काशी/ महामना पं. मदन मोहन मालवीय जी ने हिंदी भाषा को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए कठिन
संघर्ष किया था. इसके लिए उन्होंने आन्दोलन भी चलाया था. उन्होंने नागरी प्रचारिणी
सभा की सदस्यता स्थापना के प्रथम वर्ष ही ले ली थी. नागरी प्रचारिणी सभा के माध्यम
से उन्होंने हिंदी के लिए लड़ाई लड़ी. उत्तर प्रदेश की राजभाषा के रूप में 19वीं शताब्दी
तक हिंदी का कोई स्थान नहीं था. मालवीय जी ने तर्कसंगत पक्ष रखा कि न्यायालयों की
भाषा हिंदी बने. उन्होंने लेफ्टिनेंट गवर्नर से भेंट भी की. देश में हिंदी को
प्रमुख स्थान दिलाने के लिए उन्होंने वकालत छोड़ दिया. मालवीय जी ने एक सौ पृष्ठों का
ऐतिहासिक ज्ञापन तैयार किया था जिसके लिए उन्हें अनेक स्थानों का दौरा भी किया था.
देवनागरी लिपि को ही न्यायालयों की भाषा बनाये जाने के समर्थन में उन्होंने 60
हजार व्यक्तियों के हस्ताक्षर एकत्र किये थे. हिंदी के लिए पहली बार सुनियोजित इस
आन्दोलन में मालवीय जी के परामर्श से बाबू श्याम सुंदर दास ने आन्दोलन के लिए
नगरों में समितियां गठित की. अन्तःत महामना के प्रयासों ने 20 अगस्त 1896 को रंग
दिखाना शुरू कर दिया. राजस्व परिषद् द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया गया कि समन आदि
की भाषा एवं लिपि हिन्दी होगी. हालाँकि यह कार्य रूप में नहीं लाई जा सकी. इसके
बाद 15 अगस्त 1900 को उर्दू के साथ नागरी लिपि को भी अतिरिक्त भाषा के रूप में मान्यता
मिली.
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