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Saturday, October 31, 2020

निकिता के परिजनों से मिलने विहिप कार्याध्यक्ष आलोक कुमार पहुंचे बल्लभगढ़

एक करोड़ मुआवजा, त्वरित न्याय एवं लव-जिहाद व धर्मांतरण रोकने हेतु बने कानून

विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के केन्द्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार, एडवोकेट आज प्रात: हरियाणा के बल्लभगढ़ में निकिता के परिवार से मिले और उन्हें सांत्वना दी. एक प्रतिभावान और आसमान छूने की उमंग रखने वाली लड़की इस्लामिक जिहादियों के हाथों मार दी गई. इस पर धैर्य करना कठिन ही है.

घर से बाहर निकल कर पत्रकारों से वार्ता करते हुए उन्होंने कहा कि इस्लामो-फासिस्ट जिहादियों की कार्यवाहियों से विश्वभर में सभ्य समाज की अभिव्यक्ति की आजादी, मानव की गरिमा और जीवन संकट में आ रहे हैं. सबको मिलकर इसका मुकाबला करना होगा.

क्षेत्र में बढ़ती लव-जिहाद धर्मांतरण तथा हिन्दू उत्पीड़न की घटनाएं बेहद चिंतनीय हैं. आखिर कितनी बेटियां इन हिन्दू द्रोही जिहादी मानसिकता की शिकार होती रहेंगी? उन्होंने मांग की कि बेटी के परिजनों को एक करोड़ का मुआवजा सरकार तुरंत दे तथा लव-जिहाद व जबरन या छलपूर्वक धर्मांतरण पर पूर्ण प्रतिबंध हेतु सरकार एक कठोर कानून बनाए.

न्याय के अवरोधों को दूर करने हेतु विहिप कार्याध्यक्ष ने कहा कि हमारी मांगों को मानते हुए राज्य सरकार ने फास्ट-ट्रेक कोर्ट का गठन, 30 दिन में सभी दोषियों के विरुद्ध चालान तथा प्रतिदिन सुनवाई की बातें स्वीकार लीं हैं. विश्व हिन्दू परिषद् भी इन सबकी निगरानी करेगा कि न्याय में कोई विलंब या अवरोध ना आने पाए.

आलोक कुमार ने कहा कि हरियाणा, खासकर मेवात और उससे जुड़े क्षेत्र में लगातार हो रही हिन्दू विरोधी व राष्ट्र विरोधी घटनाओं तथा इस प्रकार के हमलों की पुनरावृत्ति रोकने हेतु भी सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे. ऐसे कई मामले ध्यान में आए हैं, जिनमें हिन्दू बेटियों का वर्षों से कोई अता-पता नहीं है और माता-पिता तथा परिजन न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं. मुख्यमंत्री द्वारा मेवात के संदर्भ, कुछ माह पूर्व नूह में की गईं घोषणाओं पर शीघ्र अमल करने का भी अब समय आ गया है.

हिन्दू समाज इस लड़ाई को यहां तक लाया है. अब विश्व हिन्दू परिषद इसे अंतिम पड़ाव तक पहुंचाए बिना विराम नहीं लेगी. हम हर बेटी को न्याय दिलवाकर रहेंगे.

श्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत 

आतंकियों की बौखलाहट – छह माह में 15 से अधिक स्थानीय नागिरकों, नेताओं, कार्यकर्ताओं की हत्या की

जम्मू-कश्मीर. जम्मू कश्मीर में आतंकियों व अलगाववादियों की पकड़ ढीली पड़ रही है, और इसी कारण बौखलाए हुए हैं. बौखलाहट का ही परिणाम है कि स्थानीय नेताओं, कार्यकर्ताओं, व आम नागरिकों पर लगातार हमले कर रहे हैं. आतंकियों ने गत 6 माह में जम्मू-कश्मीर के करीब 15 से अधिक स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं की हत्या की है.

जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान परस्त आतंकी लोकतंत्र की हत्या कर रहे हैं. उन्हें डर है कि पंच-सरपंच और राष्ट्रीय विचार लेकर लोग अगर स्थानीय स्तर पर कार्य करेंगे तो घाटी में बहुत जल्द आतंक का सफाया हो जाएगा. इसलिए आतंकी अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए लगातार स्थानीय नेताओं और नागरिकों को निशाना बना रहे हैं.

बीते गुरुवार की रात भी कुलगाम में अज्ञात आतंकियों ने भाजपा के तीन कार्यकर्ताओं की गोली मारकर हत्या कर दी थी. मारे गये भाजपा नेताओं की पहचान कुलगाम बीजेपी युवा मोर्चा के महासचिव फिदा हुसैन, उमर राशिद बेग और उमर हजाम के तौर पर हुई है. गोली मारने के बाद अज्ञात आतंकी मौके से फरार हो गये थे, सुरक्षाबलों द्वारा आतंकियों की तलाश की जा रही है. इसके अलावा आतंकी घाटी में दोबारा दहशत फैलाने के लिए आम कश्मीरी नागरिकों को भी निशाना बना रहे हैं. इन सभी आतंकी घटनाओं के लिए अलगाववाद और पाकिस्तान परस्त आतंकी जिम्मेदार हैं.

पिछले 6 माह में आतंकियों ने 15 से अधिक स्थानीय नागरिकों, नेताओं की हत्या की

·         6 जून सोपोर के अदीपोरा बोमाई इलाके में आतंकियों ने घर में घुसकर इश्फाक अहमद नजार की हत्या कर दी थी.

·         8 जून कश्मीरी हिंदू सरपंच अजय पंडिता की गोली मारकर हत्या कर दी थी.
• 10
जून शोपियां में आतंकियों ने कश्मीरी नागरिक तारिक अहमद पॉल को अगवा करके उसकी हत्या कर दी थी.

·         15 जून आतंकियों ने सोपोर की महिला सरपंच जाहिदा को अगवा किया था. जिसके बाद आतंकियों ने बंदूक के बल पर उन्हें इस्तीफा देने की धमकी दी और कहा इस्तीफा नहीं देने पर वह उनकी हत्या कर देंगे.

·         8 जुलाई बांदीपोरा में आतंकियों ने बीजेपी के जिला प्रधान वसीम बारी, उनके पिता और भाई की गोली मारकर हत्या कर दी थी.

·         4 अगस्त कुलगाम जिले के मीरबाजार इलाके में आतंकियों ने बीजेपी पंच पीर आरिफ अहमद शाह पर आतंकी हमला किया था.

·         6 अगस्त आतंकियों ने कुलगाम में बीजेपी सरपंच सज्जाद अहमद की गोली मारकर हत्या कर दी थी.

·         9 अगस्त बडगाम में आतंकियों ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) बीजेपी मोर्चा के ज़िला अध्यक्ष अब्दुल हमीद नजार की गोली मारकर हत्या की.

·         15 अगस्त पुलवामा ज़िले के कंगन इलाके में आतंकियों ने विकलांग सिविलियन आज़ाद अहमद डार की गोली मारकर हत्या कर दी थी.

·         28 अगस्त शोपियां के दंगम इलाके में सुरक्षाबलों को बीजेपी के संरपंच निसार अहमद भट का शव

मिला था. अज्ञात आतंकियों ने निसार अहमद की हत्या करके उनके शव को फेंक दिया था.

·         23 सितंबर आतंकियों ने खाग ब्लॉक बडगाम के बीजेपी बीडीसी भूपिंदर सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी थी.

·         24 सितंबर श्रीनगर में आतंकियों ने एडवोकेट बाबर कादरी के घर के बाहर उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी.

·         28 सितंबर शोपियां ज़िले के निलडूरा गांव में आतंकियों ने सरकारी कर्मचारी सब्ज़ार अहमद नाइकू की गोली मारकर हत्या कर दी थी.

·         6 अक्तूबर गांदरबल में आतंकियों ने बीजेपी के जिला उपप्रधान गुलाम कादिर और उनके अंगरक्षक (पीएसओ) पर गोलीबारी की थी. जिसमें पीएसओ अल्ताफ हुसैन भट ने गुलाम कादिर की जान बचाते हुए एक आतंकी को मार गिराया और खुद शहीद हो गए.

·         11 अक्तूबर पुंछ जिले के बालाकोट इलाके में आतंकियों ने बीजेपी नेता जुलिफ्फकार पठान के घर पर फायरिंग की थी. हालांकि हमले में किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ था.

·         29 अक्तूबर कुलगाम में आतंकियों ने कुलगाम बीजेपी युवा मोर्चा के महासचिव फिदा हुसैन और कार्यकर्ता उमर राशिद बेग, उमर हजाम की गोली मारकर हत्या कर दी.

