लखनऊ. अयोध्या में श्रीरामलला के मंदिर का संकल्प अब अपनी परिणति के अंतिम पायदान पर है. इस भव्य संकल्प को जमीन पर उतारते हुए जन-जन की आस्था में सामुद्रिक मंथन का श्रेय कई रामभक्तों को जाता है. उन्हीं में एक नाम है – भाजपा के पूर्व सांसद एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी जी का. उनकी रथयात्रा ने पूरे देश में रामभक्तों की दबी आस्था को जगाने का कृत किया था. वे अब 22 जनवरी को अयोध्या पहुंचकर श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा देखने के लिये आतुर हैं. वे इस पल को लाने, रामलला का भव्य मंदिर बनवाने और उनका संकल्प पूर्ण कराने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को भी बधाई दे रहे हैं. उन्होंने वैचारिक विषयों की मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’ के लिए एक लेख लिखा है. पत्रिका के विशेषांक हेतु अपने मनोभाव को प्रदर्शित करते हुये एक लेख ‘श्रीराममंदिर : एक दिव्य स्वप्न की पूर्ति’ में इसकी चर्चा की है. यह विशेषांक 15 जनवरी को प्राकाशित होगा.
आडवाणी जी अपनी रथयात्रा
के अविस्मरणीय पल को याद करते हुये कहते हैं कि रथयात्रा को आज करीब 33 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं. 25
सितंबर, 1990 की सुबह रथयात्रा आरम्भ करते समय हमें यह नहीं
पता था कि प्रभु राम की जिस आस्था से प्रेरित होकर यह यात्रा आरम्भ की जा रही है,
वह देश में आंदोलन का रूप ले लेगा. उस समय वर्तमान में देश के
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके सहायक थे. वे पूरी रथयात्रा में उनके साथ ही रहे.
तब वे ज्यादा चर्चित नहीं थे. मगर राम ने अपने अनन्य भक्त को उस समय ही उनके
मंदिर के जीर्णोद्धार के लिये चुन लिया था. आडवाणी जी स्वयं भी ऐसा मानते हैं कि
उनकी राजनीतिक यात्रा में अयोध्या आंदोलन सबसे निर्णायक परिवर्तनकारी घटना थी,
जिसने उन्हें भारत को पुन: जानने और इस प्रक्रिया में अपने आपको
भी फिर से समझने का अवसर दिया.
अपनी यात्रा सम्बंधी
संघर्षगाथा के संदर्भ में वे कहते भी हैं कि रथ आगे बढ़ रहा था और उसके साथ ही
जनसैलाब भी जुड़ता जा रहा था. जनसमर्थन गुजरात से बढ़ता हुआ महाराष्ट्र में व्यापक
हो गया और उसके बाद के सभी राज्यों में भी उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा था. यात्रा
में ‘जय श्रीराम’ व ‘सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे’ के गगनभेदी नारे गूंजते रहते थे. ‘रथयात्रा के समय
ऐसे कई अनुभव हुये जिन्होंने मेरे जीवन को प्रभावित किया. सुदूर गांव के अंजान
ग्रामीण रथ देखकर भाव-विभोर होकर मेरे पास आते. वे प्रणाम करते. राम का जयकारा
करते और चले जाते.’ यह इस बात का संदेश था कि पूरे देश में राम मंदिर का स्वप्न
देखने वाले बहुतेरे हैं. वे अपनी आस्था को जबरन छिपाकर जी रहे थे. 22 जनवरी, 2024 को मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के साथ
ही उन ग्रामीणों की दबी हुई अभिलाषा भी पूर्ण हो जाएगी.
वे कहते हैं कि कोई भी
घटना अंतत: वास्तविकता में घटित होने से पहले व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में
आकार लेती है. उस समय मुझे लग रहा था कि नियति ने यह निश्चित कर लिया है कि एक
दिन अयोध्या में श्रीराम का भव्य मंदिर अवश्य बनेगा. बस, अब केवल समय की बात है.
‘रथयात्रा आरम्भ होने
के कुछ दिनों बाद ही मुझे इसका अनुभव हो गया था कि मैं तो मात्र एक सारथी था.
रथयात्रा का प्रमुख संदेशवाहक स्वयं रथ ही था और पूजा के योग्य इसलिये था क्योंकि
वह श्रीराम मंदिर के निर्माण के पवित्र उद्देश्य की पूर्ति के लिये उनके जन्मस्थान
अयोध्या जा रहा था.’ वे इस बीच पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी याद
करते हैं. प्राण प्रतिष्ठा के भव्य आयोजन में उनकी कमी को महसूस कर रहे हैं.
आज जब चंद दिनों के बाद
ही देश श्रीरामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का साक्षी बन रहा तो
आडवाणी जी इस संदर्भ में कहते हैं, ‘जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे, तब वे हमारे भारतवर्ष के प्रत्येक नागरिक का प्रतिनिधित्व करेंगे. मेरी
प्रार्थना है कि यह मंदिर सभी भारतीयों को श्रीराम के गुणों को अपनाने के लिये
प्रेरित करेगा.’
विदित हो कि राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) एवं विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) और भारतीय जनता पार्टी
(भाजपा) अयोध्या में श्रीरामलला के मंदिर का निर्माण शुरू करने का संकल्प कर चुकी
थी. उसने 30 अक्तूबर,
1990 को नियत तिथि घोषित भी की थी. इसी संकल्प के साथ आडवाणी जी ने
25 सितंबर, 1990 से 30 अक्तूबर के बीच सोमनाथ से अयोध्या तक 10 राज्यों से
गुजरते हुये राम नाम की धुन का बीज जन-जन में ‘बो’ दिया. 10
हजार किलोमीटर की रथयात्रा ने देश में दबी हुई हिन्दुत्व की आस्था को जगा दिया
था. आज उसी अयोध्या में रामलला विराजित होने जा रहे हैं. उसी रथयात्रा को निकालने
वाले आडवाणी जी अब अयोध्या में अपने उसी 33 वर्ष पुराने स्वप्न
को पूर्ण होते देखने को आतुर हैं.
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