सूर्यप्रकाश सेमवाल
‘वीर भोग्या वसुंधरा’ भारतीय सैन्य शक्ति का संकल्प मन्त्र है और अपने शौर्य व पराक्रम से हमारे सैनिक इसे समय-समय पर प्रमाणित भी करते रहे हैं. जब समूचे विश्व के साथ भारत भी चीन द्वारा फैलाई कोरोना नामक महामारी से लड़ रहा था, तब इस संकट में भी अवसर तलाशने का आह्वान प्रधानमंत्री ने किया. कृषि क्षेत्र, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग तथा कोयला खदानों के आवंटन इत्यादि में आत्मनिर्भर भारत के दर्शन होने लगे थे सो रक्षा मंत्रालय ने भी आत्मनिर्भर भारत अभियान की पहल को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया.
भारत अमेरिका, जर्मनी, इजरायल और रूस
जैसे देशों से हथियारों और अन्य प्रमुख सैन्य उपकरणों का बड़ी मात्रा में आयात करता
रहा है और इसके लिए उसी अनुपात में उसे मोटी विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है.
भारत शीर्ष वैश्विक रक्षा कंपनियों के लिये सबसे आकर्षक बाजारों में से एक है. यदि
हम पुराने सौदों पर नजर डालें तो भारत पिछले आठ वर्षों से सैन्य हार्डवेयर के
शीर्ष तीन आयातकों में शामिल है.
भारत में सब क्षेत्रों की तरह रक्षा
क्षेत्र ने भी स्वदेशी निर्माण और उत्पादन पर जोर पहले से ही चल रहा है. लेकिन 9 अगस्त को
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने रक्षा क्षेत्र के जिन 101 सैन्य उपकरणों
और वस्तुओं के आयात पर रोक लगाने की घोषणा की, उसके बाद इस क्षेत्र में
आत्मनिर्भरता का एक अनुकरणीय और गौरवपूर्ण अध्याय शुरू हो गया है.
रक्षा मंत्रालय ने 101 रक्षा
उपकरणों की सूची तैयार की है, जिनके आयात पर रोक लगा दी जाएगी अर्थात् अब ये सैन्य उपकरण
अथवा रक्षा आवश्यकताओं से जुड़ी वस्तुएं स्वदेशी तकनीक को प्रोत्साहन देकर अपने
देश में ही बनेंगी. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताया कि इन उपकरणों की सूची को
तैयार करने के लिए रक्षा मंत्रालय और संबंधित अधिकारियों के बीच कई चरणों की
वार्ता हुई, उसके बाद ही इस सूची पर अंतिम निर्णय लिया गया.
इस निर्णय से पूर्व तीनों सेनाओं – थल सेना, वायुसेना और
नौसेना के अतिरिक्त रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ), डिफेंस पीएसयू, ऑर्डिनेंस
फैक्ट्री बोर्ड और निजी क्षेत्र के उद्यमियों से परामर्श लिया गया.
रक्षा मंत्रालय, इस प्रक्रिया
को चरणबद्ध तरीके से पूरी करेगा –
69 वस्तुओं पर आयात प्रतिबंध दिसंबर 2020 से
लागू होगा, जबकि अन्य 11 वस्तुओं पर प्रतिबंध दिसंबर 2021 से
लागू होगा. दिसंबर 2022 से आयात प्रतिबंधों के लिये चार वस्तुओं की एक अलग सूची की
पहचान की गयी है, जबकि आठ वस्तुओं के दो अलग-अलग खंडों पर प्रतिबंध दिसंबर 2023 और
दिसंबर 2024 से
लागू होगा. लंबी दूरी के लैंड अटैक क्रूज मिसाइलों पर आयात प्रतिबंध दिसंबर 2025 से
लागू होगा.
विशेष बात यह भी है कि 101 वस्तुओं
के आयात पर रोक का यह आदेश रक्षा मंत्रालय की रक्षा खरीद नीति के मसौदे के एक
सप्ताह उपरान्त ही सामने आया है. इस मसौदे में रक्षा मंत्रालय ने 2025 तक
रक्षा विनिर्माण में 1.75 लाख करोड़ रुपये (25 अरब डॉलर) के कारोबार का अनुमान
लगाया है. अनुमान के अनुसार, भारतीय सशस्त्र बल द्वारा आगामी पांच वर्षों में 130 अरब
डॉलर की खरीद की संभावना है. 101
वस्तुओं की सूची में टोएड आर्टिलरी बंदूकें, कम दूरी की
सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें, क्रूज मिसाइलें, अपतटीय गश्ती
जहाज, इलेक्ट्रॉनिक
युद्ध प्रणाली, अगली पीढ़ी के मिसाइल पोत, फ्लोटिंग डॉक, पनडुब्बी रोधी
रॉकेट लांचर और कम दूरी के समुद्री टोही विमान शामिल हैं. सूची में बुनियादी
प्रशिक्षण विमान, हल्के रॉकेट लांचर, मल्टी बैरल रॉकेट लांचर, मिसाइल
डेस्ट्रॉयर, जहाजों के लिये सोनार प्रणाली, रॉकेट, दृश्यता की
सीमा से परे हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें अस्त्र-एमके 1, हल्के
मशीन गन व आर्टिलरी गोला बारूद (155
एमएम) और जहाजों पर लगने वाली मध्यम श्रेणी की बंदूकें भी
शामिल हैं.