श्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत 

Thursday, October 29, 2020

दीपावली पर अमेरिका में भी जगमगाएंगे आजमगढ़ में बने दीये

 

नई दिल्ली. भारत और चीन के मध्य सीमा विवाद के चलते इस बार की दीपावली पर चाइनीज झालर के स्थान पर स्वदेशी दीये जगमगाएंगे. उत्तरप्रदेश में आजमगढ़ के निजामाबाद कस्बे में काली मिट्टी से विशेश प्रकार से दीये बनाए जा रहे हैं. काली मिट्टी से तैयार दीये की मांग अमेरिका से भी आई है.

वैश्विक महामारी के कारण चाइनीज झालरों से भारत ही नहीं अन्य देशों ने भी दूरियां बनाई हैं. भारत में बन रहे स्वदेशी दीयों की मांग अमेरिका में रह रहे भारतीय लोगों ने भी की है.

जिला मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूर इस कस्बे में दिन रात दो सौ कलाकार मिट्टी के दीये बनाने में जुटे हैं. बिजली से चलने वाले चॉक अब बिजली जाने पर ही कुछ घंटों के लिए बंद होते हैं. एक दिन में लगभग छह हजार से अधिक दीये बनाए जा रहे हैं. पिछले बीस दिनों से इन दीयों की सप्लाई हो रही है. अब तक 50 लाख से अधिक दीयों की सप्लाई की जा चुकी है. इनमें से सत्तर फीसदी दीये महाराष्ट्र भेजे गए हैं और तीस फीसदी दूसरे देशों में भेजे गए. दीये बना रहे कलाकारों ने बताया कि दस लाख से अधिक दीये सिर्फ अमेरिका भेजे गए हैं.

कलाकार संजय यादव बीस दिनों में 25 से अधिक ट्रक दीये मुंबईपूना भेज चुके हैं. कलाकार बैजनाथ प्रजापति कहते हैं कि दीपावली के लिए हमारी वर्ष भर तैयारी चलती रहती है. तब जाकर कहीं हम लोग इतनी बड़ी सप्लाई पूरी कर पाते हैं.

आजमगढ़ से बनकर दीये मुंबई के महालक्ष्मी जाता है. वहां विशेष पैकेजिंग के बाद यह माल अमेरिका व दुबई जाता है. इस बार कोरोना के चलते बाहर की मांग ज्यादा है. बताया कि हमारे यहां एक दर्जन से अधिक डिजाइनर दीये बनते हैं. उसमें खासतौर पर चांदनी दीयाडेजी दीयास्टैंड दीयाथाली दीया, लक्ष्मी गणेश दीयानारियल दीयारिंग दीयापांच पंथी दीया आदि की मांग बाहर ज्यादा रहती है.

चुनार में तैयार की गई गणेश-लक्ष्मी की पूजा इस वर्ष नेपाल में होगी. वहां व्यापारी चुनार से सीधे गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति मांगवा रहे हैं. पूर्व में बिहार के मधुबनी जिले से नेपाल के व्यापारी गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति मंगवाते थे, लेकिन काफी महंगा होने के कारण व्यापारियों ने चुनार की तरफ रुख किया है. पॉटरी उद्योग से जुड़े व्यापारी अवधेश वर्मा की मानें तो इस वर्ष लगभग 15 से 20 लाख मूर्तियों का आर्डर नेपाल से विभिन्न व्यापारियों को मिला है. दीपावली और धनतेरस पर इन मूर्तियों की डिमांड दिल्ली-मुम्बई, झारखंड, उड़ीसा और कोलकाता के साथ ही अब नेपाल के प्रमुख शहरों में हो गई है. कोराना के कारण मंदी के दौर में गुजर रहे पॉटरी उद्योग के व्यवसायियों के लिए संजीवनी साबित हो रही है. गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति के साथ ही पॉटरी उद्योग में तैयार किए जाने वाले चीनी मिट्टी के कप-प्लेट, जार व फूलदान भी नेपाल भेजा जा रहा है.

जिला उद्योग केंद्र के उपायुक्त वीके चौधरी कहते हैं कि पॉटरी उद्योग के व्यापक प्रचार-प्रसार का ही नतीजा है कि अब चुनार में उत्पादित मूर्ति नेपाल तक पहुंच रही है. इससे इस उद्योग को पुनर्जीवित करने में काफी मदद मिलेगी.

श्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत 

Monday, October 26, 2020

दिल्ली दंगे – न्यायालय ने पूर्व पार्षद की जमानत याचिका खारिज की, कहा पूर्व पार्षद ने दंगे भड़काने में किया शक्ति और पद का उपयोग

 

नई दिल्ली. आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ने राजनीतिक पहुंच और शक्ति का दुरुपयोग कर दिल्ली में दंगे भड़काए. दिल्ली दंगों से जुड़े तीन मामलों में आप के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन की भूमिका को लेकर न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी करते हुए जमनत याचिका खारिज कर दी.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार न्यायालय ने दिल्ली के दंगों की तुलना विभाजन के बाद हुए दंगों की तुलना करते हुए कहा कि ये सर्वविदित है कि 24 फरवरी, 2020 के दिन उत्तर पूर्व दिल्ली को सांप्रदायिक उन्माद ने जकड़ लिया. इन दंगों ने विभाजन के दिनों के दौरान हुए नरसंहार की याद ताजा कर दी. कुछ ही समय के अंतराल में ये दंगे पूरी दिल्ली में फैलने लगे और राजधानी में जंगल की आग की तरह ये दंगे फैले और न जाने कितने मासूम बेकसूरों की जान चली गई.

यह देखते हुए कि वह दंगों के समय पार्षद जैसे बड़े राजनीतिक पद पर तैनात थे और दंगों को अधिक से अधिक भड़काने के लिए उन्होंने अपनी शक्ति और राजनीतिक रसूख का उपयोग किया. इसे साबित करने के लिए कई प्रमाण भी दिए जा चुके हैं.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने गुरुवार को एक आदेश में यह टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने विशेष लोक अभियोजक मनोज चौधरी के तर्क से सहमति जताई कि ताहिर के साथी आरोपियों को जमानत मिल गई है तो इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं कि उन्हें भी मिलनी चाहिए. इन मामलों में ताहिर और अन्य सह आरोपियों की भूमिका बिल्कुल अलग-अलग है. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने अपने आदेश में लिखा कि यह उल्लेखनीय है कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक दंगों के समय, ताहिर पार्षद जैसे शक्तिशाली पद पर था और यह प्रथम दृष्टया स्पष्ट है कि उन्होंने अपनी बाहुबल, शक्ति का उपयोग साम्प्रदायिक दंगों की योजना बनाने, उकसाने और उन्हें भड़काने में किया. इसे साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर पर्याप्त सामग्री मौजूद है. दंगों के दौरान भले ही वो अपनी शारीरिक शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर रहा था, लेकिन बौद्धिक शक्ति का इस्तेमाल करते हुए लोगों को इतना उकसा रहा था कि वो उसके इशारे पर किसी की जान भी ले सकते थे.

ताहिर के खिलाफ आरोप अत्यंत गंभीर न्यायालय ने कहा कि दिल्ली दंगा एक बड़ी वैश्विक शक्ति बनने की आकांक्षा वाले देश की अंतरात्मा में गहरा घाव है. ताहिर के खिलाफ आरोप अत्यंत गंभीर हैं. इसलिए उन्हें जमानत नहीं दी जा सकती.

श्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत

एफएटीएफ ने आतंकिस्तान को ग्रे लिस्ट में बरकरार रखा, 6 प्रमुख कार्ययोजनाएं नहीं की पूरी

 

दुनियाभर में आतंक फैलाने और टेरर फंडिंग, मनीलांड्रिंग के डर्टी गेम में लिप्त पाकिस्तान की फितरत से कोई भी अनजान नहीं है. विश्व में अराजकता, अमानवीय हिंसा, अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न, भुखमरी और लोकतंत्र विरोधी चाल-चरित्र सबके समक्ष है. अपने पैदा होने के समय से ही पाकिस्तान लगातार भारत विरोधी अभियान में जुट गया था और उसके द्वारा सीमा पार से संचालित, पोषित आतंक की कलुषित गाथा सबके सामने है.

आजादी के 7 दशक बाद भी पाकिस्तान के नागरिकों को जीवन की मूलभूत सुविधाएं मयस्सर नहीं हैं. अमेरिका ने जब देखा कि जो पाकिस्तान उसकी कृपा और भीख पर पल रहा है, वही इस्लाम और जिहाद के नाम पर वैश्विक आतंकवाद को फैलाकर रहा है. जब अमेरिका ने आतंक के पर्याय पाकिस्तान का गिरगिट चरित्र देखा तो उसे भीख देनी बंद कर दी. आतंकी मजहब के पक्षधर पाकिस्तान को मौसम और मिजाज के हिसाब से आका ढूंढने का शौक रहा है, इसलिए दुनिया की आंख की किरकिरी बना विस्तारवादी चीन और इस्लाम के नाम पर जिहाद के समर्थक तुर्की और मलेशिया ही पाकिस्तान के सहारे हैं. चीन ने कर्जा देकर उसे गुलाम बना दिया है तो तुर्की से आस पालने के अलावा उसके पास और कोई चारा नहीं है. सऊदी अरब ने अब तेल और राशन सब बंद कर दिया.

