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Tuesday, December 22, 2020

श्री मा.गो. वैद्य : संघ विचारों के विग्रह रूप

 राजेंद्र शर्मा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठतम कार्यकर्ताओं में एक श्री माधव गोविन्द वैद्य ने 97 वर्ष की आयु में अपनी जीवन लीला का संवरण नागपुर के स्पंदन’ नामक चिकित्सालय में गत 19 दिसम्बर को कर लिया. उनके जन्म के 97 वर्ष की पूर्णता पर एक आयोजन नागपुर में ही किया गया थावह शताब्दी समारोह जैसा ही थाउनकी आंखों के सामने ही वह आयोजन होनासंभवत: देवयोग ही था. परन्तु तब किसी ने यह कल्पना नहीं की होगी कि अपने जन्म की शताब्दी पूर्ण करने की विश्वासपूर्वक घोषणा करते रहने वाले बाबूराव जी’ उससे पहले ही हमसे विदा ले लेंगेक्योंकि प्रचण्ड आत्मविश्वास का ही दूसरा नामश्री मा.गो. वैद्य’ था.

श्री वैद्य मूलत: शिक्षक थे. यह शिक्षक दृष्टि उनके पास प्रत्येक कार्य क्षेत्र में काम करते हुए प्रभावी भूमिका में रही. नागपुर में ईसाई मिशनरीज द्वारा संचालित हिस्लॉप कॉलेज में वे वर्षों तक संस्कृत के प्राध्यापक रहे. संघ के निर्देश पर वहां से त्यागपत्र देकरवे मराठी दैनिक तरुण भारत के संपादक बने थेइसके पूर्व उनका पत्रकारिता से कोई संबंध नहीं थाकिन्तु शीघ्र उन्होंने मराठी पत्रकारिता में अपनी लेखनीअपने विचारों और अपनी विद्वता से न केवल महत्वपूर्ण स्थान बनायाअपितु तरुण भारत’ को एक नई धार और नई लोकप्रियता प्रदान की. एक वैचारिक समाचार पत्र को लोकप्रियता की कसौटी पर खरा उतारना आसान नहीं होताकिन्तु श्री वैद्य के लिये शायद मुश्किल कुछ भी नहीं था. वे केवल संपादकीय कौशल में ही नहींअपितु जब उन्हें तरुण भारत की प्रकाशन संस्था श्रीनरकेसरी प्रकाशन का प्रबंध संचालक बनाया गया तो प्रबंधकीय दृष्टि से भी उनके कार्यकाल को तरुण-भारत’ का स्वर्णिम काल माना जाता था.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचार-यात्रा में उनकी भूमिका सदैव उल्लेखनीय और अद्वितीय रहेगी. संघ के प्रथम सरसंघचालक के सम्मुख ही उनका संघ प्रवेश हो चुका थाश्रीगुरुजी के सरसंघचालकत्व के वे साक्षी रहेपरन्तु उनके उपरान्त तीसरे सरसंघचालक बाला साहेब देवरस के कार्यकाल में तो वे एक विचार-योद्धा के रूप में ही उनके साथ जुड़े रहे. तरुण भारत’ के साथ भी वे बालासाहब देवरस के कारण ही जुड़े थेजो श्री नरकेसरी प्रकाशन के अध्यक्ष थेउनके पश्चात के भी सभी सरसंघचालकों के साथ उनके सम्बंध रहे. श्री सुदर्शन जी एवं वर्तमान सरसंघचालक श्री भागवत जी ने तो उन्हें सदैव एक मार्गदर्शक के रुप में ही सम्मान दिया. पत्रकारिता के साथ ही राजनीति में भी महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य के रुप मेंउन्होंने अपने दो कार्यकाल मेंअत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया. किन्तु वे पत्रकारिता में रहे हों या राजनीति में सभी जगह उनकी मुख्य भूमिका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वैचारिक प्रतिनिधि की ही रही. संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख और मुख्य प्रवक्ता के रूप में वे स्पष्टता के साथ संघ के विचारों का विद्वतापूर्ण एवं तार्कित प्रतिपादन करने वाले व्यक्ति के रुप में ही पहचाने गए. उनके लेखउनके भाषणउनकी पुस्तकें सभी संघ विचारों की समर्थ अभिव्यक्ति के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं. स्पष्ट वादितास्पष्ट लेखन और स्पष्ट अभिव्यक्ति ही उनका वैशिष्ट्य रहा है.

सरसंघचालक मोहन जी भागवत ने उन्हें संघ का एन्सायक्लोपीडिया’ कहा हैकिन्तु वे उसके साथ ही एक जीवंत और पारदर्शी विचार प्रवाह थे. वैसा व्यक्ति शायद वर्तमान में देश के अन्य किसी भी संगठन को उपलब्ध नहीं है. यह अतिशयोक्ति नहीं होगीयदि कहा जाए कि वे संघ विचारों के साक्षात् विग्रह रुप’ ही थे.

मैं सौभाग्यशाली रहा हूं कि अपने पत्रकारिता जीवन के प्रारंभ से ही तरुण भारत एसोसिएट्स के माध्यम सेवर्षों तक उनका स्नेह एवं मार्गदर्शन मुझे मिला. जब वे इसके प्रमुख थेतब एसोसिएट्स का संपूर्ण उत्तर भारत क्षेत्र का दायित्वउन्होंने मुझे सौंपा थाजो स्वदेश’ एसोसिएट्स का अलग गठन होने तक मेरे पास ही रहा. मेरी उनसे अंतिम भेंट नागपुर से स्वदेश’ का संस्करण प्रारंभ करने के समय हुई थीइसे भी लगभग 12 वर्ष हो गए हैं. स्वास्थ्य के कारणों से उनका प्रवास भले कठिन हो गया होलेकिन अंतिम समय तक उनकी स्मरण शक्ति एवं वैचारिक प्रखरता और तेजस्विता में कोई कमी नहीं आयी थीयह उनके प्रबल आत्मबल और जीजीविषा का प्रत्यक्ष प्रमाण था. कोरोना के आक्रमण का भी सामना उन्होंने दृढ़तापूर्वक किया थापरन्तु भीष्म की तरह इच्छा मृत्यु के वरदानी प्रतीत हो रहेश्री वैद्य जी का स्वयं द्वारा घोषित समय से पहले इस तरह चले जानादेश के विचार एवं चिंतन जगत में एक अपूरणीय रिक्तिता पैदा कर गया है. मध्यप्रदेश शासन द्वारा ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता’ के लिये स्थापित माणिकचंद्र वाजपेयी पत्रकारिता का राष्ट्रीय सम्मान’ प्राप्त करने वालेवे पहले मराठी पत्रकार थे. उनका जाना एक पूर्णत: राष्ट्र समर्पित आदर्श-जीवन का देव लोक गमन है. उन्हें हार्दिक एवं विनम्र श्रद्धांजलि.

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