लाल
बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री याद करते हैं – “1965 की लड़ाई
के दौरान अमरीकी राष्ट्रपति लिंडन जॉन्सन ने शास्त्री को धमकी दी थी कि अगर आपने
पाकिस्तान के ख़िलाफ़ लड़ाई बंद नहीं की तो हम आपको पीएल 480 के तहत
जो गेहूँ भेजते हैं, उसे बंद
कर देंगे.”
उस समय
भारत गेहूँ के उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं था. शास्त्री जी को ये बात बहुत चुभी
क्योंकि वो स्वाभिमानी व्यक्ति थे.
उन्होंने
देशवासियों से अपील की कि हम सप्ताह में उपवास रख एक वक्त भोजन नहीं करेंगे. तो
उसकी वजह से अमरीका से आने वाले गेहूँ की आपूर्ति हो जाएगी.
अनिल
शास्त्री कहते हैं कि, “लेकिन इस
अपील से पहले उन्होंने मेरी माँ ललिता शास्त्री से कहा कि क्या आप ऐसा कर सकती हैं
कि आज शाम हमारे यहाँ खाना न बने. मैं कल देशवासियों से एक वक्त का खाना न खाने की
अपील करने जा रहा हूँ.”
“मैं देखना चाहता हूँ कि मेरे बच्चे
भूखे रह सकते हैं या नहीं. जब उन्होंने देख लिया कि हम लोग एक वक्त बिना खाने के
रह सकते हैं तो उन्होंने देशवासियों से भी ऐसा करने के लिए कहा.”
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 02 अक्तूबर, 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सात मील दूर एक छोटे से रेलवे
टाउन, मुगलसराय में हुआ था. उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे. जब लाल
बहादुर शास्त्री केवल डेढ़ वर्ष के थे, तभी उनके
पिता का देहांत हो गया था. उनकी माँ अपने तीनों बच्चों के साथ अपने पिता के घर
जाकर बस गईं.
उस छोटे-से शहर में लाल बहादुर की स्कूली शिक्षा कुछ खास नहीं
रही. लेकिन गरीबी की मार पड़ने के बावजूद उनका बचपन पर्याप्त रूप से खुशहाल बीता.
उन्हें वाराणसी में चाचा के साथ रहने के लिए भेज दिया गया था
ताकि वे उच्च विद्यालय की शिक्षा प्राप्त कर सकें. घर पर सब उन्हें नन्हें के नाम
से पुकारते थे. वे कई मील की दूरी नंगे पांव से ही तय कर विद्यालय जाते थे, यहाँ तक की भीषण गर्मी में जब सड़कें अत्यधिक गर्म हुआ करती
थीं, तब भी उन्हें ऐसे ही जाना पड़ता था.
बड़े होने के साथ-ही लाल बहादुर शास्त्री विदेशी दासता से
आजादी के लिए देश के संघर्ष में अधिक रुचि रखने लगे. वे भारत में ब्रिटिश शासन का
समर्थन कर रहे भारतीय राजाओं की महात्मा गांधी द्वारा की गई निंदा से अत्यंत
प्रभावित हुए. लाल बहादुर शास्त्री जब केवल ग्यारह वर्ष के थे, तब से ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने का मन बना लिया
था.
गांधी जी ने असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने
देशवासियों से आह्वान किया था, इस समय
लाल बहादुर शास्त्री केवल सोलह वर्ष के थे. उन्होंने महात्मा गांधी के इस आह्वान
पर अपनी पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय कर लिया था. उनके इस निर्णय ने उनकी मां की
उम्मीदें तोड़ दीं. उनके परिवार ने उनके इस निर्णय को गलत बताते हुए उन्हें रोकने
की बहुत प्रयास किया, लेकिन वे
इसमें असफल रहे. लाल बहादुर शास्त्री ने अपना मन बना लिया था. उनके सभी करीबी
लोगों को यह पता था कि एक बार मन बना लेने के बाद वे अपना निर्णय कभी नहीं बदलेंगे
क्योंकि बाहर से विनम्र दिखने वाले लाल बहादुर अन्दर से चट्टान की तरह दृढ़ हैं.
लाल बहादुर शास्त्री ब्रिटिश शासन की अवज्ञा में स्थापित किये
कई राष्ट्रीय संस्थानों में से एक वाराणसी के काशी विद्यापीठ में शामिल हुए. यहाँ
वे महान विद्वानों एवं देश के राष्ट्रवादियों के प्रभाव में आए. विद्यापीठ द्वारा
उन्हें प्रदत्त स्नातक की डिग्री का नाम ‘शास्त्री’ था, लेकिन
लोगों के दिमाग में यह उनके नाम के एक भाग के रूप में बस गया.