फाइनेंशिल एक्शन टॉस्क फोर्स (एफएटीएफ) ने पाकिस्तान को वैश्विक आतंक के सहयोग और वित्त पोषण के लिए जून, 2018 में ग्रे सूची में डाल दिया था. पाकिस्तान को सुधरने का अवसर दिया, आतंक पर अंकुश लगाने के लिए कहा और देश में पल रहे आतंकी संगठनों व उनके आकाओं को सरकारी संरक्षण न देने की चेतवानी दी थी. फरवरी-2020 में भी एफएटीएफ ने कहा था कि पाकिस्तान 27 मापदंडों में से सिर्फ 14 मापदंडों पर खरा उतरा है. सितंबर में मनीलॉन्ड्रिंग और चरमपंथ को फंड रोकने के मकसद से पाकिस्तान की संसद में कुछ बिल और संशोधन पास किए गए, लेकिन नौटंकी, दिखावे और लीपापोती के सिवा आतंक के आकाओं ने कुछ भी नहीं किया.

सऊदी अरब के बल पर आतंकवादियों के सहयोग और सेना की कृपा से पाकिस्‍तान की सत्ता पर बैठे प्रधानमंत्री इमरान खान नियाजी ने हवाई वादे और खोखली घोषणाएं कीं, लेकिन आतंकवाद के एक्सपोर्ट में कोई कमी नहीं की. एक ओर चीन के साथ जोड़ी बनाकर भारत में आतंकवाद को बढ़ाने की कलुषित मानसिकता पाल रखी है तो दूसरी ओर तुर्की और पाकिस्‍तान की यह नापाक जोड़ी अजरबैजान के साथ आ गई है और आर्मीनिया में अपने सीरियाई आतंकियों के बल पर बेहद क्रूर तरीके से जंग लड़ रही है.

एफएटीएफ की काली सूची से बचने के लिए बड़बोले इमरान ने अमेरिका को साधने के लिए अमेरिकी लॉबिंग कंपनियों की मदद ली. लेकिन पेरिस में हुई एफएटीएफ की बैठक में चीन, तुर्की और मलेशिया भी पाकिस्तान के काम नहीं आ पाए .एफएटीएफ ने पाकिस्‍तान को फरवरी 2021 तक के लिए ग्रे लिस्‍ट में बरकरार रखा है. मौकापरस्त पाकिस्‍तान को उसके मौसमी दोस्‍तोंने ही धोखा दे दिया. इससे शर्मनाक और क्या होगा कि एफएटीएफ के 39 सदस्‍यों में से केवल एक तुर्की ने ही आतंकिस्तन को ग्रे लिस्‍ट से निकालने का समर्थन किया. कोई नाक वाला देश होता तो ऐसी करारी शिकस्‍त से कुछ सीखता, लेकिन बेशर्म पर कोई असर नहीं पड़ता. जून माह में बैठक प्रस्तावित थी, पर अक्तूबर तक टल गई. पांच महीनों का लाभ उठाया जा सकता था, लेकिन नीयत सही न हो तो कोई लाभ नहीं.

एफएटीएफ ने कहा कि पाकिस्तान ने आज तक हमारी 27 कार्ययोजनाओं में से प्रमुख छह को पूरा नहीं किय़ा है. अब इसे पूरा करने की समयसीमा खत्म हो गई है. इसलिए, एफएटीएफ 2021 तक पाकिस्तान से सभी कार्ययोजनाओं को पूरा करने का अनुरोध करता है. इसके साथ ही पाकिस्तान की बदनीयत और उदासी पर कहा कि नामित करने वाले चार देश-अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी भी पाकिस्तान की सरजमीं से गतिविधियां चला रहे आतंकी संगठनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की उसकी प्रतिबद्धता से संतुष्ट नहीं हैं.

ग्रे लिस्ट में बरकरार रहने से पाकिस्तान को मिलने वाले विदेशी निवेश पर प्रतिकूल असर पड़ने के साथ ही उसके आयात, निर्यात और आईएमएफ़ व एडीबी जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से कर्ज लेने की क्षमता भी प्रभावित होगी. ई-कॉमर्स और डिजिटल फाइनेंसिंग के लिए भी गंभीर बाधा बनी रहेगी. आतंकी गतिविधियों को बढ़ाने के एजेंडे के साथ तो कोई भीख के कटोरे में भी कुछ नहीं डालेगा. अब ये पाकिस्तान को तय करना है कि उसे चीन और तुर्की की कठपुतली बनकर अपने देश के लोगों का जीवन नरक बनाना है या लोकतांत्रिक मूल्यों और वैश्विक बंधुत्व व सहयोग भाव को अपनाकर दुर्दांत देश की संज्ञा के बदले आगे बढ़ना है.

श्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत

Sunday, October 25, 2020

विजयादशमी उत्सव (रविवार दि. 25 अक्तूबर 2020) के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत का दिया उद्बोधन

 ।।ॐ।।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
प. पू. सरसंघचालक डॉ. श्री मोहन जी भागवत का विजयादशमी उत्सव (रविवार दि. 25 अक्तूबर 2020) के अवसर पर दिया उद्बोधन


  

आज के इस विजयादशमी उत्सव के प्रसंग पर हम सब देख रहे हैं कि उत्सव संख्या की दृष्टि से कम मात्रा में मनाया जा रहा है। कारण भी हम सबको पता है। कोरोना वायरस के चलते सभी सार्वजनिक क्रियाकलापों पर बंधन है।

गत मार्च महीने से देश दुनिया में घटने वाली सभी घटनाओं को कोरोना महामारी के प्रभाव की चर्चा ने मानो ढक दिया है। पिछले विजयादशमी से अब तक बीते समय में चर्चा योग्य घटनाएं कम नहीं हुईं। संसदीय प्रक्रिया का अवलंबन करते हुए अनुच्छेद 370 को अप्रभावी करने का निर्णय तो विजयादशमी के पहले ही हो गया था। दीपावली के पश्चात् 9 नवंबर को श्रीरामजन्मभूमि के मामले में अपना असंदिग्ध निर्णय देकर सर्वोच्च न्यायालय ने इतिहास बनाया। भारतीय जनता ने इस निर्णय को संयम और समझदारी का परिचय देते हुए स्वीकार किया। यह मंदिर निर्माण के आरंभ का भूमिपूजन दिनांक 5 अगस्त को संपन्न हुआ, तब अयोध्या में समारोह स्थल पर हुए कार्यक्रम के तथा देशभर में उस दिन के वातावरण के सात्विक, हर्षोल्लासित परंतु संयमित, पवित्र व स्नेहपूर्ण वातावरण से ध्यान में आया। देश की संसद में नागरिकता अधिनियम संशोधन कानून पूरी प्रक्रिया को लागू करते हुए पारित किया गया। कुछ पड़ोसी देशों से सांप्रदायिक कारणों से प्रताड़ित होकर विस्थापित किए जाने वाले बन्धु, जो भारत में आएंगे, उनको मानवता के हित में शीघ्र नागरिकता प्रदान करने का यह प्रावधान था। उन देशों में साम्प्रदायिक प्रताड़ना का इतिहास है। भारत के इस नागरिकता अधिनियम संशोधन कानून में किसी संप्रदाय विशेष का विरोध नहीं है। भारत में विदेशों से आने वाले अन्य सभी व्यक्तियों को नागरिकता दिलाने के कानूनी प्रावधान, जो पहले से अस्तित्व में थे, यथावत् रखे गए थे। परन्तु कानून का विरोध करना चाहने वाले लोगों ने अपने देश के मुसलमान भाइयों के मन में उनकी संख्या भारत में मर्यादित करने के लिए यह प्रावधान है ऐसा भर दिया। उसको लेकर जो विरोध प्रदर्शन आदि हुए उनमें ऐसे मामलों का लाभ उठाकर हिंसात्मक तथा प्रक्षोभक तरीके से उपद्रव उत्पन्न करने वाले तत्त्व घुस गए। देश का वातावरण तनावपूर्ण बन गया तथा मनों में साम्प्रदायिक सौहार्द पर आँच आने लगी। इससे उबरने के उपाय का विचार पूर्ण होने के पहले ही कोरोना की परिस्थिति आ गई, और माध्यमों की व जनता की चर्चा में से यह सारी बातें लुप्त हो गईं। उपद्रवी तत्त्वों द्वारा इन बातों को उभार कर विद्वेष व हिंसा फैलाने के षड्यंत्र पृष्ठभूमि में चल रहे हैं। परन्तु जनमानस के ध्यान में आए अथवा उन तत्त्वों के पृष्ठपोषण का काम करने वालों को छोड़कर अन्य माध्यमों में उनको प्रसिद्धि मिल सके, यह बात कोरोना की चर्चा के चटखारों में नहीं हो सकी।

