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Wednesday, June 9, 2021

बलिदान दिवस – जनजातीय चेतना के केंद्र बिंदु भगवान बिरसा मुंडा

बिरसा मुंडा जनजाति समुदाय के महान स्वतंत्रता सेनानी और लोक नायक थे. अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में उनकी ख्याति जग जाहिर थी. सिर्फ 25 साल के जीवन में उन्होंने इतने मुकाम हासिल किये कि हमारा इतिहास सदैव उनका ऋणी रहेगा. एक छोटी सी उम्र में अपने महान कार्यों की वजह से अपने जनजाति समुदाय में वो “भगवान” के रूप में पूजे जाते हैं.

झारखंड के जनजाति दम्पति सुगना और करमी के घर 15 नवंबर, 1875 को जन्मे बिरसा मुंडा ने साहस की स्याही से पुरुषार्थ के पृष्ठों पर शौर्य की शब्दावली रची. उन्होंने समाज में स्थापित भ्रम जाल का बारीकी से अध्ययन किया तथा इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जनजाति समाज मिशनरियों से काफी ज्यादा भ्रमित है और ईसाई मिशनरी स्थानीय जनजाति समुदाय को भ्रम में डाल कर उनका धर्मांतरण करा रहा है. जनजाति समुदाय ईसाई धर्म को भी ठीक से न तो समझ पा रहा है, न ग्रहण कर पा रहा है, लेकिन बार बार मिशनरियों द्वारा बहकाया जा रहा था. बिरसा मुंडा ने महसूस किया कि आचरण के धरातल पर जनजाति समाज अंधविश्वासों की आंधियों में तिनके-सा उड़ रहा है तथा आस्था के मामले में भटका हुआ है.

उन्होंने यह भी अनुभव किया कि सामाजिक कुरीतियों के कोहरे ने जनजाति समाज को ज्ञान के प्रकाश से वंचित कर दिया है. ब्रिटिश शासकों के शोषण की भट्टी में जनजाति समाज झुलस रहा था. बिरसा मुंडा ने जनजातियों को शोषण की यातना से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें तत्कलीन परिस्थितियों के अनुसार तीन स्तरों पर संगठित करना आवश्यक समझा.

1.    सामाजिक स्तर – जनजाति-समाज अंधविश्वासों और मिशनरियों के चंगुल से छूट कर भ्रम के पिंजरे से बाहर आ सके. इसके लिए उन्होंने जनजातियों को स्वच्छता का संस्कार सिखाया. शिक्षा का महत्व समझाया. सहयोग और सरकार का रास्ता दिखाया. एकजुटता और चेतना का संदेश दिया. समाज को एक करने के लिए अनेकों उपाय सुझाए.

सामाजिक स्तर पर जनजातियों के इस जागरण से जमींदार-जागीरदार और तत्कालीन ब्रिटिश शासन तो बौखलाया ही, मिशनिरियों की दुकानदारी भी ठप हो गई. ये सब बिरसा मुंडा के खिलाफ हो गए. उन्होंने बिरसा को साजिश रचकर फंसाने की काली करतूतें प्रारंभ की. यह तो था सामाजिक स्तर पर बिरसा का प्रभाव.

2.    आर्थिक स्तर – दूसरा था आर्थिक स्तर पर सुधार. जनजाति समाज को ब्रिटिश तानाशाही के आर्थिक शोषण से मुक्त करने के लिए बिरसा मुंडा ने इसकी योजना बनाई. बिरसा मुंडा ने जब सामाजिक स्तर पर जनजाति समाज में चेतना पैदा कर दी तो आर्थिक स्तर पर सारा जनजाति समुदाय शोषण के विरुद्ध स्वयं ही संगठित होने लगा. बिरसा मुंडा ने उनके नेतृत्व की कमान संभाली.

जनजातियों ने ‘बेगारी प्रथा’ के विरुद्ध जबर्दस्त आंदोलन किया. परिणामस्वरूप जमींदारों और जागीरदारों के घरों तथा खेतों और वन की भूमि पर कार्य रूक गया.

3.    राजनीतिक स्तर – तीसरा था राजनीतिक स्तर पर जनजातियों को संगठित करना. चूंकि उन्होंने सामाजिक और आर्थिक स्तर पर जनजातियों में चेतना की चिंगारी सुलगा दी थी, अतः राजनीतिक स्तर पर इसे आग बनने में देर नहीं लगी. जनजाति अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति सजग हुए.

