मीरजापुर | स्वयंसेवक सनातन संस्कृति की छाप छोड़ रहे हैं जिसका प्रभाव समाज में निरंतर परिवर्तन के रूप मे दिख रहा है। अपनी संस्कृति के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ रही है| उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र प्रचारक अनिल जी ने व्यक्त किया| वे वर्ष प्रतिपदा के पूर्व संध्या पर मंगलवार को लालडिग्गी स्थित लायंस मैदान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मिर्जापुर के तत्वावधान में आयोजित पथ संचलन कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे|
उन्होंने आगे कहा कि विश्व का कल्याण भारतीय संस्कृति से ही संभव है, अन्य कोई भी संस्कृति विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त नहीं कर सकती। संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार जी से प्रेरणा लेकर और दृढ संकल्प के साथ कठिन मार्ग पर चलकर यह देश परम वैभव को देखेगा और पूरी दुनिया मे भारत की जय-जयकार होगी।
उन्होंने कहा कि हम भारतीय नववर्ष मनाते हैं, लेकिन आंग्ल नववर्ष का विरोध नहीं करते। जब भारतीय नववर्ष सर्वव्यापी हो जाएगा, तो शेष स्वतः गौण हो जाएंगे। ऐसा परिवर्तन देश के अंदर आ गया है। स्वयंसेवकों ने समाज में परिवर्तन स्थापित किया है| 10 वर्ष पहले 14 फरवरी को तथाकथित वैलेंटाइन डे के दिन जब मैं काशी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में मिलने गया था, तो परिसर का दृश्य देखकर स्तब्ध था। लेकिन इस बार 14 फरवरी को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रांत की बैठक में गया, तो एक बड़ा परिवर्तन दिखा। युवाओं ने पुलवामा के शहीदों की स्मृति में मोमबत्ती जलाकर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे थे, तो वहीं मालवीय जी के प्रतिमा के पास लगभग 500 विद्यार्थी इकट्ठा होकर वैलेंटाइन डे की जगह पुलवामा के शहीदों की स्मृति में जुलूस निकाल रहे थे। इस वर्ष 1 जनवरी को लगभग 8.30 लाख लोगों ने अयोध्या और लगभग 4.5 लाख लोगों ने काशी में प्रभु के दर्शन किए। यह परिवर्तन संकेत है राष्ट्र को सनातन की ओर ले जाने का। पूरे विश्व को प्रेरणा देने के लिए भारत का नौजवान आगे बढ़ रहा है। योग, आयुर्वेद ही नहीं, हमारी सभ्यता और संस्कृति की स्वीकार्यता भी पूरे विश्व में बढ़ रही है। आज स्वामी विवेकानंद का सपना- "जगत जननी भारत माता विश्व के सिंहासन पर विराजमान हैं और पूरे दुनिया की शक्ति नतमस्तक हो रही है" उनका यह स्वप्न आज साकार होते दिख रहा है।
संघ स्थापना की चर्चा करते हुए क्षेत्र प्रचारक ने कहा कि जब हेडगेवार जी को अपने ही समान लोगों का संगठन खड़ा करने का विचार आया तब कलकत्ता में सुभाष जी से मिलने गये| वे अनमने मन से मिले और कहा कि मैं हिन्दू समाज का संगठन खड़ा करना चाहता हूँ, तो सुभाष जी ने कहा कि आपका उद्देश्य महान लेकिन काम कठिन है, विचार उत्तम है लेकिन असंभव है और कार का गेट बंदकर सुभाष जी चले गये। लेकिन डाक्टर साहब के मन मे निराशा नही आयी। उन्होने संगठन की स्थापना की और स्थापना के दो वर्ष बाद पहली बार नागपुर महानगर मे रेलवे स्टेशन के पास से संचलन निकाला। संयोग से जिस समय संचलन उद्घोष के साथ प्लेटफार्म संख्या एक के पास से गुजर रहा था, संयोग से सुभाष जी की ट्रेन वहां रूकी, उन्होने चार कदम आगे बढ़कर पूछा तो बताया गया कि हेडगेवार आया हुआ है। सुभाष जी के मुंह से निकला- हो गया...! और ट्रेन की सीटी बजी और सुभाष फिर सवार होकर रवाना हो गये। क्षेत्र प्रचारक ने कहा कि एक समय था, जब सुभाष जी ने डाक्टर साहब से चलते-चलते मुलाकात किया था और एक समय वह आया जब डाक्टर साहब अंतिम सांस ले रहे थे तब श्रद्धेय गुरू जी की उपस्थिति में उनसे मिलने आए। उस समय आर.एस.एस. देश के सभी बड़े शहरो तक पहुँच चुका था।
उन्होने कहा कि डाक्टर हेडगेवार जी ने स्वयं को स्थापित न कर, संगठन को सर्वोपरि रखा और आज वह संगठन दुनिया का सबसे बडा संगठन है। आज भले ही भारत का एक एक व्यक्ति संस्थापक को न जानता हो, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बच्चा-बच्चा जानता है। "कार्यकर्ता" नामक पुस्तक के अंतिम पृष्ठ की चर्चा करते हुए क्षेत्र प्रचारक ने कहा कि दत्तोपंत ठेंगडी जी राज्यसभा सदस्य थे, अवकाश के समय सब चाय पी रहे थे। एक कम्युनिस्ट सासंद और सांसद मेनन वहां बैठे थे। कम्युनिस्ट सासंद ने ठेंगडी जी से पूछा कि हेडगेवार किस चिड़िया का नाम है, तो उन्होने अनसुना किया, लेकिन जब दोबारा पूछा तो ठेंगडी ने जवाब दिया कि जानना क्या चाहते हो? सासंद ने कहा हेडगेवार के बारे मे और साथ मे कुछ और भी...। तब मेनन ने जवाब दिया कि हेडगेवार की मृत्यु 1940 मे हुई और नेहरू की मृत्य 1964 मे हुई, लेकिन दोनो के नाम पर मरने वाले लोग कितने है? महत्व इस बात का है कि व्यक्ति के चले जाने के बाद परछाई कितनी दूर तक जाती है। संघ के प्रारंभ मे विचारों का विरोध करने वाले भी जन्मजात देशभक्त थे। इसके अनेक प्रसंग है।
हजारों की संख्या में उपस्थित स्वयंसेवकों द्वारा संचलन लायंस मैदान से गणेशगंज चौराहा, मुकेरी बाजार, गुरहट्टी बाजार, धुंधीकटरा, बस नई बाजार त्रिमुहानी, शहीद उद्यान, केबीपीजी कालेज, नवीन चौराहा से लालडिग्गी होते हुए लायंस मैदान मे पहुचकर विराम हुआ।
इस अवसर पर स्वयंसेवकों के साथ-साथ प्रवासी कार्यकर्ता भी उपस्थित रहे।
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