  

सम्पूर्ण विश्व में ही ऐसा परिदृश्य है। परन्तु विश्व के अन्य देशों की तुलना में हमारा भारत संकट की इस परिस्थिति में अधिक अच्छे प्रकार से खड़ा हुआ दिखाई देता है। भारत में इस महामारी की विनाशकता का प्रभाव बाकी देशों से कम दिखाई दे रहा है, इसके कुछ कारण हैं। शासन प्रशासन ने तत्परतापूर्वक इस संकट से समस्त देशवासियों को सावधान किया, सावधानी के उपाय बताए और उपायों का अमल भी अधिकतम तत्परता से हो इसकी व्यवस्था की। माध्यमों ने भी इस महामारी को अपने प्रसारण का लगभग एक मात्र विषय बना लिया। सामान्य जनता में यद्यपि उसके कारण अतिरिक्त भय का वातावरण बना, सावधानी बरतने में, नियम व्यवस्था का पालन करने में अतिरिक्त दक्षता भी समाज ने दिखाई यह लाभ भी हुआ। प्रशासन के कर्मचारी, विभिन्न उपचार पद्धतियों के चिकित्सक तथा सुरक्षा और सफाई सहित सभी काम करने वाले कर्मचारी उच्चतम कर्तव्यबोध के साथ रुग्णों की सेवा में जुटे रहे। स्वयं को कोरोना वायरस की बाधा होने की जोखिम उठाकर उन्होंने दिन-रात अपने घर परिवार से दूर रहकर युद्ध स्तर पर सेवा का काम किया। नागरिकों ने भी अपने समाज बंधुओं की सेवा के लिए स्वयंस्फूर्ति के साथ जो भी समय की आवश्यकता थी, उसको पूरा करने में प्रयासों की कमी नहीं होने दी। समाज में कहीं-कहीं इन कठिन परिस्थितियों में भी अपने स्वार्थ साधन के लिए जनता की कठिनाईयों का लाभ लेने की प्रवृत्ति दिखी। परन्तु बड़ा चित्र तो शासन-प्रशासन व समाज के सहयोग, सहसंवेदना व परस्पर विश्वास का ही रहा। समाज की मातृशक्ति भी स्वप्रेरणा से सक्रिय हुई। महामारी के कारण पीड़ित होकर जो लोग विस्थापित हो गए, जिनको घर में वेतन और रोजगार बंद होने से विपन्नता का और भूख का सामना करना पड़ा, वह भी प्रत्यक्ष उस संकट को झेलते हुए अपने धैर्य और सहनशीलता को बनाकर रखते रहे। अपनी पीड़ा व कठिनाई को किनारे करते हुए दूसरों की सेवा में वे लग गए, ऐसे कई प्रसंग अनुभव में आए। विस्थापितों को घर पहुंचाना, यात्रा पथ पर उनके भोजन विश्राम आदि की व्यवस्था करना, पीड़ित विपन्न लोगों के घर पर भोजन आदि सामग्री पहुँचाना, इन आवश्यक कार्यों में सम्पूर्ण समाज ने महान प्रयास किए। एकजुटता व संवेदनशीलता का परिचय देते हुए जितना बड़ा संकट था, उससे अधिक बड़ा सहायता का उद्यम खड़ा किया। व्यक्ति के जीवन में स्वच्छता, स्वास्थ्य तथा रोगप्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने वाली अपनी कुछ परंपरागत आदतें व आयुर्वेद जैसे शास्त्र भी इस समय उपयुक्त सिद्ध हुए।


अपने समाज की एकरसता का, सहज करुणा व शील प्रवृत्ति का, संकट में परस्पर सहयोग के संस्कार का, जिन सब बातों को सोशल कैपिटल ऐसा अंग्रेजी में कहा जाता है, उस अपने सांस्कृतिक संचित सत्त्व का सुखद परिचय इस संकट में हम सभी को मिला। स्वतंत्रता के बाद धैर्य, आत्मविश्वास व सामूहिकता की यह अनुभूति अनेकों ने पहली बार पाई है। समाज के उन सभी सेवाप्रेमी नामित, अनामिक, जीवित या बलिदान हो चुके बंधु भगिनियों का, चिकित्सकों का, कर्मचारियों का, समाज के सभी वर्गों से आने वाले सेवा परायण घटकों को श्रद्धापूर्वक शत शत नमन है। वे सभी धन्य है। सभी बलिदानियों की पवित्र स्मृति में हमारी हार्दिक श्रद्धांजलि है।

इस परिस्थिति से उबरने के लिए अब दूसरे प्रकार की सेवाओं की आवश्यकता है। शिक्षा संस्थान फिर से प्रारम्भ करना, शिक्षकों को वेतन देना, अपने पाल्यों को विद्यालय-महाविद्यालयों का शुल्क देते हुए फिर से पढ़ाई के लिए भेजना इस समय समस्या का रूप ले सकता है। कोरोना के कारण जिन विद्यालयों को शुल्क नहीं मिला, उन विद्यालयों के पास वेतन देने के लिए पैसा नहीं है। जिन अभिभावकों के काम बंद हो जाने के कारण बच्चों के विद्यालयों का शुल्क भरने के लिए धन नहीं है, वे लोग समस्या में पड़ गए हैं। इसलिए विद्यालयों का प्रारम्भ, शिक्षकों के वेतन तथा बच्चों की शिक्षा के लिए कुछ सेवा सहायता करनी पड़ेगी। विस्थापन के कारण रोजगार चला गया, नए क्षेत्र में रोजगार पाना है, नया रोजगार पाना है उसका प्रशिक्षण चाहिए, यह समस्या विस्थापितों की है। लौट कर गए हुए सब विस्थापित रोजगार पाते हैं, ऐसा नहीं है। विस्थापित के नाते चले गए बन्धुओं की जगह पर उसी काम को करने वाले दूसरे बन्धु सब जगह नहीं मिले हैं। अतः रोजगार का प्रशिक्षण व रोजगार का सृजन यह काम करना पड़ेगा। इस सारी परिस्थिति के चलते घरों में व समाज में तनाव बढ़ने की परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसी स्थिति में अपराध, अवसाद, आत्महत्या आदि कुप्रवृत्तियां ना बढ़ें, इसलिए समुपदेशन की व्यापक आवश्यकता है।

संघ के स्वयंसेवक तो मार्च महीने से ही इस संकट के संदर्भ में समाज में आवश्यक सब प्रकार के सेवा की आपूर्ति करने में जुट गए हैं। सेवा के इस नए चरण में भी वे पूरी शक्ति के साथ सक्रिय रहेंगे। समाज के अन्य बन्धु-बांधव भी लम्बे समय सक्रिय रहने की आवश्यकता को समझते हुए अपने अपने प्रयास जारी रखेंगे, यह विश्वास है।

कोरोना वायरस के बारे में पर्याप्त जानकारी विश्व के पास नहीं है। यह रूप बदलने वाला विषाणु है। बहुत शीघ्र फैलता है। परन्तु हानि की तीव्रता में कमजोर है, इतना ही हम जानते हैं। इसलिए लम्बे समय तक इसके साथ रहकर इससे बचना और इस बीमारी से तथा उसके आर्थिक एवम् सामाजिक परिणामों से अपने समाज बन्धुओं को बचाने का काम करते रहना पड़ेगा। मन में भय रखने की आवश्यकता नहीं, सजगतापूर्वक सक्रियता की आवश्यकता है। अब सब समाज व्यवहार प्रारम्भ होने पर नियम व अनुशासन का ध्यान रखना, रखवाना, हम सभी का दायित्व बनता है।

इस महामारी के विरुद्ध संघर्ष में समाज का जो नया रूप उभर कर आया है, उसके और कुछ पहलू हैं। सम्पूर्ण विश्व में ही अंतर्मुख होकर विचार करने का नया क्रम चला है। एक शब्द बार-बार सुनाई देता है, ”न्यू नॉर्मल।कोरोना महामारी की परिस्थिति के चलते जीवन लगभग थम सा गया। कई नित्य की क्रियाएं बंद हो गईं। उनको देखते हैं तो ध्यान में आता है कि जो कृत्रिम बातें मनुष्य जीवन में प्रवेश कर गई थीं, वे बंद हो गईं और जो मनुष्य जीवन की शाश्वत आवश्यकताएं हैं, वास्तविक आवश्यकताएं हैं, वे चलती रहीं। कुछ कम मात्रा में चली होंगी, लेकिन चलती रहीं। अनावश्यक और कृत्रिम वृत्ति से जुड़ी हुई बातों के बंद होने से एक हफ्ते में ही हमने हवा में ताजगी का अनुभव किया। झरने, नाले, नदियों का पानी स्वच्छ होकर बहता हुआ देखा। खिड़की के बाहर बाग-बगीचों में पक्षियों की चहक फिर से सुनाई देने लगी। अधिक पैसों के लिए चली अंधी दौड़ में, अधिकाधिक उपभोग प्राप्त करने की दौड़ में हमने अपने आपको जिन बातों से दूर कर लिया था, कोरोना परिस्थिति के प्रतिकार में वही बातें काम की होने के नाते हमने उनको फिर स्वीकार कर लिया और उनके आनंद का नए सिरे से अनुभव लिया। उन बातों की महत्ता हमारे ध्यान में आ गई। नित्य व अनित्य, शाश्वत और तात्कालिक, इस प्रकार का विवेक करना कोरोना की इस परिस्थिति ने विश्व के सभी मानवों को सिखा दिया है। संस्कृति के मूल्यों का महत्त्व फिर से सबके ध्यान में आ गया है और अपनी परम्पराओं में देश-काल-परिस्थिति सुसंगत आचरण का फिर से प्रचलन कैसे होगा इसकी सोच में बहुत सारे कुटुम्ब पड़े हुए दिखाई देते हैं।

