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Saturday, April 17, 2021

संकट में सहयोगी बन रही स्वयंसेवकों द्वारा संचालित हेल्पडेस्क

मध्य प्रदेश में कोरोना के बढ़ते सक्रमण के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने पीड़ितों एवं जरूरतमंदों की सहायता के लिए हेल्पडेस्क स्थापित किया है. इसके माध्यम से स्वयंसेवक लोगों की सहयता करने, जरूरी सामान उपलब्ध कराने एवं स्वास्थ्य परामर्श उपलब्ध करवाने का कार्य कर रहे हैं. मध्यप्रदेश के प्रमुख शहरों, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर और विदिशा सहित अन्य शहरों में स्वयंसेवकों ने हेल्पडेस्क शुरू किया है.

भोपाल महानगर में हेल्पडेस्क पर सर्वाधिक फ़ोन कॉल

भोपाल में कोरोना हेल्पडेस्क के साथ काम करने वाले कार्यकर्ता बताते हैं कि प्रतिदिन लगभग 100 से अधिक फोन कॉल उन्हें प्राप्त हो रहे हैं. ज्यादातर लोग अस्पताल में बेड की उपलब्धता और स्वास्थ्य परामर्श के लिए बात कर रहे हैं. हम यथासंभव उनकी सहायता कर रहें हैं. हमने अपने साथ शहर के प्रतिष्ठित चिकित्सकों को जोड़ा है, जो लोगों को परामर्श दे रहे हैं. इसके साथ ही अस्पताल में मरीज के साथ अटेंडेंट को भोजन आदि उपलब्ध कराने का काम किया जा रहा है.

भोपाल के कार्यकर्ता भावेश श्रीवास्तव बताते हैं कि उन्हें सुबह से लेकर देर रात तक प्लाज्मा की व्यवस्था कराने हेतु संपर्क कर रहे हैं. इसके लिए वह अपने कार्यकर्ताओं से संपर्क करके जरूरतमंद व्यक्तियों को प्लाज्मा, भोजन और दवाइयों की व्यवस्था करने में जुटे हैं.

रात 12 बजे बच्चे को उपलब्ध कराया दूध

बीती रात एक परिवार ने फोन किया और बताया कि उनके घर में पति-पत्नी दोनों कोविड पॉजिटिव हैं. बच्चा भूख की वजह से परेशान हो रहा है. उसके लिए दूध की व्यवस्था करनी है. कार्यकर्ताओं ने अपने सहयोगी कार्यकर्ताओं से संपर्क करके रात 12:00 बजे ही उस छोटे बच्चे को दूध उपलब्ध कराया.

ग्वालियर हेल्पडेस्क पर भी आ रहे फोन

भोपाल की तरह ही ग्वालियर में भी कोरोना हेल्पडेस्क का संचालन स्वयंसेवकों द्वारा किया जा रहा है. नितिन अग्रवाल ने बताया कि उनके पास प्रतिदिन 20 से 25 फोन सहायता के लिए आ रहे हैं, जिनमें अधिकतर लोग प्लाज्मा संबंधी मदद मांग रहे हैं. ऐसे में कार्यकर्ताओं द्वारा प्लाज्मा डोनेट करने वाले लोगों की सूची बनाकर, उनसे संपर्क करके जरूरतमंद व्यक्ति को तुरंत ही प्लाज्मा उपलब्ध करा दिया जाता है. कुछ नागरिक हेल्पडेस्क के माध्यम से भोजन की व्यवस्था और अपने घरों के सेनेटाइजेशन कराने की भी मदद मांग रहे हैं.



स्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत

Thursday, April 15, 2021

आज़ादी का अमृत महोत्सव – एनसीसी ने जलियांवाला बाग के बलिदानियों को याद किया

नई दिल्ली. राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) ने आज ही के दिन यानि 13 अप्रैल, 1919 को जान गंवाने वाले जलियांवाला बाग नरसंहार के बलिदानियों को श्रद्धांजलि दी. यह श्रद्धांजलि आजादी के अमृत महोत्सवके निमित्त दी गई, जिसमें राष्ट्र आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है.

कुल 14 लाख का मजबूत कैडेट बेस रखने वाले एनसीसी के कैडेट्स नुक्कड़ नाटकों, देशभक्ति गीतों, भाषणों और नाटकों के माध्यम से स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करते हुए देश भर के 75 स्थानों पर एकत्र हुए. कैडेट द्वारा दी गई श्रद्धांजलि ने समूचे वातावरण को देशभक्ति के उत्साह से भर दिया और कई स्थानीय लोग भी कार्यक्रमों में शामिल हुए. सोशल मीडिया पर भी #NCCremembersJallianwala हैशटैग चला.

इस अवसर पर एनसीसी ने एकल उपयोग प्लास्टिकके खिलाफ लोगों को जागरूक करने के लिए एक अखिल भारतीय अभियान भी शुरू किया. स्वच्छता का संदेश और एकल उपयोग प्लास्टिककी समाप्ति का संदेश देकर रनिंग का आयोजन करने के बाद कैडेट्स इन 75 स्थानों पर एकत्र हुए. #NCCagainstPlastic हैशटैग के जरिए सोशल मीडिया पर यह संदेश फैलाया गया.

देश के एक प्रमुख युवा संगठन एनसीसी ने अपनी स्थापना के बाद से ही राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इसने अपने चरित्र को साकार रूप प्रदान कर और युवाओं को एकता और अनुशासनका रास्ता दिखाकर लाखों के जीवन को बदल दिया है. संगठन ने जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण, डिजिटल जागरूकता और स्वच्छता अभियान जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर आम जनता में जागरूकता फैलाने में प्रशंसनीय योगदान दिया है.