1927 में उनकी शादी हो गई. उनकी पत्नी ललिता
देवी मिर्जापुर से थीं जो उनके अपने शहर के पास ही था.
1930 में महात्मा गांधी ने नमक कानून को
तोड़ते हुए दांडी यात्रा की. इस प्रतीकात्मक सन्देश ने पूरे देश में क्रांति ला दी.
लाल बहादुर शास्त्री विह्वल ऊर्जा के साथ स्वतंत्रता के इस संघर्ष में शामिल हो
गए. उन्होंने कई अभियानों का नेतृत्व किया एवं कुल सात वर्षों तक ब्रिटिश जेलों
में रहे. आजादी के इस संघर्ष ने उन्हें पूर्णतः परिपक्व बना दिया.
1946 में जब कांग्रेस सरकार का गठन हुआ तो
इस ‘छोटे से डायनमो’ को देश
के शासन में रचनात्मक भूमिका निभाने के लिए कहा गया. उन्हें अपने गृह राज्य उत्तर
प्रदेश का संसदीय सचिव नियुक्त किया गया और जल्द ही वे गृह मंत्री के पद पर भी
आसीन हुए. कड़ी मेहनत करने की उनकी क्षमता एवं उनकी दक्षता उत्तर प्रदेश में एक
लोकोक्ति बन गई. वे 1951 में नई
दिल्ली आ गए एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का प्रभार संभाला – रेल मंत्री; परिवहन
एवं संचार मंत्री; वाणिज्य
एवं उद्योग मंत्री; गृह
मंत्री एवं नेहरू जी की बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री रहे. उनकी प्रतिष्ठा
लगातार बढ़ रही थी. एक रेल दुर्घटना, जिसमें
कई लोग मारे गए थे, के लिए
स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था.
देश एवं संसद ने उनकी इस अभूतपूर्व पहल को काफी सराहा. तत्कालीन प्रधानमंत्री
पंडित नेहरू ने इस घटना पर संसद में बोलते हुए लाल बहादुर शास्त्री की ईमानदारी
एवं उच्च आदर्शों की काफी तारीफ की. उन्होंने कहा कि लाल बहादुर शास्त्री का
इस्तीफा इसलिए नहीं स्वीकार किया है कि जो कुछ हुआ वे इसके लिए जिम्मेदार हैं, बल्कि इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि इससे संवैधानिक मर्यादा
में एक मिसाल कायम होगी. रेल दुर्घटना पर लंबी बहस का जवाब देते हुए लाल बहादुर
शास्त्री ने कहा – “शायद
मेरे लंबाई में छोटे होने एवं नम्र होने के कारण लोगों को लगता है कि मैं बहुत
दृढ़ नहीं हो पा रहा हूँ. यद्यपि शारीरिक रूप से में मैं मजबूत नहीं, लेकिन मुझे लगता है कि मैं आंतरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं
हूँ.”
अपने मंत्रालय के कामकाज के दौरान भी वे कांग्रेस पार्टी से
संबंधित मामलों को देखते रहे एवं उसमें अपना भरपूर योगदान दिया. 1952, 1957 एवं 1962 के आम चुनावों
में पार्टी की निर्णायक एवं जबर्दस्त सफलता में उनकी सांगठनिक प्रतिभा एवं चीजों
को नजदीक से परखने की उनकी अद्भुत क्षमता का बड़ा योगदान था.
तीस से अधिक वर्षों तक अपनी समर्पित सेवा के दौरान लाल बहादुर
शास्त्री अपनी उदात्त निष्ठा एवं क्षमता के लिए लोगों के बीच प्रसिद्ध हो गए.
विनम्र, दृढ, सहिष्णु
एवं आंतरिक शक्ति वाले शास्त्री जी लोगों के बीच ऐसे व्यक्ति बनकर उभरे जिन्होंने
लोगों की भावनाओं को समझा. वे दूरदर्शी थे जो देश को प्रगति के मार्ग पर लेकर आये.
लाल बहादुर शास्त्री महात्मा गांधी के राजनीतिक शिक्षाओं से अत्यंत प्रभावित थे.
एक बार उन्होंने कहा था – “मेहनत
प्रार्थना करने के समान है.” लाल
बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ पहचान हैं.
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