विश्व के लोग अब फिर से कुटुम्ब व्यवस्था की महत्ता, पर्यावरण के साथ मित्र बन कर जीने का महत्त्व समझने लगे हैं। यह सोच कोरोना की मार की प्रतिक्रिया में तात्कालिक सोच है या शाश्वत रूप में विश्व की मानवता ने अपनी दिशा में थोड़ा परिवर्तन किया है यह बात तो समय बताएगा। परन्तु इस तात्कालिक परिस्थिति के कारण शाश्वत मूल्यों की ओर व्यापक रूप में विश्व मानवता का ध्यान खींचा गया है, यह बात निश्चित है।

आज तक बाजारों के आधार पर सम्पूर्ण दुनिया को एक करने का जो विचार प्रभावी व सब की बातों में था, उसके स्थान पर, अपने अपने राष्ट्र को उसकी विशेषताओं सहित स्वस्थ रखते हुए, अंतरराष्ट्रीय जीवन में सकारात्मक सहयोग का विचार प्रभावी होने लगा है। स्वदेशी का महत्त्व फिर से सब लोग बताने लगे हैं। इन शब्दों के अपनी भारतीय दृष्टि से योग्य अर्थ क्या हैं, यह सोच विचार कर हमको इन शाश्वत मूल्यों परम्पराओं की ओर कदम बढ़ाने पड़ेंगे।

इस महामारी के संदर्भ में चीन की भूमिका संदिग्ध रही यह तो कहा ही जा सकता है, परंतु भारत की सीमाओं पर जिस प्रकार से अतिक्रमण का प्रयास अपने आर्थिक सामरिक बल के कारण मदांध होकर उसने किया वह तो सम्पूर्ण विश्व के सामने स्पष्ट है। भारत का शासन, प्रशासन, सेना तथा जनता सभी ने इस आक्रमण के सामने अड़ कर खड़े होकर अपने स्वाभिमान, दृढ़ निश्चय व वीरता का उज्ज्वल परिचय दिया, इससे चीन को अनपेक्षित धक्का मिला लगता है। इस परिस्थिति में हमें सजग होकर दृढ़ रहना पड़ेगा। चीन ने अपनी विस्तारवादी मनोवृत्ति का परिचय इसके पहले भी विश्व को समय-समय पर दिया है। आर्थिक क्षेत्र में, सामरिक क्षेत्र में, अपनी अंतर्गत सुरक्षा तथा सीमा सुरक्षा व्यवस्थाओं में, पड़ोसी देशों के साथ तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में चीन से अधिक बड़ा स्थान प्राप्त करना ही उसकी राक्षसी महत्त्वाकांक्षा के नियंत्रण का एकमात्र उपाय है। इस ओर हमारे शासकों की नीति के कदम बढ़ रहे हैं ऐसा दिखाई देता है। श्रीलंका, बांग्लादेश, ब्रह्मदेश, नेपाल ऐसे हमारे पड़ोसी देश, जो हमारे मित्र भी हैं और बहुत मात्रा में समान प्रकृति के देश हैं, उनके साथ हमें अपने सम्बन्धों को अधिक मित्रतापूर्ण बनाने में अपनी गति तीव्र करनी चाहिए। इस कार्य में बाधा उत्पन्न करने वाले मनमुटाव, मतान्तर, विवाद के मुद्दे आदि को शीघ्रतापूर्वक दूर करने का अधिक प्रयास करना पड़ेगा।

हम सभी से मित्रता चाहते हैं। वह हमारा स्वभाव है। परन्तु हमारी सद्भावना को दुर्बलता मानकर अपने बल के प्रदर्शन से कोई भारत को चाहे जैसा नचा ले, झुका ले, यह हो नहीं सकता, इतना तो अब तक ऐसा दुःसाहस करने वालों को समझ में आ जाना चाहिए। हमारी सेना की अटूट देशभक्ति व अदम्य वीरता, हमारे शासनकर्ताओं का स्वाभिमानी रवैया तथा हम सब भारत के लोगों के दुर्दम्य नीति-धैर्य का जो परिचय चीन को पहली बार मिला है, उससे उसके भी ध्यान में यह बात आनी चाहिए। उसके रवैये में सुधार होना चाहिए। परन्तु नहीं हुआ तो जो परिस्थिति आएगी, उसमें हम लोगों की सजगता, तैयारी व दृढ़ता कम नहीं पड़ेगी, यह विश्वास आज राष्ट्र में सर्वत्र दिखता है।

राष्ट्र की सुरक्षा व सार्वभौम सम्प्रभुता को मिलने वाली बाहर की चुनौतियाँ ही ऐसी सजगता तथा तैयारी की माँग कर रही हैं ऐसा नहीं, देश में पिछले वर्ष भर में कई बातें समानांतर चलती रहीं, उनके निहितार्थ को समझते हैं तो इस नाजुक परिस्थिति में समाज की सावधानी, समझदारी, समरसता व शासन-प्रशासन की तत्परता का महत्त्व सब के ध्यान में आता है। सत्ता से जो वंचित रहे हैं, ऐसे सत्ता चाहने वाले राजनीतिक दलों के पुनः सत्ता प्राप्ति के प्रयास, यह प्रजातंत्र में चलने वाली एक सामान्य बात है। लेकिन उस प्रक्रिया में भी एक विवेक का पालन अपेक्षित है कि वह राजनीति में चलने वाली आपस की स्पर्धा है, शत्रुओं में चलने वाला युद्ध नहीं। स्पर्धा चले, स्वस्थ चले, परंतु उसके कारण समाज में कटुता, भेद, दूरियों का बढ़ना, आपस में शत्रुता खड़ी होना यह नहीं होना चाहिए। ध्यान रहे, इस स्पर्धा का लाभ लेने वाली, भारत को दुर्बल या खण्डित बनाकर रखना चाहने वाली, भारत का समाज सदा कलहग्रस्त रहे इसलिए उसकी विविधताओं को भेद बता कर, या पहले से चलती आई हुई दुर्भाग्यपूर्ण भेदों की स्थिति को और विकट व संघर्षयुक्त बनाते हुए, आपस में झगड़ा लगाने वाली शक्तियां, विश्व में हैं व उनके हस्तक भारत में भी हैं। उनको अवसर देने वाली कोई बात अपनी ओर से ना हो, यह चिंता सभी को करनी पड़ेगी। समाज में किसी प्रकार से अपराध की अथवा अत्याचार की कोई घटना हो ही नहीं, अत्याचारी व आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों पर पूर्ण नियंत्रण रहे और फिर भी घटनाएं होती हैं तो उसमें दोषी व्यक्ति तुरंत पकड़े जएं और उनको कड़ी से कड़ी सजा हो, यह शासन प्रशासन को समाज का सहयोग लेते हुए सुनिश्चित करना चाहिए। शासन-प्रशासन के किसी निर्णय पर या समाज में घटने वाली अच्छी बुरी घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया देते समय अथवा अपना विरोध जताते समय, हम लोगों की कृति, राष्ट्रीय एकात्मता का ध्यान व सम्मान रखकर, समाज में विद्यमान सभी पंथ, प्रांत, जाति, भाषा आदि विविधताओं का सम्मान रखते हुए व संविधान कानून की मर्यादा के अंदर ही अभिव्यक्त हो यह आवश्यक है। दुर्भाग्य से अपने देश में इन बातों पर प्रामाणिक निष्ठा न रखने वाले अथवा इन मूल्यों का विरोध करने वाले लोग भी, अपने आप को प्रजातंत्र, संविधान, कानून, पंथनिरपेक्षता आदि मूल्यों के सबसे बड़े रखवाले बताकर, समाज को भ्रमित करने का कार्य करते चले आ रहे हैं। 25 नवम्बर, 1949 के संविधान सभा में दिये अपने भाषण में श्रद्धेय डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने उनके ऐसे तरीकों को अराजकता का व्याकरण”(Grammer of Anarchy) कहा था। ऐसे छद्मवेषी उपद्रव करने वालों को पहचानना व उनके षड्यंत्रों को नाकाम करना तथा भ्रमवश उनका साथ देने से बचना समाज को सीखना पड़ेगा।

