रंगभरी द्वादशी तिथि (शनिवार) को महाश्मशान मणिकर्णिकाघाट पर खेली गई चिता भस्म की होली
काशी। देशभर में लोग बहुप्रतीक्षित पर्व होली को बड़े उत्साह से मनाते हैं। धीरे-धीरे यह पर्व विदेशों में भी लोकप्रिय होने लगा है। भारतभर में इस दिन की प्रतीक्षा लोग बड़े उत्साह से करते हैं। लेकिन भगवान शिव की नगरी काशी में यह महापर्व लोग एकादशी से ही अनूठी परम्परा के अनुसार मनाना प्रारम्भ कर देते हैं। इसीलिए काशी की होली विश्व प्रसिद्ध मानी जाती है।
चिता भस्म और भभूत के साथ निभाई अनोखी होली खेलने की परम्परा
काशी में एकादशी के दिन महादेव भगवान शिव ने देवी-देवता और गन्धर्व के साथ गुलाल की होली खेलने के बाद द्वादशी के दिन अपने भक्तों के बीच होली खेली थी।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रंगभरी एकादशी को शिव जी माता पार्वती का गौना कराकर उन्हें काशी लेकर आए थे। तब उन्होंने अपने गणों के साथ रंग-गुलाल के साथ होली खेली थी, लेकिन वे श्मशान में बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व, किन्नर जीव जंतु आदि के साथ होली नहीं खेल पाए थे। इसलिए रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद द्वादशी को महादेव ने श्मशान में बसने वाले भूत-पिशाचों के साथ होली खेली थी।
इसी परम्परा को जीवित रखते हुए शुक्रवार को भी काशीवासियों ने हरिश्चन्द्र घाट पर एवं शनिवार को महाश्मशान मणिकर्णिकाघाट पर रंगभरी द्वादशी की तिथि पर चिता भस्म और भभूत के साथ अभिभूत करने वाली अनोखी होली खेलने की परम्परा निभाई। देश विदेश से आए श्रद्धालुओं ने भी यह पर्व उत्साहपूर्वक मनाया। होली खेलने के पूर्व महाश्मशान नाथ की आरती की गई।
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