घोषणा पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, ‘यह रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम है. यह भारतीय रक्षा उद्योग को इस सूची में शामिल वस्तुओं का अपने स्वयं के डिजाइन व विकास क्षमताओं का उपयोग करके या डीआरडीओ द्वारा विकसित व डिजाइन की गयी प्रौद्योगिकियों को अपनाकर मौके का फायदा उठाने का अवसर देता है. तीनों सैन्य सेवाओं ने अप्रैल 2015 से अगस्त 2020 के बीच 3.5 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर ऐसी वस्तुओं की लगभग 260 योजनाओं का अनुबंध दिया. इन 101 वस्तुओं के आयात पर लगी नई रोक से यह अनुमान है कि अगले पांच से सात वर्षों में घरेलू उद्योग को लगभग चार लाख करोड़ रुपये के अनुबंध मिलेंगे.
वास्तव में यह निर्णय स्वागत योग्य
है. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) तो रक्षा उत्पादों के लिए एक प्रकार
से आत्मनिर्भरता का पर्याय ही है. इस चुनौती को पहले से ही स्वीकार करते हुए अग्नि
और पृथ्वी मिसाइल श्रृंखला की रणनीतिक प्रणालियों और प्लेटफार्मों के सफल स्वदेशी
विकास और उत्पादन के साथ ही हल्के लड़ाकू विमान, तेजस; मल्टी बैरल
रॉकेट लांचर, पिनाका; वायु रक्षा प्रणाली, आकाश; रडार और
इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली की एक विस्तृत श्रृंखला; आदि के
उत्पादन में लगा हुआ है. डीआरडीओ ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में
राष्ट्र को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने का दृढ़ निश्चय कर रखा है, विशेषकर सैन्य
प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में. इस पहल ने भारत की सैन्य शक्ति को एक गौरवपूर्ण
ऊंचाई दी है, विश्वास भी बढ़ाया और आत्मविश्वास भी.
डीआरडीओ के पास इस समय 50 से
अधिक प्रयोगशालाओं का एक नेटवर्क है, जो विभिन्न विषयों को कवर करने वाली
रक्षा प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में संलग्न है, फिर चाहे वो
वैमानिकी, आयुध, इलेक्ट्रॉनिक्स, लड़ाकू वाहन, इंजीनियरिंग
सिस्टम, इंस्ट्रूमेंटेशन, मिसाइल, उन्नत
कंप्यूटिंग आदि हो, चाहे कोरोना के संकट उपस्थित होने पर मास्क और सैनेटाईजर से
लेकर जीवन रक्षक वैन्टीलेटर ही क्यों न हो.
डीआरडीओ और अपनी ऑर्डिनेंस
फैक्टरियों की अच्छी परफॉरमेंस देखकर और उन पर भरोसा करके ही आत्मविश्वास से भरे
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा –
‘‘इस अवधि के दौरान (अगले पांच से सात साल) इनमें
से थल सेना और वायु सेना दोनों के लिये लगभग 1,30,000 करोड़ रुपये की वस्तुओं तथा नौसेना
के लिये 1,40,000 करोड़ रुपये की वस्तुओं की खरीद का अनुमान लगाया गया है.’’
इन सैन्य उपकरणों के अपने देश में ही निर्मित होने से जहां एक ओर बहुत बड़ी पूंजी विदेश में जाने से बचेगी, वहीं स्वदेशी तकनीक से आत्मनिर्भर भारत का अभियान जोर पकड़ेगा और लाखों रोजगार के भी अवसर पैदा होंगे… सरकार ने इस परिप्रेक्ष्य में 2020-21 के लिए पूंजीगत खरीद बजट को घरेलू और विदेशी खरीद के बीच दो भागों में आवंटित किया है. बजट 2020-21 में घरेलू पूंजीगत खरीद के लिए करीब 52,000 करोड़ निर्धारित किये गए हैं. इन ठोस प्रयासों से आत्मनिर्भर और शक्तिशाली भारत अपने सामर्थ्य और आत्मविश्वास के साथ विश्व में शान्ति स्थापना के अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल होगा और शक्ति के साथ प्रीती या शान्ति का हमारा संकल्प सारा विश्व भी सहज रूप से स्वीकार लेगा.
प्रमुख उपकरण हैं जिनके आयात पर
रोक लगाई जाएगी –
हाईटेक हथियार जैसे आर्टिलरी गन्स, असॉल्ट
राइफलें, कोरवेट्स, सोनार सिस्टम, परिवहन विमान, हल्के लड़ाकू
हेलीकॉप्टर (एलसीएच), रडार समेत रक्षा सेवाओं की कई अन्य जरूरी वस्तुएं, पहियों वाले
बख्तरबंद लड़ाकू वाहन (एएफवी), पनडुब्बियां, टोएड आर्टिलरी बंदूकें, कम दूरी की
सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें, क्रूज मिसाइलें, इलेक्ट्रॉनिक
युद्ध प्रणाली, अगली पीढ़ी के मिसाइल पोत, फ्लोटिंग डॉक, पनडुब्बी रोधी रॉकेट लॉन्चर, कम दूरी के
समुद्री टोही विमान, हल्के रॉकेट लॉन्चर, मल्टी बैरल रॉकेट लांचर, मिसाइल
डेस्ट्रॉयर, रॉकेट, दृश्यता की सीमा से परे हवा से हवा में मार करने वाली
मिसाइलें अस्त्र-एमके, जहाजों पर लगने वाली मध्यम श्रेणी की बंदूकें…….
श्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत
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