काशी हिंदू विश्वविद्यालयके स्थापन उत्सव पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी
प्रांत के दक्षिण भाग द्वारा आयोजित पथ संचलन
काशी। देश में हिंदी भाषा को प्राथमिकता देने का सर्वप्रथम पहल महामना मदन मोहन मालवीय जी ने किया था। पांच वर्ष की आयु से संस्कृत बोलने वाले मदन मोहन मालवीय ने वकालत के दौरान जब अंग्रेजी, पारसी और उर्दू भाषा का प्रयोग न्यायालय में देखा तो वे समझ गये की जब तक नागरिक अर्थात हिंदी भाषा का प्रयोग न्यायालय में नहीं होता तब यह प्रभावहीन रहेगा। उक्त विचार काशी हिंदू विश्वविद्यालय के स्थापन उत्सव पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी प्रांत के दक्षिण भाग द्वारा प्रत्येक वर्ष की भांति आयोजित होने वाले पथ संचलन के कार्यक्रम में अखिल भारतीय सह गौसेवा संयोजक मा. अजीत प्रसाद महापात्र ने अपने उद्बोधन के दौरान व्यक्त किया।
कार्यक्रम
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एग्रीकल्चर ग्राउंड पर विश्वविद्यालय के कुलगीत से
आरम्भ किया गया। तत्पश्चात एकल गीत प्रस्तुत करने के बाद पथ संचलन हेतु उपस्थित
स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए श्री महापात्र ने कहा कि मालवीय जी का जन्म
सामान्य और उत्कृष्ट संस्कारयुक्त परिवार में हुआ था, ये उनके पारिवारिक संस्कार थे कि अपने धर्म के प्रति उनमें बहुत आस्था थी।
एक बार मालवीय जी को एक पादरी द्वारा धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जा रहा था
कि अपना क्रिश्चियन धर्म बहुत अच्छा है तुम इसे स्वीकार करो। तब मालवीय जी ने
पादरी से कहा "हिन्दू धर्मः सर्श्रेष्ठ धर्मः"। अपना धर्म छोड़कर कहीं
नहीं जाना चाहिए। इसके बाद स्वयंसेवकों द्वारा अनुशासन और कोरोना गाइडलाइन का पालन
करते हुए एक विशाल पथ संचलन निकाली गई। यह संचलन एग्रीकल्चर ग्राउंड से आरंभ कर सर
सुंदरलाल चिकित्सालय चौराहा, सिंह
द्वार होते हुए विश्वविद्यालय स्थापना स्थल पर पहुंची। इस दौरान घोष दल द्वारा
किया जा रहा घोष वादन लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा। स्थापना स्थल पर मां सरस्वती
पूजन कर स्वयंसेवकों ने वंदेमातरम गीत से मां भारती का वंदन कर कार्यक्रम का समापन
किया।
इस दौरान क्षेत्रीय कार्यकारिणी सदस्य राजेंद्र सक्सेना, दक्षिण भाग प्रचारक प्रवेश जी, विश्व संवाद केन्द्र प्रमुख राघवेन्द्र, विभाग संघचालक जेपी लाल, सह प्रान्त कार्यवाह राकेश तिवारी समेत सैकड़ो स्वयसेवक उपस्थित रहे।
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