ऐसा भ्रम संघ के बारे में निर्माण न हो, इसीलिए संघ कुछ शब्दों का उपयोग क्यों करता है अथवा कुछ प्रचलित शब्दों को किस अर्थ में समझता है यह जानना आवश्यक है। हिन्दुत्व ऐसा ही एक शब्द है, जिसके अर्थ को पूजा से जोड़कर संकुचित किया गया है। संघ की भाषा में उस संकुचित अर्थ में उसका प्रयोग नहीं होता। वह शब्द अपने देश की पहचान को, अध्यात्म आधारित उसकी परंपरा के सनातन सातत्य तथा समस्त मूल्य सम्पदा के साथ अभिव्यक्ति देने वाला शब्द है। इसलिए संघ मानता है कि यह शब्द भारतवर्ष को अपना मानने वाले, उसकी संस्कृति के वैश्विक व सर्वकालिक मूल्यों को आचरण में उतारना चाहने वाले, तथा यशस्वी रूप में ऐसा करके दिखाने वाली उसकी पूर्वज परम्परा का गौरव मन में रखने वाले सभी 130 करोड़ समाज बन्धुओं पर लागू होता है। उस शब्द के विस्मरण से हमको एकात्मता के सूत्र में पिरोकर देश व समाज से बाँधने वाला बंधन ढीला होता है। इसीलिए इस देश व समाज को तोड़ना चाहने वाले, हमें आपस में लड़ाना चाहने वाले, इस शब्द को, जो सबको जोड़ता है, अपने तिरस्कार व टीका टिप्पणी का पहला लक्ष्य बनाते हैं। इससे कम व्याप्ति वाले शब्द जो हमारी अलग-अलग विशिष्ट छोटी पहचानों के नाम हैं तथा हिन्दू इस शब्द के अंतर्गत पूर्णतः सम्मानित व स्वीकार्य है, समाज को तोड़ना चाहने वाले ऐसे लोग उन विविधताओं को अलगाव के रूप में प्रस्तुत करने पर जोर देते हैं। हिन्दू किसी पंथ, सम्प्रदाय का नाम नहीं है, किसी एक प्रांत का अपना उपजाया हुआ शब्द नहीं है, किसी एक जाति की बपौती नहीं है, किसी एक भाषा का पुरस्कार करने वाला शब्द नहीं है। वह इन सब विशिष्ट पहचानों को कायम स्वीकृत व सम्मानित रखते हुए, भारत भक्ति के तथा मनुष्यता की संस्कृति के विशाल प्रांगण में सबको बसाने वाला, सब को जोड़ने वाला शब्द है। इस शब्द पर किसी को आपत्ति हो सकती है। आशय समान है तो अन्य शब्दों के उपयोग पर हमें कोई आपत्ति नहीं है। परन्तु इस देश की एकात्मता के व सुरक्षा के हित में, इस हिन्दू शब्द को आग्रहपूर्वक अपनाकर, उसके स्थानीय तथा वैश्विक, सभी अर्थों को कल्पना में समेटकर संघ चलता है। संघ जब हिन्दुस्थान हिन्दू राष्ट्र हैइस बात का उच्चारण करता है तो उसके पीछे कोई राजनीतिक अथवा सत्ता केंद्रित संकल्पना नहीं होती। अपने राष्ट्र का स्वत्व हिंदुत्व है। समस्त राष्ट्र जीवन के सामाजिक, सांस्कृतिक, इसलिए उसके समस्त क्रियाकलापों को दिग्दर्शित करने वाले मूल्यों का व उनकी व्यक्तिगत, पारिवारिक, व्यवसायिक और सामाजिक जीवन में अभिव्यक्ति का, नाम हिन्दू इस शब्द से निर्दिष्ट होता है। उस शब्द की भावना की परिधि में आने व रहने के लिए किसी को अपनी पूजा, प्रान्त, भाषा आदि कोई भी विशेषता छोड़नी नहीं पड़ती। केवल अपना ही वर्चस्व स्थापित करने की इच्छा छोड़नी पड़ती है। स्वयं के मन से अलगाववादी भावना को समाप्त करना पड़ता है। वर्चस्ववादी सपने दिखाकर, कट्टरपंथ के आधार पर, अलगाव को भड़काने वाले स्वार्थी तथा द्वेषी लोगों से बच कर रहना पड़ता है।

भारत की विविधता के मूल में स्थित शाश्वत एकता को तोड़ने का घृणित प्रयास इसी प्रकार, हमारे तथाकथित अल्पसंख्यक तथा अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों को, झूठे सपने तथा कपोलकल्पित द्वेष की बातें बता कर चल रहा है। भारत तेरे टुकड़े होंगेऐसी घोषणाएँ देने वाले लोग इस षड्यंत्रकारी मंडली में शामिल हैं, नेतृत्व भी करते हैं। राजनीतिक स्वार्थ, कट्टरपन व अलगाव की भावना, भारत के प्रति शत्रुता तथा जागतिक वर्चस्व की महत्वाकांक्षा, इनका एक अजीब सम्मिश्रण भारत की राष्ट्रीय एकात्मता के विरुद्ध काम कर रहा है। यह समझकर धैर्य से काम लेना होगा। भड़काने वालों के अधीन ना होते हुए, संविधान व कानून का पालन करते हुए, अहिंसक तरीके से व जोड़ने के ही एकमात्र उद्देश्य से हम सबको कार्यरत रहना पड़ेगा। एक दूसरे के प्रति व्यवहार में हम लोग संयमित, नियम कानून तथा नागरिक अनुशासन के दायरे में, सद्भावनापूर्ण व्यवहार करते हैं तो ही परस्पर विश्वास का वातावरण बनता है। ऐसे वातावरण में ही ठण्डे दिमाग से समन्वय से समस्या का हल  निकलता है। इससे विपरीत आचरण परस्पर अविश्वास को बढ़ावा देता है। अविश्वास की दृष्टि में समस्या का हल आंखों से ओझल हो जाता है। समस्या का स्वरूप भी समझना कठिन हो जाता है। केवल प्रतिक्रिया की, विरोध की, भय की भावना में अनियंत्रित हिंसक आचरण को बढ़ावा मिलता है, दूरियाँ और विरोध बढ़ते रहते हैं।

परस्पर व्यवहार में, आपस में हम सब संयमित व धैर्यपूर्वक व्यवहार रखकर विश्वास को तथा सौहार्द को बढ़ावा दे सकें, इसलिए सभी को अपनी सबकी एक बड़ी पहचान के सत्य को स्पष्ट स्वीकार करना पड़ेगा। राजनीतिक लाभ-हानि की दृष्टि से विचार करने की प्रवृत्ति को दूर रखना पड़ेगा। भारत से भारतीय अलग होकर जी नहीं सकते। ऐसे सब प्रयोग पूर्ण अयशस्वी हुए हैं, यह दृश्य हमारे आँखों के सामने दिख रहा है। स्वयं के कल्याण की बुद्धि हमको एक भावना में मिल जाने का दिशानिर्देश दे रही है, यह ध्यान में लेना होगा। भारत की भावनिक एकता व भारत में सभी विविधताओं का स्वीकार व सम्मान की भावना के मूल में हिन्दू संस्कृति, हिन्दू परम्परा व हिन्दू समाज की स्वीकार प्रवृत्ति व सहिष्णुता है, यह ध्यान में रखना पड़ेगा।

