- उमेश पंगोत्रा
- फाइल फोटो |
जम्मू कश्मीर. वर्षों से जम्मू-कश्मीर की नागरिकता हासिल करने
के लिए संघर्ष कर रहे पश्चिमी पाकिस्तानी रिफ्यूजियों के अलावा गोरखा समुदाय व
वाल्मीकि समाज के लोगों को सपना अब हकीकत में बदल गया है. यह संभव हुआ है नए जम्मू
कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35-ए को हटाए जाने के बाद. इन वर्गों के लोग वर्षो से
जम्मू-कश्मीर में रह रहे थे, लेकिन
उन्हें जम्मू-कश्मीर की नागरिकता नहीं मिली थी. इस कारण वे न तो यहां संपत्ति बना
पाते थे और न ही उनके बच्चे सरकारी नौकरी कर पाते थे, लेकिन अब इन्हें भी जम्मू-कश्मीर के स्थायी नागरिकों के बराबर
अधिकार मिल गए हैं. लिहाजा जम्मू कश्मीर में डोमिसाइल प्रमाण पत्र बनने की
प्रक्रिया जारी है और अब तक 33,80, 243 लोगों (25 जनवरी, 2021 तक) को
नए प्रावधान के अंतर्गत केंद्र शासित प्रदेश की नागरिकता मिल चुकी है. जम्मू
कश्मीर में स्थायी नागरिकता से गोरखा समाज, वाल्मीकि, पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थी और वे औरतें संघर्ष कर रही
थीं, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर से बाहर शादी की थी.
वंचित
वर्ग में गोरखा और वाल्मीकि समाज के अलावा वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी शामिल थे
वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूजी एक्शन कमेटी के अध्यक्ष लब्बा राम
गांधी बताते है कि उनकी आंखें उस समय नम हो गईं, जब
उन्हें जम्मू-कश्मीर का मूल निवासी घोषित करने वाला अधिवास प्रमाण पत्र प्रदान
किया गया. कागज के इस टुकड़े से उन्हें इस केन्द्र शासित प्रदेश में मतदान करने, संपत्ति खरीदने और सरकारी नौकरी का अधिकार हासिल हो गया.
पश्चिमी पाकिस्तान से आकर 1947 में
जम्मू कश्मीर में बसे अधिकतर लोगों को अधिवास अथवा डोमिसाइल प्रमाण पत्र दिए जा
चुके हैं और बचे हुए लोगों को नागरिकता प्रमाण पत्र देने की प्रक्रिया जारी है.
केंद्र शासित प्रदेश सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि पश्चिमी
पाकिस्तान से आया कोई भी शरणार्थी न छूटे और उन सभी को अधिवास प्रमाण पत्र मिले.
तीर्थ राम, सीमावर्ती आर एस पुरा के नजदीक रंगपुर
सिदरिया में पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों से संबंधित बस्ती में गारे से बने
मकान में रहते हैं. उन्होंने कहा कि हिंदुओं को देश में न्याय हासिल करने में 72 साल लग गए और कागज का यह नागरिकता प्रमाण पत्र इस समुदाय में
नयी उम्मीद जगा रहा है. उन्होंने कहा, यह मेरे
जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय है. इससे हमारी युवा पीढ़ी की किस्मत बदल जाएगी. अब वे
हमारी तरह अवांछित नागरिक के तौर पर नहीं, बल्कि
जम्मू-कश्मीर के सम्मानित निवासी के तौर पर जीवन गुजार सकेंगे. हमने तो ऐसे ही 72 साल काट लिए.
70 से अधिक वर्षों से राज्य विहीन लोगों
की तरह जीवन जी रहे थे
जम्मू-कश्मीर में पश्चिमी पाकिस्तान से आए लगभग 1.5 लाख शरणार्थी भारत में बीते 70 से अधिक
वर्षों से राज्य विहीन लोगों की तरह जीवन जी रहे थे. न तो उन्हें सरकारी नौकरियां
मिलीं, न छात्रवृत्ति, न
कॉलेजों में दाखिला, न
कल्याणाकारी योजनाओं का लाभ और न ही अपनी संपत्ति खरीदने का अधिकार. पश्चिमी
पाकिस्तान के शरणार्थियों के युवा अधिकतर अशिक्षित हैं. जम्मू संभाग के आर एस पुरा, सांबा, हीरानगर
और जम्मू के सीमावर्ती इलाकों में खेतों में मजदूरी करके जीवन गुजार रहे हैं, जबकि बुजुर्ग लोग घरेलू सहायक के तौर पर काम करते हैं. इसलिए
अब इस वर्ग में सुनहरे भविष्य की उम्मीद जग गई है. सीमांत क्षेत्र बैन ग्लाड, जिला सांबा में रहने वाले प्रीत चैधरी बताते हैं कि अब हमारे
बच्चे संपत्ति खरीद सकते हैं, शिक्षा
हासिल कर सकते हैं और मतदान भी कर सकते हैं. पिछले दिनों जम्मू कश्मीर में हुए
जिला विकास परिषद के चुनाव में हमने मतदान भी किया. प्रीत चैधरी बताते हैं कि अब
उनके बच्चे आरक्षण सुविधाओं के जरिये पेशेवर कॉलेजों में दाखिला भी ले सकते हैं.
