपूर्ण शासन और लोगों के कल्याण का प्रतीक है और
विभिन्न तमिल साहित्य में इसे सुशासन के सबसे महत्वपूर्ण लेख के रूप में दर्शाया
गया है. आम तौर पर एक संत सेंगोल को राज्य के नए शासक को सौंपते हैं, पवित्र भजनों के साथ आशीर्वाद देते हैं और उनसे तमिल में “सेंगोल वझुवमल अतची पुरिया वेंडुम” कहते हैं,
जिसका अर्थ है, “सेंगोल को गिराए बिना राज्य
पर शासन करना”. यदि उसका शासन धर्मी नहीं है, तो सेंगोल उसके हाथों से गिर जाएगा.
उन्होंने कहा कि वही
सेंगोल जो आज हमारे प्रधानमंत्री को भेंट किया गया है, उसका पहली बार 14 अगस्त,
1947 को अनावरण किया गया था. अंग्रेजों ने भारतीय परंपरा के अनुसार
शासन सौंपने की प्रक्रिया के बारे में जवाहर लाल नेहरू से पूछा. और उन्होंने बदले
में श्री राजाजी से पूछा, जो तमिल साहित्य से अच्छी तरह
परिचित थे और वो जानते थे कि सेंगोल सदियों की परंपरा रही है. उन्होंने
तिरुवदुथुराई अधीनम से इसे एक बार फिर बनाने का अनुरोध किया. और इसे चेन्नई के
ज्वैलर वुम्मूदी बंगारूचेट्टी द्वारा बनाया गया था और 14 अगस्त
को नई दिल्ली भेजा गया था. थिरुवदुथुराई अधीनम के प्रमुख कुमारस्वामी थम्बिरन ने
तब सेंगोल को सौंपा था, जो उन्होंने माउंटबेटन से जवाहरलाल
नेहरू को सत्ता सौंपने के संकेत के रूप में प्रदान किया था.
मिलिंद परांडे ने कहा कि यह आयोजन भारतीय संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिकता को दर्शाता है, जो इस पवित्र राष्ट्र के निहित लक्षण हैं. अध्यात्म और राष्ट्रीयता, इस देश की दो आंखें हैं जैसा कि श्री मुथुरामलिंगा थेवर ने कहा है. विश्व हिन्दू परिषद इस आयोजन को राष्ट्र का गौरव मानती है, क्योंकि इसने राष्ट्र की ऐतिहासिक, पवित्र संस्कृति और परंपरा को उजागर किया है और कुछ राष्ट्र विरोधी और हिन्दू विरोधी ताकतों द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए इसका राजनीतिकरण करने के प्रयास की निंदा की है. विश्व हिन्दू परिषद इस अध्यात्म के संदेश को आने वाले दिनों में पूरे देश में ले जाएगी, जब विहिप अपने स्थापना के 60वें वर्ष में प्रवेश कर रही है.