हिन्दूइस शब्द का उच्चारण संघ के लगभग प्रत्येक वक्तव्य में होते रहता है, फिर भी यहाँ पर फिर एक बार उसकी चर्चा इसलिए की जा रही है कि इससे सम्बन्धित और कुछ शब्द आजकल प्रचलित हो रहे हैं। उदाहरणार्थ स्वदेशी इस शब्द का आजकल बार-बार उच्चारण होता है। इसमें जो स्वत्व है वही हिन्दुत्व है। हमारे राष्ट्र के सनातन स्वभाव का उद्घोष स्वामी विवेकानंद जी ने, अमेरिका की भूमि से एक कुटुम्ब के रूप में सम्पूर्ण विश्व को देखते हुए, सर्वपंथसमन्वय के साथ स्वीकार्यता व सहिष्णुता की घोषणा के रूप में किया था। महाकवि श्री रविंद्रनाथ ठाकुर ने अपने स्वदेशी समाज में भारत के नवोत्थान की कल्पना इसी आधार पर स्पष्ट रूप से रखी थी। श्री अरविंद ने उसी की घोषणा अपने उत्तरपारा के भाषण में की थी। अट्ठारह सौ सत्तावन के पश्चात् हमारे देश के समस्त आत्ममंथन, चिन्तन तथा समाज जीवन के विविध अंगों में प्रत्यक्ष सक्रियता का सम्पूर्ण अनुभव हमारे संविधान की प्रस्तावना में गठित किया गया है। वह इसी हमारी आत्मा की घोषणा करता है। उस हमारी आत्मा या स्व के आधार पर, हमारे देश के बौद्धिक विचार मंथन की दिशा, उसके द्वारा किए जाने वाले सारासार विवेक, कर्तव्याकर्तव्यविवेक के निष्कर्ष निश्चित होने चाहिए। हमारे राष्ट्रीय मानस की आकांक्षाएँ, अपेक्षाएँ व दिशाएँ उसी के प्रकाश में साकार होनी चाहिए। हमारे पुरुषार्थ के भौतिक जगत में किए जाने वाले उद्यम के गंतव्य व प्रत्यक्ष परिणाम उसी के अनुरूप होने चाहिए। तब और तब ही भारत को स्वनिर्भर कहा जाएगा। उत्पादन का स्थान, उत्पादन में लगने वाले हाथ, उत्पादन के विनिमय से मिलने वाले आर्थिक लाभ व उत्पादन के अधिकार अपने देश में रहने चाहिए। परन्तु केवल मात्र इससे वह कार्यपद्धति स्वदेशी की नहीं बनती। विनोबा जी ने स्वदेशी को स्वावलम्बन तथा अहिंसा कहा है। स्वर्गीय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने कहा कि स्वदेशी केवल सामान व सेवा तक सीमित नहीं। इसका अर्थ राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता, राष्ट्रीय सम्प्रभुता तथा बराबरी के आधार पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग की स्थिति को प्राप्त करना है। भविष्य में हम स्वावलंबी बन सकें, इसलिये आज बराबरी की स्थिति तथा अपनी शर्तों के आधार पर अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक लेनदेन में हम किन्ही कम्पनियों को बुलाते अथवा हमारे लिये अपरिचित तकनीक लाने के लिये कुछ सहूलियत देते हैं तो, इसकी मनाई नहीं है। परन्तु यह सहमति का निर्णय होता है।

स्वावलम्बन में स्व का अवलम्बन अभिप्रेत है। हमारी दृष्टि के आधार पर हम अपने गंतव्य तथा पथ को निश्चित करते हैं। दुनिया जिन बातों के पीछे पड़ कर व्यर्थ दौड़ लगा रही है, उसी दौड़ में हम शामिल होकर पहले क्रमांक पर आते हैं तो इसमें पराक्रम और विजय निश्चित है। परन्तु स्व का भान व सहभाग नहीं है। उदाहरणार्थ कृषि नीति का हम निर्धारण करते हैं, तो उस नीति से हमारा किसान अपने बीज स्वयं बनाने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए। हमारा किसान अपने को आवश्यक खाद, रोगप्रतिकारक दवाइयाँ व कीटनाशक स्वयं बना सके या अपने गाँव के आस-पास पा सके यह होना चाहिए। अपने उत्पादन का भंडारण व संस्करण करने की कला व सुविधा उसके निकट उपलब्ध होनी चाहिए। हमारा कृषि का अनुभव गहरा व्यापक व सबसे लम्बा है। इसलिये उसमें से कालसुसंगत, अनुभवसिद्ध, परंपरागत ज्ञान तथा आधुनिक कृषि विज्ञान से देश के लिये उपयुक्त व सुपरीक्षित अंश, हमारे किसान को अवगत कराने वाली नीति हो। वैज्ञानिक निरीक्षण तथा प्रयोगों को अपने लाभ की सुविधा के अनुसार परिभाषित करते हुए, नीतियों को प्रभावित करके लाभ कमाने के कार्पोरेट जगत के  चंगुल में न फँसते हुए, अथवा बाजार या मध्यस्थों की जकड़न के जाल से अप्रभावित रहकर, अपना उत्पादन बेचने की उसकी स्थिति बननी चाहिए। तब वह नीति भारतीय दृष्टि की यानि स्वदेशी कृषि नीति मानी जाएगी। यह काम आज की प्रचलित कृषि व आर्थिक व्यवस्था में त्वरित हो ना सके यह संभव है, उस स्थिति में कृषि व्यवस्था व अर्थव्यवस्था को इन बातों के लिए अनुकूलता की ओर ले जाने वाली नीति होनी पड़ेगी, तब वह स्वदेशी नीति कहलाएगी।

अर्थ, कृषि, श्रम, उद्योग तथा शिक्षा नीति में स्व को लाने की इच्छा रख कर कुछ आशा जगाने वाले कदम अवश्य उठाए गए हैं। व्यापक संवाद के आधार पर एक नई शिक्षा नीति घोषित हुई है। उसका संपूर्ण शिक्षा जगत से स्वागत हुआ है, हमने भी उसका स्वागत किया है। Vocal for Local यह स्वदेशी संभावनाओं वाला उत्तम प्रारंभ है। परन्तु इन सब का यशस्वी क्रियान्वयन पूर्ण होने तक बारीकी से ध्यान देना पड़ेगा। इसीलिये स्व या आत्मतत्त्व का विचार इस व्यापक परिप्रेक्ष्य में सबने आत्मसात करना होगा, तभी उचित दिशा में चलकर यह यात्रा यशस्वी होगी।

हमारे भारतीय विचार में संघर्ष में से प्रगति के तत्त्व को नहीं माना है। अन्याय निवारण के अंतिम साधन के रूप मे ही संघर्ष मान्य किया गया है। विकास और प्रगति हमारे यहाँ समन्वय के आधार पर सोची गई है। इसलिए प्रत्येक क्षेत्र स्वतंत्र व स्वावलंबी तो बनता है, परन्तु आत्मीयता की भावना के आधार पर, एक ही राष्ट्र पुरुष के अंग के रूप में, परस्पर निर्भरता से चलने वाली व्यवस्था बनाकर, सभी का लाभ सभी का सुख साधता है। यह आत्मीयता व विश्वास की भावना, नीति बनाते समय, सभी सम्बन्धित पक्षों व व्यक्तियों से व्यापक विचार-विनिमय होकर, परस्पर सकारात्मक मंथन से सहमति बनती है, उससे निकलती है। सबके साथ संवाद, उसमें से सहमति, उसका परिणाम सहयोग, इस प्रक्रिया के कारण विश्वास, यह अपने आत्मीय जनों में, समाज में यश, श्रेय आदि प्राप्त करने की प्रक्रिया बताई गई है।

समानो मंत्रः समितिः समानी  समानं मनः सहचित्तमेषाम् ।

समानं  मंत्रमभिमंत्रये  वः  समानेन वो  हविषा जुहोमि।।

सौभाग्य से ऐसा विश्वास सभी के मन में, सभी विषयों पर उत्पन्न करने की क्षमता आज के राजनीतिक नेतृत्व के पास होने की आशा व अपेक्षा की जा सकती है। समाज व शासन के बीच प्रशासन का स्तर पर्याप्त संवेदनशील व पारदर्शी होने से यह कार्य और अधिक अच्छी तरह सम्पन्न किया जा सकता है। सहमति के आधार पर किए गए निर्णय बिना परिवर्तन के तत्परता पूर्वक जब लागू होते हुए दिखते हैं, तब यह समन्वय और सहमति का वातावरण और मजबूत होता है। घोषित नीतियों का क्रियान्वयन आखिरी स्तर तक किस प्रकार हो रहा है, उसके बारे में सजगता व नियंत्रण सदा ही आवश्यक रहता है। नीति निर्माण के साथ-साथ उसके क्रियान्वयन में भी तत्परता व पारदर्शिता रहने से नीति में अपेक्षित परिवर्तनों के लाभों को पूर्ण मात्रा में पा सकते हैं।

कोरोना की परिस्थिति में नीतिकारों सहित देश के सभी विचारवान लोगों का ध्यान, अपने देश की आर्थिक दृष्टि में, कृषि, उत्पादन को विकेंद्रित करने वाले छोटे व मध्यम उद्योग, रोजगार सृजन, स्वरोजगार, पर्यावरण मित्रता तथा उत्पादन के सभी क्षेत्रों में शीघ्र स्वनिर्भर होने की आवश्यकता की तरफ आकर्षित किया है। इन क्षेत्रों में कार्यरत हमारे छोटे-बड़े उद्यमी, किसान, आदि सभी इस दिशा में आगे बढ़कर देश के लिए सफलता पाने के लिए उत्सुक हैं। बड़े देशों की प्रचंड आर्थिक शक्तियों से स्पर्धा में शासन को उन्हें सुरक्षा कवच देना होगा। कोरोना की परिस्थिति  के चलते छह महीनों के अंतराल के बाद फिर खड़ा होने के लिए सहायता देने के साथ ही वह पहुँच रही है, यह भी सुनिश्चित करना होगा।

