WELCOME

VSK KASHI
63 MADHAV MARKET
LANKA VARANASI
(U.P.)

Total Pageviews

Tuesday, July 26, 2022

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी के उद्बोधन के अंश - …जिसने हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ ताल-मेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाया है

 

नई दिल्ली. देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमन्ना ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई. राष्ट्रपति पद की शपथ के बाद द्रौपदी मुर्मू ने एक अलग अंदाज में सांसदों का अभिवादन किया.


राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी के उद्बोधन के अंश

जोहार ! नमस्कार !

मैं भारत के समस्त नागरिकों की आशा-आकांक्षा और अधिकारों की प्रतीक इस पवित्र संसद से सभी देशवासियों का पूरी विनम्रता से अभिनंदन करती हूँ.

आपकी आत्मीयता, आपका विश्वास और आपका सहयोग, मेरे लिए इस नए दायित्व को निभाने में मेरी बहुत बड़ी ताकत होंगे.

मुझे राष्ट्रपति के रूप में देश ने एक ऐसे महत्वपूर्ण कालखंड में चुना है, जब हम अपनी स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहे हैं. आज से कुछ दिन बाद ही देश अपनी स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे करेगा. ये भी एक संयोग है कि जब देश अपनी स्वाधीनता के 50वें वर्ष का पर्व मना रहा था, तभी मेरे राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई थी. और आज 75वें वर्ष में मुझे ये नया दायित्व मिला है.

26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस है. ये दिन, भारत की सेनाओं के शौर्य और संयम, दोनों का ही प्रतीक है. मैं आज, देश की सेनाओं को तथा देश के समस्त नागरिकों को कारगिल विजय दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं देती हूं.

हमारा स्वाधीनता संग्राम उन संघर्षों और बलिदानों की अविरल धारा था, जिसने स्वतंत्र भारत के लिए कितने ही आदर्शों और संभावनाओं को सींचा था. महात्मा गांधी ने हमें स्वराज, स्वदेशी, स्वच्छता और सत्याग्रह द्वारा भारत के सांस्कृतिक आदर्शों की स्थापना का मार्ग दिखाया था.

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, नेहरू जी, सरदार पटेल, बाबा साहेब आंबेडकर, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे अनगिनत स्वाधीनता सेनानियों ने हमें राष्ट्र के स्वाभिमान को सर्वोपरि रखने की शिक्षा दी थी.

रानी लक्ष्मीबाई, रानी वेलु नचियार, रानी गाइदिन्ल्यू और रानी चेन्नम्मा जैसी अनेकों वीरांगनाओं ने राष्ट्ररक्षा और राष्ट्र निर्माण में नारीशक्ति की भूमिका को नई ऊंचाई दी थी.

संथाल क्रांति, पाइका क्रांति से लेकर कोल क्रांति और भील क्रांति ने स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समाज के योगदान को सशक्त किया था. सामाजिक उत्थान एवं देश-प्रेम के लिए धरती आबाभगवान् बिरसा मुंडा जी के बलिदान से हमें प्रेरणा मिली थी.

दशकों पहले मुझे रायरंगपुर में श्री अरबिंदो इंटीग्रल स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्य करने का अवसर मिला था. कुछ ही दिनों बाद श्री अरबिंदो की 150वीं जन्मजयंती मनाई जाएगी. शिक्षा के बारे में श्री अरबिंदो के विचारों ने मुझे निरंतर प्रेरित किया है.

मैंने देश के युवाओं के उत्साह और आत्मबल को करीब से देखा है. हम सभी के श्रद्धेय अटल जी कहा करते थे कि देश के युवा जब आगे बढ़ते हैं तो वे सिर्फ अपना ही भाग्य नहीं बनाते, बल्कि देश का भी भाग्य बनाते हैं. आज हम इसे सच होते देख रहे हैं.

मेरा जन्म तो उस जनजातीय परंपरा में हुआ है, जिसने हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ ताल-मेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाया है. मैंने जंगल और जलाशयों के महत्व को अपने जीवन में महसूस किया है. हम प्रकृति से जरूरी संसाधन लेते हैं और उतनी ही श्रद्धा से प्रकृति की सेवा भी करते हैं. मैंने अपने अब तक के जीवन में जन-सेवा में ही जीवन की सार्थकता को अनुभव किया है.

जगन्नाथ क्षेत्र के एक प्रख्यात कवि भीम भोई जी की कविता की एक पंक्ति है

मो जीवन पछे नर्के पड़ी थाउ, जगत उद्धार हेउ”.

अर्थात, अपने जीवन के हित-अहित से बड़ा जगत कल्याण के लिए कार्य करना होता है.

जगत कल्याण की भावना के साथ, मैं आप सब के विश्वास पर खरा उतरने के लिए पूरी निष्ठा व लगन से काम करने के लिए सदैव तत्पर रहूंगी.

No comments: