नई दिल्ली. विश्व हिन्दू परिषद के उपाध्यक्ष एवं श्रीराम
जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चम्पत राय ने कहा कि हमने आलोचनाओं की ओर ध्यान
नहीं दिया. काम परिपूर्ण होना चाहिए, योजना
के अंतर्गत होना चाहिए. सारे संसार में भारत वर्ष का और भारत में हिन्दू समाज का मस्तक
ऊंचा होना चाहिए. यह हमारी दृष्टि थी. 05 अगस्त
को दुनिया का वातावरण कैसा बना, देश
का वातावरण कैसा बना, यह
बताने की आवश्यकता नहीं है. चम्पत राय आज दिल्ली में आयोजित प्रेस वार्ता को
संबोधित कर रहे थे. उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण को लेकर मीडिया को
जानकारी दी.
उन्होंने कहा कि कुछ लोगों को अडवाणी जी, जोशी, कल्याण
सिंह की हमसे ज्यादा चिंता हो गई कि उन्हें नहीं बुलाया. वे हमारे घर के पितामह
हैं. उन्होंने अपनी तरुणाई में इस आंदोलन को आकाश पर पहुंचाया. उनके स्वास्थ्य और
शरीर के लिए क्या हितकारी है, यह
हम ज्यादा अच्छा जानते हैं. इस पर चर्चा करते रहिये, न
उन पर कोई परिणाम है, न
हम पर.
एक विषय चला कि दलित संत कौन है? किसी ने मेरे से फोन करके पूछा तो मैंने कहा कि हमने तो
संतों को बुलाया है, दलते
हुए किसी को बुलाया नहीं, इतना
सुनते ही चुप हो गया वो. इस पर मुझे कहना पड़ रहा है कि जिसे दुनिया दलित कहती है, हमारे लिए वो साधु है. एक बार साधु जीवन में आया, अपना संस्कार कर लिया, अपने
मां-बाप का और अपना नाम बदल दिया, उसके
बाद वो साधु है. 36 आध्यात्मिक
परंपराओं के संतों को हमने बुलाया. ये देश में भेद खड़े करने वालों की वृत्ति है
कि दलित कौन? सभी
राज्य, सभी भाषाएं, तमिल, कन्नड़, तेलगू, मलयालम भी, इसका
अर्थ सभी. जंगल में रहने वाला समाज का अंग वनवासी साधु भी आए. 36 परंपराओं के 184 संत
उपस्थित थे. सार्वजनिक जीवन के कुछ लोग थे, राजनीति
से जुड़े प्रधानमंत्री और उमा भारती थे,इसके
अलावा राज्यसत्ता से जुड़े हुए लोग नहीं थे.
एक विषय उठा कि मुसलमान को क्यों बुला रहे हैं, हमने तीन लोगों को बुलाया था. फैजाबाद में एक मुस्लिम है
– मोहम्मद शरीफ. कभी उसके बेटे की अकाल मृत्यु हो गई, जिसकी लाश को लावारिस मानकर अंतिम संस्कार कर दिया गया.
तब से उस व्यक्ति ने संकल्प ले लिया कि फैजाबाद जिले में कोई लावारिस लाश नहीं
रहेगी. इस तरह वो हर लावारिस लाश का अंतिम संस्कार करता था. 10 हजार शवों का अंतिम संस्कार उसने किया है. भारत सरकार ने
उसे पद्मश्री पुस्कार दिया. फैजाबाद का हर नागरिक उसे जानता हिन्दू-मुसलमान. हमने उसमें
गौरव देखा इसलिए उसे बुलाया. दूसरा इकबाल अंसारी को बुलाया. वही एक व्यक्ति था, जिसने सुन्नी बोर्ड का रिविजन फाइल नहीं दिया, सिग्नेचर करने से इंकार कर दिया. इन लोगों ने मन में ठान
लिया था कि मंदिर-मस्जिद विवाद को अब खत्म करना है. अयोध्या में अंसारी के छह माह
में स्टेटमेंट को पढ़िए, सब
समझ में आ जाएगा कि उसकी क्या दृष्टि रही. बाबर के नाम से कुछ नहीं बनना चाहिए, नहीं तो फिर झगड़े होंगे. हमने उनकी भावना को देखा. ऐसी
कुछ बाधाएं आई, हमने
उनका सामना किया, उससे
प्रभावित नहीं हुए, मीडिया
को सच्चाई समझ में आई. शेष 05 अगस्त
का कार्यक्रम आप सबने देखा.
