जीवन के किसी भी क्षेत्र में कोई भी अग्निहोत्र कर सकता है और अपने घर में वातावरण को ठीक कर सकता है – जर्मन वैज्ञानिक
वाराणसी. जर्मन वैज्ञानिक और जर्मन एसोसिएशन ऑफ होमा
थेरेपी के अध्यक्ष उलरिच बर्क ने कहा कि आयुर्वेद के प्राचीन विज्ञान से उपचारित ‘अग्निहोत्र’ पौधों के जीवन का पोषण करता है और
हानिकारक विकिरण और रोगजनक बैक्टीरिया को बेअसर करता है. ‘अग्निहोत्र’
प्राण (जीवन ऊर्जा) के कामकाज में सामंजस्य स्थापित करता है और इसका
उपयोग जल संसाधनों को शुद्ध करने के लिए किया जा सकता है.
बर्क सोमवार को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान में संपन्न हुए “सुफलाम” (पृथ्वी तत्व) पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने के लिए वाराणसी आए थे. बर्क ने कहा कि अग्निहोत्र प्रतिदिन सूर्योदय और सूर्यास्त के समय की जाने वाली विशेष रूप से तैयार की गई अग्नि के माध्यम से वातावरण को शुद्ध करने की एक प्रक्रिया है. जीवन के किसी भी क्षेत्र में कोई भी अग्निहोत्र कर सकता है और अपने घर में वातावरण को ठीक कर सकता है. अग्निहोत्र तनाव को कम करता है, विचारों की अधिक स्पष्टता की ओर ले जाता है, समग्र स्वास्थ्य में सुधार करता है, एक बढ़ी हुई ऊर्जा देता है, और मन को प्रेम से भर देता है.
उन्होंने
कहा, “हम सूर्योदय/सूर्यास्त बायोरिदम के समय
पर विशिष्ट कार्बनिक पदार्थों के साथ तैयार किए गए संस्कृत मंत्रों और अग्नि के
साथ वातावरण में परिवर्तन कर सकते हैं.” उनके अनुसार आग
विशिष्ट आकार और एक छोटे तांबे के पिरामिड में तैयार की जाती है. ब्राउन राइस,
गाय का सूखा गोबर और घी जलाने वाले पदार्थ हैं. ठीक सूर्योदय या
सूर्यास्त के समय मंत्र बोले जाते हैं और चावल और घी की थोड़ी मात्रा अग्नि को दी
जाती है. आग सिर्फ ऊर्जा ही नहीं है; सूक्ष्म ऊर्जाएं
लय और मंत्रों द्वारा निर्मित होती हैं. अग्निहोत्र पिरामिड से बहुत अधिक
उपचारात्मक ऊर्जा निकलती है.
उन्होंने कहा कि अग्निहोत्र के समय ही अग्निहोत्र तांबे
के पिरामिड के चारों ओर जबरदस्त मात्रा में ऊर्जा एकत्रित हो जाती है. एक चुंबकीय
प्रकार का क्षेत्र बनाया जाता है, जो नकारात्मक
ऊर्जाओं को बेअसर करता है और सकारात्मक ऊर्जाओं को पुष्ट करता है. इसलिए, अग्निहोत्र करने वाले द्वारा एक सकारात्मक पैटर्न बनाया जाता है, जो प्रदूषकों से वातावरण को शुद्ध करता है और हानिकारक विकिरण को बेअसर
करता है. परिणामी वातावरण पौधे के जीवन को पोषण देता है.
अग्निहोत्र के वातावरण में उगाए जाने वाले पौधे सूखे को
बेहतर ढंग से झेलने में सक्षम होते हैं. अग्निहोत्र पौधे की कोशिकीय संरचना में
बदलाव का कारण बनता है, जिससे पौधे के फलों को अधिक पोषक तत्व
मिलते हैं और पत्तियों, तने और जड़ों को कम. बहुत से लोगों
ने पाया है कि अग्निहोत्र के वातावरण में उगाए जाने वाले फलों और सब्जियों का आकार,
स्वाद, बनावट और उपज श्रेष्ठ होती है. उद्यान
में अग्निहोत्र के प्रदर्शन से कीटों की समस्या कम होती है और होमा तकनीक का उपयोग
करके जैविक बागवानी और खेती को आसान बनाया जाता है.
उन्होंने कहा कि जब कोई बगीचे में अग्निहोत्र करता है, तो एक ऐसा वातावरण बनता है जो बढ़ते पौधों के लिए अनुकूल होता है. इसलिए पोषक तत्वों, कीड़ों, सूक्ष्मजीवों और जानवरों को आकर्षित करता है जो उस वातावरण में खुश और फलते-फूलते हैं. यह स्वत: ही मिट्टी और पौधे को लाभ पहुंचाता है और पौधा फलता-फूलता है.
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