इस बार दीपावली पर चीन को जोर का झटका लगेगा. दीपावली स्वदेशी
वस्तुओं के साथ मनाने को लेकर सरकार सहित समाज भी तैयारियों में जुटा है तथा अपने
तरीके से योगदान दे रहा है. चीनी झालर के स्थान पर स्वदेशी लड़ियां तैयार की जा
रही हैं, घरों को रोशन करने के लिए गाय के गोबर व गोमूत्र से दीये
तैयार किये जा रहे हैं.
इसी क्रम में उत्तर प्रदेश सरकार के
सहयोग से गोरखपुर के 200 मृदाशिल्पकार प्रतिदिन 14 हजार दीये और लक्ष्मी-गणेश की 1000 मूर्तियां
बना रहे हैं. अब तक लक्ष्मी-गणेश की ढाई लाख प्रतिमाएं और 85 लाख दीये
बना चुके हैं. लक्ष्य 10 लाख प्रतिमाएं और दो करोड़ दीये बनाने का है. कामधेनु आयोग के
प्रोत्साहन पर अनेक जगह गोबर से दीये बनाए जा रहे हैं.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जून में
घोषणा की थी कि इस बार चीन से दीये और मूर्तियां नहीं मंगाई जाएंगी, वरन
स्वदेशी उत्पादों की आपूर्ति का प्रयास होगा. वह भी पिछले साल की अपेक्षा कम कीमत
पर. इसके बाद प्रदेश के मृदाशिल्पकार को मूर्त रूप देने में जुट गए.
डिजाइनर दीये और मूर्तियां बनाने के
लिए डाई, कलर स्प्रे मशीन, मिट्टी और इलेक्ट्रिक चाक
प्रदान किए गए. गोरखपुर की बात करें तो एक जिला-एक उत्पाद योजना में शामिल
टेराकोटा वर्क शहर से सटे गुलरिहा, औरंगाबाद, भरवलिया
और एकला में होता है. जीआइ टैग मिलने के साथ कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट
पहचान भी मिली है.
दीये वाले कलश की मांग पहले से है ही, इस बार
सरकारी सहायता और प्रशिक्षण से खुश शिल्पकारों ने 21 दीये
वाला हाथी बनाया है. ये स्पेशल दीये सरकार से मिली आधुनिक मशीन और कलर स्प्रे मशीन
की सहायता से तैयार किए गए हैं. लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमाएं बनाने के लिए कुम्हारों
को प्लास्टर ऑफ पेरिस मिश्रित सीमेंट की डाई दी गई है. आठ और 12 इंच की ऊंचाई वाली इस डाई से मूर्तियों के कट और डिजाइन स्पष्ट बन रहे
हैं. पूर्व में कुम्हार रबर के सांचे से मूर्ति बनाते थे, जिससे कट
स्पष्ट नहीं होते थे. जिला खादी एवं ग्रामोद्योग के एक अधिकारी ने बताया कि इस बार
बाजार में सामान्य दीये एक से दो रुपये, टेराकोटा दीये दो रुपये और
डिजानइर दीये पांच रुपये में मिलेंगे. पहले इनकी कीमत पांच से बीस रुपये तक थी.
लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा 50 से 250 रुपये तक में मिलेगी.
उत्तर प्रदेश के माटी कला बोर्ड
अध्यक्ष धर्मवीर प्रजापति ने बताया कि उप्र में सरकार के सहयोग से स्वदेशी के
लक्ष्य को पूरा करने में मृदाशिल्पकार जुटे हैं. गोरखपुर ही नहीं, पूरे
प्रदेश के शिल्पकारों को जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं.
श्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत
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