काशी/ पौराणिक महोत्सव देव दीपावली इस वर्ष आधुनिक और पारंपरिक दोनों ही
रंग में रंगी नजर आई. घाट, गलियां और घर जहाँ दीपों से
जगमगाते रहे. वहीँ आधुनिक उपकरणों से सजाए गये घाट काशी की पुरानी कहानियों को नये
अंदाज में बता रहे थे. दीपों की रौशनी से जगमगाई काशी देवलोक सी दिख रही थी. इन अलौकिक और अविस्मरणीय क्षणों के साक्षी न सिर्फ काशी ही रही बल्कि
देश समेत 135
देश भी बने.
बाबा विश्वनाथ की नगरी में शाम होते ही घाटों पर जब 15 लाख से भी अधिक दीपक एक साथ जलने शुरू हुए तो लगा मानों आकाश गंगा स्वर्णिम चादर ओढकर जान्हवी किनारे उतर आई हो. घाटों को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे देवों के वास की मान्यता मूर्तमान नजर आने लगी हो.
हर घाट के ठाट अलग
कार्तिक पूर्णिमा की रात हर
घाट अलग ही छंटा बिखेर रहा था. असि घाट हो या तुलसी घाट सब लोक भावना के प्रतीक
बनकर दमक रहे थे. चेतसिंह घाट का दृश्य लोगों के दिलों में उतर गया था. यहाँ का
लेजर शो अपने आप में विस्मृत करने वाला था. पंचगंगा घाट पर आरती की लौ और ऐतिहासिक
हजारा अलग ही शोभा बढ़ा रहा था. सभी 84 घाटों पर कुछ न कुछ अलग ही
दृश्य लोगों को मोहित कर रहे थे.
गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं
ने लगाई डुबकी
कार्तिक पूर्णिमा पर बड़ी संख्या में सनातनियों ने गंगा में आस्था की डुबकी लगाई. सभी 12 पूर्णिमाओं में कार्तिक मास की पूर्णिमा का ख़ास महत्व है. पौराणिक युग से स्थापित महत्व अब भी जनमानस में यथावत है. इसका प्रमाण सोमवार को गंगा किनारे उमड़े अपार जनमानस के रूप में दिखा.
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