प्रयागराज। सिविल लाइन स्थित ज्वाला देवी इंटर कालेज में अमृत महोत्सव आयोजन समिति द्वारा एक कार्यशाला आयोजित किया गया| कार्यशाला को संबोधित करते हुए इतिहासविद डा. आनंद शंकर सिंह ने कहा कि पूरा भारत कभी गुलाम नहीं हुआ। यह झूठा इतिहास देश के स्वाभिमान को आहत करने के लिए पढ़ाया गया। मुगलों और अंग्रेजों के समय राजे-रजवाड़े बने रहे। विजयनगर साम्राज्य, मराठा साम्राज्य हमेशा मुगलों की आंखों की किरकिरी रहा।
अमृत महोत्सव अभियान के
स्वयंसेवकों व पदाधिकारियों से उन्होंने कहा कि इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य सही
इतिहास बोध कराना है। उन्होंने बताया कि सिकंदर देश के एक कोने से प्रवेश किया और
वहीं से उल्टे पांव पराजित होकर लौटा। हूणों के आक्रमण से पूरा रोम मटियामेट हो
गया। वही हूण भारत में आक्रांता बनकर आए तो प्रतिरोध की चट्टान से टकराकर चकनाचूर
हो गए। खास बात यह कि बौद्ध, वैष्णव,
शाक्त आदि संप्रदायों में विलीन हो गए।
हमारा गुलामी का
नहीं बल्कि प्रतिरोधों का इतिहास रहा
उन्होंने कहा
कि हमारा गुलामी का नहीं बल्कि प्रतिरोधों का इतिहास रहा है। दुर्भाग्य है कि
हमारे शौर्य को इतिहास में दर्ज नहीं किया गया। हमारे राष्ट्र का इतिहास काल मुखापेक्षी नहीं बल्कि संस्कृति
मुखापेक्षी रहा है। भारतीय संस्कृति और गांव की सत्ता ने देश को कभी गुलाम नहीं
होने दिया। अंग्रेजों ने इसीलिए इन दोनों पर प्रहार किया। अंग्रेजी शिक्षा के
माध्यम से संस्कृति को तथा नई बंदोबस्त प्रणाली के माध्यम से ग्राम स्वराज्य को
समाप्त किया। डा. सिंह ने कहा कि चिंतन की गलत दिशा से देश का विभाजन हुआ।
सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने कहा था कि हम नया राष्ट्र बनाने को उन्मुख है। गलती यहीं से
हुई। भारत एक प्राचीन राष्ट्र है। वैदिक काल से लेकर आज तक कश्मीर से कन्याकुमारी
तथा अटक से कटक तक भारत वर्षे भरतखंडे का सभी संकल्प लेते हैं। वेदों में जगह-जगह
राष्ट्र की चर्चा की गई है। इसे बनाने की बात बेमानी थी। यहीं से द्विराष्ट्रवाद
को जन्म मिला।
इसके पूर्व कार्यशाला
में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, काशी प्रान्त के सह प्रांत कार्यवाह डा.राज बिहारी
ने वक्ताओं को संगठनात्मक विषयों की जानकारी दी। अमृत महोत्सव अभियान की रूपरेखा
भी बताई। इस मौके पर सह विभाग कार्यवाह घनश्याम,
प्रान्त प्रचार प्रमुख डा. मुरारजी त्रिपाठी, सत्यपाल,
प्रो. एसपी सिंह, प्रो. अमित पांडेय, डा. पीयूष आदि उपस्थित रहें।
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