देशभर में लोग बहुप्रतीक्षित पर्व होली को बड़े उत्साह से मनाते हैं। धीरे-धीरे यह पर्व विदेशों में भी लोकप्रिय होने लगा है। भारतभर में इस दिन की प्रतीक्षा लोग बड़े उत्साह से करते हैं। लेकिन भगवान शिव की नगरी काशी में यह महापर्व लोग एकादशी से ही अनूठी परम्परा के अनुसार मनाना प्रारम्भ कर देते हैं। इसीलिए काशी की होली विश्व प्रसिद्ध होली मानी जाती है।
चिता भस्म और भभूत के साथ निभाई अनोखी होली खेलने की परम्परा
काशी में एकादशी के दिन महादेव भगवान शंकर देवी-देवता और गन्धर्व के साथ गुलाल की होली खेलने के बाद द्वादशी के दिन अपने भक्तों के बीच होली खेलने की परम्परा है। इसी परम्परा को जीवित रखते हुए काशीवासियों ने रंगभरी एकादशी मनाने के बाद दूसरे दिन द्वादशी की तिथि पर रंगभरी द्वादशी की होली खेली। इस दिन बाबा के भक्तों ने महाश्मशान मणिकर्णिकाघाट और हरिश्चन्द्र घाट पर चिता भस्म और भभूत के साथ अभिभूत करने वाली अनोखी होली खेलने की परम्परा निभाई। देश विदेश से आए श्रद्धालुओं ने खेलने के पूर्व महाश्मशान नाथ की आरती की गई। लोगों ने इस समय चल रहे वैश्विक बीमारी कोरोना वायरस से विश्व की रक्षा के लिए भोलेनाथ से प्रार्थना भी की।
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