नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के
सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि श्रद्धेय अमीर चंद जी कला और संस्कृति के
लिए आजीवन कार्य करने वाले संस्कार ऋषि व्यक्तित्व थे जो जीवन के अन्त समय
तक अपनी कला साधना में लीन रहे. पूरे देश की कला प्रतिभाओं को जोड़ने के काम में
महती भूमिका का निर्वाह किया. भारतीय कला के प्रचार प्रसार में
इनका विशेष योगदान था. पूर्वोत्तर से उनका विशेष लगाव था और पूर्वोत्तर में
संस्कार और संस्कृति के लिए काम करते हुए उसी भूमि पर अपना प्राण त्याग दिया. कला
और संस्कृति के ये साधक सदैव हमारे ह्रदय में जीवित रहेंगे. कोरोना महामारी के
दौरान कलाकारों के जीवन के कष्ट को ध्यान में रखते हुए उन्होंने पीर परायी जाणे रे
अभियान द्वारा बड़े कलाकरों को जोड़ कर छोटे और मंझोले कलाकारों की सहायता की.
श्रद्धेय अमीर चंद जी को श्रद्धांजलि देने के लिए अम्बेडर
सेंटर सभागार में संस्कार भारती ने स्मृति सभा का आयोजन किया. जिसमें देश भर से
गणमान्य व्यक्तियों ने दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि दी. सरकार्यवाह ने कहा कि
संगठन के नाते देश की कला और संस्कृति के लिए कण-कण, क्षण-क्षण कार्य करते रहना उनको
सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
संस्कार भारती के युवा कार्यकर्ता सुशांक ने बेहद आत्मीयता
के साथ अमीर चंद के जीवन के उन पहलुओं को छुआ जो उनको युवाओं से जोड़ता था. स्मृति
सभा में राज्यसभा सदस्य पद्मविभूषण सोनल मानसिंह, मशहूर निर्देशक चंद्रप्रकाश
द्विवेदी, गायक वासिफुद्दीन
डागर, मालिनी अवस्थी सहित
अन्य गणमान्य लोगों ने श्रद्धासुमन अर्पित किए.
स्मृति सभा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह
डॉ. कृष्ण गोपाल जी, सुरेश सोनी जी, कला ऋषि पद्मश्री बाबा योगेंद्र
जी, सहित संस्कार भारती
के अनेक कार्यकर्ता, कला जगत से जुड़े कलाकार उपस्थित रहे.
संस्कार
भारती के अखिल भारतीय महामंत्री श्री अमीरचंद जी का पूरा जीवन कला साहित्य और
संस्कृति के संवर्धन के प्रति समर्पित रहा. ‘मौन तपस्वी साधक बनकर, हिमगिरी
सा चुपचाप गलें’ का मन्त्र जीवन भर साधने वाले अमीरचंद बलिया शहर से लगे गाँव
ब्रह्माइन में एक अत्यंत साधारण परिवार में जन्में. सन् 1981 में
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े. ब्रह्माइन गांव, जिसे
उन्होंने कभी युवावस्था में ही, राष्ट्र की सेवा के लिए त्याग दिया
और समर्पित कर दिया था, अपना सर्वस्व भारत की सांस्कृतिक चेतना को
संगठित करने में… फिर तो इन्होंने संघ को अपना परिवार मानते हुए पूरा जीवन राष्ट्र
यज्ञ में होम कर दिया. उनको मात्र 56 वर्ष की आयु
मिली. लेकिन इतने समय में ही उन्होंने एक बड़ी लकीर खींच दी.
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