एक हजार साल का विचार करके मंदिर निर्माण
एक हजार साल का विचार करके मंदिर का निर्माण करवा रहे
हैं. इसका आधार है पत्थरों की आयु. हवा, धूप
और पानी से पत्थरों का क्षरण टिके, उसके
आधार पर आयु और उतनी आयु जमीन के ऊपर है तो उससे अधिक आयु की उसकी नींव. इसके लिए
एलएंडटी ने योग्यतम लोगों को अपने साथ जोड़ा है. मिट्टी की ताकत नापने के लिए
आईआईटी चैन्नई की सलाह ली है और दो स्थानों पर 60 मीटर
गहराई तक मिट्टी के सैंपल भेज गए हैं, 5 स्थानों
पर 40 मीटर पर मिट्टी के सैंपल लिए गए हैं. सीबीआरआई रूड़की और
चैन्नई आईआईटी के एक प्रोफेसर ने मिलकर भूकंप संबंधी प्रभाव को नापा है. भूकंप
आएगा तो तरंगों को मिट्टी कितनी मात्रा में एब्जॉर्ब कर लेगी, अंततः नींव पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा. ये जांच हो गई
है. अन्य तकनीकी बातों पर भी ध्यान दिया जा रहा है.
मंदिर निर्माण में लोहे का उपयोग नहीं होगा
मंदिर निर्माण में लोहे का उपयोग नहीं होगा, एक ग्राम लोहे का भी नहीं. नींव में लोहा नहीं है.
पीसीसी (प्लेन कंक्रिटिंग), 2.77 एकड़
के मंदिर के क्षेत्र में 35 से
40 मीटर की गहराई तक 1200 स्थानों
पर एक मीटर डायमीटर के पीसीसी के खंभे होंगे. इसके ऊपर पीसीसी का एक प्लेटफॉर्म
बनाया जाएगा. इसकी ड्राइंग बन रही है. देश के योग्यतम लोगों के हाथ में एलएंडटी ने
यह काम दिया है.
उन्होंने कहा कि बहुत ही सोच विचार कर एक-एक कदम आगे
बढ़ा रहे है. मंदिर कितने दिन में बनेगा, अभी
कुछ कहना संभव नहीं. फिऱ भी कम से कम 36 महीने
का समय लगेगा, इससे
अधिक 40 हो सकते हैं. उतना धैर्य रखना ही पड़ेगा.
सभी रामभक्त मन्दिर को बनते हुए तथा जमीन में से मिले
चिन्हों के दर्शन कर सकें, ऐसी
व्यवस्था कर रहे हैं. उसके लिए स्थान चिंहित किया जा रहा है.
तांबे की 20,000 पत्तियां
व रॉड चाहिए
मंदिर के खंभों को जोड़ने के लिए कॉपर की पत्तियां
चाहिएं. खंभों को जोड़ने के लिए तांबे की पट्टी का जोड़ सही रहेगा भूकंप के दौरान.
कम से कम 18 इंच
लंबी, 3 मिलीमीटर मोटी और 30 मिलीमीटर
चौड़ी, कॉपर की ऐसी दस हजार पत्तियां चाहिएं. ऐसी पत्तियां समाज
भेजे और उस पर अपने गांव, मुहल्ले, गांव के मंदिर का नाम लिखकर भेजे. तांबा भी एक हजार साल
तक रहता है, तांबा
और पत्थर की आयु एक हजार वर्ष तक होती है. ये हिन्दुस्तान के योगदान का सीधा-सीधा
प्रमाण होगा.
इसी प्रकार खम्भे एक के ऊपर एक पत्थर रखे जाएंगे तो
उसमें रॉड पड़ेगी, दो–दो इंच की रॉड, इसकी
भी गणना की जा रही है, लगभग
साढ़े 9 हजार चाहिए है. इस रॉड से एक पत्थर को चार जगह से लॉक
किया जाएगा. ये बहुत बड़ा कंट्रीब्यूशन देश का होगा. पैसा तो खर्च हो जाएगा, और वो सुरक्षित रहेगा मंदिर के साथ.
प्रेस वार्ता में विहिप कार्याध्यक्ष आलोक कुमार व
प्रचार-प्रसार प्रमुख विजय शंकर तिवारी भी उपस्थित थे.