चीन के साथ चल रहे विवाद को देखते हुए देश की जनता ने चीनी राखियों का बहिष्कार कर चीनी अर्थव्यवस्था पर जोरदार प्रहार किया. इसके साथ ही चीन की इस मिथक को भी तोड़ दिया कि चीनी वस्तु ही उत्तम है, इसका बहिष्कार नहीं हो सकता.
इस वर्ष रक्षा बन्धन पर्व पर व्यापारियों ने चीन को चार हजार करोड़ का झटका देकर चीनी वस्तुओं के बहिष्कार अभियान को और अधिक तेजी से देश भर में चलाये जाने का एक मजबूत सन्देश भी दिया है. कैंट एक्शन कमेटी के जिला प्रभारी गौरव राठी ने ऑनलाइन एक कार्यक्रम में स्थानीय व्यापरियों को जानकारी देते हुए बताया कि अनुमानतः वाराणसी, पूर्वांचल सहित पूरे देश में प्रतिवर्ष 50 करोड़ राखियों का व्यापर होता है, जिसकी कीमत लगभग सात हजार करोड़ रूपये है. उन्होंने आगे कहा कि निम्न वर्ग एवं घरों में काम करने तथा आंगनबाड़ी में काम करने वाली महिलाओं सहित अन्य लोगों द्वारा अपने हाथों से बनाई गयी स्वदेशी राखी बाजारों में छाये रहें. बाजार में चीनी राखी की अपेक्षा स्वदेशी राखी की मांग अधिक देखी गयी.
बताते चले कि लद्दाख के गलावन घाटी में भारतीय सैनिकों पर चीनी सैनिकों द्वारा कायरता पूर्ण हमले के बाद देश भर में आक्रोश व्याप्त हो गया. इसके चीनी वस्तुओं का तेजी से बहिष्कार होने लगा था और रक्षाबंधन पर चीनी राखी के बहिष्कार के साथ स्वदेशी राखियों के प्रयोग का आह्वान पूर्ण रूप से सफल रहा.
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