सरकारी प्रयास सिर्फ कागजों का पेट भरने के लिए नहीं होते। सही मंशा से उनका उपयोग हो तो व्यवस्था की तस्वीर बदल जाती है। कुछ समय पहले तक विलुप्त होने के शोक में डूबी त्रेतायुग की ‘तमसा नदी’ अब गवाह के रूप में प्रवाहमान है। जिस सरकारी मद यानी मनरेगा को नाकामी के स्मारक का तमगा मिला, भ्रष्टाचार का पर्याय बन गया है, उसी के दम पर तमस नदी में नई जान फूंक दी गयी। पुनरुद्धार के बाद तमसा आज न केवल दोबारा कल-कल करती बह रही है बल्कि जलीय जीवों, परिंदों को भी पोष रही है। सिंचाई का बेहतरीन साधन बन चुकी है। यही नहीं, अयोध्या में हुए इस प्रयास से केन्द्र सरकार भी गदगद है। ऐसे में राष्ट्रीय पुरस्कार की दौड़ में शामिल करने के साथ ही तमसा के पुनर्जीवन को दम तोड़ती देश की अन्य नदियों के लिए नजीर बनाने के बारे में शिद्दत से सोचा जा रहा है।
तमसा का इतिहास
अयोध्या में पौराणिक तमसा नदी की कुल लम्बाई 151 किलोमीटर है। इसमें करीब 25 किलोमीटर दायरा ऐसा था, जो करीब-करीब विलुप्त था और मैदान के रूप में तब्दील हो चुका था। तमसा नदी जिले में कुल दस ब्लाकों से होकर गुुजरती है। रास्ते में करीब 77 गांव भी पड़ते हैं। मवई विकासखण्ड के लखनीपुर गांव के सरोवर को नदी का उद्गम माना जाता है।
सरयु में संगम
तमसा नदी बाराबंकी जिले के कुछ हिस्सों से होती हुई अयोध्या के रूदौली, अमानीगंज, सोहावल, मिल्कीपुर, मसौैधा, बीकापुर, तारून आदि ब्लाॅक क्षेत्र से गुजरती हुई अंबेडकरनगर जाती है। तमसा कुल 264 किलोमीटर का सफर तय कर आजमगढ़ तक पहुंच कर पुण्य सलिला सरयू से मिलती है।
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