स्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत

राजस्थान – छबड़ा में जिहादी भीड़ ने हिन्दुओं की दुकानों को लूटा, फिर आग लगा दी

जयपुर. देश में मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति लंबे समय से चली आ रही है और कांग्रेस का इसमें विशेष योगदान है. कांग्रेस के देखादेखी अन्य दलों ने भी सत्ता के लिए इस नीति का सहारा लिया. राजस्थान में वर्तमान कांग्रेस सरकार भी इससे अछूती नहीं है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से ही राजस्थान में गोतस्करी, लव जिहाद और जिहादी दंगों में बढ़ोतरी हुई है. दंगों में हिन्दू समाज और उनकी सम्पत्तियों को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाया जाता है. छबड़ा की घटना भी तुष्टिकरण का परिणाम है. यदि पुलिस प्रशासन समय पर सचेत हो जाता तो हिन्दू समाज की दर्जनों दुकानें जिहादी लुटेरों से बचाई जा सकती थीं.

ऐसे उपजा उपद्रव

बारां जिले का छबड़ा कस्बा प्रदेश में तापीय बिजली उत्पादन इकाईयों के लिए प्रसिद्ध है. कस्बे में लगभग 25 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, जबकि शेष हिन्दू समाज है. कस्बे के धरनावदा चौराहे पर फलों के ठेले से अहमदपुरा निवासी कमल सिंह फल खरीद रहे थे. इसी दौरान मोटरसाइकिल टकराने की बात को लेकर तीन युवकों फरीद, आबिद और समीर से उनकी कहासुनी हो गई. इसके बाद मुस्लिम युवकों ने कमलसिंह पर चाकुओं से ताबड़तोड़ हमला कर दिया. बीच बचाव में आए एक अन्य युवक राकेश नागर पर भी युवकों ने हमला किया. इस मामले में मुस्लिम युवकों के विरुद्ध नामजद मामला दर्ज करवाया गया है. लेकिन पुलिस ने आरोपी युवकों को गिरफ्तार न कर राजनीतिक दबाव में अन्य तीन युवकों को थाने में बिठा लिया, जबकि हिन्दू समाज के लोग मुख्य आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग कर रहे थे.

दूसरी ओर जिहादी भीड़  हिन्दुओं की दुकानों को निशाना बनाने की योजना पर काम कर रहे थे. हमले के लिए कस्बे के अलीगंज बाजार को चुना गया. जहां अधिकांश दुकानें हिन्दुओं की हैं, लेकिन यह क्षेत्र मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्र से लगा है. रविवार को अलीगंज बाजार सामान्य दिनों की तरह खुला तो था, लेकिन खामोशी कुछ संकेत कर रही थी. मुस्लिमों की दुकानें बंद थीं और फलों के ठेले भी नदारद थे. दोपहर करीब एक बजे मुस्लिमों की भीड़ ने हाथों में तलवार, डंडे, सरिये आदि लेकर बाजार में प्रवेश किया. लोग कुछ समझ पाते इससे पहले ही विध्वंस शुरू हो गया. दुकानें लूटी गईं. लूट के बाद दुकानों को आग लगा दी गई. दर्जनों दुकानें जलकर राख हो गईं. दुकानदारों का रो-रोककर बुरा हाल है. लाखों की सम्पत्ति लुटेरे लूट ले गए. जो बची थी, उसमें आग लगा दी गई. तनाव के बीच पुलिस प्रशासन की भूमिका भी संदिग्ध मानी जा रही है. आरोप है कि बेकाबू मुस्लिमों का समूह जब क्षेत्र में तबाही मचा रहा था, पुलिस ने उसे रोकने का कोई प्रयास नहीं किया. लुटेरों को जो रास्ते में दिखा, उसे ही आग के हवाले किया. बाइक, बस, कार जो दिखी उसमें आग लगा दी.

छबड़ा में हिंदुओं की दुकानों में आग लगाई

कस्बे के अलीगंज बाजार में संदीप लुहाड़िया का तीन मंजिला रिद्धि-सिद्धि मिनी मार्ट है. मार्ट में किराना, कपड़े, फर्नीचर, कॉस्मेटिक, खिलौने, इलेक्ट्रिक आइटम्स, स्टेशनरी, प्लास्टिक आइटम्स, डेयरी प्रोडक्ट सहित कई आइटम्स बेचे जाते हैं. लुहाडि़या कहते हैं – “रोज की तरह रविवार सुबह भी मार्ट खोला था. दोपहर डेढ़ बजे माहौल खराब होने की सूचना पर मार्ट बंद किया. घर पहुंचते ही फोन आने शुरू हो गए. उपद्रवियों ने मार्ट में आग लगा दी. वापस लौटकर देखा तो मार्ट में आग की लपटें उठ रही थीं. सैकड़ों उपद्रवी हाथों में हथियार लिए खड़े थे. अग्निशमन विभाग में फोन किया, लेकिन दमकल नहीं पहुंची.आगजनी में सब कुछ जल गया. आग लगने से लगभग 30 से 40 लाख का नुकसान हो गया.

मोबाइल शॉप को भी बनाया निशाना

आजाद सर्किल पर अरुण गर्ग की मोबाइल की शॉप है. दुकान में 500 से लेकर 50 हजार कीमत के 600-700 मोबाइल थे. लुटेरों ने दुकान का शटर तोड़कर जमकर लूटपाट की. गर्ग कहते हैं – “हिम्मत करके मौके पर पहुंचा, लेकिन 100 से 200 मीटर की दूरी पर खड़ा-खड़ा देखता रहा. कुछ नहीं कर सका. उपद्रवियों के हाथों में हथियार थे. 15 से 20 मिनट में सारा खेल खत्म हो गया.अब दुकान में खाली डिब्बे पड़े हैं, 20 से 30 टूटे मोबाइल हैं. उपद्रवी दुकान का शटर भी तोड़कर साथ ले गए. लगभग 25 से 35 लाख का नुकसान हुआ है.