हमारे राष्ट्र के विकास व प्रगति के बारे में हमें अपनी भाव भूमि को आधार बनाकर, अपनी पृष्ठभूमि में, अपने विकास पथ का आलेखन करना पड़ेगा। उस पथ का गंतव्य हमारे राष्ट्रीय संस्कृति व आकांक्षा के अनुरूप ही होगा। सबको सहमति की प्रक्रिया में सकारात्मक रूप से हम सहभागी करा लें, अचूक, तत्परतापूर्ण और जैसा निश्चय होता है बिलकुल वैसा, योजनाओं का क्रियान्वयन सुनिश्चित करें। आखिरी आदमी तक इस विकास प्रक्रिया के लाभ पहुँचते हैं, मध्यस्थों व दलालों द्वारा लूट बंद होकर जनता जनार्दन सीधा विकास प्रक्रिया में सहभागी व लाभान्वित होते हैं, इसको देखेंगे, तभी हमारे स्वप्न सत्यता में उतर सकते हैं, अन्यथा उनके अधूरे रह जाने का खतरा बना रहता है।

उपरोक्त सभी बातों का महत्त्व है। परन्तु राष्ट्रोत्थान की सभी प्रक्रियाओं में समाज का दायित्व गुरुतर व मूलाधार का स्थान रखता है। कोरोना की प्रतिक्रिया के रूप में विश्व में जागृत हुआ स्वके महत्व का, राष्ट्रीयता का, सांस्कृतिक मूल्यों की महत्ता का, पर्यावरण का विचार व उसके प्रति कृति की तत्परता, कोरोना की परिस्थिति ढीली होते होते मंद होकर, फिर से समाज का व्यवहार, इन सब शाश्वत महत्त्व की उपकारक बातों की अवहेलना का न बन जाए। यह तभी सम्भव होगा जब सम्पूर्ण समाज निरंतर अभ्यासपूर्वक इसके आचरण को सातत्यपूर्ण और उत्तरोत्तर आगे बढ़ने वाला बनाएगा। अपने छोटे-छोटे आचरण की बातों में परिवर्तन लाने का क्रम बनाकर, नित्य इन सब विषयों के प्रबोधन के उपक्रम चलाकर, हम अपनी आदत के इस परिवर्तन को कायम रखकर आगे बढ़ा सकते हैं। प्रत्येक कुटुम्ब इसकी इकाई बन सकता है। सप्ताह में एक बार हम अपने कुटुम्ब में सब लोग मिलकर श्रद्धा अनुसार भजन व इच्छा अनुसार आनन्दपूर्वक घर में बनाया भोजन करने के पश्चात्, दो-तीन घण्टों की गपशप के लिए बैठ जाएँ और उसमें इन विषयों की चर्चा करते हुए उसके प्रकाश में, पूरे परिवार में आचरण का छोटा सा संकल्प लेकर, अगले हफ्ते की गपशप तक उसको परिवार के सभी सदस्यों के आचरण में लागू करने का कार्य, सतत कर सकते हैं। चर्चा ही आवश्यक है, क्योंकि विषय या वस्तु नई हो या पुरानी, उसका नयापन या पुरानापन उसकी उपयुक्तता सिद्ध नहीं करता। हर बात की परीक्षा करके ही उसकी उपयुक्तता व आवश्यकता को समझना चाहिए ,ऐसा तरीका हमारे यहाँ बताया गया है

संतः परीक्ष्यान्यतरद् भजन्ते मूढः परप्रत्ययनेय बुद्धिः।

परिवार में अनौपचारिक चर्चा में विषय वस्तु के सभी पहलुओं का ज्ञान, सारासारविवेक से उसकी वास्तविक आवश्यकता का ज्ञान तथा उसको अपनाने का अथवा छोड़ने का मन बनता है, तब परिवर्तन समझबूझ कर व स्वेच्छा से स्वीकार होने के कारण शाश्वत हो जाता है।

प्रारम्भ में हम अपने घर में रखरखाव, साजसज्जा, अपने कुटुम्ब की गौरव परम्परा, अपने कुटुम्ब के कालसुसंगत रीतिरिवाज, कुलरीति की चर्चा कर सकते हैं। पर्यावरण का विषय सर्वस्वीकृत व सुपरिचित होने से अपने घर में पानी को बचाकर उपयोग, प्लास्टिक का पूर्णतया त्याग व घर के आंगन में, गमलों में हरियाली, फूल, सब्जी बढ़ाने से लेकर वृक्षारोपण के उपक्रम कार्यक्रम तक कृति की चर्चा भी सहज व प्रेरक बन सकती है। हम सभी रोज स्वयं के लिए तथा कुटुम्ब के लिए समय व आवश्यकतानुसार धन का व्यय करते हुए कुछ ना कुछ उपयुक्त कार्य करते हैं। रोज समाज के लिए कितना समय व कितना व्यय लगाते हैं, यह चर्चा के उपरांत कृति के प्रारम्भ का विषय हो सकता है। समाज के सभी जाति भाषा प्रांत वर्गों में हमारे मित्र व्यक्ति व मित्र कुटुम्ब हैं कि नहीं? हमारा तथा उनका सहज आने-जाने का, साथ उठने-बैठने, खाने-पीने का सम्बन्ध है कि नहीं, यह सामाजिक समरसता की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण आत्मचिंतन कुटुम्ब में हो सकता है। इन सभी विषयों में समाज में चलने वाले कार्यक्रम, उपक्रम व प्रयासों में हमारे कुटुम्ब का योगदान हमारी सजगता व आग्रह का विषय हो सकता है। प्रत्यक्ष सेवा के कार्यक्रम उपक्रमों में जैसे रक्तदान, नेत्रदान आदि सहभागी होना अथवा समाज का मन इन कार्यों के लिये अनुकूल बनाना, ऐसी बातों में अपना कुटुम्ब योगदान दे सकता है।

ऐसे छोटे-छोटे उपक्रमों के द्वारा व्यक्तिगत जीवन में सद्भाव, शुचिता, संयम, अनुशासन सहित मूल्याधारित आचरण का विकास कर सकते हैं। उसके परिणाम स्वरूप हमारा सामूहिक व्यवहार भी नागरिक अनुशासन का पालन करते हुए परस्पर सौहार्द बढ़ाने वाला व्यवहार हो जाता है। प्रबोधन के द्वारा समाज के सामान्य घटकों का मन अपनी अंतर्निहित एकात्मता का आधारस्वर हिन्दुत्व को बना कर चले, तथा देश के लिए पुरुषार्थ में अपने राष्ट्रीय स्वरूप का आत्मभान, सभी समाज घटकों की आत्मीयतावश परस्पर निर्भरता, हमारी सामूहिक शक्ति सब कुछ कर सकती है, यह आत्मविश्वास तथा हमारे मूल्यों के आधार पर विकास यात्रा के गंतव्य की स्पष्ट कल्पना जागृत रहती है तो, निकट भविष्य में ही भारतवर्ष को सम्पूर्ण दुनिया की सुख शांति का युगानुकूल पथ प्रशस्त करते हुए, बन्धुभाव के आधार पर मनुष्य मात्र को वास्तविक स्वतंत्रता व समता प्रदान कर सकने वाला भारतवर्ष इस नाते खड़ा होता हुआ हम देखेंगे।

ऐसे व्यक्ति तथा कुटुम्बों के आचरण से सम्पूर्ण देश में बंधुता, पुरुषार्थ तथा न्याय नीतिपूर्ण व्यवहार का वातावरण चतुर्दिक खड़ा करना होगा। यह प्रत्यक्ष में लाने वाला कार्यकर्ताओं का देशव्यापी समूह खड़ा करने के लिए ही 1925 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्य कर रहा है। इस प्रकार की संगठित स्थिति ही समाज की सहज स्वाभाविक स्वस्थ अवस्था है। शतकों की आक्रमणग्रस्तता के अंधकार से मुक्त हुए अपने इस स्वतंत्र राष्ट्र के नवोदय की पूर्व शर्त यह समाज की स्वस्थ संगठित अवस्था है। इसी को खड़ा करने के लिए हमारे महापुरुषों ने प्रयत्न किए। स्वतंत्रता के पश्चात् इस गंतव्य को ध्यान में लेकर ही उसको युगानुकूल भाषा में परिभाषित कर उसके व्यवहार के नियम बताने वाला संविधान हमें मिला है। उसको यशस्वी करने के लिए पूरे समाज में यह स्पष्ट दृष्टि, परस्पर समरसता, एकात्मता की भावना तथा देश हित सर्वोपरि मानकर किया जाने वाला व्यवहार इस संघ कार्य से ही खड़ा होगा। इस पवित्र कार्य में प्रामाणिकता से, निस्वार्थ बुद्धि से व तन-मन-धन पूर्वक देशभर में लक्षावधि स्वयंसेवक लगे हैं। आपको भी उनके सहयोगी कार्यकर्ता बनकर देश के नवोत्थान के इस अभियान के रथ में हाथ लगाने का आवाहन करता हुआ मैं अपने शब्दों को विराम देता हूँ।

प्रश्न बहुत से उत्तर एक, कदम मिलाकर बढ़ें अनेक।

वैभव के उत्तुंग शिखर पर, सभी दिशा से चढ़ें अनेक।।

।। भारत माता की जय।।