- कोरोना काल में संघ के 5.60 लाख स्वयंसेवक सेवा कार्य में जुटे थे
- प्रत्येक मंडल तक संघ कार्य पहुंचे, अगले तीन वर्षों की योजना पर होगी चर्चा
- प्रतिनिधि सभा की बैठक में कल होगा सरकार्यवाह का चुनाव
उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण मार्च माह
से जून तक संघ का कार्य पूर्ण बंद था, शाखाएं बंद थीं. जुलाई से धीरे-धीरे
शाखाएं लगना प्रारंभ हुई थीं. शाखाएं बंद थीं, लेकिन संघ स्वयंसेवक सक्रिय थे. कोरोना
के कारण निर्मित आपदा में समाज की सहायता के लिए पहले दिन से ही देशभर में
स्वयंसेवक सक्रिय थे. अन्य देशों में जहां वेलफेयर स्टेट प्रभावी है, वहां
स्टेट मशीनरी ही सक्रिय होती है. लेकिन यह भारत की विशेषता है कि यहां सरकारी, प्रशासन
की सेवाओं के साथ-साथ समाज भी सहयोगी था. बाढ़, भूकंप में सेवा करना अलग बात है, लेकिन
कोरोना काल में संक्रमण के खतरे के बावजूद स्वयंसेवकों ने बड़ी मात्रा में सेवा
कार्य किया.
सह सरकार्यवाह ने बताया कि कोरोना काल
में स्वयंसेवकों ने देशभर में सेवा भारती के माध्यम से 92,656 स्थानों
पर सेवा कार्य किए, इसमें
5,60,000 कार्यकर्ता
सक्रिय रहे, 73 लाख
राशन किट वितरित किए, 4.5
करोड़
लोगों को भोजन पैकेट वितरित किए गए, 90 लाख मास्क का वितरण किया, 20 लाख
प्रवासी लोगों की सहायता की गई. 2.5 लाख घुमंतू लोगों की सहायता की, 60 हजार
यूनिट रक्तदान भी किया. केवल संघ ही नहीं, समाज के अनेक संगठनों, मठ, मंदिर, गुरुद्वारों
ने भी समाज की सेवा की.
उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष मार्च की
तुलना में 89 प्रतिशत
शाखाएं पुनः प्रारंभ हो गई हैं. संघ का कार्य देश के सभी जिलों में है. देश में 6495 खंडों
(तालुका) में से 85 प्रतिशत
में संघ का कार्य है,
58,500 मंडलों में से 40 प्रतिशत
में प्रत्यक्ष शाखा है और 20
प्रतिशत
में संपर्क है. आने वाले तीन वर्षों में सभी मंडलों तक संघ का कार्य पहुंचे, ऐसा
हमारा प्रयास रहेगा.
उन्होंने कहा कि श्रीराम मंदिर केवल एक
मंदिर नहीं है, श्रीराम
भारत की संस्कृति का परिचय है, चरित्र है. सोमनाथ मंदिर की प्राण
प्रतिष्ठा के समय 1951 में
तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था – मंदिर
हमारे सांस्कृतिक जागरण का केंद्र रहे हैं. आज यहां मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो
रही है, जिस
दिन भारत के सांस्कृतिक मूल्य और भारत की समृद्धि उस ऊंचाई तक पहुंचेगी, तभी
यह मंदिर निर्माण का कार्य पूर्ण होगा.
इस संदर्भ में देखा जाए तो सारे भारत को
एक सूत्र में जोड़ने की भावनात्मक शक्ति श्रीराम हैं. भगवान मानें या ना मानें, लेकिन
सांस्कृतिक मूल्यों का प्रतीक अवश्य मानते हैं.
निधि समर्पण अभियान में स्वयंसेवकों का
उद्देश्य अधिक निधि एकत्र करना नहीं था. देशभर में अधिक से अधिक गांवों, परिवारों
तक पहुंचने का लक्ष्य था. इससे पहले इतना व्यापक जनसंपर्क अभियान नहीं हुआ था.
अभियान के तहत स्वयंसेवक 5,45,737
स्थानों
पर पहुंचे और लगभग 20 लाख
कार्यकर्ता संपर्क अभियान में लगे. अभियान के तहत देश में 12,47,21,000 परिवारों
से स्वयंसेवकों ने संपर्क किया. संपूर्ण देश में भावनात्मक एकात्मा का अनुभव हुआ
है.
बैठक में कोरोना काल में समाज का सहभाग, भारत
ने दुनिया के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया, वैक्सीन उपलब्ध करवाई, अभिनंदन
करने वाला प्रस्ताव रहेगा. श्रीराम मंदिर को लेकर भी प्रस्ताव पर चर्चा होगी.
उन्होंने कहा कि कोरोना काल और श्रीराम
मंदिर जनसंपर्क अभियान में ध्यान में आया कि संघ को जानने की समाज में उत्सुकता
बढ़ी है. इसलिए स्थान-स्थान पर संघ परिचय वर्ग की योजना बनेगी. ऐसी हमारी योजना
है. संघ से जुड़ने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ी है. समाज परिवर्तन के कार्य में
संघ के साथ मिलकर काम करने को उत्सुक लोग मिले हैं, उन सबको साथ लेकर समाज परिवर्तन की दिशा
में कैसे अधिक से अधिक हम काम कर सकते हैं, इसके साथ ही अगले तीन वर्षों में संघ
कार्य का विस्तार, कार्यकर्ताओं
का विकास आदि पर भी चर्चा होगी.
स्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत
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