हिन्दू जागरण मंच के प्रदेश अध्यक्ष प्रताप भानू शेखावत आरोप लगाते हैं – “छबड़ा की घटना पूर्व नियोजित थी. इसकी सूचना इंटेलिजेंस को भी थी. जब जिहादी भीड़ हिन्दुओं की दुकानें लूट रही थी, आगजनी कर रही थी, तब फोन करने पर भी ना तो पुलिस आई और ना ही अग्निशमन वाहन पहुंचे. राजस्थान में जब से कांग्रेस का शासन आया है, मुस्लिम तुष्टिकरण चरम पर है. गो तस्करी, लव जिहाद, जिहादी दंगे, अवैध मस्जिद निर्माण और हिन्दू मंदिरों की भूमि पर अवैध कब्जों की घटनाएं बढ़ी हैं. छबड़ा की घटना ने समस्त हिन्दू समाज को हिला कर रख दिया है. हिन्दू जागरण मंच पूरे प्रदेश में इस घटना का लोकतांत्रिक तरीके से मुखर विरोध करेगा.

भाजपा प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया कहते हैं – “ना केवल छबड़ा में बल्कि पूरे प्रदेश में बहुसंख्यक हिन्दू आबादी सुरक्षित नहीं है, डर के माहौल में जी रही है. भाजपा का प्रतिनिधि मण्डल छबड़ा पीड़ितों से मुलाकात करने पहुंचा तो पुलिस प्रशासन ने पीड़ितों से मुलाकात नहीं करने दी. राज्य सरकार से मांग है कि छबड़ा में उपद्रवियों द्वारा जिन शोरूम और दुकानों को आग के हवाले किया गया है, उनके नुकसान की भरपाई आर्थिक मुआवजा देकर की जाए, हमला करने वाले एवं आग लगाने वाले उपद्रवियों की अविलम्ब गिरफ्तारी हो और राज्य सरकार हिन्दुओं की सुरक्षा करे.

स्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत

सेवा – कोरोना संक्रमितों की सहायता के लिए तीन एंबुलेंस की व्यवस्था, 100 होम क्वारेंटाइन मरीजों को घर पर सेवा दे रहे

राजकोट. देश के विभिन्न राज्यों में कोरोना संक्रमण पुनः तेजी से बढ़ रहा है. तेजी से बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए सरकार व प्रशासन को सख्त कदम उठाने पर विचार करना पड़ रहा है. यहां तक कि कुछ स्थानों पर पूर्ण व आंशिक लॉकडाउन की घोषणा भी की गई है.

सौराष्ट्र क्षेत्र भी कोरोना संक्रमण से अछूता नहीं है. संक्रमितों का आंकड़ा हजारों में पहुंच गया है. अनेक काल का ग्रास भी बन रहे हैं. विपदा की अवस्था में संघ का स्वयंसेवक घर में शांत कैसे बैठ सकता है? समाज की सहायतार्थ स्वयंसेवक पहले भी स्वप्रेरणा से आगे आए थे.

देश और दुनिया में सिरामिक इंडस्ट्री के लिए प्रसिद्ध सौराष्ट्र के मोरबी जिला में भी कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है. संकट काल में स्वयंसेवकों ने लोगों की समस्याएं देखीं तो उनके समाधान का जिम्मा उठाया. स्वयंसेवकों ने बैठक की और समस्याओं पर विचार किया तथा शहर में कोरोना रुग्णों को अस्पताल पहुंचाने की सुविधा हेतु निमित्त तुरंत तीन एंबुलेंस की व्यवस्था की, जो कोरोना पीड़ितों को 24×7 सेवाएं उपलब्ध करवा रही हैं.

स्वयंसेवक इतने मात्र से संतुष्ट नहीं हुए, कार्यकर्ताओं के साथ विचार विमर्श के पश्चात अन्य सेवाएं भी शुरू कीं. होम क्वारेंटाइन मरीजों को चिकित्सकीय सलाह उपलब्ध करवाना, पथ्य पालन की सूचना, होम क्वारेंटाइन मरीजों को फल-सब्जियां, भोजन व आवश्यक दवाइयां उपलब्ध करवाने की व्यवस्था की है. स्वयंसेवक प्रतिदिन 100 मरीजों को सेवा उपलब्ध करवा रहे हैं.

मोरबी शहर वही क्षेत्र है, जहां 1979 में मच्छु डेम टूटने की वजह से आई बाढ़ में हजारों जिंदगियां बह गई थीं. तब सेवा के लिए स्वयंसेवक आगे आए थे, स्वयंसेवकों ने सड़ चुके शवों को भी बिना डरे उठाया था. उस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने स्वयंसेवकों के सेवाकार्य की मुक्तकंठ से प्रशंसा की थी. अपने पूर्वज स्वयंसेवकों द्रारा स्थापित उज्ज्वल परंपरा का निर्वहन आज भी स्वयंसेवक कर रहे हैं. मोरबी में स्वयंसेवकों के सेवाकार्य की प्रशंसा हो रही है.

स्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत

देशभर में भूमि पूजन के साथ भूमि सुपोषण अभियान का शुभारंभ

 

वर्ष प्रतिपदा पर भूमि पूजन/भूमि वंदन के साथ संपूर्ण देश में भूमि सुपोषण अभियान का विधिवत शुभारंभ हो गया. कृषि एवं पर्यावरण क्षेत्र में कार्यरत 33 संस्थाओं ने मिलकर इस जन अभियान का संकल्प लिया है. अभियान का मुख्य उद्देश्य, भारतीय कृषि चिंतन, भूमि सुपोषण एवं संरक्षण की संकल्पनाओं को कृषि क्षेत्र में पुनःस्थापित करना है. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर देशभर में विभिन्न ग्रामों, नगरों, कस्बों में भूमि पूजन कार्यक्रमों का आयोजन हुआ. जिसमें किसानों, ग्रामजनों, गणमान्य लोगों ने भूमि के संरक्षण का संकल्प लिया.

अभी उचित समय है कि हम भारतीय कृषि चिंतन एवं उसमें स्थित भूमि सुपोषण संकल्पना को पुनः स्थापित करें. भूमि सुपोषण एवं संरक्षण हेतु राष्ट्र स्तरीय जन अभियान इसी दिशा में उठाया गया कदम है. भारतीय कृषि चिंतन में भूमि को धरती माता ऐसे संबोधित किया है. हमारे प्राचीन ग्रंथों में इसके उदाहरण सहजता से पाए जाते हैं.

    

जन अभियान में प्राधान्यतः भूमि सुपोषण, जन जागरण एवं भारतीय कृषि चिंतन एवं भूमि सुपोषण को बढ़ावा देने संबंधित कार्यक्रम रहेंगे. अभियान के प्रथम चरण की कालावधि तीन माह यानि आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा, २४ जुलाई २०२१ तक होगी.

आधुनिक कृषि में भूमि का स्थान मात्र एक आर्थिक स्रोत है. परिणामतः इस आधुनिक कालखंड में हमने भूमि का सतत शोषण किया है. बहुत कम मात्रा में हमने भूमि से निकाले हुए पोषण तत्वों का पुनः भरण किया है. वर्तमान में हमारे देश मे ९६.४० दशलक्ष हेक्टेयर भूमि अवनत है. यह हमारे कुल भौगोलिक क्षेत्र का ३०% है. भारत के अनेकों किसानों के अनुभव कहते हैं कि कृषि में लागत मूल्य निरंतर बढ़ रहा है, भूमि की उपजाऊ क्षमता घट रही है, ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा भी निरंतर घट रही है, जिसके कारण उत्पादन भी घट रहा है. भूमि की जल धारण क्षमता और जल स्तर अधिकांश स्थानों पर घट रहा है. कुपोषित भूमि के कारण मानव भी विभिन्न रोगों का शिकार हो रहा है. आधुनिक कृषि के गत वर्षों में भूमि सुपोषण संकल्पना की हमने अनदेखी की है.

अथर्वेद के भूमि सूक्त में कहा गया है, ‘माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः.इसका भावार्थ है कि भूमि हमारी माता है एवं हम उस के पुत्र. तात्पर्य, भूमि के पोषण की व्यवस्था करना हमारा कर्तव्य है. यह जन अभियान गत चार वर्षों से किए जा रहे व्यापक परामर्श प्रक्रिया का परिणाम है.

किसानों के साथ, कृषि वैज्ञानिकों के साथ परामर्शी बैठकें, कृषक अनुभव लेखन, कार्यशालाएं, कृषकों के हित में एवं कृषि क्षेत्र में कार्यान्वित संस्थाओं से परामर्श, २०१८ में भूमि सुपोषण राष्ट्रीय संगोष्ठी इत्यादि से जन अभियान संकल्पित हुआ है. भूमि सुपोषण एवं संरक्षण हेतु राष्ट्र स्तरीय जन अभियान का प्रारंभ भूमि पूजन विधि से होगा.

ग्रीष्मकाल में १४ मई अक्षय तृतीया से १४ जून गणेश चतुर्थी तक १ माह उपखण्ड केन्द्र (३५ से ४० गांवों का केंद्र) पर प्रबोधन एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम संपन्न होंगे. हमारी भूमि का सुपोषण करना यह मात्र कृषकों का उत्तरदायित्व नहीं है. इस जन अभियान की मुख्य संकल्पना है कि भूमि सुपोषण एवं संरक्षण यह हम सभी भारतीयों का सामूहिक उत्तरदायित्व है.

नगर क्षेत्रों में विविध हाउसिंग कालोनी में जैविक-अजैविक अपशिष्ट को अलग रखना एवं कालोनी के जैविक अपशिष्ट से कंपोस्ट (जैविक खाद) बनाना आदि गतिविधियों का आयोजन किया जाएगा. इस से अतिरिक्त सेमीनार, कार्यशाला, कृषक प्रशिक्षण, प्रदर्शनी आदि गतिविधियों का भी आयोजन होगा.

अभियान में अनेक संगठन जैसे -गायत्री परिवार, पतंजलि, रामकृष्ण मिशन, इशा फाऊंडेशन, ग्राम विकास, गौ सेवा, पर्यावरण गतिविधि के साथ ही अक्षय कृषि परिवार का भी समर्थन है.

भारतीय किसान संघ, विश्व हिन्दू परिषद, विद्या भारती, वनवासी विकास परिषद, एकल अभियान, दीनदयाल शोध संस्थान, सेवा भारती, सहकार भारती, ग्राम भारती, भारत सेवाश्रम संघ, प्रज्ञा मिशन आदि अनेक संगठन सहभाग कर रहे हैं.

जय मातृभूमि

स्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत

Monday, April 12, 2021

अश्विनी कुमार के हत्यारे जिहादियों को फांसी व घुसपैठियों को बाहर करो

विश्व हिन्दू परिषद ने बिहार के किशनगंज थाने के थानाध्यक्ष अश्विनी कुमार की इस्लामिक जिहादियों द्वारा मॉब लिन्चिंग कर की गई निर्मम हत्या व पुलिस बल पर हमले की घटना पर गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए अपराधियों का कठोरता से दमन करने की मांग की. विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय महामंत्री मिलिंद परांडे ने कहा कि पश्चिम बंगाल के उत्तरी दिनाजपुर जिले के पंजीपारा थाना क्षेत्र के पंथापड़ा गाँव में शनिवार सुबह हुआ यह नृशंस हत्याकांड कोई पहली घटना नहीं है. बंग्लादेशी घुसपैठियों, शराब व तस्करी के लिए कुख्यात इस क्षेत्र में पहले भी अनेक बार सुरक्षा बलों पर हमले हुए हैं. किन्तु, बंगाल के स्थानीय पुलिस-प्रशासन की उदासीनता व राजनैतिक संरक्षण के चलते यह क्षेत्र अपराधियों का स्वर्ग बन चुका है. ये जिहादी आतंकियों के स्लीपर सेल बनकर भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी खतरा हैं. इन हत्यारों, अपराधियों तथा अवैध घुसपैठियों की इन गतिविधियों पर पूर्ण विराम जरूरी है. 

