नई
दिल्ली. चीन से बाहर अन्य देशों में पढ़ने वाले लोकतंत्र समर्थक छात्र भी
संवेदनशील मुद्दों पर बोलने से डरते हैं, उन्हें
डर रहता है कि उन्होंने कुछ कहा तो चीन में उनके परिजनों को अंजाम भुगतना होगा.
चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन कितना लोकतांत्रिक है, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है. ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने वाले
लोकतंत्र समर्थक छात्र भी संवेदनशील मुद्दों पर बोलने से डरते हैं. बीबीसी ने
छात्रों की स्थिति को लेकर एक रिपोर्ट की है. वहीं, दूसरी ओर
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी 100 साल पूरे
होने का जश्न मना रही है.
ह्यूमन राइट्स वाच का कहना है कि ये छात्र कक्षा में स्वयं पर
कई तरह की पाबंदियां लगाए रहते हैं.
चीन से
जुड़े पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले अध्यापक भी कहते हैं कि वो भी स्वयं को सेंसर करने का
दबाव महसूस करते हैं. ये कथित दबाव ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों की पढ़ाई-लिखाई
से जुड़ी आज़ादी को खतरे में डाल रहा है.
ऑस्ट्रेलिया
के उच्च शिक्षा के संस्थान काफी हद तक चीन पर निर्भर रहने लगे हैं. कोविड-19 के पहले के दौर में ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने वाले विदेशी
छात्रों में से करीब 40 फ़ीसदी
चीन के छात्र होते थे. ऑस्ट्रेलिया के विश्व विद्यालयों में अभी करीब एक लाख 60 हज़ार छात्र पंजीकृत हैं. ऑस्ट्रेलिया में विश्वविद्यालय
कैंपसों में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंता जाहिर की जाती है.
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार ह्यूमन राइट्स वाच का कहना है कि
उसने ऑस्ट्रेलिया में छात्रों और अध्यापकों से बात की और पाया कि उनके बीच ‘डर का माहौल है.’ हाल के
वर्षों में ये स्थिति खराब हुई है.
एक मामले में चीन के एक छात्र ने जब ऑस्ट्रेलिया में ट्विटर
पर अकाउंट बनाकर लोकतंत्र के समर्थन में संदेश पोस्ट किया तो उसे चीन के
अधिकारियों ने जेल भेजने की धमकी दी. लोकतंत्र का समर्थन करने वाले कई छात्रों ने
ये भी बताया कि उन्हें इस बात का भी डर लगता है कि उनके साथी छात्र चीन के
अधिकारियों से उनकी शिकायत कर सकते हैं.
रिपोर्ट
के अनुसार “लोकतंत्र का समर्थन करने वाले जिन भी
छात्रों का इंटरव्यू किया गया, उनके
दिमाग में डर ने पुरजोर तरीके से घर किया हुआ है कि ऑस्ट्रेलिया में वो जो कुछ
करेंगे, उसके बदले चीन के अधिकारी उनके माता-पिता को या तो दंडित
करेंगे या फिर उनसे पूछताछ कर प्रताड़ित करेंगे.”
बीबीसी
के अनुसार रिपोर्ट की लेखिका सोफी मैक्नील ने कहा कि यूनिवर्सिटी प्रशासन “चीन से आए छात्रों के अधिकार बरकरार रखने का अपना कर्तव्य
निभा नहीं पा रहा है.”
अध्यापक
और लेक्चरर भी ऐसा दबाव महसूस करते हैं. जितने लोगों से बात की गई, उनमें से आधे से ज़्यादा चीन के बारे में बोलते समय खुद पर
सेंसर लगा लेते हैं.
कुछ ने
ये भी कहा कि कुछ मौकों पर यूनिवर्सिटी प्रशासन ने भी पाबंदी लगाई. चीन के बारे
में सार्वजनिक तौर पर चर्चा करने से मना किया गया.
ऑस्ट्रेलिया में बीते कई वर्षों से यूनिवर्सिटी कैंपस में चीन के कथित तौर पर बढ़ते दखल को लेकर चर्चा हो रही है. चीन के अधिकारी और मीडिया इसे दुष्प्रचार बताते हुए खारिज कर चुके हैं. ऑस्ट्रेलिया में चीन के राजदूत ने चीनी छात्रों के बर्ताव पर नज़र रखे जाने के आरोप को ‘आधारहीन’ कहते हुए खारिज कर दिया था. साल 2019 में ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने “अभूतपूर्व विदेशी हस्तक्षेप” पर रोक लगाने के लिए टास्क फोर्स बनाई थी और नई गाइडलाइन्स जारी की थी.
स्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत
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