ब्रिटिश हुकूमत ने इसे खतरे का संकेत समझकर बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया. वहां अंग्रेजों ने उन्हें धीमा जहर दिया था. जिस कारण वे 9 जून 1900 को शहीद हो गए.

भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा एक ऐसे नायक थे, जिन्होंने भारत के झारखंड में अपने क्रांतिकारी चिंतन से 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जनजाति समाज की दशा और दिशा बदलकर नवीन सामाजिक और राजनीतिक युग का सूत्रपात किया. काले कानूनों को चुनौती देकर बर्बर ब्रिटिश साम्राज्य को सांसत में डाल दिया.

बिरसा मुंडा सही मायने में पराक्रम और सामाजिक जागरण के धरातल पर तत्कालीन युग के एकलव्य और स्वामी विवेकानंद थे. बिरसा मुंडा को शुरुआती समय में स्कूल जाने के लिए धर्म बदल कर ईसाई धर्म अपनाना पड़ा था. दरअसल जिस विद्यालय में दाखिला लेना था, वहां सिर्फ ईसाई धर्म के बच्चों को दाखिल किया जाता था, जिसकी वजह से बिरसा मुंडा ने बिरसा डेविड होकर वहां दाखिला लिया.

हालांकि कुछ सालों बाद बिरसा ने क्रिश्चियन स्कूल छोड़ दिया था, क्योंकि उस स्कूल में जनजाति संस्कृति का मजाक बनाया जाता था जो बिरसा मुंडा को बिल्कुल भी पसंद नहीं था. इसके बाद वे अपने गांव वापस लौट आए और यहां अपने एक दोस्त के साथ रहने लगे. और यहीं उन्हें एक वैष्णो संत की संगत मिली और वे ओझा के रूप में मशहूर होने लगे और यहीं से उनके जीवन में बदलाव आया.

इसके बाद महानायक बिरसा मुंडा का संपर्क स्वामी आनन्द पाण्डे से हुआ. आनंद पांडे ने ही बिरसा मुंडा को हिन्दू धर्म और महाभारत के पात्रों का परिचय कराया.

बिरसा मुंडा के इलाके छोटा नागपुर में नियंत्रण के लिए वन्य कानून सहित कई अन्य कानून लागू कर दिए गए और देखते ही देखते जनजातियों से उनके अधिकार छीने जाने लगे थे. वे न तो अपनी भेड़-बकरियों को चारा खिला सकते थे और न ही जंगलों से लकड़ियां इकट्ठा कर सकते थे. जिससे उन लोगों अपने जीवन-यापन करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था.

इसी दौरान अंग्रेजों ने जंगलों की बाहरी सीमाओं पर बाहरी लोगों की बस्तियां बसाना शुरू कर दिया था. मुंडा जिस जमीन को अपनी सांझा समपत्ति समझते थे, अंग्रेजों ने उनका मालिकाना हक भी उन बाहरी बस्ती के लोगों को दे दिया.

बिरसा मुंडा, इन अंग्रेजों, मिशनरियों और बाहरी लोगों के खिलाफ होने वाले आंदोलन का हिस्सा बन चुके थे.

सन् 1895 में बिरसा मुंडा ने घोषणा की “हम ब्रिटिश शासन तन्त्र के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा करते हैं और कभी अंग्रेज नियमों का पालन नहीं करेंगे, ओ गोरी चमड़ी वाले अंग्रेजों, तुम्हारा हमारे देश में क्या काम? छोटा नागपुर सदियों से हमारा है और तुम इसे हमसे छीन नहीं सकते. इसलिए बेहतर है कि वापस अपने देश लौट जाओ, वरना लाशों के ढेर लगा दिए जाएंगे.”

हिन्दू धर्म में पुनः वापसी के बाद से जीवन भर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ और ईसाई मिशनरियों के खिलाफ उन्होंने जनजाति समुदाय को एकसूत्र में बांधा और यह हौसला दिया कि वह उनसे लड़ सकते हैं. आज बिरसा मुंडा को “बिरसा भगवान” का दर्जा दिया गया है.

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