उन्होंने कहा कि बिहार का सीमावर्ती जिला होने के कारण अपराधी बिहार में कांड कर आसानी से बंगाल में शरण ले लेते हैं और यदि वहां की पुलिस जांच के लिए जाती है तो वे उस पुलिस पार्टी के जानी दुश्मन बन जाते हैं. थानाध्यक्ष अश्विनी कुमार के बलिदान पर उनके परिजनों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए विहिप महामंत्री ने कहा कि अब इन बंग्लादेशी घुसपैठियों को चुन-चुन कर सीमा पार किया जाना तथा उनके राजनैतिक संबंधों को सार्वजनिक किया जाना भी नितांत आवश्यक है.

स्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत

Saturday, April 10, 2021

वाराणसी में ज्ञानवापी मामले में मंदिर पक्ष के वादी को मिली धमकी, सुरक्षा में एक गनर को लगाया गया


काशी / प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग लॉर्ड विश्वेश्वरनाथ की ओर से अदालत में मुकदमा दायर करने वाले लक्सा के औरंगाबाद निवासी हरिहर पांडेय को फोन कर जान से मारने की धमकी देने का मामला सामने आया है। इस बाबत हरिहर पांडेय की शिकायत के आधार पर उनकी सुरक्षा में एक गनर को लगाया गया है। दरअसल दो दिन पूर्व काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी के मामले में मंदिर पक्ष के वादी हरिहर पांडेय को फैसला आने के बाद किसी ने जान से मारने की धमकी दी है। पीड़‍ित ने बताया कि कोर्ट के फैसला आने के बाद धमकी दी गई है।इस बाबत हरिहर पांडेय ने पुलिस से शिकायत की तो शिकायत के बाद हरिहर पांडेय को सुरक्षा दी गई है। 

पुलिस के अनुसार ज्ञानवापी मामले में अदालत से परिसर का सर्वे कराने संबंधी फैसला आने के बाद मंदिर पक्ष के वादी को किसी ने पैरवी करने पर जान से मारने की धमकी दी थी। इस मामले में तत्‍काल सुरक्षा प्रदान की गई है। वहीं फोन करने वाले अज्ञात व्‍यक्ति के बारे में जांच पड़ताल की जा रही है। जांच में जो भी मामला सामने आएगा उस अनुरूप विधिक कार्रवाई की जाएगी। 

वर्ष 1991 में ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और हिंदुओं को पूजा-पाठ करने का अधिकार देने आदि को लेकर प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ की ओर से पं सोमनाथ व्यास, हरिहर पांडेय एवं अन्य ने अदालत में मुकदमा दायर किया था। इस मुकदमे में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड प्रतिवादी पक्ष है। इस मुकदमे की सुनवाई सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) की अदालत में चल रही है। पं.सोमनाथ व्यास के निधन के बाद अदालत के आदेश पर पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ की ओर से वाद मित्र नियुक्त हुए। हरिहर पांडेय मुकदमे में वादी पक्ष हैं। हरिहर पांडेय ने बताया कि आठ अप्रैल की रात मोबाइल पर काल कर खुद को दालमंडी का यासीन बताने वाले ने जान से मारने की धमकी दी है।

साभार - दैनिक जागरण

https://www.jagran.com/uttar-pradesh/varanasi-city-temple-party-plaintiff-was-threatened-in-the-gyanvapi-case-a-gunner-was-put-in-security-in-varanasi-21545487.html 

Thursday, April 8, 2021

काशी विश्वनाथ मंदिर ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण की अनुमति

काशी । न्यायालय ने काशी विश्वनाथ मंदिर ज्ञानवापी परिसर विवाद मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. न्यायालय ने परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण का आदेश दिया है, सर्वेक्षण का खर्च सरकार द्वारा वहन किया जाएगा. मामले को लेकर वाराणसी की फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई चल रही थी. सीनियर डिवीजन, फास्ट ट्रैक कोर्ट सिविल जज आशुतोष तिवारी ने फैसला सुनाया. कोर्ट ने 1991 से सर्वेक्षण को लेकर चल रहे मामले पर आदेश जारी किया है. कोर्ट ने निर्देश दिया कि पुरातत्व विभाग के 5 लोगों की टीम बनाकर पूरे परिसर का अध्ययन किया जाए.

रिपोर्ट्स के अनुसार मामले में वादी पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी ने बताया कि 1991 में दायर याचिका में मांग की गई थी कि मस्जिद ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर मंदिर का एक अंश है. जहां हिन्दू आस्थावानों को पूजा-पाठ, दर्शन और मरम्मत का अधिकार है. स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर के पक्षकार पंडित सोमनाथ व्यास और अन्य ने याचिका दायर की थी. मुकदमे में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद तथा अन्य विपक्षी हैं. मुकदमा दाखिल करने वाले दो वादियों डॉ. रामरंग शर्मा और पंडित सोमनाथ व्यास की मौत हो चुकी है. जिसके बाद वादी पंडित सोमनाथ व्यास की जगह पर प्रतिनिधित्व कर रहे वादमित्र पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी ने प्रार्थनापत्र में कहा है कि कथित विवादित परिसर में स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ का शिवलिंग आज भी स्थापित है. यह देश के बारह ज्योतिर्लिंग में से है और मंदिर परिसर पर कब्जा करके मस्जिद बना दी है. 15 अगस्त, 1947 में विवादित परिसर का स्वरूप मंदिर का ही था. अब वादी ने कोर्ट से भौतिक और पुरातात्विक दृष्टि से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा रडार तकनीक से सर्वेक्षण तथा परिसर की खुदाई कराकर रिपोर्ट मंगाने की अपील की थी.

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी परिसर मामले में 2019 दिसंबर से पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने को लेकर कोर्ट में बहस चल रही थी. वाराणसी फार्स्ट ट्रैक कोर्ट के जज आशुतोष तिवारी ने काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में सर्वे कराकर आख्या प्रस्तुत करने का आदेश दिया है.

