प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक जे. नंदकुमार जी ने कहा
कि हिन्दुत्व का तात्पर्य उन तत्वों से है, जिनके
कारण कोई हिन्दू कहलाता है. हिन्दुइज्म शब्द गढ़ने वालों का मुख्य उद्देश्य
हिन्दुओं को विभाजित रखना है. हिन्दू कभी ‘इज्म’ में नहीं आ सकता. ‘इज्म’ एक सीमा में बंधी हुई विचारधारा है. जैसे इस्लाम के लिए कुरान
अपने आप में परिपूर्ण है, उसमें
किसी भी तरह का कोई बदलाव नहीं किया जा सकता और इसी के आधार पर व्यवस्थाओं को
चलाने का दम्भ रखा जाता है. ऐसे कुछ और मजहब भी हैं. लेकिन, हिन्दू पद्धति में सबका चिंतन किया जाता है एवं
देश-काल-परिस्थिति के अनुसार उसमें संशोधन भी होते रहते हैं. भारत के सन्यासी एवं
ऋषि-मुनियों ने संपूर्ण विश्व के कल्याण का कार्य किया.
पटना के बिहार विधान परिषद् सभागार में 27 सितंबर को अपनी पुस्तक ‘बदलते
दौर में हिन्दुत्व’ के
विमोचन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि ‘खलीफेत’ शब्द को
खिलाफत बना दिया गया. यह षड्यंत्र टर्की के विवाद को भारतीय स्वाधीनता आंदोलन से
जोड़ने के लिए किया गया. इसका उद्देश्य स्वतंत्रता सेनानियों में एक भ्रम पैदा कर
पूरे संघर्ष की पृष्ठभूमि को बदलने की कोशिश थी. इसी का नतीजा था कि देश का विभाजन
हुआ.
विमोचन कार्यक्रम को बिहार विधान परिषद् के सभापति अवधेश
नारायण सिंह, बिहार के उप मुख्यमंत्री तारकिशोर
प्रसाद, प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्रीय संयोजक रामाशीष सिंह इत्यादि ने
भी संबोधित किया. पुस्तक का परिचय पटना विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक गुरु
प्रकाश ने दिया. कार्यक्रम में मंच संचालन प्रज्ञा प्रवाह के प्रांत संयोजक
कृष्णकांत ओझा ने किया.
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