हमने जो सहा है, वे वह सबकुछ नहीं सहेंगे. हमें इस बात
की बेहद खुशी है कि हमें आखिरकार जम्मू-कश्मीर का मूल निवासी मान लिया गया है.
हमारे युवाओं के बीच इससे नयी उम्मीद जगी है, जो अब
अधिकारी बन पाएंगे और नौकरियां हासिल कर सकेंगे.
गोरखा समाज और इसके रिटायर्ड सैनिक और अफसर भी शामिल
जम्मू-कश्मीर में अधिवास प्रमाण पत्र (डोमिसाइल सर्टिफिकेट)
हासिल करने वालों में गोरखा समाज और इसके रिटायर्ड सैनिक और अफसर भी शामिल हैं.
डोमिसाइल प्रमाण पत्र हासिल करने के बाद ये लोग यहां प्रॉपर्टी खरीद रहे हैं और
केंद्र शासित प्रदेश में नौकरियों के लिए आवेदन भी अब कर रहे हैं. केवल जम्मू में
बाहु तहसील में ही अब तक गोरखा समुदाय के करीब 2500 लोग, जिन्होंने भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दीं और उनके परिवार के
लोगों को यह सर्टिफिकेट जारी हो चुका है. करीब 3500 लोगों ने
इसके लिए अप्लाई किया था. इनमें से थोड़े बहुत वाल्मीकि समुदाय से भी हैं. वाल्मीकि
समुदाय के लोगों को यहां 1957 में
पंजाब से लाकर बसाया गया था. यह तब किया गया था, जब राज्य
के स्वच्छता कर्मी हड़ताल पर चले गए थे.
सरकार के इस निर्णय से गोरखा समुदाय का एक बहुत लंबा संघर्ष
खत्म हुआ है. गोरखा समाज के लोग जम्मू कश्मीर में करीब 150 सालों से रह रहे हैं. उन्होंने इसकी लगभग आस छोड़ दी थी. लेकिन
अब उनको न्याय मिल गया है. जम्मू कश्मीर गोरखा समाज की पूर्व अध्यक्ष बबिता राणा
ने बताया कि उनके एक रिश्तेदार के पिता हरक सिंह ने महाराजा हरि सिंह की सेना में
नौकरी की थी. इसके बाद उनके भाई ओमप्रकाश ने गोरखा राइफल्स जॉइन की थी और वह बतौर
हवलदार रिटायर हुए थे. सेना से रिटायर होने के बाद वह लगातार स्थायी आवास प्रमाणपत्र
के लिए अप्लाई करते थे. लेकिन नहीं मिलता था. बबिता बताती है कि अब गोरखा समाज के
लोग भी जम्मू कश्मीर के स्थायी नागरिक बन गए हैं. गोरखा समाज के बुजुर्ग कहते हैं
कि अब वह शांति से मर सकेंगे, क्योंकि
उन्हें भारत के एक केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर की आखिरकार स्थायी नागरिकता
मिल गई है.
गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर प्रशासन ने 18 मई, 2020 को
डोमिसाइल प्रमाणपत्र जारी करने के संदर्भ में नॉटिफिकेशन जारी किया था. इसके
नियमों के अनुसार डोमिसाइल प्रमाणपत्र जारी करने वाला अधिकारी (तहसीलदार) अगर 15 दिन के भीतर इसे जारी नहीं करता है तो उस पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगेगा. इन नियमों के अनुसार जो लोग
मूल रूप से जम्मू-कश्मीर के नहीं हैं, लेकिन
यहां 15 साल से रह रहे हैं, उनके
बच्चे इसे हासिल करने के हकदार हैं. इसके अलावा केंद्र सरकार के कर्मचारी और
केंद्रीय संस्थानों के कर्मी और कोई भी जिसने जम्मू और कश्मीर में 7 साल तक पढ़ाई की है और वह दसवीं और 12वीं परीक्षाओं में बैठा है, वे इसे
पाने के हकदार हैं.
श्रोत- विश्व संवाद केन्द्र,
भारत
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