इसके बाद जनवरी 2020 में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति ने ज्ञानवापी मस्जिद और परिसर का एएसआई द्वारा सर्वेक्षण कराए जाने की मांग पर प्रतिवाद दाखिल किया. पहली बार 1991 में वाराणसी सिविल कोर्ट में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से ज्ञानवापी में पूजा की अनुमति के लिए याचिका दायर की गई थी.

सेवा की आड़ में धर्मांतरण से सामाजिक तानेबाने और सुरक्षा पर संकट

 - सुखदेव वशिष्ठ

स्वतंत्रता के समय भारत आर्थिक रूप से संपन्न देश नहीं था और वित्तीय सहायता के लिए पाश्चात्य ईसाई देशों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों निर्भर था, इसलिए भारत को मिशनरियों के आगे झुकना पड़ा. इसके परिणामस्वरूप संविधान में अपने पंथ के प्रचार का अधिकार कुछ पाबंदियों के साथ दिया गया, लेकिन एक के बाद एक सरकार मिशनरी लॉबी के सामने मजबूर होती गई.

नए हथकंडों का प्रयोग किया गया शुरू

धर्म परिवर्तन कराने के लिए पैसे का इस्तेमाल तो स्वतंत्रता से पहले से भी होता था, परंतु स्वतंत्रता के बाद और भी बहुत तरह के प्रयोग किए जाने लगे. मिशनरियों ने अपने अनुभवों से पाया कि भारतीय धर्मों के लोग अपनी सांस्कृतिक मान्यताओं से भावनात्मक तौर पर इतने गहरे जुड़े हैं कि समस्त प्रयासों के बावजूद करोड़ों की संख्या में धर्म परिवर्तन संभव नहीं हो पा रहा है. इस कठिनाई से पार पाने के लिए नए हथकंडों का प्रयोग शुरू किया गया, जैसे मदर मैरी की गोद में ईसा मसीह की जगह गणेश या कृष्ण को चित्रांकित कर ईसाइयत का प्रचार शुरू किया गया, ताकि आदिवासियों को लगे कि वे तो हिन्दू धर्म के ही किसी संप्रदाय की सभा में जा रहे हैं. ईसाई मिशनरियों को आप भगवा वस्त्र पहनकर हरिद्वार, ऋषिकेश से लेकर तिरुपति बालाजी तक धर्म प्रचार करते पा सकते हैं. यही हाल पंजाब में है, जहां बड़े पैमाने पर सिक्खों को ईसाई बनाया जा रहा है. पंजाब में चर्च का दावा है कि प्रदेश में ईसाइयों की संख्या सात से दस प्रतिशत हो चुकी है.

ईसाई मिशनरी विदेशी पैसे का इस्तेमाल करते हुए पिछले सात दशकों में उत्तर-पूर्व के आदिवासी समाज का बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करा चुके हैं. यही सब मध्यभारत के आदिवासी क्षेत्रों में भी चल रहा है, जहां इन गतिविधियों का फायदा नक्सली भी उठाते हैं. विदेशी पैसे का धर्मांतरण के लिए इस्तेमाल देश की सुरक्षा और स्थिरता के लिए बड़ी चुनौतियों को जन्म दे रहा है. विकसित पाश्चात्य ईसाई देशों की सरकारें ईसाई मिशनरी तत्वों को धर्म परिवर्तन के नाम पर एशिया और अफ्रीका जैसे देशों को निर्यात करती रहती हैं. इससे दो तरह के फायदे होते हैं. एक तो इन कट्टरपंथी तत्वों का ध्यान गैर ईसाई देशों की तरफ लगा रहता है, जिस कारण सरकारों के लिए कम दिक्कतें पैदा करते हैं और दूसरे, जब भारत जैसे देशों में विदेशी चंदे से धर्मांतरण होता है, तो धर्मांतरित लोगों के जरिये विभिन्न प्रकार की सूचनाएं इकट्ठा करने और साथ ही सरकारी नीतियों पर प्रभाव डालने में आसानी होती है.

विदेशी चंदा प्राप्त कर रहे चार एनजीओ पर भी हुई थी कार्रवाई

उदाहरण के लिए भारत- रूस के सहयोग से स्थापित कुडनकुलम परमाणु संयंत्र से नाखुश कुछ विदेशी ताकतों ने इस परियोजना को अटकाने के लिए वर्षों तक मिशनरी संगठनों का इस्तेमाल कर धरने-प्रदर्शन करवाए. तत्कालीन संप्रग सरकार में मंत्री वी नारायणस्वामी ने यह आरोप लगाया था कि कुछ विदेशी ताकतों ने इस परियोजना को बंद कराने के लिए धरने-प्रदर्शन कराने के लिए तमिलनाडु के एक बिशप को 54 करोड़ रुपये दिए थे. इस मामले में विदेशी चंदा प्राप्त कर रहे चार एनजीओ पर कार्रवाई भी की गयी थी.

इसी प्रकार का दूसरा उदाहरण वेदांता द्वारा तूतीकोरीन में लगाए गए स्टरलाइट कॉपर प्लांट का है. इस प्लांट को बंद कराने में भी चर्च का हाथ माना जाता है. आठ लाख टन सालाना तांबे का उत्पादन करने में सक्षम यह प्लांट अगर बंद न होता, तो भारत तांबे के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो गया होता. यह कुछ देशों को पसंद नहीं आ रहा था और इसलिए उन्होंने मिशनरी संगठनों का इस्तेमाल कर यह दुष्प्रचार कराया कि यह प्लांट पूरे शहर की हर चीज को जहरीला बना देगा. इस दुष्प्रचार के बाद हिंसा भड़की और पुलिस फायरिंग में 13 लोगों की मौत हो गई. नतीजा यह हुआ कि प्लांट बंद कर दिया गया. यह अभी भी बंद है और 18 साल बाद भारत को एक बार फिर तांबे का आयात करना पड़ रहा है.

