स्वामी
सवितानंद जी के अमृत महोत्सव समारोह में संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि “भारतीय
संस्कृति आध्यात्मिक और भौतिक विचारों से पिरोई हुई है. दोनों क्रियाओं में एक समान विचार नहीं होता, उसी
प्रकार स्वीकार-अस्वीकार भी सर्वथा व्यक्ति पर ही निर्भर होता है. साधु-संतों, महात्माओं के माध्यम से इस विचार तक पहुंच सकते हैं और यही
विचार मानवीय जीवन को समृद्ध करते हैं.”
तरसाडा (बार, द.
गुजरात) के स्वामी श्री सवितानंद जी अमृत महोत्सव समिति और साधक परिवार की ओर से
स्वामी सवितानंद जी के अमृतमहोत्सव के उपलक्ष्य में सत्कार समारोह नासिक में
संपन्न हुआ. सरसंघचालक जी ने कहा कि “सवितानंद
स्वामी जी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बहुत पुराना संबंध है. और कितनी भी
आपत्ति क्यों न आये, ये संब॔ध
बना रहेगा. यह संबंध अधिक गहरा होता जाएगा.”
“आज का समय प्रवाह हमें ध्यान में रखना
होगा. आध्यात्मिक, भौतिक
विचारों का स्वीकार-अस्वीकार ये तय करना कठिन है. वैज्ञानिक सत्य दृष्टिकोण भी जो
सामने दिखता है, वही बात मान लेगा कि नहीं, ये कहा नहीं जा सकता! सर्वस्व का त्याग करके आध्यात्मिक जीवन
स्वीकार करके साधु-महंत अपने विचारों से समाज को सीख देने का काम करते रहते है.
प्रपंच तो परमार्थ के बिना नहीं होता, ये सच है, फिर भी परमात्मा के चिंतन, मनन से
ही वैराग्य की प्राप्ति हो सकती है, किंतु ये
सब परिस्थिति के अनुसार होता है.”
नई पीढ़ी को प्रत्यक्ष अनुभूति चाहिए. भारतीय संस्कृति का
बहुत पहले युगों-युगों से प्रारंभ हुआ है, ऐसा हम
कह सकते है. लेकिन आज की नयी पीढ़ी बहुत होशियार, जिज्ञासु है. बड़ी सहजता से कुछ भी मान लेने को तैयार नहीं
होती. तर्क, सबूत, प्रमाण ये सब बातों के आधार पर उन्हें समझाना पड़ता है, तभी वो विश्वास करते हैं. इसलिए
हमें विविध बातों का ज्ञान अगर हो, तो हम
उनकी जिज्ञासा पूरी कर सकते हैं. भारतीय विचार, संस्कृति, परंपरा यही हमारी धरोहर है, यही
धरोहर संत महात्माओं की देन कीर्तन, प्रवचन
के माध्यम से देने का प्रयास हो रहा है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ये कार्य
यही भारतीय संस्कृति की परंपरा संभालते हुए राष्ट्र निर्माण का विचार आपने
स्वयंसेवकों द्वारा लोकसंग्रहण करते हुए दिखाई पड़ता है.
पैराशूट
जैसा काम साधकों को करना होगा
स्वामी सवितानंदजी ने विविध उदाहरणों द्वारा जीवन का महत्व
समझाते हुए बताया कि परमात्मा प्रकाश रूप में
हर जगह पहुंचता है और हम सिर्फ बल्ब होते हैं. यह बात
ध्यान में रखनी होगी. हम अपने विचारों द्वारा व्यक्त होते हैं, ‘यदा यदा ही धर्मस्य..
इस गीता के श्लोक द्वारा जीवन का दर्शन तत्व कहा गया है, परंतु यह स्थिति अलग होती है. पैराशूट जिस प्रकार एक जगह से
दूसरी जगह जाकर अपना कार्य करता है, उसी
प्रकार साधकों को प्रचार और प्रसारण का कार्य जगह-जगह जाकर करना चाहिए. दो बिंदुओं
को जोड़ने के बाद एक रेखा बनती है. इस बिंदु सिद्धांत के अनुसार हमें ईश्वर साधना
के साथ राष्ट्र निष्ठा संभालने का काम करना है.
समारोह के प्रारंभ में विद्या नृसिंह भारती शंकराचार्य जी
द्वारा अभिवाचन संदेश दिया गया. कार्यक्रम में विविध गणमान्यजनों का स्वागत किया
गया. वैद्य योगेश जिरंकल जी ने मानपत्र का अभिवाचन किया. पसायदाना से समारोह संपन्न हुआ.
ऐसे भी मिले कुछ मदद करने वाले हाथ
वैद्य योगेश जिरंकल जी को पेटंट के रूप में मिले एक लाख
रूपयों की रकम और स्वामी जी की सत्कार समिति की तरफ से माजी सैनिकों के लिए तीन
लाख रूपयों की मदद का धनादेश
डॉ. मोहन भागवत जी के हाथों श्री बालासाहेब उपासनी और सहकारियों को दिया गया. इसी समिति की तरफ से श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के लिए न्यास की
तरफ से तीन लाख धनराशि दी गई.
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