गांधी जी ईसाई मिशनरियों के क्रियाकलापों से खिन्न थे

महात्मा गांधी ब्रिटिश शासन के दौरान ईसाई मिशनरियों के क्रियाकलापों से खिन्न थे. उन्होंने अपने संस्मरणों में लिखा है कि किस प्रकार राजकोट में उनके स्कूल के बाहर एक मिशनरी हिन्दू देवी-देवताओं के लिए बेहद अपमानजनक शब्दों का उपयोग करता था. गांधी जी जीवनभर ईसाई मिशनरियों द्वारा सेवा कार्यों के नाम पर किए जाने वाले धर्म परिवर्तन के विरुद्ध रहे. जब अंग्रेज भारत से जाने लगे तो ईसाई मिशनरी लॉबी ने प्रश्न उठाया कि स्वतंत्र भारत में क्या उन्हें धर्म परिवर्तन करते रहने दिया जाएगा, तो गांधी जी ने इसका जवाब न में दिया. उनके अनुसार लोभ-लालच के बल पर धर्म परिवर्तन करना घोर अनैतिक है. इस पर मिशनरी लॉबी ने बहुत हंगामा किया.

भारतईसाई और सनातन धर्म

ईसा मसीह ने दुनिया को शांति का संदेश दिया था. लेकिन गरीब ईसाइयों के जीवन में अंधेरा कम नहीं हो रहा. अगर समुदाय में शांति होती तो आज दलित-आदिवासी ईसाई की स्थिति इतनी दयनीय नहीं होती. विशाल संसाधनों से लैस चर्च अपने अनुयायियों की स्थिति से पल्ला झाड़ते हुए उन्हें सरकार की दया पर छोड़ना चाहता है. दरअसल, चर्च का इरादा एक तीर से दो शिकार करने का है.

कुल ईसाइयों की आबादी का आधे से ज्यादा अपने अनुयायियों को अनुसूचित जातियों की श्रेणी में रखवा कर वह इनके विकास की जिम्मेदारी सरकार पर डालते हुए देश की कुल आबादी के पाचवें हिस्से हिन्दू दलितों को ईसाइयत का जाम पिलाने का ताना-बाना बुनने में लगा है. यीशु के सिद्धांत कहीं पीछे छूट गए हैं. चर्च आज साम्राज्यवादी मानसिकता का प्रतीक बन गया है.

पश्चिमी देशों के मुकाबले एशिया में ईसाइयत को बड़ी सफलता नहीं मिली है. जहां एशिया में ईसाइयत में दीक्षित होने वालों की संख्या कम है. वहीं यूरोप, अमेरिका एवं अफ्रीकी देशों में ईसाइयत का बोलबाला है. राजसत्ता के विस्तार के साथ ही ईसाइयत का भी विस्तार हुआ है. हमारे अपने देश भारत में ईसा मसीह के शिष्य संत थोमस ईसा की मृत्यु के दो दशक बाद ही प्रचार के लिए आ गये थे. लेकिन डेढ़ हजार सालों में भी ईसाइयत यहां अपनी जड़ें जमाने में कामयाब नहीं हो पायी. पुर्तगालियों एवं अंग्रेजों के आवागमन के साथ ही भारत में ईसाइयत का विस्तार होने लगा.

हजारों शिक्षण संस्थानों, अस्पतालों, सामाजिक सेवा केन्द्रों का विस्तार पूरे भारत में किया गया. उसी का नतीजा है कि आज देश की तीस प्रतिशत शिक्षा एवं बाईस प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं पर चर्च का अधिकार है. भारत सरकार के बाद चर्च के पास भूमि है और वह भी देश के पॉश इलाकों में. सरकार के बाद चर्च रोजगार उपलब्ध करवाने वाला सबसे बड़ा संस्थान है, इसके बावजूद उसके अनुयायियों की स्थिति दयनीय बनी हुई है.

आज भारत में कैथोलिक चर्च के 6 कार्डिनल हैं, पर कोई दलित नहीं. 30 आर्चबिशप में कोई दलित नहीं, 175 बिशप में केवल 9 दलित हैं, 822 मेजर सुपिरियर में 12 दलित हैं, 25000 कैथोलिक पादरियों में 1130 दलित ईसाई हैं. इतिहास में पहली बार भारत के कैथोलिक चर्च ने यह स्वीकार किया है कि जिस छुआछूत और जातिभेद के दंश से बचने को दलितों ने हिन्दू धर्म को त्यागा था, वे आज भी उसके शिकार हैं. वह भी उस धर्म में जहां कथित तौर पर उनको वैश्विक ईसाईयत में समानता के दर्जे और सम्मान के वादे के साथ शामिल कराया गया था.

कैथलिक चर्च ने 2016 में अपने पॉलिसी ऑफ दलित इम्पावरन्मेंट इन द कैथलिक चर्च इन इंडियारिपोर्ट में यह माना है कि चर्च में दलितों से छुआछूत और भेदभाव बड़े पैमाने पर मौजूद है, इसे जल्द से जल्द खत्म किए जाने की जरूरत है. हालांकि इसकी यह स्वीकारोक्ति नई बोतल में पुरानी शराब भरने जैसी ही है. फिर भी दलित ईसाइयों को उम्मीद है कि भारत के कैथलिक चर्च की स्वीकारोक्ति के बाद वेटिकन और संयुक्त राष्ट्र में उनकी आवाज़ सुनी जाएगी.

कुछ साल पहले दलित ईसाइयों के एक प्रतिनिधिमंडल ने संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की मून के नाम एक ज्ञापन देकर आरोप लगाया था कि कैथलिक चर्च और वेटिकन दलित ईसाइयों का उत्पीड़न कर रहे हैं. जातिवाद के नाम पर चर्च संस्थानों में दलित ईसाइयों के साथ लगातार भेदभाव किया जा रहा है. कैथोलिक बिशप कांफ्रेंस ऑफ इंडिया और वेटिकन को बार बार दुहाई देने के बाद भी चर्च उनके अधिकार देने को तैयार नहीं है. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून को दिए ज्ञापन में मांग की गई कि वह चर्च को अपने ढांचे में जातिवाद के नाम पर उनका उत्पीड़न करने से रोके और अगर चर्च ऐसा नहीं करता है तो संयुक्त राष्ट्र में वेटिकन को मिले स्थाई ऑब्जर्वर के दर्जे को समाप्त कर दिया जाना चाहिए.

पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट के अध्यक्ष आर.एल. फ्रांसिस के शब्दों में, “यही समय है, जब ईसाई समुदाय को स्वयं का सामाजिक लेखा-परीक्षण करना चाहिए, ताकि पता चले कि ईसाई समुदाय अपनी मुक्ति से वंचित क्यों है. शांति के पर्व क्रिसमस पर ईसाइयों को अब इस बात पर आत्ममंथन करने की जरुरत है कि उनके रिश्ते दूसरे धर्मों से सहज कैसे बने रह सकते हैं और भारत में वे अपने अनुयायियों के जीवन स्तर को कैसे सुधार सकते है.

भारत सरकार, ईसाई मिशनरी और धर्मांतरण विरोधी बिल

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 13 बड़े ईसाई मिशनरी संगठनों को विदेशी अनुदान विनियमन अधिनियम के तहत मिली चंदा लेने की अनुमति रद् कर दी. इनमें से अधिकतर संगठन झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर पूर्व के राज्यों में सक्रिय थे और विदेशी चंदे का दुरुपयोग धर्मांतरण कराने के लिए कर रहे थे. हमेशा की तरह इंटरनेशनल क्रिश्चियन कंसर्न जैसे संगठनों ने फैसले पर हाय-तौबा मचानी शुरू कर दी. अब इसके आसार हैं कि धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर ईसाई मिशनरियों के काम को सुगम बनाने वाले विदेशी संगठन भारत में कथित रूप से घटती धार्मिक स्वतंत्रता पर कोई रिपोर्ट जारी कर दें.

भारत सरकार पर दबाव बनाने के लिए वे ऐसा करते रहते हैं. यह सही है कि भारतीय संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसमें अपने पंथ के प्रचार का भी अधिकार शामिल है, लेकिन हर अधिकार की तरह इस अधिकार की भी कुछ सीमाएं हैं. यह जानना भी जरूरी है कि यह अधिकार किन परिस्थितियों में दिया गया था. भारत की स्वतंत्रता के बाद संसद ने कई धर्मांतरण विरोधी बिल पेश किए, लेकिन कोई भी प्रभाव में नहीं आया. सबसे पहले 1954 में इंडियन कनवर्जन (रेग्यूलेशन एंड रजिस्ट्रेशन) बिल पेश किया गया था, जिसमें मिशनरियों के लाइसेंस और धर्मांतरण को सरकारी अधिकारियों के पास रजिस्टर कराने की बात कही गई थी. इस बिल को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला. इसके बाद 1960 में पिछड़ा समुदाय (धार्मिक संरक्षण) विधेयक लाया गया, जिसका मकसद था कि हिन्दुओं को गैर-भारतीय धर्मोंमें परिवर्तित होने से रोका जाए. विधेयक की परिभाषा के अनुसार, इसमें इस्लाम, ईसाई, यहूदी और पारसी धर्म शामिल थे. इसके बाद 1979 में फ्रीडम ऑफ रिलीजन बिल आया, जिसमें धर्मांतरण पर आधिकारिक प्रतिबंधकी बात कही गई थी. राजनीतिक समर्थन न मिलने की वजह से ये बिल संसद में पास नहीं हो सके. 2015 में, कानून मंत्रालय ने राय दी थी कि जबरन और धोखाधड़ी वाले धर्मांतरण के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर कानून नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है.

पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों ने जबरन, धोखाधड़ी से या प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन को प्रतिबंधित करने के लिए फ्रीडम ऑफ रिलीजनकानून लागू किया है. रिसर्च करने वाले संगठन पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च ने हाल ही में कई राज्यों में मौजूदा धर्मांतरण विरोधी कानूनों की तुलना करते हुए एक रिपोर्ट जारी की है.धार्मिक स्वतंत्रतासे जुड़े कानून वर्तमान में 8 राज्यों में लागू हैं ओडिशा (1967), मध्यप्रदेश (1968), अरुणाचल प्रदेश (1978), छत्तीसगढ़ (2000 और 2006), गुजरात (2003), हिमाचल प्रदेश (2006 और 2019), झारखंड (2017) और उत्तराखंड (2018). हिमाचल प्रदेश (2019) और उत्तराखंड के कानून ऐसे विवाह को अमान्य घोषित करते हैं, जिसमें अवैध धर्म परिवर्तन किया गया हो या फिर धर्म परिवर्तन सिर्फ विवाह के उद्देश्य से किया गया हो. इसके अलावा, तमिलनाडु ने 2002 में और राजस्थान ने 2006 और 2008 में इसी तरह का कानून पारित किया था. हालांकि, 2006 में ईसाई अल्पसंख्यकों के विरोध के बाद तमिलनाडु के कानून को निरस्त कर दिया गया था, जबकि राजस्थान के विधेयकों को राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली. नवंबर 2019 में जबरन या कपटपूर्ण धर्मांतरण की बढ़ती घटनाओं का हवाला देते हुए उत्तर प्रदेश विधि आयोग ने धर्मांतरण को रेग्यूलेट करने के लिए एक नया कानून बनाने की सिफारिश की थी. इसी के आधार पर राज्य सरकार ने हाल ही में अध्यादेश पारित किया.

देश को गहरे नुकसान से बचाने के लिए विदेशी चंदे पर पूरी तरह रोक के साथ- साथ मिशनरी संगठनों की गतिविधियों पर सख्त पाबंदी आवश्यक है. क्योंकि धर्मांतरण सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करने के साथ देश की सुरक्षा के लिए चुनौती बन रहा है.

स्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत